उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले त्रिस्तरीय पंचायत चुनाव के लिए 14 अगस्त से मतदाताओं का सर्वे शुरू होने की घोषणा होते ही गांवों का राजनीतिक तापमान बढ़ने लगा है. यूपी राज्य निर्वाचन आयोग की अधिसूचना के मुताबिक घर-घर जाकर मतदाताओं की गणना, सर्वेक्षण और हस्तलिखित ड्राफ्ट तैयार करने का काम 14 अगस्त से 29 सितंबर के बीच होगा.
1 जनवरी 2025 को 18 वर्ष की उम्र पूरी करने वाले सभी पात्र व्यक्तियों के नाम मतदाता सूची में शामिल किए जाएंगे. हालांकि राज्य में पंचायत चुनाव राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्हों पर नहीं लड़े जाते, फिर भी विधानसभा चुनावों में ज़मीनी प्रतिनिधियों की महत्वपूर्ण भूमिका को देखते हुए, प्रमुख राजनीतिक दलों - राष्ट्रीय और क्षेत्रीय दोनों ने 2027 के विधानसभा चुनावों की तैयारी शुरू कर दी है और वे गांव-देहात के इन चुनावों को अपनी ताकत दिखाने के लिए एक महत्वपूर्ण रणभूमि मान रहे हैं.
वर्ष 2027 के विधान सभा चुनाव से पहले यूपी में अपने संगठन के कीलकांटे दुरुस्त करने में लगी कांग्रेस ने घोषणा कर दी है कि वह पंचायत चुनाव अकेले ही लड़ेगी. 19 जुलाई को प्रयागराज के सिविल लाइंस स्थित केपी कम्युनिटी हाल में आयोजित प्रयाग जोन की संगठन सृजन कार्यशाला में अविनाश पांडेय ने साफ कर दिया कि उनकी पार्टी यूपी के पंचायत चुनाव में अकेले लड़ेगी.
उत्तर प्रदेश में पंचायत चुनाव एक बड़ा और सरगर्मी भरा आयोजन है जिसमें पंचायत के विभिन्न स्तरों पर 8 लाख से ज़्यादा पद चुनाव में शामिल होते हैं. उत्तर प्रदेश में आगामी चुनावों के लिए 12 करोड़ से ज़्यादा मतदाता हैं. वर्ष 2021 के चुनावों में, 58,189 ग्राम पंचायतों के 7.32 लाख वार्डों, 826 क्षेत्र पंचायतों के 75,855 वार्डों और 75 ज़िला पंचायतों के 3,051 सदस्यों के लिए चुनाव हुए थे.
महामारी के दौरान चुनाव होने के बावजूद, बीजेपी जैसी पार्टियों ने आधिकारिक तौर पर अपने समर्थित उम्मीदवारों की सूची घोषित कर दी थी. वर्ष 2021 में जिला पंचायत की 75 सीटों में से 67 पर बीजेपी ने कब्जा जमाया था. सपा को पांच और कांग्रेस को एक भी सीट नहीं मिली थी. इससे पहले 2016 के जिला पंचायत चुनाव में सपा को 63 सीटें मिली थीं. माना जा रहा है कि अगले साल अप्रैल महीने के आसपास यूपी में पंचायत चुनाव होने की उम्मीद है. इस बार न केवल राष्ट्रीय दल, बल्कि क्षेत्रीय दल भी अपनी ज़मीन मज़बूत करने और ‘सौदेबाज़ी की शक्ति’ बढ़ाने के लिए चुनावों पर नज़र गड़ाए हुए हैं.
बीजेपी की अगुआई वाली राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) गठबंधन के सहयोगी और ‘इंडिया’ गठबंधन, दोनों ने इन चुनावों को अलग-अलग लड़ने के अपने इरादे की स्पष्ट घोषणा की है. राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि पंचायत चुनावों के जरिए सभी राजनीतिक दल अपनी जमीनी तैयारियों का आकलन कर लेना चाहते हैं. इसके जरिए विधानसभा चुनाव के उन संभावित उम्मीदवारों के दावों की भी परख होगी जो चुनाव लड़ने के लिए अपनी तैयारियों में परोक्ष रूप से जुट चुके हैं.
राजनीतिक विश्लेषक राजनीतिक दलों के अकेले चुनाव लड़ने की घोषणा को एक रणनीति के तौर पर देख रहे हैं. लखनऊ में अवध डिग्री कालेज की प्राचार्य और राजनीतिक विश्लेषक प्रोफेसर बीना राय बताती हैं, “चूंकि पंचायत चुनाव पार्टी चिन्ह पर नहीं होते ऐसे में गठबंधन करने का भी कोई बहुत फायदा नहीं दिखाई देता है. ये चुनाव मूलत: स्थानीय मुद्दों पर ही लड़े जाते हैं. इतना जरूर है कि यह चुनाव जमीनी मुद्दों के ट्रेंड को जरूरी स्पष्ट करते हैं जिससे राजनीतिक दलों को विधानसभा चुनाव जैसे बड़े चुनाव के लिए अपनी रणनीति बनाने में सहायता मिलती है.”
प्रोफेसर राय के मुताबिक खासकर छोटे दलों के लिए पंचायत चुनाव अलग-अलग लड़ना अपने वोटबैंक को जमीनी स्तर पर बांधे रखने में सहायक साबित हो सकता है. इसी कारण से सभी छोटे दलों ने इस बार अलग-अलग पंचायत चुनाव लड़ने की घोषणा की है. बीजेपी की सहयोगी निषाद पार्टी ने भी 2021 का पंचायत चुनाव बीजेपी से अलग होकर ही लड़ा था. निषाद पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष संजय निषाद बताते हैं, “पिछले पंचायत चुनाव में सुल्तानपुर के कुछ क्षेत्रों में, निषाद पार्टी समर्थित उम्मीदवारों को बीजेपी के उम्मीदवारों से ज़्यादा समर्थन मिला था. हालांकि, जब जिला पंचायत अध्यक्ष चुनाव की बात आई, तो ज़्यादातर मतदाताओं ने बीजेपी से जुड़े उम्मीदवारों का समर्थन किया. चूंकि हर जगह हमारे कार्यकर्ताओं के लिए विधायक चुनाव लड़ने के स्तर तक पहुंचना मुश्किल है इसलिए पंचायत चुनाव में ताकत बढ़ाकर निषाद पार्टी बीजेपी गठबंधन को ही मजबूत करेगी और सपा को कमजोर.”
इसी तरह अपना दल की नेता अनुप्रिया पटेल भी पंचायत चुनाव अपने बूते पर लड़ने की बात कह रही हैं लेकिन वे एडीए के साथ गठबंधन बनाए रखने की पक्षधर हैं. हालांकि, बीजेपी नेताओं का दावा है कि उनके सहयोगियों द्वारा अलग से उम्मीदवार उतारने के फ़ैसले का उन पर कोई असर नहीं पड़ेगा. वरिष्ठ बीजेपी नेता और विधान परिषद सदस्य विजय बहादुर पाठक कहते हैं, "हर गठबंधन सहयोगी को स्वतंत्र रूप से आगे बढ़ने और विकास करने का अधिकार है, और हमें इसमें कोई समस्या नहीं दिखती. हम ज़मीनी स्तर पर मज़बूत हैं."
उत्तर प्रदेश के पंचायती राज मंत्री और ‘सुहेलदेव भारतीय समाज पार्टी’ के प्रमुख ओम प्रकाश राजभर ने हाल ही में घोषणा की है कि मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ कई बार चर्चा के बाद, ब्लॉक प्रमुख के चुनाव सीधे मतदान के माध्यम से कराने पर सहमति बन गई है. अभी ये चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से होते हैं, जिसमें उम्मीदवारों का चयन ब्लॉक विकास समिति के सदस्य करते हैं, जिससे भ्रष्टाचार की चिंताएं बढ़ रही हैं. राजभर के मुताबिक मुख्यमंत्री योगी इस प्रस्ताव को केंद्र सरकार को भेजने पर सहमत हो गए हैं. राजभर ने बताया, "ब्लॉक प्रमुख का चुनाव अपरोक्ष रूप से न कराकर सीधे जनता द्वारा मतदान से कराने का उद्देश्य धन और बाहुबल के प्रभाव को खत्म करना है."
हालांकि आधिकारिक निर्णय अभी बाकी है, लेकिन एनडीए के सहयोगी और विपक्षी दल, दोनों ने इस प्रस्ताव का समर्थन किया है. संजय निषाद ने भी ब्लॉक प्रमुख के प्रत्यक्ष चुनावों के समर्थन की पुष्टि करते हुए कहा, "इस बदलाव से धनबल से उम्मीदवारों के जीतने की संभावना कम होगी और ज़मीनी स्तर के कार्यकर्ताओं को अवसर मिलेंगे."
इससे पहले, समाजवादी पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव भी इस प्रस्ताव का समर्थन कर चुके हैं. ‘संगठन सृजन’ कार्यक्रम में जुटी कांग्रेस ने वर्ष 2027 के विधानसभा चुनावों में भाग लेने के इच्छुक अपने सभी नेताओं से प्रधान और अन्य पदों के लिए अपने उम्मीदवारों की पहचान करने और उन्हें नामांकित करने के लिए कहा है. इससे न केवल उनकी संभावनाएं बढ़ेंगी, बल्कि पार्टी का प्रभावी प्रतिनिधित्व भी होगा. सत्तारूढ़ बीजेपी ने भी समितियां बनाकर अपनी तैयारी शुरू कर दी है. ये समितियां चल रही पंचायत चुनाव से जुड़े वार्डों की परिसीमन प्रक्रिया में मदद करेंगी, जिस पर विपक्षी दल कड़ी नज़र रख रहे हैं.