मुर्शिदाबाद के धुलियान शहर की गलियों में अब सन्नाटा पसरा हुआ है. पिछले महीने वक्फ कानून में संशोधन के बाद मुर्शिदाबाद के समसेरगंज और इस इलाके में हुई हिंसा में तीन लोगों की मौत हुई थी और सैकड़ो लोग बेघर हो गए थे.
हिंसा भले ही थम गई हो, लेकिन इससे पैदा हुई सियासी गहमागहमी तेज होती जा रही है. राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने बीजेपी की अगुवाई वाली केंद्र सरकार को हाल ही में सौंपी अपनी रिपोर्ट में न केवल सांप्रदायिक हिंसा को रोकने में ममता बनर्जी सरकार की कथित विफलता को उजागर किया है, बल्कि केंद्रीय दखल के विकल्प भी सुझाए हैं.
इस रिपोर्ट से जुड़ी खबर सामने आने के बाद से ही पश्चिम बंगाल में सत्तारूढ़ तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) की ओर से राज्यपाल पर पक्षपातपूर्ण दखल के आरोप लगाए जा रहे हैं.
राज्यपाल की ओर से भेजी गई इस रिपोर्ट में ये सुझाव दिया गया है कि केंद्र सरकार राज्य में हो रही हिंसा को रोकने और पश्चिम बंगाल में कानून के प्रति लोगों में विश्वास बहाल करने के लिए "संवैधानिक विकल्पों" पर विचार करे.
मतलब साफ है कि राष्ट्रपति शासन लगाने की स्पष्ट सिफारिश किए बिना राज्यपाल ने अपनी रिपोर्ट में हालात बिगड़ने पर अनुच्छेद 356 के तहत राष्ट्रपति शासन लागू करने की सलाह दी है. रिपोर्ट के अंतिम पैराग्राफ में बताया गया है कि "संवैधानिक विकल्पों" का जिक्र करना एक तरह से अघोषित धमकी की कोशिश के रुप में दिखाई देता है.
राज्यपाल सी.वी. आनंद बोस ने 18 और 19 अप्रैल को मुर्शिदाबाद के सबसे ज्यादा प्रभावित इलाकों का दौरा किया. शोक संतप्त परिवारों से मुलाकात की और उन लोगों की बात सुनी जो न सिर्फ न्याय बल्कि भविष्य में भी सुरक्षा की मांग कर रहे थे.
उनकी सबसे प्रमुख अपील ये थी कि सीमा से लगे संवेदनशील जिलों में सीमा सुरक्षा बल (BSF) की तैनाती हो. यहां रह रहे लोगों को विस्थापन और जनसांख्यिकीय (डेमाग्राफी) बदलाव की चिंता एक बार फिर से सताने लगी है.
राज्यपाल ने लोगों से मुलाकात के बाद अपनी रिपोर्ट में दंगा प्रभावित क्षेत्रों में स्थायी बीएसएफ चौकियों की सिफारिश की है. वहीं, कुछ लोग राज्यपाल की इस रिपोर्ट को केंद्र सरकार के अतिक्रमण के तौर पर देख रहे हैं, जिसे राज्यपाल की रिपोर्ट ने एक तरह से लोकतांत्रिक वैधता प्रदान कर दी है. राज्यपाल की रिपोर्ट का मुख्य बिंदु तीन केंद्रीय प्रस्तावों के इर्द-गिर्द घूमता है-
1. हिंसा की पूरी जांच के लिए एक जांच आयोग का गठन किया जाना चाहिए.
2. बांग्लादेश की सीमा से लगे जिलों में केंद्रीय बलों की चौकियां स्थापित होनी चाहिए.
3. हालात बिगड़ने पर अनुच्छेद 356 के तहत प्रावधान. मतलब राष्ट्रपति शासन लागू करना.
रिपोर्ट में इस बात का जिक्र है कि पश्चिम बंगाल सरकार को अप्रैल की शुरुआत से ही तनाव के बारे में पता था, इसके बावजूद इससे निपटने के लिए कोई ठोस तैयारी नहीं की गई. रिपोर्ट में विवादास्पद वक्फ (संशोधन) अधिनियम के खिलाफ रैलियों की वजह से दंगा भड़कने की बात कही गई है.
रिपोर्ट में इस घटना के लिए राज्य सरकार की लापरवाही के साथ ही राज्य की निष्क्रियता और अक्षमता को जिम्मेदार ठहराया गया है. भले ही राज्य की पुलिस ने दंगे के बाद 138 FIR दर्ज की और 300 से अधिक लोगों को गिरफ्तार किया, लेकिन दंगे के तुरंत बाद पुलिस और प्रशासन की प्रतिक्रिया में भारी कमी देखी गई.
राज्यपाल के रिपोर्ट के मुताबिक जाफराबाद में एक पिता-पुत्र की हत्या और एक अलग घटना में पुलिस फायरिंग में एक व्यक्ति की मौत राज्य में कानून व्यवस्था खराब होने के गंभीर उदाहरण हैं.
हालांकि, राज्यपाल की रिपोर्ट की जो बात सबसे ज्यादा प्रभावित करती है, वह है हिंसा की व्याख्या. राज्यपाल बोस के मुताबिक, हमलों में शामिल एक समूह विशेष के लोगों की सांस्कृतिक पहचान छिपाने की “व्यवस्थित” तौर पर कोशिश की गई है.
इस तरह राज्यपाल की रिपोर्ट में जिस भाषा का इस्तेमाल किया गया है, वह सिर्फ दंगा रोकने में सरकार की विफलता को लेकर नहीं, बल्कि ‘टारगेटेड वायलेंस’ का भी जिक्र करती है. रिपोर्ट में यह भी दिखाने की कोशिश की गई है कि राज्य सरकार किस तरह से समाज के कमजोर लोगों को सुरक्षा देने में विफल रही है.
बोस की रिपोर्ट राजनीतिक रूप से अस्थिर पश्चिम बंगाल में बदलते राजनीतिक ताने-बाने पर टिप्पणी करती है. रिपोर्ट में बताया गया है कि राज्य पूरी तरह से सांप्रदायिक राजनीति की चपेट में है. पक्ष और विपक्ष की पार्टियां चुनावी लाभ के लिए कथित तौर पर धार्मिक पहचान का इस्तेमाल कर रही हैं.
साथ ही राज्यपाल ने चेतावनी दी है कि यह राजनीतिक बदलाव बंगाल को एक ऐसी खाई की ओर धकेल रहा है, जहां चुनावी राजनीति में विकास के बजाय विभाजन पर ज्यादा महत्व दिया जा रहा है.
राज्यपाल ने रिपोर्ट में कहा कि मुर्शिदाबाद में भड़की हिंसा ने बंगाल की राजनीति में हो रहे इस बदलाव को पूरी तरह से स्पष्ट कर दिया है. यह जिला लंबे समय से अपनी जटिल जनसांख्यिकी के बावजूद सांप्रदायिक सद्भाव का गढ़ माना जाता रहा है.
इस क्षेत्र में इस्लामी कट्टरपंथी समूहों का उभरना भी चिंता का विषय है. “इस्लाम खतरे में है” कहकर कुछ लोग यहां की बड़ी आबादी को कट्टरपंथी बनाने की कोशिश कर रहे हैं. यह खासकर मुर्शिदाबाद, मालदा और उत्तर दिनाजपुर जैसे जिलों में हो रहा है, जहां हिंदू अल्पसंख्यक है. इससे निकट भविष्य में संभावित टकराव की संभावना पैदा होती है.
रिपोर्ट के मुताबिक, बांग्लादेश से घुसपैठ के प्रयास गंभीर चिंता का विषय हैं. रिपोर्ट के मुताबिक, पिछले साल बांग्लादेश में राजनीतिक अशांति शुरू होने की वजह से बड़ी संख्या में लोग सीमा पर कर भारत आने की कोशिश कर रहे हैं.
ऐसे में अंतरराष्ट्रीय सीमा पर बाड़ लगाने के काम को तत्काल पूरा करने की जरूरत है. इस तरह इस क्षेत्र में सांप्रदायिक दंगे केवल स्थानीय कानून और व्यवस्था का मुद्दा नहीं हैं, बल्कि एक बड़ी अंतरराष्ट्रीय सुरक्षा चुनौती का हिस्सा भी है.
टीएमसी ने इस रिपोर्ट को साफ शब्दों में खारिज कर दिया है. पार्टी प्रवक्ता जय प्रकाश मजूमदार ने राज्यपाल बोस पर बीजेपी कैडर की तरह काम करने का आरोप लगाया है.
उन्होंने कहा है कि राज्यपाल का इरादा बीजेपी को राज्य के शासन ढांचे में पिछले दरवाजे से प्रवेश कराने की सुविधा देने जैसा है. उन्होंने राज्यपाल की इस रिपोर्ट को सुप्रीम कोर्ट में चुनौती देने की बात कही है.
टीएमसी के एक अन्य वरिष्ठ नेता कुणाल घोष ने राज्यपाल के रिपोर्ट को “राजनीति से प्रेरित” बताते हुए कहा कि इसे अगले साल विधानसभा चुनावों से पहले ममता सरकार को अस्थिर करने के लिए तैयार किया गया है.
उन्होंने कहा कि यह आरोप क्षेत्रीय दलों के लंबे समय से लगाए जा रहे आरोपों से मेल खाते हैं कि भाजपा उन राज्यों में राज्यपालों का राजनीतिक प्रॉक्सी के रूप में इस्तेमाल करती है, जहां उसके पास सत्ता नहीं है.
हालांकि, ममता बनर्जी ने खुद राज्यपाल की रिपोर्ट पर सधी प्रतिक्रिया दी है. साथ ही उन्होंने हिंसा की कड़ी आलोचना की है और राज्य सरकार द्वारा की गई कार्रवाई का बचाव किया है. इतना ही नहीं उन्होंने राजभवन के साथ पूर्ण टकराव से परहेज किया है. शायद उन्हें पता है कि इस मुद्दे पर बयानबाजी से संस्थागत टकराव बढ़ सकती है.
एक तरह से यह घटनाक्रम दंगा नियंत्रण करने में पुलिस की विफलता और प्रशासनिक चूक के बारे में है. लेकिन, दूसरी ओर यह इस बारे में भी है कि आखिर संघीय ढांचे में शासन को परिभाषित करने का अधिकार किसके पास है?
राज्यपाल द्वारा केंद्र को भेजी गई रिपोर्ट में राष्ट्रीय सुरक्षा, सांस्कृतिक अस्तित्व और सांप्रदायिक घुसपैठ का आह्वान एक ऐसा विषय है जो मुर्शिदाबाद में अशांति के आकलन से कहीं आगे तक जाता है.
अकर्मय दत्ता मजूमदार की स्टोरी.