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झारखंड : आदिवासियों ने आरक्षित 28 में से 27 सीटें दी, फिर भी हेमंत नहीं दे पाए पेसा एक्ट, आखिर क्यों?

आदिवासियों ने लगातार दो विधानसभा चुनावों में हेमंत सोरेन को भरपूर समर्थन दिया लेकिन उनकी सरकार अब तक राज्य में इस समुदाय को स्वशासन का अधिकार देने वाला पेसा एक्ट लागू नहीं कर पाई है

झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन (फाइल फोटो)
अपडेटेड 5 सितंबर , 2025

साल 2019 और महीना नवंबर, तारीख 26 थी. रांची प्रेस क्लब में हेमंत सोरेन की उपस्थिति में झारखंड मु्क्ति मोर्चा (JMM) का ‘निश्चय पत्र’ जारी किया गया. जिसके पेज नंबर 10 के चैप्टर का नाम था ‘आदिवासी, दलित कल्याण एवं वन संरक्षण’. यहां JMM ने सबसे पहला वादा किया था पेसा (प्रोविजन ऑफ द पंचायत्सः एक्सटेंशन टू द शेड्यूल एरिया एक्ट 1996) कानून को सख्ती से लागू किया जाएगा. राज्य के आदिवासी उम्मीदों से भर उठे. कुल 28 आदिवासी सुरक्षित सीटों में से महागठबंधन को 26 सीटें दे दी. सरकार बनी और चढ़ते, उतरते पूरे पांच साल चली. पर पेसा लागू नहीं हुआ, सख्ती तो दूर की बात. 

विधानसभा चुनाव फिर आया. लोगों ने पूछा पेसा क्यों नहीं लागू हुआ. हेमंत सोरेन ने जवाब दिया दो साल तो कोविड के इंतजाम में निकल गया. बाकी के सालों में बीजेपी ने सरकार को अस्थिर कर दिया, कैसे करते ये सब. अबकी बार विधानसभा भेजिए. इसे हर हाल में लागू करेंगे. आदिवासियों ने अपनी उम्मीद कायम ही नहीं रखी, बढ़ा भी ली. इस बार 28 ST आरक्षित सीटों में से 27 JMM को दे दीं. सरकार बनी और हेमंत फिर सीएम बने. 

मार्च 2025 में विधानसभा का बजट सत्र आया. सबको लगा इसमें जरूर पास होगा. नहीं हुआ. फिर अगस्त में मानसून सत्र आया. उम्मीद लगाए बैठे लोगों को यहां भी निराशा ही हाथ लगी. राज्य के आदिवासी बीते 25 साल के पेसा एक्ट लागू होने का इंतजार कर रहे हैं.  तब, जबकि यह कानून देशभर के 10 राज्यों में लागू हो चुका है तो यह झारखंड में अभी तक लागू क्यों नहीं हो पाया.  

कहां अटकी है प्रक्रिया 

इसे लागू करने की जिम्मेदारी पंचायती राज विभाग पर है. विभाग की मंत्री दीपिका पांडेय सिंह कहती हैं, “ड्राफ्ट बनकर तैयार है. इससे जुड़े जितने भी विभाग हैं, सभी को अपनी आपत्ति-अनापत्ति भेजने के लिए दिया गया है. अधिकतर विभागों ने अपना जवाब भेज भी दिया है. कुछ का बाकी है. वो आने के बाद जरूरी सुधार के साथ पहली कैबिनेट में ड्राफ्ट स्वीकृत किया जाएगा, इसके बाद ट्राइबल एजवाइजरी कमेटी और फिर विधानसभा में रखा जाएगा.’’ 

पेसा ड्राफ्ट तैयार करने को लेकर इसी साल 15 मई को पंचायती राज विभाग की ओर से एक कार्यशाला का आयोजन किया गया था. इसमें पेसा से जुड़े सभी साझेदारों को आमंत्रित किया गया था. कार्यक्रम में सीएम मौजूद नहीं थे. जिसके बाद सवाल उठने लगा कि, क्या पेसा लागू करने को लेकर JMM और कांग्रेस के बीच में क्रेडिट की होड़ है, क्या इस वजह से देरी हो रही है? 

इस बारे में दीपिका पांडेय सिंह कहती हैं, “सीएम हेमंत सोरेन पेसा से जुड़े एक-एक सुधार, सुझाव, प्रक्रिया पर पैनी नजर रखे हुए हैं. उनकी सहमति से ही सब चीजें आगे बढ़ रही हैं. दूसरी बात गठबंधन में सहयोगी होने के नाते भी जो जरूरी और स्वभाविक डिप्लोमेसी होनी चाहिए, हम उसका भी पूरी गंभीरता से पालन कर रहे हैं. पेसा लागू होता है तो पूरे सरकार को इसका क्रेडिट जाएगा.’’ 

दीपिका के मुताबिक इस कार्यशाला में सीएम हेमंत सोरेन ने अपनी जगह JMM कोटे के मंत्री दीपक बिरुआ को नामित किया था. साथ में मंत्री रामदास सोरेन (अब दिवंगत) भी उपस्थित थे. 

इन वाजिब, गैर-वाजिब कारणों, बहानों, टाल-मटोल रवैयों से निराश और फिर उद्वेलित कुछ गांवों में आदिवासियों ने खुद से स्वशासन लागू कर लिया है. ऐसा ही गांव है जिउरी जो खूंटी जिले में पड़ता है. गांव के बगल से गुजर रही तजना नदी से जो बालू का खनन हो रहा है, ग्रामसभा उससे प्रति ट्रैक्टर 300 रुपए रॉयल्टी ले रही है. इसका इस्तेमाल गांव के विकास कार्यों में किया जा रहा है. 

इसी कड़ी में खूंटी जिले के ही बदानी गांव में भी पारंपरिक ग्रामसभाओं की कार्यकारिणी समिति का गठन कर लिया है. यही नहीं, पारंपरिक ग्रामसभा "जिउरी मॉडल" को झारखंड के 200 पारंपरिक ग्रामसभाओं में लागू करने का काम चल रहा है. 

क्या है पेसा एक्ट 1996

पेसा एक्ट, जिसे पंचायत (अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तार) अधिनियम, 1996 भी कहा जाता है, भारत सरकार द्वारा अनुसूचित क्षेत्रों में रहने वाले आदिवासी समुदायों को ग्राम सभाओं के माध्यम से स्वशासन का अधिकार देने के लिए बनाया गया एक कानून है. इसका मतलब है ग्रामसभा के अंतर्गत आनेवाले लघु खनिज जैसे बालू, पत्थर, वनोपज आदि की बिक्री और इस्तेमाल पर केवल ग्रामसभा का अधिकार होगा.

यही नहीं, इन इलाकों में किसी भी सरकारी योजना को लागू करने के लिए पहले ग्रामसभा की अनुमति लेनी होगी. यह अधिनियम, संविधान की पांचवीं अनुसूची में शामिल क्षेत्रों पर लागू होता है, और इसका उद्देश्य पारंपरिक ग्राम सभाओं को सशक्त बनाना है ताकि वे अपने क्षेत्रों के विकास, प्रशासन और संसाधनों के प्रबंधन में अधिक भागीदारी कर सकें. 

संभावना अब भी है पेंच फंसने की  

सरकार का कहना है शेड्यूल एरिया में पेसा एक्ट-1996 के साथ-साथ पंचायती राज व्यवस्था भी लागू होगी. जैसा कि एक्ट के नाम ‘प्रोविजन ऑफ द पंचायत्सः एक्सटेंशन टू द शेड्यूल एरिया’ से स्पष्ट है. जबकि आदिवासी समाज के एक हिस्से का कहना है कि शेड्यूल एरिया में सीधे पेसा एक्ट लागू हो. न कि झारखंड पंचायती राज अधिनियम 2001 यानी पंचायती राज व्यवस्था के रास्ते. आखिर दोनों में फर्क क्या है? 

पेसा के पैरोकार और झारखंड जनाधिकार महासभा नामक सामाजिक संगठन से जुड़े सिराज दत्ता समझाते हैं, “संविधान के 73वें संसोधन के बाद जब पंचायती राज व्यवस्था लागू हुई. तब उसके सेक्शन 243एम में कहा गया कि पंचायती राज व्यवस्था अनुसूचित क्षेत्रों में लागू नहीं होगी. लेकिन इसी 243एम की एक उपधारा 4बी में कहा गया है कि पंचायती राज व्यवस्था अनुसूचित क्षेत्रों में तभी लागू हो सकती है जब pesa कानून में दिए गए अपवादों और उपान्तरणों (जो आदिवासी स्वशासन व्यवस्था की प्राथमिकता सुनिश्चित करने के लिए बन हैं) के अनुसार मूल पंचायती राज व्यवस्था को संशोधित किया जाए.’’ 

उसके बाद साल 1996 में पेसा एक्ट बनाया गया. यह एक केंद्रीय कानून नहीं है, बल्कि संवैधानिक व्यवस्था का विस्तार है. सिराज के मुताबिक पेसा ने अनुसूचित क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था को लागू करने का रास्ता खोला. साथ ही इसमें पारंपरिक आदिवासी स्वसाशन व्यवस्था को प्रमुख माना गया. यानी पेसा के अनुसार पंचायती राज व्यवस्था का विस्तार होना है, लेकिन इसके केंद्र में आदिवासी स्वशासन व्यवस्था को रहना है. 

इस हिसाब से देखें तो आदिवासियों की पारंपरिक स्व-शासन व्यवस्था को बनाए रखने और विकास के सरकारी प्रयासों को उन इलाकों तक पहुंचाने के लिए पेसा एक्ट पंचायती राज व्यवस्था का ही एक एक्सटेंशन है. देश के अन्य 10 आदिवासी बहुल राज्यों में पंचायती राज व्यवस्था के रास्ते ही पेसा एक्ट को लागू किया गया है. फिर झारखंड में विरोध क्यों? 

झारखंड में पंचायती राज अधिनियम (जेपीआरए) 2001 के रास्ते पेसा को लागू करने का विरोध कर रहे संगठनों के अगुआ और सामाजिक कार्यकर्ता ग्लैडसन डुंगडुंग कहते हैं, “पंचायत व्यवस्था सामान्य क्षेत्रों में शक्ति का विकेन्द्रीकरण के लिए है. जबकि पेसा कानून 1996 देश के अनुसूचित क्षेत्रों के लिए है, जिसका मूल मकसद आदिवासियों की पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था को शासन की शक्ति और अधिकार प्रदान करना है.” 

वो आगे कहते हैं, “ झारखंड पंचायत राज एक्ट-2001 (JPRA) को झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों में अधिनियमित करते समय संविधान के अनुच्छेद 243(एम), 244(1) और 254 का गंभीर उल्लंघन हुआ है. इसलिए यह असंवैधानिक है. भारतीय संविधान की 7वीं अनुसूची के तहत राज्य सूची संख्या 5 का हवाला देकर JPRA-2001 को झारखंड के अनुसूचित क्षेत्रों के लिए संवैधानिक रूप से वैध बताया जाता है. उनका तर्क है कि चूंकि राज्य सूची के तहत पंचायत से संबंधित कानून बनाने का अधिकार संसद के पास नहीं, बल्कि सिर्फ राज्य विधानमंडल के पास है.” 

डुंगडुंग अपनी बात आगे बढ़ाते हुए कहते हैं कि यह तर्क पटना हाईकोर्ट के फैसले ‘‘बसुदेव बेसरा बनाम यूनियन ऑफ इंडिया एंड अदर्स, 22 दिसंबर 1995’’ में ध्वस्त हो जाता है. इस मामले में पटना हाईकोर्ट ने संविधान के अनुच्छेद 243(एम) का हवाला देकर बिहार विधानमंडल के द्वारा बनाया गया बिहार पंचायत राज अधिनियम 1993 को राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों में लागू करने पर रोक लगा दी थी. 

वे कहते हैं, “जब बिहार विधानमंडल के द्वारा बनाया गया बिहार पंचायत राज अधिनियम 1993 को अनुसूचित क्षेत्रों में लागू नहीं किया गया तो फिर झारखंड विधानमंडल के द्वारा बनाया गया JPRA- 2001 को राज्य के अनुसूचित क्षेत्रों में कैसे लागू किया जा सकता है?’’ 

वे यह भी तर्क देते हैं कि 7वीं अनुसूची पर पंचायत व्यवस्था आधारित होता तो फिर अनुच्छेद 243(एम) की जरूरत क्या थी? क्योंकि 7वीं अनुसूची और अनुच्छेद 243(एम) दोनों ही को 73वें संविधान संशोधन के द्वारा संविधान में जोड़ा गया. इसे स्पष्ट है कि संविधान के भाग 9 के उपबंधों को अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार करने का अधिकार सिर्फ संसद को है, राज्य विधानमंडल को नहीं. इसके बावजूद 8 अनुसूचित राज्यों ने ऐसा किया है, जो असंवैधानिक है.

जाहिर है, सरकार अगर आदिवासी सामाजिक संगठनों की मांग के अनुसार पेसा एक्ट लागू करती है तो यहां पंचायती राज व्यवस्था लागू नहीं हो पाएगी. ऐसे में इन इलाकों पर सरकार का आंशिक नियंत्रण ही रह पाएगा. बावजूद इसके, असल सवाल है कि पूरे राज्य के आदिवासियों की सबसे बड़ी और बहुप्रतीक्षित मांग आखिर कब तक लागू होगी और जब लागू होगी तो इसका फॉर्मेट क्या होगा?  

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