
पश्चिमी यूपी में यमुना नदी के पूर्वी किनारे पर बसे बागपत जिले का महाभारत काल से गहरा जुड़ाव है. सरकारी दस्तावेजों के मुताबिक महाभारत काल में पांडव बंधुओं ने व्याघ्रप्रस्थ (टाइगरसिटी) के रूप में इस शहर को बसाया था. शहर को यह नाम इसलिए मिला क्योंकि यहां कई शताब्दियों पहले बाघों की आबादी मिली थी.
महाभारत के युद्ध से पहले पांडव ने कौरवों से जो पांच गांव मांगे थे, उनमें से एक इलाका यह भी था. दुर्योधन ने बागपत के बड़ौत के पास लाक्षागृह (मोम का बना महल) बनवाया था जो पांडवों को मारने के लिए था. इसके बाद ग्रंथों में कई कहानियां हैं कि इस इलाके का नाम कैसे बदला.
यह भी जिक्र मिलता है कि शहर ने संस्कृत शब्द वाक्यप्रस्थ (भाषण देने वाले शहर) से अपना नाम प्राप्त किया है और आखिर में मुगल काल में इस शहर को बागपत नाम दिया गया.
लोकसभा के चुनावी महाभारत की बात करें तो बागपत सीट और चौधरी चरण सिंह का परिवार एक दूजे के पर्याय रहे हैं. लेकिन 2024 में बागपत लोकसभा सीट पर नई पटकथा लिखी जा रही है. पिछले 47 सालों में यह पहली बार है कि बागपत लोकसभा सीट पर पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के परिवार का कोई सदस्य चुनाव नहीं लड़ रहा.
1977 के लोकसभा चुनाव में चौधरी चरण सिंह पहली बार बागपत से लोकसभा चुनाव लड़े थे. इसके बाद से हर चुनाव में चरण सिंह परिवार के सदस्य ही बागपत लोकसभा सीट से चुनाव लड़ते आए हैं. 2014 के लोकसभा चुनाव में अजित सिंह और 2019 में जयंत चौधरी ने बागपत से चुनाव लड़ा लेकिन दोनों हार गए थे. वर्ष 2024 का लोकसभा चुनाव राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) और भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) मिलकर लड़ रहे हैं.
गठबंधन के चलते रालोद ने बागपत और बिजनौर सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं. इस लोकसभा चुनाव में राष्ट्रीय लोकदल के अध्यक्ष जयंत चौधरी ने बागपत में नई परंपरा डाली. बागपत लोकसभा सीट पर पार्टी के सबसे पुराने नेता और जाट जाति से ताल्लुक रखने वाले राजकुमार सांगवान को उम्मीदवार बनाया गया है. सांगवान पर अपनी पार्टी के अध्यक्ष जयंत चौधरी के पिता की पुश्तैनी लोकसभा सीट बागपत पर दोबारा पुराना गौरव वापस लाने की चुनौती है.
बागपत छापरौली रोड पर मौजूद सांगवान का चुनाव कार्यालय भाजपा और रालोद कार्यकर्ताओं की गतिविधियों का केंद्र बना हुआ है. चार मार्च को सांगवान का टिकट घोषित हुआ, तभी से वे क्षेत्र में सक्रिय हो गए और विरोधियों पर मनोवैज्ञानिक बढ़त लेने की हर संभव कोशिश कर रहे हैं. उधर, पहले समाजवादी पार्टी (सपा) ने रालोद के जाट वोट बैंक पर सेंधमारी करने के लिए जाट नेता मनोज चौधरी को उम्मीदवार बनाया लेकिन नामांकन के अंतिम दिन चौधरी का टिकट काटकर ब्राह्मण नेता अमरपाल शर्मा को थमा दिया.
बसपा और कांग्रेस से होते हुए सपा में अमरपाल शर्मा वर्ष 2012 से 2017 के बीच साहिबाबाद से विधायक रहे हैं. पिछले कुछ दिनों में रालोद भाजपा संयुक्त प्रत्याशी डा. राजकुमार सांगवान को सपा-कांग्रेस गठबंधन के प्रत्याशी अमरपाल शर्मा से सीधी चुनौती मिल रही है लेकिन बहुजन समाज पार्टी (बसपा) के एडवोकेट प्रवीण बैंसला भी लड़ाई को त्रिकोणीय बनाने में जुटे हैं. दिल्ली हाइकोर्ट में वकालत करने वाले गुर्जर जाति के बैंसला पिछले दो दशक से बसपा में हैं. वर्ष 2015 में प्रवीण बैंसला दिल्ली विधानसभा का चुनाव भी लड़ चुके हैं.
बागपत लोकसभा सीट पर कुल 16,56,648 मतदाता है. इनमें मुस्लिम वोटर सबसे ज्यादा चार लाख हैं. इनके अलावा जाट वोटर करीब साढ़े तीन लाख हैं तो ब्राह्मण वोटर करीब डेढ़ लाख और गुर्जर वोटर करीब सवा लाख, दलित करीब एक लाख 80 हजार, कश्यप करीब एक लाख, राजपूत भी करीब एक लाख हैं और बाकी में अन्य बिरादरी हैं. इन्हीं जातिगत समीकरणों को ध्यान में रखते हुए भी राजनीतिक दलों ने अपने समीकरण बनाए हैं.
पश्चिमी यूपी की सभी सीटों पर कमल खिलाने का लक्ष्य लेकर चल रही भाजपा बागपत सीट पर कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती. इस सीट पर सत्यपाल सिंह ने 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा उम्मीदवार के रूप में जीत हासिल की थी. रालोद के खाते में गई बागपत सीट पर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ भी कोई कसर नहीं छोड़ने के मूड में हैं.
मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 5 अप्रैल को बागपत में 'विजय शंखनाद' रैली के जरिए भाजपा-रालोद गठबंधन के पक्ष में माहौल बनाने की कोशिश की. अपने 16 मिनट के भाषण में योगी ने बागपत के दिलों में बसने वाले भारत रत्न चौधरी चरण सिंह का कई बार नाम लिया और उन्हें नमन किया. बागपत के सांसद सत्यपाल सिंह भले ही इस बार चुनावी मैदान में न हों लेकिन योगी ने उनके नाम पर वोट मांगने में कोई कोताही नहीं बरती.
सत्यपाल सिंह के नाम के आगे योगी ने लोकप्रिय सांसद का उपयोग किया. मंच से योगी ने कहा, "मेरे मुख्यमंत्री बनते ही बागपत के विकास के लिए सत्यपाल सिंह ने मुझसे भेंट की. सत्यपाल अथवा यहां के विधायकों ने बागपत के विकास के लिए जो भी प्रस्ताव दिए उसे पूरा करने में मैंने 24 घंटे भी नहीं लगाए." मुख्यमंत्री योगी ने जब रैली में बागपत के लोगों से आह्वान किया कि चुनाव की गर्मी पैदा कर दीजिए तो सभा स्थल देर तक तालियों की गड़गड़ाहट से गूंजता रहा.
इस सीट पर केवल रालोद-भाजपा प्रत्याशी की नहीं, बल्कि इनके विधायकों की परीक्षा भी हो रही है. यहां की सभी पांच विधानसभाओं में भाजपा व रालोद के विधायक हैं. छपरौली विधानसभा सीट से रालोद के डॉ. अजय कुमार विधायक हैं तो बड़ौत से भाजपा के के. पी. मलिक, बागपत से भाजपा के योगेश धामा, सिवालखास से रालोद के गुलाम मोहम्मद और मोदीनगर से भाजपा की मंजू सिवाच विधायक हैं.
बागपत लोकसभा सीट के सभी विधानसभा क्षेत्रों का मिजाज भी अलग-अलग है. इनमें शामिल छपरौली को चौधरी परिवार का गढ़ कहा जाता है, क्योंकि विधानसभा चुनाव में लगातार चौधरी परिवार या उनकी पार्टी का कब्जा रहा है. लोकसभा चुनाव में भी चौधरी परिवार को छपरौली से मुस्लिम जाट समीकरण के कारण हमेशा तीस हजार वोटों से ज्यादा की बढ़त मिलती रही है. मगर, पिछले दो लोकसभा चुनाव से छपरौली में चौधरी परिवार की पकड़ कमजोर होती दिख रही है. 2014 के लोकसभा चुनाव में छपरौली में करीब 15 हजार वोट से भाजपा ने रालोद पर अपनी बढ़त बना ली थी. हालांकि 2019 के लोकसभा चुनाव में छपरौली से रालोद को भाजपा से ज्यादा वोट मिले, मगर वहां से बढ़त केवल 13 हजार की ही थी.
दिगंबर जैन कॉलेज, बड़ौत, बागपत के राजनीतिक शास्त्र विभागाध्यक्ष स्नेहवीर पुंडीर कहते हैं, "इस बार लोकसभा चुनाव में रालोद भाजपा का गठबंधन है और इसे छपरौली से पहले की तरह बढ़त की उम्मीद है क्योंकि बगापत और बड़ौत में वोटों का अंतर ज्यादा नहीं रहा है. सिवालखास के मुस्लिमों का रूख पिछले चुनावों की तरह रहा तो छपरौली की बढ़त भाजपा-रालोद गठबंधन को फायदा पहुंचा सकती है."
मोदीनगर विधानसभा सीट के मतदाताओं ने पिछले दो चुनावों से भाजपा का साथ दिया है. जहां वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में करीब 68 हजार वोटों की बढ़त भाजपा को मिली थी, वहीं वर्ष 2019 में घटने के बावजूद करीब 37 हजार वोटों की बढ़ती मिली थी. इस सीट पर ब्राह्मण मतदाता काफी हैं. इसको देखते हुए ही सपा ने ब्राह्मण कार्ड खेलकर अमरपाल शर्मा को प्रत्याशी बनाया है. मोदीनगर विधानसभा सीट पर ब्राह्मण वोटों में सेंधमारी रोकना भी भाजपा-रालोद गठबंधन के लिए चुनौती होगा. गुर्जर मतों को विपक्षी खींचतान से बचाने के लिए जयंत चौधरी ने बिजनौर लोकसभा सीट पर गुर्जर जाति के चंदन चौहान को रालोद का उम्मीदवार बनाया है.
साल 2022 के विधानसभा चुनाव के मुकाबले लोकसभा चुनाव में गठबंधन की पार्टियां बदलने से भी विधायकों के लिए बढ़त दिलाना किसी चुनौती से कम नहीं है. बागपत में भाजपा के जिला प्रभारी डा. चंद्रमोहन भगवा गंठबधन को जमीन पर मजबूत करने की कवायद की महत्वपूर्ण कड़ी हैं. चंद्रमोहन बूथ स्तर पर रालोद और भाजपा के कार्यकर्ताओं के साथ बैठकें करके सांगवान को पिछली बार से अधिक वोट दिलाने की कोशिश में जुटे हैं.
बागपत लोकसभा सीट से सपा प्रत्याशी अमर पाल शर्मा को भले ही रालोद उम्मीदवार राजकुमार सांगवान की तुलना में प्रचार के लिए कम समय मिला हो लेकिन वे जातियों की गुणाभाग में जीत तलाशने की कोशिश कर रहे हैं. शर्मा की नजर बागपत में भाजपा-रालोद गठबंधन से नाराज जाट मतदाताओं के अलावा अपनी जाति के ब्राह्मण और समाजवादी पार्टी के परंपरागत मुस्लिम मतदाताओं पर टिकी हुई है.

छपरौली विधानसभा के ख्वाजा नंगला गांव के रहने वाले मोहम्मद आमिर बताते हैं, "पहले मुस्लिम मतदाता दुविधा में था लेकिन सपा और कांग्रेस के साथ आने से यह अब अखिलेश यादव के साथ खड़ा है." अमरपाल शर्मा के नामांकन के दिन उनपर दर्ज मुकदमों की सूची प्रसारित करके विरोधी खेमा उनके मुकाबले सांगवान की साफ सुथरी छवि को भी मुद्दा बनाने की कोशिश कर रहा है.
बसपा ने भी दलित मुस्लिम के साथ खासकर गुर्जर वोटों की लामबंदी के लिए ही प्रवीण बैंसला को उम्मीदवार बनाया है. प्रवीण बैंसला लगातार गुर्जर बहुल क्षेत्रों में प्रचार कर अपने लिए समर्थन बटोरने का हर संभव प्रयास कर रहे हैं. स्नेहवीर पुंडीर कहते हैं कि भाजपा के विरोध में चुनाव लड़ रहे उम्मीदवारों के पक्ष में बड़े विपक्षी नेताओं द्वारा अभी तक बागपत में चुनावी जनसभा या रैली न करना रणनीतिक चूक साबित हो रहा है.
अगर इतिहास के बारे में बताएं तो बागपत लोकसभा सीट का गठन 1967 में हुआ था. तब से अब तक केवल एक बार ही इस सीट पर गैर जाट सांसद के रूप में रामचंद्र विकल चुने गए. विकल गुर्जर समाज से आते थे. अब बागपत से अमरपाल शर्मा और प्रवीण बैंसला के सामने रामचंद्र विकल का इतिहास दोहराने की कठिन चुनौती भी है.