लखनऊ के अलीगंज में रहने वाले प्रकाश त्रिपाठी को अपने बिजली बिल की चिंता पहले कभी नहीं रहती थी. स्मार्ट मीटर लगने के बाद उन्हें लगा था कि सब कुछ आसान हो जाएगा. रियल टाइम खपत दिखेगी, गलत बिलिंग का झंझट खत्म होगा और लाइनमैन के चक्कर भी नहीं लगाने पड़ेंगे. लेकिन अगस्त 2020 की एक रात उनका मीटर अचानक बंद हो गया.
मोबाइल ऐप पर खपत शून्य दिख रही थी और अगले दिन सप्लाई कई घंटे ठप रही. प्रकाश अकेले नहीं थे. उस रात पूरे प्रदेश में 1.58 लाख स्मार्ट मीटर अचानक ग्रिड से कट गए और उपभोक्ता घंटों बिना सप्लाई के बैठे रहे. यही घटना आगे चलकर यूपी में स्मार्ट मीटर परियोजना की सबसे बड़ी पहचान बन गई, एक ऐसी योजना जो आधुनिक तकनीक और उपभोक्ता सुविधा के नाम पर शुरू हुई थी, लेकिन अब तक सरकार और बिजली निगमों के लिए लगातार परेशानी का कारण बनी है.
उत्तर प्रदेश में स्मार्ट मीटरिंग का विचार पहली बार 2018 में आकार लेने लगा था. उत्तर प्रदेश पावर कार्पोरेशन लिमिटेड (UPPCL) ने राज्य भर में 40 लाख स्मार्ट मीटर लगाने के लिए 17 अप्रैल 2018 को एनर्जी एफिशिएंसी सर्विसेज लिमिटेड (EESL) के साथ समझौता किया. EESL केंद्र सरकार की चार बड़ी ऊर्जा कंपनियों NTPC, REC, पावरग्रिड और PFC का संयुक्त उद्यम है. समझौते का मॉडल OPEX (ऑपरेटिंग खर्च या खर्च) था, जिसमें पूरा निवेश EESL करता और UPPCL मासिक भुगतान देता. इसका उद्देश्य तकनीक आधारित बिलिंग, लाइन लॉस में कमी और उपभोक्ताओं को सुगम सेवा देना था. लेकिन 2025 के अंत तक सिर्फ 12.04 लाख मीटर ही लगाए जा सके. जो मीटर लगे, उनमें कई खामियां दिखीं.
ये मीटर 2G और 3G नेटवर्क आधारित थे, जो उस समय धीरे धीरे अप्रासंगिक होते जा रहे थे. नेटवर्क कमजोर होने से डेटा ट्रांसमिशन नियमित नहीं था. ऐप अपडेट नहीं होता था और कई बार बिल अनुमान के आधार पर बनाना पड़ता था. उत्तर प्रदेश राज्य विद्युत उपभोक्ता परिषद (URVUP) के चेयरमैन अवधेश वर्मा कहते हैं कि प्रोजेक्ट जनता के पैसे की बर्बादी की मिसाल बन गया. करीब 960 करोड़ रुपये खर्च हुए और मीटर वैसे ही पड़े रह गए.
2019 में आश्वासन दिया गया था कि मीटरों को NB-IoT और LTE-M तकनीक पर अपग्रेड किया जाएगा, लेकिन ऐसा कभी नहीं हुआ. इसी बीच 12 अगस्त 2020 की रात जन्माष्टमी पर अचानक 1.58 लाख मीटर का ग्रिड से कट जाना पूरे प्रोजेक्ट के लिए बड़ा झटका था. मीटर डेटा मैनेजमेंट सिस्टम फेल हुआ और हजारों उपभोक्ता बिजली कटौती में फंस गए. उस समय के ऊर्जा मंत्री श्रीकांत शर्मा ने इसे तकनीकी लापरवाही बताते हुए इंस्टॉलेशन पर रोक लगा दी.
ऊर्जा विभाग के एक वरिष्ठ अधिकारी के अनुसार प्रोजेक्ट की बुनियाद ही कमजोर थी. OPEX मॉडल पर तेजी लाने की जिम्मेदारी EESL की थी लेकिन 2G और 3G नेटवर्क पर मीटर लगाने का फैसला ही गलत साबित हुआ. रेवेन्यू मैनेजमेंट सिस्टम (RMS) और मीटर डेटा मैनेजमेंट (MDM) को जोड़ने में कई बार समस्याएं आईं, लेकिन सुधार नहीं हुआ. पॉवर कार्पोरेशन के MD पंकज कुमार ने 5 दिसंबर 2025 को EESL को लिखे पत्र में लिखा कि RMS और MDM के इंटीग्रेशन न होने से डेटा की अखंडता प्रभावित हुई और सही बिलिंग व ऑडिटिंग संभव नहीं हो पाई.
केंद्र सरकार द्वारा अनिवार्य प्रीपेड फीचर भी ज्यादातर मीटरों में काम नहीं कर रहा था. उपभोक्ता ऐप पर बैलेंस नहीं देख पाते थे और कई बार बिना कारण डिस्कनेक्ट हो जाते थे. UPPCL ने 2023 में अधिक टेलीकॉम सेवा प्रदाताओं को शामिल करने की अनुमति दी थी, लेकिन EESL ने इस पर कोई कार्रवाई नहीं की. मीटर लंबे समय तक एक या दो नेटवर्क पर निर्भर रहे. इन गलतियों का असर सीधे उपभोक्ताओं पर पड़ा. लखनऊ के अलीगंज में प्रकाश त्रिपाठी के मीटर ने तीन महीने तक डेटा नहीं भेजा. बिल अनुमान पर बना और 40 फीसदी ज्यादा आया.
मथुरा के वृंदावन क्षेत्र में उपभोक्ता बताते रहे कि उनके मीटर अचानक प्री डिस्कनेक्ट मोड में चले जाते थे. वाराणसी में साल 2024 में 12 हजार मीटरों में से लगभग 30 फीसदी नियमित डेटा नहीं भेज रहे थे और विभाग को मैन्युअल रीडिंग लेनी पड़ रही थी. इन परेशानियों को देखते हुए UPPCL ने अब EESL के लगाए गए सभी 11.32 लाख एक्टिव 2G और 3G स्मार्ट मीटरों को हटाने का रोडमैप तैयार किया है. इन्हें एडवांस्ड प्रीपेड स्मार्ट मीटर से बदला जाएगा. लक्ष्य मार्च 2027 तक पूरा करना है.
ये मीटर “रिवैम्प डिस्ट्रीब्यूशन सेक्टर स्कीम” (RDSS) के तहत लगाए जाएंगे, जिनमें NB-IoT और LTE-M आधारित नेटवर्क होगा, रियल टाइम डेटा अपडेट होगा, प्रीपेड सिस्टम पूरी तरह डिजिटल होगा और बिलिंग विवाद कम होंगे. UPPCL के एक शीर्ष अधिकारी के अनुसार विभाग ने पिछली गलतियों से सीखा है और अब हर मीटर का एंड-टू-एंड इंटीग्रेशन अनिवार्य किया गया है. टेलीकॉम सेवा प्रदाताओं की संख्या बढ़ाई गई है और प्रीपेड सिस्टम को और मजबूत किया गया है. दूसरी ओर वित्तीय नुकसान बड़ा सवाल है. 960 करोड़ रुपये के मीटर अब हटाए जा रहे हैं और नई इंस्टॉलेशन पर 682 करोड़ रुपये और खर्च होंगे. यानी करीब 1,650 करोड़ रुपये की लागत दोबारा उठानी पड़ेगी. UPRVUP के अध्यक्ष अवधेश वर्मा ने हाई लेवल जांच और अधिकारियों की जवाबदेही तय करने की मांग की है.
ऊर्जा विशेषज्ञों का मानना है कि प्रोजेक्ट की नाकामी निजी कंपनियों पर अत्यधिक निर्भरता, कमजोर परीक्षण और जल्दबाजी में निर्णय लेने का परिणाम थी. IIT कानपुर के एक विशेषज्ञ के अनुसार अगर राज्य ने व्यापक पायलट टेस्ट किया होता तो यह स्थिति नहीं आती. दुनिया भर में स्मार्ट मीटर LTE-M और NB-IoT पर चल रहे थे लेकिन यूपी में पुराने नेटवर्क अपनाए गए. वर्ष 2023 में RDSS के तहत यूपी को 2.69 करोड़ स्मार्ट प्रीपेड मीटर लगाने की मंजूरी मिली. सरकार अब इसी मॉडल पर फोकस कर रही है. UPPCL अधिकारियों का दावा है कि नया प्रीपेड मॉडल बिलिंग को पारदर्शी बनाएगा और डिस्कॉम्स की वित्तीय हालत सुधारेगा.
हालांकि उपभोक्ता परिषद का कहना है कि इस बार भी अगर परीक्षण और मॉनिटरिंग मजबूत नहीं हुई तो पुरानी गलतियां दोहराई जा सकती हैं. ऊर्जा विशेषज्ञों के अनुसार स्मार्ट मीटरिंग सफल तभी होगी जब तकनीक में जल्दबाजी न हो, नेटवर्क टेस्टिंग व्यापक स्तर पर हो, निजी कंपनियों की जवाबदेही तय हो और शिकायत निवारण प्रणाली सुधरे. लखनऊ की रीमा श्रीवास्तव कहती हैं कि उन्हें स्मार्ट मीटर से शिकायत नहीं है बल्कि सिस्टम से है. अगर मीटर ठीक चले, ऐप सही अपडेट दे और बिल सही आए तो कोई समस्या नहीं होगी.
स्मार्ट मीटरिंग यूपी में बिजली के भविष्य को बदल सकती है, लेकिन पिछले सात वर्षों का अनुभव बताता है कि तकनीक आधारित योजनाओं में छोटी गलती भी लाखों उपभोक्ताओं को प्रभावित कर सकती है. UPPCL ने अब पुराने सिस्टम को हटाने का फैसला किया है. RDSS के तहत नया प्रीपेड मॉडल शायद वह भरोसा लौटा सके जिसकी कमी ने इस प्रोजेक्ट को गहरे संकट में डाल दिया था. लेकिन यह भी साफ है कि अगर जवाबदेही तय नहीं हुई और मॉनिटरिंग मजबूत नहीं हुई तो स्मार्ट मीटरिंग सिर्फ एक और महंगा प्रयोग बनकर रह जाएगी.

