राजस्थान में इस समय बीजेपी के एक विधायक का मामला खुद सत्ताधारी पार्टी के लिए गले की फांस बनता दिख रहा है तो वहीं कांग्रेस भी इसको बहुत जोर-शोर से उठा रही है. दरअसल 20 साल पुराने एक मामले में बारां जिले के अंता से बीजेपी विधायक कंवरलाल मीणा को 2020 में एक निचली अदालत ने तीन साल की सजा सुनाई थी.
फिर इस फैसले के खिलाफ कंवरलाल मीणा ने हाई कोर्ट में अपील की लेकिन 2 मई 2025 को हाई कोर्ट ने भी उनकी सजा को बरकार रखा. इसके बाद उन्होंने सुप्रीम कोर्ट में अपील की और वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिल पाई.
दोषी साबित होने के बाद उनकी विधानसभा सदस्यता भंग हो जानी थी लेकिन विधानसभा अध्यक्ष वासुदेव देवनानी ने इस पर कोई फैसला नहीं किया. इसी के चलते राज्य में सियासी तूफान खड़ा हो गया है.
विधायक की सदस्यता रद्द नहीं किए जाने पर कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष व लक्ष्मणगढ़ विधायक गोविंद सिंह डोटासरा ने विधानसभा की एक अहम समिति से इस्तीफा दे दिया है वहीं विपक्ष के नेता टीकाराम जूली के नेतृत्व में कांग्रेस विधायक दल ने राज्यपाल से मुलाकात कर आपराधिक छवि के विधायक कंवरलाल मीणा की विधानसभा सदस्यता रद्द किए जाने की गुहार लगाई है.
हालांकि कंवरलाल मीणा ने सुप्रीम कोर्ट में एक रिव्यू पिटीशन भी दाखिल की है. इस पर अभी फैसला नहीं आया है जबकि उन्हें 21 मई तक सरेंडर करना है.
क्या था मामला
वह साल 2005 की 3 फरवरी की तारीख थी. सुबह के 11 बजे का वक्त था. राजस्थान के झालावाड़ जिले के खाताखेड़ी गांव में करीब 400-500 लोगों ने दो दिन पहले हुए उपसरपंच चुनाव में अनियमितताओं के आरोप लगाते हुए पुनर्मतदान की मांग को लेकर दांगीपुरा-राजगढ़ सड़क मार्ग को जाम कर दिया. स्थानीय भाजपा विधायक कंवरलाल मीणा अपने समर्थकों के साथ वहां मौजूद थे. अकलेरा के तत्कालीन उपखंड अधिकारी (एसडीएम) रामनिवास मेहता भी मौके पर पहुंचकर शांति बनाने का प्रयास कर रहे थे तभी विधायक कंवरलाल मीणा ने मेहता की कनपटी पर पिस्तौल तान दी.
चश्मदीदों के मुताबिक तब विधायक ने एसडीएम से कहा था कि अगर वे पुनर्मतदान का आदेश जारी नहीं करेंगे तो उन्हें गोली मार देंगे. चुनाव आयोग और प्रशासन की ओर से बुलाए गए फोटोग्राफर ने जब इस घटना की वीडियो रिकॉर्डिंग करनी चाही तो कंवरलाल ने उनके हाथ से कैमरे छीनकर वीडियो कैसेट को आग के हवाले कर दिया. पुलिस और प्रशासन ने बड़ी मुश्किल से विधायक को काबू किया.
एसडीएम ने इस घटना की जानकारी तत्कालीन कलेक्टर नरेशपाल गंगवार को दी और उन्होंने पुलिस अधीक्षक को विधायक के खिलाफ मुकदमा दर्ज करने के आदेश दिए. 5 फरवरी को रामनिवास मेहता की ओर से मनोहरथाना पुलिस थाने में विधायक कंवरलाल मीणा के खिलाफ भारतीय दंड संहिता की धारा 353 (लोकसेवक के कर्तव्य में बाधा डालना) और धारा 506 (आपराधिक धमकी) के तहत मामला दर्ज करवाया.
13 साल तक यह मामला मनोहरथाना की ट्रायल कोर्ट में लंबित रहा. 2018 में ट्रायल कोर्ट ने सबूतों के अभाव में कंवरलाल मीणा को बरी कर दिया. इसके बाद यह मामला अकलेरा के अतिरिक्त जिला एवं सत्र न्यायालय में पहुंचा जहां से 14 दिसंबर 2020 को आए फैसले में कंवरलाल को दोषी मानते हुए तीन साल की सजा सुनाई गई. इसके बाद कंवरलाल ने राजस्थान हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया, मगर वहां से भी उन्हें राहत नहीं मिली.
हाईकोर्ट ने 2 मई 2025 को अपने फैसले में सजा को बरकरार रखते हुए कंवरलाल को तुरंत सरेंडर करने के आदेश दिए थे. इसके खिलाफ कंवरलाल की ओर से सुप्रीम कोर्ट में याचिका लगाई गई. सुप्रीम कोर्ट ने 7 मई को विधायक की याचिका को खारिज कर दिया. इसके बाद ट्रायल कोर्ट मनोहरथाना ने विधायक के खिलाफ गिरफ्तारी वारंट जारी कर दिया.
जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 के तहत किसी भी विधायक या सांसद को दो वर्ष से उससे अधिक सजा होने पर सजा की तारीख से उसकी सदन की सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया जाता है. अयोग्यता की अवधि सजा की समाप्ति के बाद 6 वर्ष तक अतिरिक्त रूप से लागू रहती है. 7 मई कंवरलाल की याचिका सुप्रीम कोर्ट से खारिज हो चुकी है और हाईकोर्ट के फैसले के अनुसार उन्हें तीन साल की सजा सुनाई जा चुकी है.
ऐसे में राजस्थान विधानसभा से उनकी सदस्यता तत्काल प्रभाव से रद्द होनी चाहिए थी, मगर 13 दिन बीत जाने के बाद भी इस मामले में कोई कार्रवाई नहीं हुई. कांग्रेस ने इस मामले में राजस्थान विधानसभाध्यक्ष वासुदेव देवनानी पर विधायक को बचाने के आरोप लगाए हैं. प्रतिपक्ष के नेता टीकाराम जूली का कहना है, "हाईकोर्ट का फैसला आने के 19 दिन बाद भी विधानसभाध्यक्ष कंवरलाल मीणा को अयोग्य घोषित करने की जगह उनके बचाव में जुटे हैं."
कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा का कहना है, "केंद्रीय कानून मंत्री के आवास पर भाजपा ने विधायक कंवरलाल मीणा को बचाने का षड़यंत्र रचा है जिसके तहत विधायक की सजा को राज्यपाल से माफ कराने की साजिश चल रही है. डबल इंजन की सरकार संविधान और न्यायालय दोनों के आदेशों का उल्लंघन कर रही है."
सुप्रीम कोर्ट के 2013 में आए लिली थॉमस बनाम भारत सरकार मामले में यह स्पष्ट किया गया था कि यदि किसी विधायक या सांसद को दो वर्ष से अधिक की सजा मिलती है तो उसकी सदस्यता तुरंत समाप्त हो जाएगी भले ही वह उच्च अदालत में अपील दायर करे.
एक ऐसे ही मामले में साल 2016 में राजस्थान विधानसभा में धौलपुर से बसपा के विधायक बीएल कुशवाहा की सदस्यता समाप्त कर दी गई थी. धौलपुर एडीजे कोर्ट ने साल 2012 में हुए नरेश कुशवाहा हत्याकांड में बीएल कुशवाहा को आजीवन कारावास की सजा सुनाई थी. सजा सुनाए जाने के तीन दिन बाद ही कुशवाहा की सदस्यता रद्द कर दी गई थी. इसके बाद 2017 में हुए उपचुनाव में बीएल कुशवाहा की पत्नी शोभारानी कुशवाहा चुनाव जीतकर विधायक बनी. शोभारानी यहां से लगातार तीन बार विधायक चुनी जा चुकी हैं. 29 नवंबर 2024 को शोभारानी के पति बीएल कुशवाहा अपनी सजा काटकर जेल से बाहर आ चुके हैं.
कांग्रेस नेता राहुल गांधी की सदस्यता भी जन प्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 के तहत जा चुकी है. सूरत की एक अदालत ने मानहानी के एक मामले में 23 मार्च 2024 को राहुल गांधी को दो वर्ष की सजा सुनाई थी. सजा सुनाने के एक दिन बाद ही 24 मार्च 2023 को राहुल गांधी को संसद सदस्यता से अयोग्य घोषित कर दिया गया था. हालांकि, 4 अगस्त, 2023 को सुप्रीम कोर्ट ने राहुल गांधी की सजा पर रोक लगा दी थी, जिसके बाद 7 अगस्त 2023 को लोकसभा सचिवालय ने उनकी संसद सदस्यता बहाल कर दी.
कौन है कंवरलाल मीणा
कंवरलाल मीणा आपराधिक छवि के विधायक माने जाते हैं. 2004 में वे झालावाड़ जिले के अकलेरा से विधायक चुने गए थे और 2023 में बारां जिले के अंता से विधायक निर्वाचित हुए हैं. 2005 में उनके खिलाफ विभिन्न पुलिस थानों में 15 मुकदमे दर्ज थे जिनकी संख्या बढ़कर अब 27 तक पहुंच चुकी है. साल 2016 में कंवरलाल मीणा ने सामाजिक कार्यकर्ता अरुणा रॉय और उनकी टीम पर लाठियों से हमला किया था. यह मामला अभी अदालत में लंबित चल रहा है. राजस्थान इस विधानसभा में वे ऐसे विधायक हैं जिनके ऊपर सबसे ज्यादा मामले दर्ज हैं.
कंवर लाल मीणा झालावाड़-बारां क्षेत्र से ताल्लुक रखते हैं जहां मीणा समुदाय का प्रभाव है. राजस्थान में करीब 30- 40 विधानसभा और 4- 5 लोकसभा सीटों पर यह समुदाय निर्णायक भूमिका अदा करता है. भाजपा के लिए कंवर लाल को बचाने की कोशिश मीणा मतदाताओं के समर्थन को बनाए रखने की रणनीति के तौर पर देखा जा रहा है. झालावाड़-बारां क्षेत्र पूर्व मुख्यमंत्री वसुंधरा राजे और उनके पुत्र दुष्यंत सिंह का सियासी गढ़ है और कंवर लाल की गिनती वसुंधरा राजे के नजदीकी नेताओं में होती है. राजनीतिक विश्लेषक विजय विद्रोही कहते हैं - "कंवर लाल के बचाव के पीछे वसुंधरा भी बड़ा कारण हैं क्योंकि 2023 में चुनाव के बाद भाजपा के कुछ विधायकों के एक रिसॉर्ट में ठहरने की घटना, जिसे ‘बाड़ाबंदी’ कहा गया, में भी कंवर लाल का नाम वसुंधरा राजे के पुत्र दुष्यंत सिंह के साथ जोड़ा गया था."