scorecardresearch

योगी आदित्यनाथ नए के बजाय रिटायर्ड अफसरों पर ज्यादा भरोसा क्यों दिखा रहे हैं?

रिटायरमेंट के बाद भी IAS–IPS अफसरों को अहम जिम्मेदारियां देकर योगी सरकार अनुभव और प्रशासनिक निरंतरता पर जोर दे रही है, लेकिन विपक्ष इसे सत्ता केंद्रीकरण से जोड़कर देख रहा है

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ यूपी के कार्यवाहक डीजीपी प्रशांत कुमार
पूर्व DGP प्रशांत कुमार को UPESSC का अध्यक्ष बनाया गया है
अपडेटेड 18 दिसंबर , 2025

उत्तर प्रदेश की सत्ता और प्रशासन में बीते कुछ समय से एक साफ पैटर्न दिखता है. रिटायरमेंट के बाद भी कई वरिष्ठ IAS और IPS अफसर सरकार के लिए अहम जिम्मेदारियां संभाल रहे हैं. ताजा उदाहरण पूर्व डीजीपी प्रशांत कुमार का है, जिन्हें प्रयागराज में उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग (UPESSC) का अध्यक्ष बनाया गया. 

इससे पहले पूर्व मुख्य सचिव मनोज कुमार सिंह को यूपी स्टेट ट्रांसफॉर्मेशन कमीशन का पहला सीईओ नियुक्त किया गया. सूची लंबी है और यही सूची योगी सरकार के प्रशासनिक दर्शन पर बहस की वजह भी बन रही है.
प्रशासनिक निरंतरता का मॉडल

प्रोफेसर कीर्ति पांडे के इस्तीफे के बाद UPESSC का कामकाज लगभग ठप पड़ा था. असिस्टेंट प्रोफेसर के इंटरव्यू रुके थे, TGT और PGT परीक्षाएं अटकी थीं और हजारों उम्मीदवार असमंजस में थे. सरकार के सामने सवाल था, कौन ऐसा चेहरा हो जो विवादों से दूर रहते हुए तेजी से काम शुरू कर सके. सरकार का जवाब था एक ऐसा अधिकारी, जिसकी पहचान अनुशासन, सख्ती और सिस्टम को चलाने की क्षमता से बनी हो. 

इस साल सितंबर में, लखनऊ विश्वविद्यालय ने प्रशांत कुमार को पुलिसिंग, सार्वजनिक सुरक्षा और रणनीतिक सुरक्षा प्रबंधन में उनके विशिष्ट योगदान के सम्मान में मानद डॉक्टर ऑफ लिटरेचर (DLitt) की डिग्री प्रदान की. वे 1990 बैच के IPS अधिकारी हैं और विश्वविद्यालय से मानद डॉक्टरेट प्राप्त करने वाले UP कैडर के पहले IPS अधिकारी हैं. कुमार के पास व्यापक शैक्षणिक पृष्ठभूमि के साथ-साथ तीन दशकों से अधिक का पेशेवर अनुभव है. पुलिस सेवा से शिक्षा चयन आयोग तक का यह ट्रांजिशन अपने आप में राजनीतिक संदेश भी है कि योगी सरकार संस्थाओं को फिर से पटरी पर लाने के लिए परंपरागत सोच से हटकर फैसले लेने को तैयार है. 

इसी कड़ी में मनोज कुमार सिंह का नाम भी अहम है. 1988 बैच के IAS अफसर, जो 30 जून को रिटायर हुए, उन्हें कुछ महीनों बाद ही यूपी स्टेट ट्रांसफॉर्मेशन कमीशन का सीईओ बना दिया गया. राज्य योजना आयोग को नया स्वरूप देकर ट्रांसफॉर्मेशन कमीशन बनाना और उसके शीर्ष पर एक अनुभवी नौकरशाह को बैठाना सरकार की मंशा को दिखाता है. मनोज कुमार सिंह के औद्योगिक उत्पादन आयुक्त रहते ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट और ग्राउंड ब्रेकिंग सेरेमनी जैसे बड़े आयोजन हुए. सरकार का तर्क साफ है, जो अधिकारी पहले से ही सिस्टम, फाइलों और प्राथमिकताओं को समझता है, वही बड़े लक्ष्यों को तेजी से आगे बढ़ा सकता है.

सिर्फ IAS नहीं, IPS अफसर भी भरोसे के दायरे में

1987 बैच के IAS अफसर रहे अवनीश कुमार अवस्थी जब अगस्त, 2022 में रिटायर हुए, तो कुछ महीनों के बाद ही उन्हें मुख्यमंत्री के सलाहकार पद पर नियुक्त कर दिया गया. अवनीश कुमार अवस्थी का मुख्यमंत्री के सलाहकार के तौर पर कार्यकाल तीसरी बार बढ़ाया गया है. 1989 बैच के रिटायर्ड IAS अफसर संजय भूसरेड्डी को रियायरमेंट के बाद रेरा का चेयरमैन नियुक्त किया गया. वो मौजूदा समय में इस पद पर कार्यरत हैं. 1988 बैच के IAS अफसर अरविंद कुमार जब रिटायर हुए, तो उनका चयन भी बिजली की नियामक संस्था राज्य विद्युत नियामक आयोग के चेयरमैन के तौर पर किया गया. भारतीय प्रशासनिक सेवा में रहते हुए अरविंद कुमार के पास बिजली के क्षेत्र में काम करने का लंबा अनुभव था. 

यूपी शिक्षा सेवा चयन आयोग के नवनियुक्त चेयरमैन प्रशांत कुमार की पत्नी और 1989 बैच की IAS अफसर डिंपल वर्मा को भी रिटायरमेंट के बाद सरकार ने अगस्त 2023 में रेरा के सदस्य के तौर पर जिम्मेदारी सौंपी थी. सिर्फ IAS ही नहीं IPS अफसर भी इस लिस्ट में प्रमुख रूप से शामिल है. जिन्हें रिटायरमेंट के बाद अहम संस्थाओं में महत्वपूर्ण जिम्मेदारियां दी गई. 1990 बैच के रिटायर्ड IPS अफसर एसएन साबत को को जनवरी, 2025 में UPSSC के चेयरमैन की जिम्मेदारी सौंपी गई. साल 1997 बैच के रिटायर्ड IPS अधिकारी डॉ. जी.के. गोस्वामी को उत्तर प्रदेश स्टेट इंस्टिट्यूट ऑफ फरेंसिक साइंसेज (UPSIFS) का निदेशक पद एक और साल के लिए फिर से सौंपा गया है. डॉ. गोस्वामी 30 सितंबर 2025 को इस पद से रिटायर हुए थे. सरकार का मानना है कि कानून व्यवस्था, परीक्षा संचालन, भर्ती प्रक्रियाएं और रेगुलेटरी बॉडीज, इन सभी जगहों पर अनुशासन और निष्पक्षता सबसे अहम है, और इसमें रिटायर्ड अफसरों का अनुभव काम आता है. 

योगी सरकार का तर्क है कि रेरा, बिजली नियामक आयोग जैसी संस्थाओं में सेक्टरल अनुभव ज्यादा मायने रखता है, न कि सिर्फ उम्र या सेवा में सक्रिय होना. इस तरह योगी सरकार यह संदेश दे रही है कि वह परफॉर्म करके दिखाने वाले अधिकारियों की सेवानिवृत्ति‍ को अंतिम पड़ाव नहीं मानती है. 

‘निक्षय मित्र’ और सामाजिक भूमिका

सरकार ने रिटायर्ड अफसरों और शिक्षाविदों को सिर्फ प्रशासनिक ढांचे तक सीमित नहीं रखा. टीबी मुक्त भारत अभियान के तहत उन्हें ‘निक्षय मित्र’ की भूमिका दी गई. यह एक तरह से रिटायर्ड अफसरों की सामाजिक पूंजी को इस्तेमाल करने की कोशिश है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ का मानना है कि प्रशासनिक अनुभव के साथ सामाजिक भरोसा भी इन वरिष्ठ नागरिकों के पास होता है, जो जनजागरूकता अभियानों में मददगार हो सकता है. सरकार से जुड़े अधिकारी दलील देते हैं कि उत्तर प्रदेश जैसे बड़े और जटिल राज्य में संस्थागत स्मृति बहुत अहम है. एक वरिष्ठ अधिकारी कहते हैं, “हर बार नया आदमी लाने से सीखने में समय लगता है. रिटायर्ड अफसर तुरंत काम शुरू कर सकते हैं. या अपना काम जारी रख सकते हैं. यह व्यवस्था का व्यावहारिक पक्ष है, न कि किसी को मौका न देने की साजिश.” 

बीजेपी नेताओं का कहना है कि योगी सरकार परिणामों पर भरोसा करती है. “अगर संस्थाएं ठप हैं और फैसले अटके हैं, तो अनुभव को प्राथमिकता देना गलत कैसे हो सकता है,” एक कैबिनेट मंत्री का तर्क है. लेकिन विपक्ष इस पूरे मॉडल को अलग नजर से देखता है. समाजवादी पार्टी और कांग्रेस का आरोप है कि सरकार रिटायर्ड अफसरों के जरिए सत्ता पर नियंत्रण बनाए रखना चाहती है. कांग्रेस के राष्ट्रीय प्रवक्ता सुरेंद्र राजपूत कहते हैं, “यह पोस्ट-रिटायरमेंट रिवॉर्ड सिस्टम है. इससे युवा अफसरों और बाहरी विशेषज्ञों के लिए दरवाजे बंद हो जाते हैं.” विपक्ष यह भी सवाल उठाता है कि क्या हर संस्था के लिए वही पुराने चेहरे जरूरी हैं. उनका कहना है कि शिक्षा चयन आयोग जैसे संस्थान में अकादमिक पृष्ठभूमि ज्यादा अहम होनी चाहिए, न कि पुलिसिंग का अनुभव. 

प्रशासनिक विशेषज्ञ इस बहस को ब्लैक एंड व्हाइट में नहीं देखते. लखनऊ विश्वविद्यालय के प्रोफेसर एके श्रीवास्तव कहते हैं, “रिटायर्ड अफसरों की नियुक्ति अपने आप में गलत नहीं है, लेकिन यह स्थायी समाधान भी नहीं हो सकता. अगर हर अहम पद पर वही चेहरे होंगे, तो नई सोच और इनोवेशन कैसे आएगा.” कुछ विशेषज्ञ यह भी मानते हैं कि संवैधानिक और वैधानिक संस्थाओं में नियुक्ति की प्रक्रिया ज्यादा पारदर्शी होनी चाहिए, ताकि भरोसे की कमी न बने.

Advertisement
Advertisement