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ओडिशा : BJD कैसे बढ़ रही बिखराव की तरफ, पार्टी BJP पर क्यों लगा रही 'ऑपरेशन लोटस' का आरोप?

BJD प्रमुख नवीन पटनायक की हालत देखते हुए लगता है कि पार्टी में बिखराव अभी तुरत-फुरत तो थमने वाला नहीं है

BJD प्रमुख नवीन पटनायक पार्टी नेताओं के साथ (फाइल फोटो)
अपडेटेड 11 दिसंबर , 2025

ओडिशा में ऐसा लग रहा है कि 24 सालों तक सत्ता में रहने के बाद सत्ता के आदी हुए बीजू जनता दल (BJD) के नेताओं को अब इसकी कमी बेहद खलने लगी है. पार्टी के ऊपर के नेता से लेकर ग्राउंड पर काम कर रहे नेता तक धीरे-धीरे पार्टी का साथ छोड़ रहे हैं. जाहिर है, इसमें कोई कांग्रेस या अन्य दल नहीं, सब BJP में ही जा रहे हैं. 

बीते नवंबर में BJP प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल के गृह जिले और BJD का गढ़ माने जाने वाले भद्रक जिले के चार ब्लॉक प्रमुखों ने BJP का दामन थाम लिया. इसमें बांत ब्लॉक अध्यक्ष मनोरंजन घड़ेई, भद्रक ब्लॉक अध्यक्ष उर्मिला नायक और भंडारिपोखरी ब्लॉक अध्यक्ष सुमति सेठी जैसे नेता शामिल हैं. भद्रक केंद्रीय मंत्री और BJP नेता धर्मेंद्र प्रधान का भी गृह नगर है. जिले के तालचेर नगर पालिका के चेयरपर्सन पबित्रा भुटिया ने भी BJP का दामन थाम लिया है. यही नहीं, उनके साथ 13 और काउंसलरों ने भी उनके साथ ही BJP की राह पकड़ ली है. इससे पहले सितंबर में भी जाजपुर जिले के 70 से अधिक पंचायत प्रतिनिधियों ने BJD छोड़ सत्ताधारी दल का दामन थाम लिया था. 

इससे पहले नुआपाड़ा विधानसभा सीट पर हुए उपचुनाव के दौरान तो BJP ने BJD के नाक के नीचे से उसके संभावित प्रत्याशी को ही पार्टी में शामिल करा लिया. यह सीट BJD के वरिष्ठ नेता और लगातार चार बार विधायक रहे राजेंद्र ढ़ोलकिया के निधन से खाली हुई थी. पार्टी ने उनके बेटे जय ढोलकिया को कैंडीडेट घोषित करने का मन बना लिया था. इसी बीच उन्होंने पार्टी छोड़ BJP का सिंबल ले लिया. यही नहीं इस सीट पर BJD को करारी हार का भी सामना करना पड़ा और पार्टी यहां तीसरे नंबर रही. जबकि नुआपाड़ा को BJD का सबसे मजबूत गढ़ माना जाता रहा है. 

जब सत्ता गंवाने के बाद BJD नेताओं के BJP में जाने का सिलसिला अभी शुरू नहीं हुआ है. इस लंबी लिस्ट में अरविंद धाली, प्रदीप कुमार पाणिग्रही, प्रशांत कुमार जगदेव, देवाशीष नायक, समीर रंजन दास, प्रेमानंद नायक, रमेश चंद्र साय, मुकुंद सोंढी, सुनंदा दास, अमर पटनायक जैसे राज्य के बड़े चेहरे शामिल हैं. इनमें कोई पूर्व मंत्री, पूर्व विधायक तो कोई आईटी सेल का प्रमुख रहा है. ग्राउंड स्तर के कार्यकर्ताओं की लिस्ट तो और लंबी है. 

कुछ ऐसे भी नेता हैं जिन्होंने BJD का दामन तो छोड़ा, लेकिन अभी तक BJP में शामिल नहीं हुए हैं. इसमें पूर्व कानून मंत्री जगन्नाथ सरका, पूर्व राज्यसभा सांसद एन भास्कर राव, प्रफुल्ल कुमार मलिक, पूर्व मंत्री अमर प्रसाद सतपथी जैसे नेता शामिल हैं. 

BJD क्यों बता रही ऑपरेशन लोटस 

BJD के नेता इसे ऑपरेशन लोटस का नाम दे रहे हैं. पार्टी के वरिष्ठ विधायक गौतम बुद्ध दास का कहना है कि ओडिशा के अधिकतर या यूं कह लीजिये कि 90 फीसदी नगर निकायों पर BJD के लोग चुनकर आए हैं. अब जबकि साल 2027 के शुरुआत में इन नगर निकायों का चुनाव होना है, ऐसे में मोहन माझी सरकार जानबूझकर नगर निकायों का फंड रोक रही है. परेशान होकर ये जन प्रतिनिधि BJP का दामन थाम ले रहे हैं. 

क्या इस भगदड़ से आनेवाले नगर निकाय चुनाव में BJD के प्रदर्शन पर असर पड़ने वाला है? गौतम बुद्ध दास  कहते हैं, “BJP देश भर में विधायकों को तोड़ने, सरकार गिराने के लिए ऑपरेशन लोटस चलाती रही है. ऑपरेशन लोटस जैसी अलोकतांत्रिक प्रक्रिया को ग्लोरीफाई किया गया. ओडिशा में हमारे विधायकों को तोड़ नहीं पा रहे हैं, तो सेकेंड लाइन लीडरशिप यानी नगर निकाय के नेताओं को डर और प्रलोभन के सहारे तोड़ रहे हैं.’’ 

वे आगे कहते हैं, "जहां तक बात नगर निकाय चुनाव में इसके असर की है, तो जहां तक मेरी जानकारी है, 2027 में वर्तमान सरकार ये चुनाव कराएगी ही नहीं. क्योंकि उनका कारोबार तो EVM के सहारे चलता है, यहां तो चुनाव बैलेट पेपर पर होना है. ऐसे में उन्हें अब भी डर है कि उन्हें हार मिलेगी. ऑपरेशन लोटस का कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा.’’ 

वहीं BJP के प्रदेश अध्यक्ष मनमोहन सामल गौतम दास के आरोपों को सिरे से खारिज करते हैं. वे कहते हैं, "नदियां आखिरकार समुद्र में ही आकर मिलती है. BJP किसी पार्टी को तोड़ती नहीं, बल्कि उन लोगों का स्वागत करती है जो शामिल होना चाहते हैं. जो भी व्यक्ति पार्टी के लिए महत्वपूर्ण साबित हो सकता है, उसे शामिल किया जा रहा है. सामल के मुताबिक BJP अगर आज यहां तक पहुंची है, तो लोगों को जोड़कर आगे बढ़ने से ही पहुंची है.’’ 

वहीं BJD की राजनीति को लंबे समय से देखते आ रहे विश्लेषकों का मानना है कि यह संकट BJD के भीतर बढ़ती दूरी का संकेत है. नवीन पटनायक अब ज़मीनी राजनीति से काफ़ी दूर होते जा रहे हैं, जिससे स्थानीय नेता और कार्यकर्ता खुद को उपेक्षित महसूस कर रहे हैं. 

इन लोगों का मानना है कि पार्टी की स्थापना 1997 में मजबूत क्षेत्रीय भावना और भ्रष्टाचार व भाई-भतीजावाद के ख़िलाफ लड़ने के संकल्प पर हुई थी. लेकिन पार्टी नेतृत्व ने इन मूल सिद्धांतों को व्यवस्थित रूप से किनारे कर दिया है. व्यापक भ्रष्टाचार, भाई-भतीजावाद और लोकतांत्रिक सोच वाले नेताओं की लगातार उपेक्षा से यह स्थिति पैदा हुई है. पार्टी अध्यक्ष न तो संकट का ठीक से आकलन कर रहे हैं और न ही सुधारात्मक कदम उठा रहे हैं. 

ध्यान देने वाली बात ये भी है कि नवीन पटनायक ने अभी तक खुद के बाद अपना विकल्प तैयार नहीं किया है. इससे पहले वे पार्टी और सरकार के कामकाज को संभालने के लिए दूसरे पर ही निर्भर रहे हैं. शुरूआती दिनों में प्यारीमोहन माहापात्रा उनके सबसे खास रहे तो बीते कुछ सालों से वीके पांडियन इस भूमिका में नजर आ रहे हैं. अब 79 साल की उम्र में उन्हें पहली बार पार्टी के अंदर बगावत, जमीन पर नेताओं के बिखराव जैसे हालात का सामना करना पड़ रहा है. जैसे-जैसे वे मजबूर होते जाएंगे, राज्य में BJP की राह उतनी ही आसान होती जाएगी.

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