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गणि‍त से क्यों दूरी बना रहे छात्र; यूपी बोर्ड के आंकड़े दे रहे बड़ी चेतावनी

यूपी बोर्ड के ताजा आंकड़े बताते हैं कि इंटरमीडिएट में गणित विषय छात्रों की पसंद से बाहर होता जा रहा है

JAC Board Exam datesheet
सांकेतिक तस्वीर
अपडेटेड 29 दिसंबर , 2025

लखनऊ के एक सरकारी इंटर कॉलेज में पढ़ने वाला 12वीं का छात्र राहुल (बदला हुआ नाम) पिछले साल तक गणित पढ़ रहा था. दसवीं में उसने 78 फीसदी अंक हासिल किए, लेकिन 11वीं में आते ही गणित उसके लिए बोझ बन गया. ट्यूशन के बावजूद सवाल समझ में नहीं आते थे, स्कूल में शिक्षक अक्सर अनुपस्थित रहते थे और परीक्षा का डर लगातार बना रहता था. आखिरकार उसने 12वीं में गणित छोड़कर बायोलॉजी चुन ली. 

राहुल अकेला नहीं है. यूपी बोर्ड के ताजा आंकड़े बताते हैं कि पिछले चार सालों में लगभग एक लाख छात्रों ने इंटरमीडिएट स्तर पर गणित से दूरी बना ली है. 2026 की इंटरमीडिएट परीक्षाओं के लिए जहां केवल 3.98 लाख छात्रों ने गणित चुना है, वहीं 2023 में यही संख्या 4.99 लाख थी. चार साल में यह पहली बार है जब गणित का नामांकन 4 लाख से नीचे गया है. सवाल साफ है, जिस विषय को कभी करियर की रीढ़ माना जाता था, उससे छात्रों का मोह क्यों भंग हो रहा है?

गिरते आंकड़े, बदलती पसंद

यूपी बोर्ड के डेटा सिर्फ गणित की गिरावट की कहानी नहीं कहते, बल्कि छात्रों की बदलती प्राथमिकताओं को भी उजागर करते हैं. कुल रजिस्ट्रेशन में भी गिरावट आई है. 2026 के लिए 24.79 लाख छात्रों ने नामांकन कराया, जबकि 2025 में यह संख्या 27.05 लाख थी. यानी एक ही साल में 2.25 लाख छात्रों की कमी. इसके उलट, बायोलॉजी अब भी छात्रों की पहली पसंद बनी हुई है. 2026 के लिए 12.16 लाख छात्रों ने बायोलॉजी चुनी. भले ही यह संख्या 2025 के 12.49 लाख से थोड़ी कम हो, लेकिन लोकप्रियता बरकरार है. 

आर्ट्स स्ट्रीम में समाजशास्त्र, नागरिक शास्त्र और भूगोल जैसे विषय भी मजबूत बने हुए हैं. वोकेशनल और स्पेशलाइज्ड विषयों के आंकड़े तो और भी चौंकाने वाले हैं. इंटर स्तर पर मधुमक्खी पालन के लिए सिर्फ 16 छात्र, डेयरी टेक्नोलॉजी में 33, रेशम उत्पादन में 38. हाई स्कूल स्तर पर आपदा प्रबंधन और फसल सुरक्षा जैसे विषयों में महज एक-एक छात्र. ये आंकड़े बताते हैं कि सिस्टम में विकल्प तो हैं, लेकिन भरोसा नहीं. 

खाली पद, कमजोर नींव

शिक्षाविदों का मानना है कि गणित से दूरी की सबसे बड़ी वजह उसका “डर” है. लेकिन यह डर अचानक पैदा नहीं होता. इसकी जड़ें प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर तक जाती हैं. यहीं पर एक और गंभीर सच सामने आता है. बेसिक शिक्षा परिषद के उच्च प्राथमिक विद्यालयों में विज्ञान और गणित के 29,334 पद आज भी खाली हैं. ये वही कक्षाएं हैं जहां से छात्रों की गणित की नींव मजबूत या कमजोर होती है. यह भर्ती 2013 में शुरू हुई थी. सात राउंड काउंसलिंग हुई, आठवें राउंड तक नियुक्तियां भी दी गईं, लेकिन सरकार बदलते ही प्रक्रिया पर ब्रेक लग गया. 

मामला हाई कोर्ट से सुप्रीम कोर्ट पहुंचा. 29 जनवरी को सुप्रीम कोर्ट ने साफ आदेश दिया कि न्यूनतम कटऑफ से अधिक अंक पाने वाले सभी याचिकाकर्ता अभ्यर्थियों को नियुक्ति दी जाए. इसके बावजूद विभागीय लेटलतीफी के चलते चयन प्रक्रिया आज भी अधर में लटकी है. जानकार बताते हैं कि सात जिलों से रिक्त पदों का ब्योरा न आने के कारण काउंसलिंग का विज्ञापन अटका हुआ है. नतीजा यह कि हजारों स्कूल आज भी गणित और विज्ञान के प्रशिक्षित शिक्षकों के बिना चल रहे हैं. 

शिक्षा विशेषज्ञ मानते हैं कि जब स्कूलों में गणित के शिक्षक ही नहीं होंगे, तो छात्र विषय से कैसे जुड़ेंगे? प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित अगर बोझ बन जाए, तो इंटर तक आते-आते छात्र उससे बचने की कोशिश करता है. ग्रामीण इलाकों में स्थिति और भी खराब है. कई स्कूलों में एक ही शिक्षक कई विषय पढ़ा रहे हैं. गणित जैसे विषय के लिए जो नियमित अभ्यास और मार्गदर्शन चाहिए, वह नहीं मिल पाता. इसका असर बोर्ड परीक्षा में दिखता है और छात्र सुरक्षित विकल्प की तलाश में गणित छोड़ देते हैं.

करियर की चिंता और बायोलॉजी का आकर्षण

केंद्रीय विद्यालय संगठन की पूर्व असिस्टेंट कमिश्नर शालिनी दीक्षित मानती हैं कि यह बदलाव बदलते जॉब मार्केट का संकेत है. उनके मुताबिक बायोलॉजी अब सिर्फ मेडिकल तक सीमित नहीं रही. शालिनी बताती हैं कि आज बायोलॉजी पढ़ने वाला छात्र पैरामेडिकल साइंस, नर्सिंग, मेडिकल लैब टेक्नोलॉजी, फिजियोथेरेपी, रेडियोलॉजी, बायोटेक्नोलॉजी, माइक्रोबायोलॉजी, फूड टेक्नोलॉजी, एग्रीकल्चर, हॉर्टिकल्चर और वेटरनरी साइंस जैसे कई कोर्स चुन सकता है. ये कोर्स स्किल-बेस्ड हैं, रोजगार से सीधे जुड़े हैं और गणित की तुलना में छात्रों को कम डरावने लगते हैं. 

वहीं गणित के साथ करियर की राह छात्रों को ज्यादा अनिश्चित और कठिन दिखाई देती है. एक और बड़ा कारण कोचिंग संस्कृति है. गणित को ऐसा विषय बना दिया गया है, जिसे बिना कोचिंग पास करना मुश्किल माना जाता है. कमजोर आर्थिक पृष्ठभूमि से आने वाले छात्र इस दबाव में पहले ही हार मान लेते हैं. इसके उलट, बायोलॉजी में छात्रों को लगता है कि मेहनत और रटने से भी अच्छे अंक आ सकते हैं. चाहे यह धारणा पूरी तरह सही न हो, लेकिन निर्णय इसी सोच के आधार पर लिए जा रहे हैं.

वोकेशनल विषयों पर भरोसे की कमी

सरकार लगातार स्किल-बेस्ड और वोकेशनल एजुकेशन की बात करती है, लेकिन नामांकन के आंकड़े हकीकत बयां करते हैं. मधुमक्खी पालन, डेयरी, मोबाइल रिपेयरिंग जैसे विषयों में गिनती के छात्र क्यों हैं? विशेषज्ञों का कहना है कि इन कोर्सों के बाद रोजगार की स्पष्ट गारंटी नहीं है. न स्कूल स्तर पर इनकी सही काउंसलिंग होती है, न इंडस्ट्री से मजबूत जुड़ाव दिखता है. ऐसे में छात्र पारंपरिक स्ट्रीम में ही सुरक्षित भविष्य खोजते हैं. 

आर्ट्स स्ट्रीम में समाजशास्त्र सबसे लोकप्रिय विषय बना हुआ है. 2026 के लिए 4.65 लाख छात्रों ने इसे चुना. यह संकेत है कि छात्र ऐसे विषय चाहते हैं जिन्हें समझना अपेक्षाकृत आसान हो और जिनसे प्रतियोगी परीक्षाओं में मदद मिले. यह भी एक तरह से गणित से दूरी का ही दूसरा रूप है. शिक्षक मुदित गोयल कहते हैं, “गणित से मोहभंग को केवल ‘छात्रों की कमजोरी’ कहकर नहीं टाला जा सकता. यह सिस्टम की सामूहिक विफलता है, शिक्षक भर्ती में देरी, कक्षा में गुणवत्ता की कमी, करियर काउंसलिंग का अभाव और रोजगार से शिक्षा का कमजोर जुड़ाव इसके मुख्य कारक हैं. जब छात्र देखता है कि गणित पढ़ने के बाद भी नौकरी की राह साफ नहीं है, जबकि बायोलॉजी और अन्य विषय उसे ज्यादा विकल्प देते हैं, तो उसका चुनाव स्वाभाविक लगता है. 

मुदित गोयल बताते हैं कि इस संकट से निपटने के लिए सबसे पहले प्राथमिक और उच्च प्राथमिक स्तर पर गणित और विज्ञान के रिक्त पदों को भरना होगा. सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बावजूद अटकी 29,334 पदों की भर्ती सिर्फ प्रशासनिक मुद्दा नहीं, बल्कि शिक्षा के भविष्य का सवाल है. दूसरा, गणित की पढ़ाई को डर से बाहर निकालना होगा. रटने की जगह समझ पर जोर, प्रैक्टिकल उदाहरण, टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल और नियमित शिक्षक प्रशिक्षण जरूरी है. तीसरा, करियर काउंसलिंग को स्कूल स्तर पर मजबूत करना होगा. छात्रों को यह बताना होगा कि गणित सिर्फ इंजीनियरिंग तक सीमित नहीं है, बल्कि डेटा साइंस, फाइनेंस, आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस, स्टैटिस्टिक्स जैसे क्षेत्रों में भी बड़े मौके हैं. चौथा, वोकेशनल विषयों को लेकर भरोसा पैदा करना होगा. जब तक इन कोर्सों के बाद रोजगार का साफ रास्ता नहीं दिखेगा, छात्र इन्हें नहीं अपनाएंगे. 

यूपी बोर्ड में गणित से घटती रुचि एक चेतावनी है. यह बताती है कि अगर शिक्षा व्यवस्था ने समय रहते खुद को नहीं बदला, तो हम एक ऐसे दौर में पहुंच सकते हैं जहां गणित जैसे बुनियादी विषय हाशिये पर चले जाएं. राहुल जैसे छात्र सिर्फ एक आंकड़ा नहीं हैं. वे सिस्टम का आईना हैं. सवाल यह है कि क्या हम इस आईने में झांककर सुधार की हिम्मत दिखाएंगे, या फिर हर साल गिरते आंकड़ों पर सिर्फ अफसोस करते रह जाएंगे. 

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