गोवा में एक नहीं बल्कि साल में दो बार इंडिपेंडेंस डे मनाया जाता है. बात थोड़ी अटपटी जरूर है मगर गलत नहीं. 15 अगस्त, 1947 को भारत ब्रिटिश एम्पायर से आजाद हुआ. उधर पॉन्डिचेरी से भी फ्रांस ने हाथ वापस खींच लिए. मगर गोवा पर ना तो ब्रिटिश का कब्जा था और ना ही फ्रेंच का.
वहां तो पुर्तगालियों ने तब से पैर जमा रखे थे जब ब्रिटिश हिंदुस्तान पहुंचे भी नहीं थे. तो ब्रिटेन की सत्ता भले ही हिंदुस्तान से 1947 में खत्म हो गई मगर गोवा का दामन डच ने इसके भी 14 साल बाद छोड़ा. 1510 से ही पुर्तगालियों ने गोवा में डेरा डाल दिया था.
उन्होंने आते ही भीषण आतंक मचाना शुरू किया. वहां रह रहे हिन्दुओं और गोअन कैथोलिक्स की खूब हत्या की गई. कोंकणी भाषा को दबाने के साथ ही पुर्तगालियों ने हिन्दू मंदिरों को तोड़ा और हिन्दू रीति-रिवाज से शादी करने पर प्रतिबन्ध लगा दिया. अब वहां जान बचाने के लिए हिन्दुओं ने धर्म परिवर्तन कर ईसाई बनना शुरू किया. इसके अलावा स्वेच्छा से ईसाई धर्म अपनाने पर पुर्तगाली हुकूमत ने हिन्दुओं को 15 साल तक भूमि कर से मुक्त होने का लालच भी दिया.
1932 में चीजें और भी खराब हो गईं जब एंटोनियो डी ओलिवेरा सालाजार पुर्तगाल का तानाशाह बना. गोवा के लोगों का जीना दूभर हो गया. शादियों के कार्ड छपवाने जैसे बुनियादी अधिकार भी उनसे छीन लिए गए और बोलने, लिखने और इकठ्ठा होने के अधिकार तो गए ही.
पुर्तगालियों को गोवा से भगाने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है. आजाद होने के बाद से इंडिया गोवा को अपने देश में शामिल करने के लिए प्रयास कर रहा था मगर पुर्तगाली थे कि छोड़ने को राजी नहीं हो रहे थे. उधर गोवा में आजादी की मांग 1940 से ही तेज हो गई थी. 1946 में जब ब्रिटेन ने इंडिया को आजाद करने की बात कही तो गोवा में भी आग धधकने लगी थी. इस आग के पीछे चिंगारी राम मनोहर लोहिया ने दी.
1946 में गोवा के लेखक और एक्टिविस्ट जुलियाओ मेनेजेस ने लोहिया को मिलने बुलाया. गोवा में लोहिया ने जुलियाओ के साथ मिलकर सविनय अवज्ञा आंदोलन शुरू कर दिया. दोनों नेताओं के साथ गोवा के आंदोलन में भारत माता और महात्मा गांधी के जयकारे लगने लगे. पब्लिक गैदरिंग पर प्रतिबन्ध होने की वजह से, लोहिया और जुलियाओ, दोनों को गिरफ्तार कर लिया गया. गिरफ्तारी के बाद जहां जुलियाओ को शाम तक पुलिस ने रिहा कर दिया तो वहीं लोहिया को दोबारा गोवा ना लौटने की बात कहते हुए सीमा से बाहर छोड़ा गया.
लोहिया के लौटने के बाद भले ही वह आंदोलन वहीं समाप्त हो गया मगर इस वाकये ने गोवा के लोगों के भीतर स्वाधीनता की आग पैदा की. इसके बाद गोवा में कई सत्याग्रह आयोजित किए गए और गोवा कांग्रेस ने बॉम्बे ऑफिस से अपना काम जारी रखा. इसी बीच वहां कई राजनीतिक पार्टियां उभरीं और सबका अपना एजेंडा सेट था. कोई गोवा को महाराष्ट्र में मिलाने की बात करता तो कोई कर्नाटक में. कोई पुर्तगालियों के ही अधीन रहकर स्वायत्ता की मांग कर रहा था तो किसी को पूरी ही आजादी चाहिए थी.
इतने धड़े देखकर महात्मा गांधी को यह अहसास हो गया था कि ऐसे तो बात बनने से रही सो उन्होंने सबको साथ आने की सलाह दी. सभी पार्टियों ने बॉम्बे में 1947 में एक मीटिंग की और तय किया कि सिविल लिबर्टीज को ही कॉमन गोल बनाकर लड़ा जाए तभी सबके लिए बेहतर होगा. इसके बाद सभी ने मिलकर पुर्तगालियों के खिलाफ 'क्विट इंडिया' या भारत छोड़ो आंदोलन का आह्वान किया. हालांकि 15 अगस्त आते-आते ये साफ हो गया कि गोवा के लोगों को आजादी के लिए अभी लंबा संघर्ष करना पड़ेगा.
इधर भारत भी पाकिस्तान के साथ बंटवारे में उलझकर रह गया और गोवा में लोग आंदोलन करते रहे. पुर्तगाली हुकूमत ने हर संभव प्रयास किया इस आंदोलन को दबाने का और भारत चाहकर भी कुछ नहीं कर पा रहा था क्योंकि पुर्तगाल नाटो का सदस्य था. इसके अलावा पाकिस्तान भी पुर्तगाल का दबी जुबान में समर्थन कर रहा था. तभी कुछ ऐसा हुआ भारतीय सेना को गोवा में घुसने का टिकट मिल गया.
नवंबर 1961 में पुर्तगाली सैनिकों ने गोवा के एक स्टीमर पर गोलीबारी की जिसमें एक मछुआरे की मौत हो गई. इसके बाद तत्कालीन भारतीय रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से बैठक की और गोवा में भारतीय सैनिकों को भेजने का सुझाव दिया. इसके बाद 18 दिसंबर 1961 को 30,000 भारतीय सैनिकों ने नौसेना और वायुसेना के साथ मिलकर गोवा में धावा बोला और 19 दिसंबर, 1961 को गोवा खाली करवा लिया. इस पूरे ऑपरेशन को भारतीय सेना ने ऑपरेशन विजय का नाम दिया.
ऑपरेशन विजय के बाद यूएन (तब यूएनओ) में हाहाकार मच गया. पश्चिम के देशों ने एक सुर में भारत की निंदा की और भारत को अपनी सेना वापस बुलाने को कहा. इससे पहले कि भारत इसमें अकेला पड़ता, सोवियत रूस ने मदद के लिए अपना हाथ बढ़ाया और वीटो पावर का इस्तेमाल करते हुए पुर्तगाल के प्रस्ताव को खारिज कर दिया.
19 दिसंबर, 1961 को भारतीय सेना के ऑपरेशन विजय की सफलता की वजह से ही गोवा में 15 अगस्त के अलावा एक इंडिपेंडेंस डे 19 दिसंबर को भी मनाया जाता है जो कि आज है. पूरे गोवा को स्वतंत्रता दिवस की बहुत बधाई.