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गुजरात: वडोदरा में रहस्यमय तरीके से क्यों मर रहे हैं मगरमच्छ?

गुजरात के वडोदरा शहर से होकर बहने वाली विश्वामित्री नदी में कुछ महीनों के भीतर कम से कम आठ मगरमच्छों की मौत हो गई है, जिस पर पर्यावरणविद चिंता जता रहे हैं

वडोदरा में रहस्यमय तरीके से मर रहे हैं मगरमच्छ (सांकेतिक फोटो)
वडोदरा में रहस्यमय तरीके से मर रहे हैं मगरमच्छ (सांकेतिक फोटो)
अपडेटेड 11 अप्रैल , 2025

पिछले कुछ महीनों में वडोदरा की विश्वामित्री नदी में कई मगरमच्छों की मौत की खबरें सामने आई हैं. विश्वामित्री नदी शहरी इलाकों से होकर गुजरती है और यहां  मगरमच्छ (क्रोकोडाइलस पैलस्ट्रिस) की एक बड़ी आबादी रहती हैं.

दिसंबर 2024 से 7 अप्रैल 2025 तक कम से कम आठ मगरमच्छों की मौत की खबर है, जो पर्यावरण संरक्षणवादियों, वन्यजीव प्रेमी और स्थानीय निवासियों के लिए चिंता का विषय है.

हैरानी की बात तो ये है कि इनमें से पांच मौतें इसी साल पिछले 4 महीने में हुई हैं. जनवरी में 10 और 11 फीट लंबे दो मगरमच्छ कीर्ति मंदिर और खासवाड़ी श्मशान घाट के पास बेजान तैरते हुए पाए गए थे.

फरवरी में सयाजीगंज के पास नौ फीट लंबा मरा हुआ मगरमच्छ नदी के किनारे दिखा था. वहीं, 3 अप्रैल को सयाजीबाग में एक केबल ब्रिज के पास आठ फीट लंबे मगरमच्छ का शव मिला, जिसके दो दिन बाद एक और मगरमच्छ की मौत की खबर आई.

इससे पहले पिछले दिसंबर में एक 10 फुट लंबा मगरमच्छ मृत पाया गया था, जिसके शरीर पर चोटें थीं. हालांकि, इसकी मौत के बारे में पता चला था कि दो मगरमच्छों के बीच लड़ाई के चलते उसकी मौत हुई. अन्य मगरमच्छों की मौतें रहस्यमय बनी हुई हैं और वन अधिकारियों द्वारा कोई स्पष्ट कारण नहीं बताया गया है.

वडोदरा से गुजरने वाली विश्वामित्री नदी में लगभग 300 प्राचीन सरीसृप रहते हैं. वडोदरा का अतिरिक्त प्रभार संभाल रहे केवड़िया संभाग के उप वन संरक्षक अग्निश्वर व्यास कहते हैं, "पोस्टमॉर्टम रिपोर्ट में कुछ मगरमच्छों के मृत्यु के कारण का पता न चल पाना चिंता का विषय है, लेकिन मगमच्छों के मरने की यह स्थिति उतनी चिंताजनक नहीं है. ऐसा पहले भी हो चुका है. हम स्थिति पर करीब से नजर रख रहे हैं. 5 फीसद मृत्यु दर सामान्य है. मगर मगरमच्छों की आबादी बढ़ी है, इसलिए मौतों की संख्या भी बढ़ेगी."

व्यास ने बताया कि मगरमच्छों की जनगणना हाल ही में संपन्न हुई है और राज्य सरकार के वन एवं पर्यावरण विभाग के तहत स्वायत्त निकाय जीईईआर यानी गुजरात पारिस्थितिकी शिक्षा एवं अनुसंधान फाउंडेशन द्वारा फाइनल रिपोर्ट जारी किए जाने की प्रतीक्षा की जा रही है.
स्थानीय वन्यजीव कार्यकर्ता और यहां रहने वाले लोग मगरमच्छों को वडोदरा के पारिस्थितिकी तंत्र का अभिन्न अंग मानते हैं. इस शहर के लोगों का मानसून की बाढ़ के दौरान मगरमच्छों से सामना होने की कहानियां बहुत आम हैं.

4 अप्रैल को सयाजीगंज के यवतेश्वर घाट पर मगरमच्छों की हो रही मौतों को लेकर एक शोक सभा आयोजित हुई. वहां उपस्थित लोगों में से एक प्रमुख वन्यजीव कार्यकर्ता संजय सोनी ने कहा कि वन विभाग ने आरटीआई आवेदन के बावजूद मरने वाले मगरमच्छों के संबंध में कोई जवाब नहीं दिए हैं.

कार्यकर्ताओं का मानना है कि नगर निगम द्वारा छोड़े गए पानी से नदी का प्रदूषण बढ़ा और नदी की सफाई के लिए गाद हटाने का काम भी हो रहा है. संभव है कि इसकी वजह से ही मगरमच्छों की मौत हुई हो. हालांकि, वीएमसी कमिश्नर दिलीप कुमार राणा ने कहा, "नदी की सफाई के दौरान गाद हटाने के काम से मगरमच्छों की मौतों का कोई संबंध नहीं है."

संरक्षणवादी डॉ. एमएच मेहता और रोहित प्रजापति ने प्रदूषण और नदी तटों पर अतिक्रमण जैसे व्यापक पारिस्थितिक खतरों की ओर इशारा करते हुए एक विशेषज्ञ समिति द्वारा गहन जांच की आवश्यकता पर बल दिया है. व्यास ने माना कि नदी एक व्यस्त शहर से होकर बहती है और मौसम की स्थिति के साथ-साथ जैविक दबाव ने इसके बहाव पर असर डाला है. इनमें नदी बहाव क्षेत्र के करीब नए आवास का बनना भी प्रमुख है. साथ ही उन्होंने ये भी कहा है कि रिपोर्ट की गई मौतें अभी तक विशेष रूप से असामान्य नहीं हैं.

ये बात जरूर है कि पिछले दिनों औद्योगिक अपशिष्टों को नदी में डाला गया था, जिसके विरोध में गुजरात प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड में शिकायत की गई थी. 2021 में मगरमच्छों से जुड़ी एक रिसर्च सामने आई थी, तब भी उस रिपोर्ट ने मगरमच्छों की मौत को लेकर खतरे की घंटी बजा दी थी. दरअसल, 2019 में दो मगरमच्छों की मौत से बढ़कर यह आंकड़ा 2020 में पांच और 2021 में 10 हो गया. इनमें से छह मगरमच्छ के शवों के पोस्टमार्टम से पता चला कि प्रदूषण, बीमारी या पानी में कुछ रसायन की मौजूदगी से उनकी मौत हुई हैं.

2019 में समा पुल के पास मृत पाए गए 10 फुट लंबे मगरमच्छ की मौत की संभावित वजह बिजली के झटके को बताया गया था. 2022 में भी सयाजीगंज में छह-फुट लंबे मगरमच्छ का शव क्षत-विक्षत अवस्था में मिला था. मछली पकड़ने के लिए जाल लगाना और मगरमच्छों के बीच क्षेत्रीय लड़ाई भी उनकी मौत की मुख्य वजह रही है. इन लड़ाइयों में कई बार उनके जबड़े टूट गए और अंग बुरी तरह से चोटिल हो जाते हैं. हालांकि, वडोदरा में पिछले 4 महीने में हुई मगरमच्छों की मौतें बेहद अलग और कम समय में काफी ज्यादा हैं.

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