इंदिरा गांधी के समय केरल में कैथोलिक चर्च का कांग्रेस की राजनीति पर खासा असर दिखता था. कहा जाता है कि इंदिरा गांधी चर्च के नेताओं से संपर्क बनाए रखती थीं और चुनावों के दौरान पार्टी मध्य केरल में उम्मीदवार तय करते समय उनकी राय भी लेती थी.
कांग्रेस के लिए यह वामपंथियों से लड़ने का एक आसान तरीका था. फिर, 1964 में कोट्टायम में कांग्रेस के एक बिखरे समूह को मिलाकर केरल कांग्रेस का गठन हुआ, जिसका नेतृत्व पी.टी. चाको कर रहे थे. चर्च ने केरल की राजनीति में अपनी जगह बनाने में नए संगठन का साथ दिया. पार्टी नेता के.एम. मणि के तौर पर चर्च को अपने मकसद को समझने वाला एक आदमी मिला. मणि का 2019 में 86 वर्ष की उम्र में निधन हो गया और उनके बेटे जोस के. मणि 2020 में लेफ्ट डेमोक्रेटिक फ्रंट (LDF) में शामिल हो गए.
चर्च ने एक लंबे समय तक छात्र राजनीति को प्रतिबंधित बनाए रखा. कैथोलिक मैनेजमेंट संचालित कॉलेजों को अपने कैंपस में होने वाली छात्र राजनीति पढ़ाई-लिखाई में बाधक नजर आती रही. हालांकि, अब बहुत कुछ बदल चुका है. चर्च अब युवाओं को सक्रिय राजनीति में शामिल होने और आने वाले स्थानीय निकाय चुनाव लड़ने के लिए प्रेरित कर रहे हैं. चर्च लीडर्स ने इलाके के हिसाब से प्राथमिकताओं की सूची के साथ अपने दूत राजनेताओं के पास भी भेजे हैं.
एर्नाकुलम से पूर्व लोकसभा MP और सुप्रीम कोर्ट के वकील डॉ. सेबेस्टियन पॉल ने इंडिया टुडे को बताया, “मैं राजनीतिक और लोकतांत्रिक मंचों पर युवाओं की भागीदारी को बढ़ावा देने के चर्च के रुख का स्वागत करता हूं. यह उसकी पुरानी पॉलिटिकल लाइन से अलग है. न सिर्फ चर्च बल्कि केरल के हर समुदाय को राजनीति में महिलाओं और युवाओं की सक्रिय भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिए.”
दरअसल, चर्च लीडर्स को एहसास हो रहा है कि केरल की राजनीति में उनके बारे में कम सोचा जा रहा है, खासकर ऐसे समय में जब सत्तारूढ़ LDF हावी है, कांग्रेस अपनी समस्याओं से जूझ रही है और BJP एक राजनीतिक विकल्प के तौर पर उभरने की कोशिश कर रही है. पुनालुर लैटिन डाइयोसिस (एक बिशप के तहत आने वाला क्षेत्र जहां कई चर्च हों ) के पूर्व यूथ कोऑर्डिनेटर फादर रोनाल्ड एम. वर्गीस का कहना है, “जाति, धर्म और पैसे की ताकत से आगे सोचने वाले और अच्छे नेताओं को राजनीति में आना चाहिए. तभी राज्य में सच्ची लोकतांत्रिक भावना कायम होगी.”
राज्य में स्थानीय निकाय चुनाव 9 और 11 दिसंबर को होने हैं, और नतीजे 13 दिसंबर को आएंगे. चुनावों में 23,576 से ज्यादा वार्ड, 2,079 ब्लॉक खंड और 331 जिला खंड शामिल होंगे. विधानसभा चुनावों से कुछ महीने पहले होने वाले निकाय चुनावों को LDF सरकार पर एक तरह का रेफरेंडम और जनता के मूड का बैरोमीटर माना जा रहा है.

