तेलंगाना में इस समय सियासी पारा चढ़ा हुआ है. वजह है - तेलंगाना थल्ली (तेलंगाना की माता) की नवनिर्मित मूर्ति. 9 दिसंबर को सीएम रेवंत रेड्डी की अगुआई वाली कांग्रेस सरकार राज्य सचिवालय में इसका अनावरण करने वाली है, लेकिन इसकी डिजाइन को लेकर राज्य के प्रमुख विपक्षी दल खुश नहीं हैं.
भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) और भारतीय जनता पार्टी यानी बीजेपी दोनों ने कांग्रेस पर तेलंगाना के लोगों की पहचान का अपमान करने का आरोप लगाया. बीआरएस का एक कार्यकर्ता तो इस मूर्ति की स्थापना के खिलाफ फरियाद लेकर तेलंगाना हाई कोर्ट पहुंच गया.
दिसंबर 2023 में कांग्रेस के सत्ता में आते ही रेवंत रेड्डी की सरकार ने राज्य के प्रतीक 'तेलंगाना थल्ली' के डिजाइन को बदलने का फैसला किया था. अब जबकि नई मूर्ति तैयार हो गई, तो उसके अनावरण की तारीख 9 दिसंबर रखी गई. संयोगवश (कई बार ऐसे इन्हें बनाया भी जाता है!) इस दिन कांग्रेस नेता सोनिया गांधी का जन्मदिन होता है. सीएम रेड्डी अक्सर सोनिया को तेलंगाना थल्ली के नाम से बुलाते हैं. उन्हें 'थल्ली सोनियाम्मा' के नाम से भी जाना जाता है, क्योंकि यूपीए-2 के दौरान संयुक्त आंध्र प्रदेश से तेलंगाना को अलग करने में उनकी अहम भूमिका रही.
बहरहाल, तेलंगाना थल्ली की पुरानी की तुलना में नवनिर्मित मूर्ति में कई फेरबदल हुए हैं. जहां मूल प्रतिमा में मुकुट पहने हुए एक देवी थीं, उनके एक हाथ में मक्का और दूसरे हाथ में बतुकम्मा (राज्य की सांस्कृतिक विरासत का प्रतिनिधित्व करने वाला पारंपरिक पुष्प उत्सव) पकड़े हुए दिखाया गया था, वहीं नई प्रतिमा का उद्देश्य "एक ग्रामीण कामकाजी महिला को चित्रित करना है, जो तेलंगाना के कृषि समाज के रोजमर्रा के जीवन और भावना को प्रदर्शित करती है". यहां अब आगे बढ़ने से पहले आइए जान लेते हैं तेलंगाना थल्ली कौन हैं. उनका महत्व क्या है.
तेलंगाना थल्ली की क्या है अहमियत
दो जून 2014 को संयुक्त आंध्र प्रदेश से अलग राज्य बनने के पहले तेलंगाना ने करीब आधी सदी तक एक लंबी लड़ाई लड़ी. तेलंगाना राज्य के दर्जे को लेकर हो रहे आंदोलन के दौरान 'तेलंगाना थल्ली' इसका एक अहम हिस्सा था. इसकी तुलना तेलुगु थल्ली से की जाती थी, जिसे 'आंध्र माता' के नाम से भी जाना जाता है. आंदोलन के दौरान तेलंगाना थल्ली की तस्वीरें लगभग उन सभी समूहों के पास थी, जो अलग तेलंगाना की मांग कर रहे थे. अलग राज्य के दर्जे की मांग को लेकर अक्सर इन्हीं देवी का हवाला दिया जाता था.
इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, तेलंगाना के लोगों के लिए एक सांकेतिक प्रतिमा पहली बार निर्मल जिले के निवासी बी वेंकटरमण ने डिजाइन की थी. और यही प्रतिमा साल 2003 में हैदराबाद में बीआरएस (तब टीआरएस) के मुख्यालय में स्थापित की गई थी. वेंकटरमण ने दावा किया कि इसकी प्रेरणा उन्हें केसीआर (के. चंद्रशेखर राव) की अगुआई में तेलंगाना राज्य के दर्जे के लिए हो रहे आंदोलन से मिली. बाद में बीआरएस प्रमुख राव ने तेलंगाना राज्य बनने के एक साल बाद 2015 में उन्हें सम्मानित भी किया.
पुरानी से कैसे अलग है नई प्रतिमा
वेंकटरमण ने जो मूर्ति डिजाइन की, वो एक दैवीय रूप को प्रदर्शित करती थी. उस प्रतिमा में मुकुट पहने हुए एक देवी थीं, जिनके एक हाथ में मक्का था जो इलाके की समृद्धि को बताता है. उनके दूसरे हाथ में बतुकम्मा बर्तन है, जो तेलंगाना के सबसे बड़े त्योहार का सांस्कृतिक प्रतीक है. तेलंगाना थल्ली ने गुलाबी रंग की रेशमी साड़ी पहनी हुई थी जो गडवाल और पोचमपल्ली के प्रसिद्ध रेशमी वस्त्रों का प्रतीक थी, जबकि पैर की अंगूठियां, जो विवाहित महिलाओं का प्रतीक हैं, करीमनगर के फीतेदार आभूषणों का प्रतीक थीं. इसके अलावा, मूल प्रतिमा में उन्होंने सोने का कमरबंद पहना हुआ था.
नई प्रतिमा में मुकुट नहीं है और बतुकम्मा बर्तन भी हटा दिया गया है. देवी का दायां हाथ आशीर्वाद देते हुए 'अभय मुद्रा' में है. गुलाबी साड़ी का रंग बदलकर हरा कर दिया गया है. इसके अलावा कमरबंद को भी नए डिजाइन से हटा दिया गया है. नई प्रतिमा का उद्देश्य "एक ग्रामीण कामकाजी महिला को चित्रित करना है, जो तेलंगाना के कृषि समाज के रोजमर्रा के जीवन और भावना को प्रदर्शित करती है".
बदलावों पर क्यों चढ़ा सियासी पारा
बीआरएस ने कांग्रेस पर निशाना साधते हुए आरोप लगाया कि रेड्डी "केसीआर की विरासत को मिटाने की जल्दी में हैं" और नई प्रतिमा "तेलंगाना की पहचान का अपमान" है. केसीआर के बेटे और पूर्व राज्य मंत्री के. टी. रामा राव ने पांच दिसंबर को कहा कि उनकी पार्टी सत्ता में लौटने पर राज्य सचिवालय में स्थापित राजीव गांधी की प्रतिमा को हटा देगी और उसकी जगह 'तेलंगाना थल्ली' की मूल प्रतिमा को स्थापित करेगी. राजीव गांधी की मूर्ति इसी साल सितंबर में स्थापित की गई थी.
रामा राव ने कहा, "तेलंगाना थल्ली प्रतिमा हमारी पहचान का प्रतीक है, जिसे तेलंगाना आंदोलन के दौरान सभी वर्गों के तेलंगानावासियों के बीच आम सहमति से बनाया गया था. अपनी पहचान को स्थापित करने के लिए राज्य आंदोलन के चरम के दौरान हजारों तेलंगाना थल्ली प्रतिमाएं स्थापित की गईं. एक हाथ में बतुकम्मा और दूसरे हाथ में मक्का/ज्वार का भुट्टा लिए, मौजूदा तेलंगाना थल्ली प्रतिमा में वे सभी तत्व शामिल हैं जो वास्तव में तेलंगाना के हैं. रेवंत क्यों चाहते हैं कि हमारी तेलंगाना थल्ली बिना मुकुट के गरीब दिखे? कोई भी व्यक्ति अपने सही दिमाग से क्यों चाहेगा कि उसकी पहचान का प्रतीक गरीब दिखे?".
इधर, बीजेपी ने भी साड़ी का रंग बदलने के लिए कांग्रेस सरकार की आलोचना की. पार्टी के आईटी सेल के मुखिया अमित मालवीय ने सात दिसंबर को एक्स पर लिखा, "रेवंत रेड्डी के नेतृत्व वाली कांग्रेस सरकार ने तेलंगाना की पूजनीय देवी तेलंगाना थल्ली की प्रतिमा को बदल दिया है, साड़ी का रंग बदलकर हरा कर दिया है, बतुकम्मा को हटा दिया है, मुकुट और आभूषण हटा दिए हैं जबकि अभय हस्तम (कांग्रेस लोगो का प्रतीक) जोड़ दिया है. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि सीएम रेवंत रेड्डी ने एक बार सोनिया गांधी को 'तेलंगाना की मां' कहा था. यह बेहद शर्मनाक है".
सीएम रेड्डी का क्या कहना है
डेक्कन हेराल्ड की एक रिपोर्ट के मुताबिक, रेवंत रेड्डी ने एक बार कहा था कि राज्य के प्रतीकों से शाही अर्थ वाली चीजों को मिटा दिया जाना चाहिए और उसी के मुताबिक एक नया प्रतीक डिजाइन किया जाएगा.
विपक्षी दलों के तीखी आलोचना के बीच 9 दिसंबर को तेलंगाना विधानसभा में रेड्डी ने मूर्ति के नए डिजाइन को उचित ठहराया. रेड्डी सरकार ने दावा किया कि बीआरएस शासन के दौरान पुरानी प्रतिमा को कोई आधिकारिक मंजूरी नहीं दी गई थी, जिसके कारण मौजूदा सरकार को डिजाइन को औपचारिक रूप देना पड़ा. विधानसभा में एक बयान देते हुए मुख्यमंत्री ए रेवंत रेड्डी ने दावा किया कि नया डिजाइन तेलंगाना की सांस्कृतिक विरासत और स्वाभिमान को बताता है.
उन्होंने कहा, "तेलंगाना थल्ली उस मां का प्रतिनिधित्व करती है जिसने राज्य आंदोलन के दौरान चार करोड़ लोगों को एकजुट किया और उनका नेतृत्व किया. चबूतरा (जिस पर देवी खड़ी हैं) हमारे इतिहास और शहीदों के बलिदान का प्रतीक है, जबकि प्रतिमा हमारी परंपराओं और संस्कृति का प्रतीक है." रेवंत ने तेलंगाना की पहचान का जश्न मनाने के लिए 9 दिसंबर को 'तेलंगाना थल्ली अवतरण उत्सव' के रूप में भी घोषणा की.