मध्य प्रदेश के सीहोर और देवास जिलों की सीमा पर एक निर्जन वन क्षेत्र में मिले 11वीं और 12वीं शताब्दी के 15 मंदिर अवशेषों ने हाल ही में पुरातत्वविदों और इतिहासकारों को का ध्यान अपनी ओर खींचा है. तीन मंदिरों का राज्य पुरातत्व विभाग की तरफ से जीर्णोद्धार किया गया है और अब उन्हें क्षेत्र में इकोटूरिज्म सर्किट से जोड़ा जा रहा है.
सीहोर जिले की जावर तहसील के देवबदला गांव से करीब 3 किलोमीटर दूर एक जंगली पहाड़ी पर स्थित ये मंदिर सदियों से खंडहर में तब्दील हो चुके हैं, और इनके बारे में सिर्फ स्थानीय लोगों को ही जानकारी है. इलाके के दौरे के दौरान, तत्कालीन सीहोर कलेक्टर सुदाम खाड़े को खंडहरों के बारे में पता चला और उन्होंने राज्य पुरातत्व विभाग को इसकी जानकारी दी.
डॉ. रमेश यादव के नेतृत्व में पुरातत्वविदों की एक टीम ने मंदिरों को उनकी मूल भव्यता में बहाल करने का काम अपने हाथ में लिया. यह काम सबसे पहले मंदिरों के आसपास खुदाई करके और चबूतरे को अभी की हालत में साफ-सुथरा निकालकर पूरा किया गया. इसका इस्तेमाल मंदिरों के साथ मिले अवशेषों को भी अपने पुरातन रूप में बहाल करने के लिए किया गया. मंदिर और आस-पास की संरचना को मजबूत करने के लिए कुछ चीजों की जरूरत थी, लेकिन वह क्षेत्रीय स्तर पर उपलब्ध नहीं हो सकी और उसे बाहर से मंगाया गया था.
डॉ. यादव बताते हैं, "मंदिरों की शैली 11वीं और 12वीं शताब्दी की बताई गई है. इनका निर्माण परमार शासकों ने करवाया था, जो इस क्षेत्र पर शासन करते थे. ये परमार वास्तुकला के कुछ बेहतरीन नमूने हैं."
परमार वंश, जो मालवा में भोपाल और धार के बीच के क्षेत्र को नियंत्रित करता था, वही वंश है जिससे 11वीं शताब्दी के प्रसिद्ध शासक राजा भोज संबंधित थे. भोपाल इस क्षेत्र का अंतिम इलाका था.
मंदिर के खंडहरों के आसपास खुदाई करने पर, देवी महेश्वरी और वैष्णवी की अत्यंत दुर्लभ मिश्रित छवि और आदिशक्ति और महागौरी की मूर्तियां मिलीं, जिन्हें अत्यंत दुर्लभ माना जाता है. ये मंदिर शिव, विष्णु, लक्ष्मीनारायण और कार्तिकेय को समर्पित हैं. यह स्थल नेवज नदी के स्रोत के करीब स्थित है.
वीएस वाकणकर पुरातत्व अनुसंधान संस्थान, उज्जैन की प्रमुख डॉ मनीषा शर्मा ने बताती हैं, "हम इकोटूरिज्म बोर्ड के साथ बातचीत कर रहे हैं, जिसने साइट को लोकप्रिय बनाकर और सड़क बनाने में मदद करके मंदिरों को इकोटूरिज्म मानचित्र पर लाने में मदद करने का वादा किया है. इससे अकादमिक समुदाय से लेकर आम जनता तक इन स्थलों में रुचि बढ़ाने में मदद मिलेगी." यह स्थल भोपाल-इंदौर राजमार्ग से लगभग 13 किमी दूर स्थित है. बचे हुए मंदिरों के जीर्णोद्धार का काम भी जारी है.