
मंगलवार, 19 अगस्त, 2025 को जब लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी बिहार के गया जिले में वोटर अधिकार यात्रा निकाल रहे थे, जदयू के मुख्य प्रवक्ता नीरज कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाकर उन पर भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर के अपमान का गंभीर आरोप लगाया.
कांग्रेस के आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट का प्रिंट आउट दिखाते हुए उन्होंने पत्रकारों से कहा, “SIR तो बहाना है, भारत रत्न जननायक कर्पूरी ठाकुर को निबटाना है. महापुरुषों को जनता उपाधि देती है. मगर आप लोगों को जननायक कर्पूरी ठाकुर के नाम से दर्द होता है, तभी तो राहुल गांधी को जननायक की उपाधि दे बैठे. मैं लालू प्रसाद जी और तेजस्वी से पूछना चाहता हूं, आपने जननायक कर्पूरी ठाकुर का अपमान बर्दाश्त कैसे कर लिया?”
दरअसल वे इस बार से नाराजगी जाहिर कर रहे थे कि कांग्रेसी कार्यकर्ता या राहुल गांधी के समर्थक उन्हें जननायक क्यों कहते हैं, जननायक की उपाधि तो कर्पूरी ठाकुर की है. वे इस बात को कर्पूरी ठाकुर का अपमान बता रहे थे.
चाहे यह ब्रांडिंग की रणनीति हो या फिर स्वभाविक उत्साह लेकिन पिछले कुछ महीनों से कांग्रेस कार्यकर्ता और समर्थक राहुल गांधी को जननायक कहने लगे हैं. कांग्रेस के नेता बताते हैं कि यह उपाधि उन्हें लोगों ने भारत जोड़ो यात्रा के दौरान दी है. वहीं पिछले दिनों जब वोटर अधिकार यात्रा में भाग लेने राहुल गांधी बिहार के सासाराम पहुंचे थे तो पार्टी ने एक पोस्टर जारी किया था. जिस पर लिखा था- ‘सासाराम में जननायक का स्वागत’ साथ में राहुल गांधी की तस्वीर थी. इससे पहले भी एक डिजिटल पोस्टर में राहुल गांधी की तस्वीर के साथ बड़े अक्षरों में जननायक लिखा था, जो 17 अगस्त को पार्टी के जारी किया था. नीरज कुमार की आपत्ति इन्हीं पोस्टरों को लेकर थी.
नीरज ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इन पोस्टरों के प्रिंट आउट भी दिखाए और साथ ही बिहार के वरिष्ठ पत्रकार संतोष सिंह की किताब ‘द जननायक’ का हवाला भी दिया, जिसे उन्होंने कर्पूरी ठाकुर के जीवन पर लिखा है. इंडिया टुडे से बातचीत में संतोष सिंह कहते हैं, “दरअसल जननायक की उपाधि 1978 में पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने कर्पूरी ठाकुर को दी थी. उस वक्त उन्होंने बिहार में पिछड़ों-अति पिछड़ों के लिए आरक्षण की घोषणा की थी और इस फैसले को लेकर विवाद खड़ा हो गया था. कई लोग उनके इस फैसले के खिलाफ थे. मगर उस वक्त जनता पार्टी के अध्यक्ष रहे चंद्रशेखर ने कर्पूरी ठाकुर का खुल का समर्थन किया. 1978 के आखिर में एक पार्टी मीटिंग में उन्होंने कर्पूरी ठाकुर को पहली बार जननायक कहा और तब से यह उपाधि उनके साथ जुड़ी हुई है.”
अपनी किताब में उन्होंने कर्पूरी ठाकुर के पुत्र रामनाथ ठाकुर को कोट करते हुए लिखा है, “जब मेरे पिता के फैसले को लेकर लोगों की राय बंटी हुई थी, चंद्रशेखर ने इसे ऐतिहासिक फैसला बताया और उन्होंने उन्हें जननायक कहकर संबोधित किया, इस पर पार्टी की बैठक में जोरदार तालियां बजीं.” संतोष सिंह ने अपनी किताब का नाम भी इसी वजह से जननायक रखा.
जब जननायक कर्पूरी ठाकुर की उपाधि रही है तो फिर आखिर कांग्रेस राहुल गांधी को क्यों जननायक कहने लगी है? इस सवाल पर कांग्रेस प्रवक्ता असितनाथ तिवारी कहते हैं, “भारत रत्न जननायक कर्पूरी ठाकुर का कांग्रेसियों के मन में भरपूर सम्मान है, मगर सच्चाई यह भी है कि सिर्फ उन्हें ही जननायक नहीं कहा गया है. जिन पूर्व प्रधानमंत्री चंद्रशेखर ने उन्हें जननायक की उपाधि दी, उन्हें भी उनके समर्थक जननायक कहते हैं. बलिया में तो उनके नाम पर जननायक चंद्रशेखर विश्वविद्यालय की स्थापना की गई है. चौधरी देवीलाल जी को जनता दल के मंचों पर जननायक कहा जाता था, उस वक्त नीतीश जी भी जनता दल के सदस्य हुआ करते थे. उत्तराखंड में आंदोलनकारी हुआ करते थे फील्ड मार्शल दिवाकर भट्ट, उनको आज भी वहां जननायक दिवाकर भट्ट ही कहा जाता है. जननायक तो ऐसी उपाधि है, जिसे अलग-अलग कालखंड में अलग-अलग नेताओं को जनता ने यह कह कर पुकारा. सुभाष चंद्र बोस को महात्मा गांधी ने नेता जी कहा था, हाल के दिनों में उत्तर प्रदेश में मुलायम सिंह यादव जी को नेता जी कहा जाने लगा.”

वे आगे बताते हैं, “चूंकि भारत जोड़ो यात्रा के दौरान राहुल गांधी जी ने चार हजार किमी की पैदल यात्रा की. वे लगातार जनता के सवालों को उठाते हैं और संघर्ष करते हैं. इसलिए लोग उन्हें जननायक कहने लगे हैं. और लोगों को याद रखना चाहिए कि विधानसभा में अविश्वास प्रस्ताव लाकर बीजेपी ने ही कर्पूरी ठाकुर की सरकार गिराई थी. उन्हें इन्हीं लोगों ने अपमानजनक संबोधन दिए थे. आज वे इनकी चिंता कर रहे हैं.”
जिस तरह कांग्रेसी कार्यकर्ता और समर्थक राहुल गांधी को जननायक कहते हैं, वे उन्हें न्याय योद्धा भी कहकर पुकारते हैं. मगर राहुल गांधी को जननायक कहा जाए या नहीं इस मसले पर जानकारों और सामाजिक विचारकों की भी राय बंटी हुई है.
राजनेता एवं आईटीएम विवि के संस्थापक कुलपति रमाशंकर सिंह जिनका देश के समाजवादी नेताओं से करीबी रिश्ता रहा है, कहते हैं, “जननायक बनना आसान नहीं है. इसके लिए जीवन भर का संघर्ष जरूरी होता है. मैं चाहता हूं राहुल गांधी क्या, कोई भी व्यक्ति जननायक बने. हमें दूसरा जननायक देखने को तो मिले. मगर यह सिर्फ चुनाव अभियान का विषय नहीं हो सकता. इसके लिए दीर्घकालिक संघर्ष की जरूरत है.”
वहीं टाटा सामाजिक विज्ञान संस्थान के पूर्व प्राध्यापक पुष्पेंद्र थोड़ी अलग राय रखते हैं. वे कहते हैं, “जननायक बहुत जेनरिक शब्द है, जनता जिसे अपना नायक मानती है, उसे जननायक पुकारती है. इसका कोई कॉपीराइट नहीं हो सकता है. हां, कुछ उपाधि के मामले में ऐसा हो सकता है, जैसे राष्ट्रपिता. आप सबको राष्ट्रपिता नहीं कह सकते हैं. आप सिर्फ महात्मा गांधी को ही ऐसा कहेंगे. मगर जनता जिसे पसंद करे उसे जननायक या लोकनायक जैसी उपाधि से ही पुकारेंगे. जन के बहुत पर्यायवाची कहां हैं. इसलिए यह विवाद खड़ा करना बेकार है.”