उत्तर प्रदेश के कर विभाग में यौन उत्पीड़न के मामले में अबतक की सबसे बड़ी कार्रवाई हुई जब 5 अगस्त को मथुरा में तैनात डिप्टी कमिश्नर कमलेश कुमार पांडेय सहित सात अधिकारियों को निलंबित कर दिया गया. बाकी छह सदस्य आंतरिक परिवाद समिति (विशाखा) के सदस्य हैं, जिन पर आरोपी डिप्टी कमिश्नर को बचाने के आरोप है.
सभी का निलंबन आदेश विभाग के संयुक्त सचिव रघुबीर प्रसाद ने जारी किया. कमलेश कुमार पांडेय राज्य कर विभाग मथुरा खंड एक में तैनात हैं. उनकी अधीनस्थ महिला अधिकारी ने यौन शोषण का आरोप लगाया था. कई चरणों की जांच के बाद पांडेय को “उत्तर प्रदेश सरकारी सेवक (अनुशासन एवं अपील) नियमावली” के अंतर्गत निलंबित करके संयुक्त आयुक्त बांदा कार्यालय से सम्बद्ध कर दिया गया है.
राज्य कर विभाग में यौन उत्पीड़न की घटना पर कार्रवाई से पांच दिन पहले 31 जुलाई को समाज कल्याण विभाग में भी एक मामला सामने आया था. असीम अरुण उत्तर प्रदेश के समाज कल्याण, अनुसूचित जाति एवं जनजाति कल्याण राज्य मंत्री (स्वतंत्र प्रभार) हैं. यह कथित घटना विभाग के मुख्यालय, लखनऊ स्थित भागीदारी भवन (एक सरकारी कार्यालय) में हुई.
31 जुलाई को महिला भावनात्मक रूप से व्यथित अवस्था में मंत्री के पास पहुंची और आरोप लगाया कि निजी सचिव जय किशन सिंह लंबे समय से उसे अश्लील इशारे कर रहे थे और परेशान कर रहे थे. अपनी आपबीती सुनाते हुए वह फूट-फूटकर रो पड़ी, जिसके बाद मंत्री ने उसे न्याय का आश्वासन दिया. दोपहर करीब साढ़े तीन बजे मंत्री असीम अरुण कार्यालय पहुंचे और जय किशन सिंह से आरोपों के बारे में पूछताछ की. जब सिंह ने कथित तौर पर मामले को टालने की कोशिश की, तो मंत्री ने तुरंत पुलिस को परिसर में बुला लिया. कुछ ही देर बाद पुलिस की एक टीम पहुंची और महिला ने मंत्री की मौजूदगी में एक लिखित शिकायत दर्ज कराई. पुलिस ने आरोपी निजी सचिव को गिरफ्तार कर जेल भेज दिया.
यूपी सरकार के सरकारी (और निजी) कार्यालयों में कार्यरत महिलाओं के साथ उत्पीड़न (ज्यादती, छेड़छाड़, यौन उत्पीड़न आदि) को रोकने, शिकायत निवारण और सुरक्षा सुनिश्चित करने के कई प्रावधान यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर पूरी तरह से अंकुश लगाने में विफल साबित हुए हैं. राज्य कर विभाग में तैनात एक महिला कर्मचारी नाम न छापने की शर्त पर बताती हैं, “सरकारी कार्यालयों में यौन उत्पीड़न रोकने के लिए बनी कमेटी इतनी शक्तिशाली नहीं होती कि वह किसी बड़े विभागीय अफसर पर कार्रवाई की संस्तुति कर सके. ऐसे में इन समितियों का रवैया पीड़ित महिला से समझौता करने हेतु दबाव डालने का ही होता है.”
राज्य कर विभाग में सामने आए यौन उत्पीड़न के मामले में ऐसा ही वाकया सामने आया है. महिला अधिकारी की ओर से लगाए गए आरोपों की जांच का जिम्मा आंतरिक परिवाद समिति (विशाखा) को दिया गया था. छह सदस्यीय समिति पर आरोप हैं कि जांच के नाम पर आरोपी अधिकारी को बचाने का प्रयास किया और अपनी जिम्मेदारी का पालन नहीं किया. इस पर आंतरिक परिवाद समिति के सभी छह सदस्यों को निलंबित कर दिया गया है. यूपी में यह पहला मौका है जब विशाखा समिति के सभी सदस्यों पर गड़बड़ी बरतने के आरोप में कार्रवाई की गई हो.
हालांकि समाज कल्याण राज्यमंत्री (स्वतंत्र प्रभार) असीम अरुण के निजी सचिव के छेड़छाड़ के आरोपों में फंसने के बाद विभाग को 'कार्यस्थल पर महिलाओं का यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और प्रतितोष) अधिनियम 2013' की याद आई है. असीम अरुण ने सोशल मीडिया पर जानकारी दी है, "कार्यस्थल पर महिलाओं के यौन उत्पीड़न (रोकथाम, निषेध और निवारण) अधिनियम, 2013 के तहत राज्य भर में समाज कल्याण विभाग के सभी कार्यस्थलों या उन परिसरों (स्कूल, वृद्धाश्रम आदि) में जहां विभाग के अधिकारी/कर्मचारी कार्यरत हैं, जागरूकता कार्यशालाएं आयोजित की जाएंगी. हमें हर कार्यस्थल पर एक सुरक्षित और सम्मानजनक वातावरण सुनिश्चित करना होगा." महज जागरूकता कार्यक्रम यौन उत्पीड़न की घटनाओं पर लगाम लगा पाएंगे, अभी तक की घटनाओं से तो ऐसा नहीं लग रहा है.
सरकारी ऑफिसों में महिला सुरक्षा के लिए मुख्य इंतजाम
1. आंतरिक शिकायत समिति (विशाखा समिति)
- पोश एक्ट 2013 (Prevention of Sexual Harassment at Workplace Act) के तहत 10 या अधिक कर्मचारियों वाले कार्यालयों में ICC बनाना अनिवार्य है. इसमें महिलाएँ अपनी शिकायतें दर्ज करा सकती हैं.
- विशेष तौर पर यूपी सचिवालय में इस समिति को विस्तार से पुनर्गठित किया गया है, सभी गैर‑आइएएस स्तरीय कर्मचारियों के लिए लागू होता है.
2. सुरक्षा उपाय एवं व्यवस्था
- महिला कर्मचारियों को ज्यादा देर तक काम न करवाया जाए, रात्रि आना‑जाना सीसीटीवी, प्रकाश व्यवस्था और ड्रॉप‑प्वाइंट्स से सुरक्षित हो.
- रात में अगर जरूरी हो, तो यूपी‑112 की पीआरवी से महिला कर्मचारियों को घर तक सुरक्षित पहुंचाने की व्यवस्था करने का निर्देश है.
3. महिला सम्मान प्रकोष्ठ
- लखनऊ में स्थापित यह इकाई महिलाओं से संबंधित सभी अपराधों, शिकायतों और केसों की निगरानी करती है. इसमें वरिष्ठ महिला पुलिस अधिकारी प्रभारी हैं.
- प्रत्येक जिले में महिला एवं बाल सुरक्षा संगठन (WCSO) की इकाइयां मौजूद हैं, जो महिला‑बाल अपराधों की शिकायत‑निवारण और समन्वय‑सहायता करती हैं.
4. महिला हेल्पलाइन एवं सहायता
- वीमेन पावर लाइन‑1090: महिलाओं को छेड़छाड़, उत्पीड़न आदि से तत्काल मदद देने के लिए 24×7 कॉल सेंटर है.
- 181 - वीमेन हेल्पलाइन : राज्यव्यापी टोल‑फ्री हेल्पलाइन, जो कानूनी सहायता, काउंसलिंग इत्यादि प्रदान करती हैं.
5. जेंडर सेंसिटाइजेशन एवं प्रशिक्षण
- पुलिस विभाग द्वारा समय‑समय पर सभी पुलिसकर्मियों और सार्वजनिक संस्थानों में प्रशिक्षण, लैंगिक जागरूकता (gender sensitization) और POSH एक्ट की जानकारी देने का निर्देश है.
6. तेज न्याय और ट्रैकिंग सिस्टम
- यूपी ने यौन उत्पीड़न मामलों की निपटान दर में देश में पहला स्थान प्राप्त किया- अप्रैल 2018 से जून 2025 तक लगभग 98.6 फीसदी मामलों का निपटारा हो चुका.
- ITSSO (Investigation Tracking System for Sexual Offences) के सहारे मामलों की आधिकारिक निगरानी होती है.
- मिशन शक्ति कार्यक्रम के अंतर्गत फास्ट‑ट्रैक कोर्ट्स, महिला थाने, आर्थिक सहायता एवं परामर्श सुविधा प्रदान की जा रही है.
प्रभावी क्यों नहीं हो रहे नियम-कानून
1. रिपोर्ट न करने की संस्कृति:
- महिलाओं को उत्पीड़न की घटनाएं अक्सर रिपोर्ट नहीं की जातीं, क्योंकि उन्हें प्रतिशोध, करियर प्रभावित होने, या सामाजिक कलंक का डर रहता है. कई बार संस्थान या सहकर्मी शिकायत को तुच्छ मानते हुए महिला को ही "ट्रबलमेकर" कह देते हैं.
- शिकायतकर्ता कर्मचारियों को यह भरोसा नहीं होता कि कार्रवाई होगी, जिससे अंततः मामलों को ख़ामोशी से झेलने की प्रवृत्ति बनी रहती है.
2. POSH ऐक्ट का अधूरा कार्यान्वयन
- कई सरकारी कार्यालयों में POSH एक्ट के तहत बनाए जाने वाली Internal Complaints Committee (ICC) आज भी स्थापित नहीं हैं, जबकि जब‑तब शिकायत होती है तब ही इन्हें बनाया जाता है.
- ICC सदस्यों, शिकायत प्रक्रिया, इन्क्वायरी की समयसीमा जैसे मुद्दों पर सरकारें हालांकि दिशानिर्देश जारी करती हैं लेकिन निगरानी अक्सर कमजोर होती है.
3. जांच और लागू करने में कमी
- UP ने 98.6% मामलों को निस्तारित करने का दावा किया है, लेकिन आलोचक कहते हैं कि जल्द निपटान संख्या बढ़ाने के चक्कर में वास्तविक और प्रभावी कार्रवाई प्रभावित होती है.
- कुछ मामलों में शिकायतकर्ता को कांप्लायंस के दौरान प्रेशर या समझौते का सामना करना पड़ता है, जिससे FIR दर्ज ना हो और इससे न्याय प्रणाली से विश्वास खत्म हो जाता है.
4. संस्थानिक और सामाजिक पूर्वाग्रह
- सामाजिक जानकारों के मुताबिक पुलिस व अधिकारियों में अभी भी पितृसत्तात्मक दृष्टिकोण और पूर्वाग्रह मौजूद हैं- विशेषकर दलित या कमजोर वर्ग की महिलाओं के मामलों में.
- शिकायतकर्ता महिला को ही शक की निगाह से देखा जाता है; कई बार मानहानि या अनुचित टिप्पणियों का सामना करना पड़ता है.
5. साक्षरता व जागरूकता की कमी
- POSH एक्ट और शिकायत प्रक्रिया से संबंधित जागरूकता कम होती है. जहां जागरूकता सत्र आयोजित होते हैं, वहीं छोटे कार्यालयों या ग्रामीण क्षेत्रों में यह पहुंच नहीं पाती.
- कामकाजी महिलाओं को सुरक्षा देने के लिए कई जागरूकता अभियान हैं, लेकिन वास्तविक प्रभाव तभी महसूस होता है जब व्यवहार और कार्यप्रणाली बदलती है; केवल बोर्ड लगाने या प्रशिक्षण देना पर्याप्त नहीं.
6. संस्कृति में बदलाव की कमी
- सरकारी दफ्तरों के सिस्टम में अभी भी वरिष्ठता, नीति, क्रोनिज़्म जैसे तत्व प्रभावी हैं, जिससे शिकायत कराने वाली महिला को संस्थापक संरचना के खिलाफ जाना पड़ता है.
- उच्च स्तर पर नेता‑पदाधिकारियों के संरक्षण या छूट जैसे भरोसे कर्मचारी शिकायत से दूर रहते हैं.