scorecardresearch

मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन को क्यों हटाना चाहते हैं विपक्षी सांसद?

मद्रास हाईकोर्ट के जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन सिर्फ अपने फैसलों से ही नहीं, बल्कि भाषणों के चलते भी विवादों में रहे हैं

विपक्षी सांसद लोकसभा स्पीकर ओम बिड़ला के कक्ष में
अपडेटेड 11 दिसंबर , 2025

विपक्षी दलों के 100 से अधिक सांसदों ने 9 दिसंबर को लोकसभा अध्यक्ष को मद्रास हाईकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस जी.आर. स्वामीनाथन को हटाने संबंधी प्रस्ताव लाने का नोटिस दिया. इसे न्यायपालिका को लेकर संसद में सबसे नाटकीय टकरावों में से एक कहा जा सकता है. जानकारों की मानें तो इस मामले में केवल मदुरै का एक विवादित अदालती आदेश ही दांव पर नहीं है बल्कि न्यायिक आचरण, न्यायाधीशों की तरफ से दिए वैचारिक संकेतों और संवैधानिक जवाबदेही से जुड़े कई बड़े सवाल भी उठ रहे हैं.

मामले की तात्कालिक वजह थिरुपरणकुंद्रम कार्तिगई दीपम मामले में जस्टिस स्वामीनाथन का एक आदेश था. 1 दिसंबर को जारी आदेश में उन्होंने कहा था कि अनुष्ठान से जुड़ा दीपक पहाड़ की चोटी- जिस पर मंदिर और दरगाह दोनों हैं- पर स्थित प्राचीन पत्थर के स्तंभ पर प्रज्वलित किया जाए न कि निचले मंडपम में, जहां दशकों से इसे प्रज्वलित किया जाता रहा है.

तमिलनाडु सरकार और मंदिर प्रशासन ने कानून-व्यवस्था संबंधी चिंताओं और लंबे समय से जारी प्रथा में बदलाव से सांप्रदायिक तनाव उत्पन्न उपजने के खतरे का हवाला देते हुए इसका विरोध किया. जब राज्य ने अदालती आदेश का पालन नहीं किया, तो न्यायाधीश ने अवमानना की कार्यवाही शुरू की और याचिकाकर्ताओं को केंद्रीय औद्योगिक सुरक्षा बल (CISF) की सुरक्षा में अनुष्ठान की अनुमति दे दी.

न्यायिक निर्देश, कार्यपालिका के प्रतिरोध और अवमानना बताकर फैसले को लागू कराने की न्यायिक पहल ने एक स्थानीय रस्म को राष्ट्रीय स्तर पर बड़े विवाद में बदल दिया. विपक्षी सांसदों का कहना है कि इस मामले से “न्यायपालिका की निष्पक्षता, पारदर्शिता और धर्मनिरपेक्ष कार्यप्रणाली के संबंध में गंभीर सवाल उठाता है.” विपक्षी सांसदों ने महाभियोग नोटिस में मुख्य रूप से तीन आधार बनाए- वैचारिक पूर्वाग्रह, वरिष्ठ अधिवक्ता के प्रति अनुचित पक्षपात और कथित तौर पर संवैधानिक तटस्थता के विरुद्ध आचरण.

दीपम फैसले के अलावा भी कई बार कानूनी गलियारों में जस्टिस स्वामीनाथन की आलोचना होती रही है, जिसकी मुख्य वजह सार्वजनिक कार्यक्रमों में उनके भाषण थे. पर्यवेक्षकों के मुताबिक, पिछले वर्ष वैदिक विमर्श पर एक कार्यक्रम के दौरान उन्होंने हादसे में मृत्यु के मामले में बतौर वकील एक “वैदिक विद्वान” का मुकदमा लड़ने का जिक्र किया था, और टिप्पणी की थी- “अगर आप वेदों की रक्षा करते हैं तो वेद आपकी रक्षा करते हैं.”

वकीलों और जानकारों की दलील है कि एक मौजूदा न्यायाधीश का धार्मिक दर्शन को कानूनी फैसलों से जोड़ना न्यायिक निष्पक्षता की धारणा को कमजोर करने का जोखिम पैदा करता है. न्यायाधीश अक्सर सार्वजनिक व्याख्यानों में दार्शनिक या सांस्कृतिक संदर्भों का सहारा लेते हैं लेकिन विपक्ष का तर्क है कि सांप्रदायिक लिहाज से संवेदनशील मामलों में जस्टिस स्वामीनाथन की टिप्पणियां और फैसले दक्षिणपंथी विचारधारा से निकटता को लेकर चिंताएं उत्पन्न करते हैं.

थिरुपरणकुंद्रम मामले ने पहले के मामलों की तुलना में समीक्षा को और भी जरूरी बना दिया है. यह पहाड़ी तमिलनाडु के बहुआयामी धार्मिक सहअस्तित्व का प्रतीक है: दशकों से एक मुरुगन मंदिर और एक दरगाह साथ-साथ स्थित हैं. आलोचकों का तर्क है कि पहाड़ी की चोटी पर दीपक जलाने का निर्देश देना और प्रशासन की स्पष्ट चेतावनियों के बावजूद आदेश को लागू कराने की कोशिश से संतुलन बिगड़ने का जोखिम उत्पन्न होता है. यही नहीं, वे लंबे समय से चली आ रही एक धार्मिक प्रथा में दखल के आधार पर प्रक्रियात्मक सवाल भी उठाते हैं.
बहरहाल, पूरे मामले पर राजनीतिक प्रतिक्रिया भी तुरंत सामने आई. तमिलनाडु में BJP के प्रवक्ता नारायणन तिरुपति ने कहा कि महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस अगले साल होने वाले विधानसभा चुनावों से पहले राजनीतिक उद्देश्यों से प्रेरित है. उन्होंने द्रविड़ मुन्नेत्र कषगम (DMK) सरकार पर कोर्ट के आदेश का पालन न करके संविधान के विरुद्ध कार्य करने का आरोप लगाया और महाभियोग प्रस्ताव को अवमानना से बचने का प्रयास बताया.

महाभियोग प्रस्ताव के प्रारंभिक जांच प्रक्रिया से आगे बढ़ने की संभावना नहीं के बराबर है. लेकिन जानकारों का कहना है कि इस घटनाक्रम ने न्यायपालिका को राजनीतिक और सामाजिक लिहाज से और भी अधिक संवेदनशील बना दिया है, खासकर तब जब उसके फैसले पहचान आधारित विवादों से जुड़े हों.

इस बीच, जिस दिन महाभियोग प्रस्ताव का नोटिस पेश किया गया, उसी दिन जस्टिस स्वामीनाथन अपनी अदालत में दीपम विवाद से संबंधित अवमानना याचिका की सुनवाई कर रहे थे. समानांतर प्रक्रियाएं शायद इस विवाद की जटिलता को ज्यादा सटीक ढंग से दर्शाती हैं.

- कविता मुरलीधरन

Advertisement
Advertisement