अगले साल फरवरी में होने वाले दिल्ली विधानसभा चुनावों की तैयारी के क्रम में कांग्रेस हर उन गलतियों को दोहराने से बचना चाहती है, जिनकी वजह से उसे हाल ही में हरियाणा में बीजेपी (भारतीय जनता पार्टी) से हार का सामना करना पड़ा था. चुनाव के वक्त कांग्रेस जाट वोटों पर अधिक निर्भर थी, लेकिन जब नतीजे सामने आए तो ज्यादातर जाट बहुल सीटें बीजेपी के खाते में गईं.
किसी एक समुदाय पर अत्यधिक निर्भरता को अपनी हार की सबसे बड़ी वजहों में से एक मानते हुए पार्टी अब दिल्ली के चुनावी अभियानों में सबको साथ लेने वाली और व्यापक दृष्टिकोण अपना रही है. इसके अलावा कांग्रेस वोटरों के साथ पार्टी के जुड़ाव को फिर से कायम करने के लिए जमीनी स्तर और सार्वजनिक परामर्श पर ध्यान केंद्रित करने की योजना बना रही है.
दिल्ली प्रदेश कांग्रेस कमेटी (DPCC) के अध्यक्ष देवेंद्र यादव की अगुआई में इस बार पार्टी का चुनावी अभियान राष्ट्रीय राजधानी को उसके "मूल गौरव" को बहाल करने के इर्द-गिर्द बना है. पार्टी एक ऐसे घोषणापत्र और अभियान को तैयार करने के लिए सक्रिय कदम उठा रही है जो समाज के हर तबके की जरूरतों का ध्यान रखता है. फिलहाल कांग्रेस का अभियान इन पांच व्यापक रणनीतियों के इर्द-गिर्द घूम रहा है.
जन-केंद्रित घोषणापत्र विकास
सात अक्टूबर को दिल्ली कांग्रेस ने एक अभियान के तहत अपनी घोषणापत्र समिति बनाई. इसका उद्देश्य आम नागरिकों की चिंताओं को सामने लाना है. इस अभियान का नाम है - 'दिल्लीवालों आओ-दिल्ली चलाओ'. यादव के मुताबिक, इसके तहत पार्टी दिल्ली के निवासियों से उनके रोजमर्रा के जीवन को प्रभावित करने वाले मुद्दों, जैसे स्वास्थ्य, शिक्षा, बुनियादी ढांचा और सरकारी सेवाओं पर सुझाव मांगने की योजना बना रही है. इसका लक्ष्य यह तय करना है कि कांग्रेस का घोषणापत्र न केवल मतदाताओं की तात्कालिक चिंताओं को दर्शाता है, बल्कि लोगों के सामने आने वाली रोजमर्रा की चुनौतियों का ठोस हल भी प्रस्तुत करता है.
सबको साथ लेने वाली और चुने हुए मतदाता वर्ग तक पहुंच
जाट वोटों पर अत्यधिक निर्भरता के चलते हरियाणा चुनावों में करीबी हार के बाद दिल्ली कांग्रेस ने सबको साथ लेकर चलने वाली रणनीति को समझा है. डीपीसीसी अध्यक्ष यादव ने इस बात का आश्वासन दिया है कि पार्टी का दिल्ली चुनावी अभियान सभी समुदायों की जरूरतों पर ध्यान केंद्रित करेगा और सिर्फ खास मतदाता समूहों पर फोकस करने की गलती नहीं दोहराएगा. इसे हासिल करने के लिए पार्टी ने 20 से भी अधिक उपसमितियां बनाई हैं जो युवा, महिला, अल्पसंख्यक, व्यापार और ग्रामीण मामलों सहित विभिन्न क्षेत्रों पर ध्यान रखेगी. ये उपसमितियां शासन के लिए एक समग्र दृष्टिकोण सुनिश्चित करने के लिए विशेषज्ञों और सामुदायिक नेताओं से सलाह-मशविरा करेंगी. इसका लक्ष्य सभी क्षेत्रों के वोटरों के साथ तालमेल बिठाना होगा.
सामुदायिक सहभागिता
कांग्रेस वोटरों तक पहुंचने और अपने घोषणापत्र के लिए सुझाव इकट्ठा करने के लिए नई तरह के तौर-तरीके का इस्तेमाल कर रही है. पार्टी ने दिल्ली के सभी निर्वाचन क्षेत्रों में 'घोषणापत्र वैन' तैनात की हैं, जिससे लोगों को अपनी समस्याओं को सीधे बताने का अवसर मिल रहा है. इसके अलावा पार्टी ने दिल्ली के निवासियों के लिए एक समर्पित वेबसाइट और एक फोन नंबर भी उपलब्ध कराया है, जहां वे अपने सुझाव ऑनलाइन या फोन के जरिए दे सकते हैं. फिजिकल और डिजिटल आउटरीच का यह संयोजन यह तय करने के लिए डिजाइन किया गया है कि दिल्ली की आबादी के हर वर्ग के पास अपने विचार साझा करने के लिए एक मंच हो, जिससे घोषणापत्र बनाने की प्रक्रिया में पारदर्शिता और समावेशिता बढ़े.
दिल्ली जोड़ो यात्रा
राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा की सफलता का अनुकरण करने के लिए दिल्ली कांग्रेस 'दिल्ली जोड़ो यात्रा' के साथ अपने खुद के जनसमूह को एकजुट करने के प्रयास की तैयारी कर रही है. इसका पहला चरण 23 अक्टूबर को शुरू होगा. यह सभी 70 विधानसभा क्षेत्रों में होगा और इसमें राहुल और प्रियंका गांधी जैसे प्रमुख नेता शामिल होंगे. इसका उद्देश्य न केवल मतदाताओं से फिर से जुड़ना है, बल्कि स्थानीय मुद्दों पर रीयल टाइम फीडबैक (तत्काल फीडबैक) भी इकट्ठा करना है. यह यात्रा दिल्ली को विश्व स्तरीय शहर के रूप में बहाल करने के कांग्रेस के दृष्टिकोण को उजागर करने पर फोकस करेगी, साथ ही निवासियों को अपनी शिकायतें जाहिर करने और पार्टी के एजेंडे को आकार देने में सक्रिय रूप से भाग लेने के लिए एक मंच प्रदान करेगी.
खाली कुर्सी के साथ प्रतीकात्मक अभियान
दिल्ली कांग्रेस के चुनावी अभियान की एक खास विशेषता प्रतीक के रूप में "खाली कुर्सी" का इस्तेमाल होगा, जो आम आदमी की आवाज का प्रतिनिधित्व करती है. कांग्रेस के मुताबिक, प्रचार ट्रकों और रैलियों में दिखाई देने वाली यह कुर्सी अरविंद केजरीवाल की अगुआई में आम आदमी पार्टी (आप) की तानाशाही शासन शैली को दिखाती है. दिल्ली की मुख्यमंत्री आतिशी के विपरीत, जिन्होंने पूर्व सीएम अरविंद केजरीवाल के लिए एक कुर्सी आरक्षित की है, कांग्रेस दिल्ली के निवासियों के लिए एक खाली कुर्सी आरक्षित करेगी.
कांग्रेस खुद को एक ऐसी पार्टी के रूप में पेश कर रही है जो लोगों की बात सुनती है. खाली कुर्सी के जरिए पार्टी दिल्लीवासियों से यह वादा कर रही है कि उसके शासन में लोगों को अपनी चिंताओं को उठाने और नीतिगत निर्णयों को प्रभावित करने के लिए यह खाली कुर्सी हमेशा उपलब्ध मिलेगी. यह प्रतीकात्मक इशारा 'आप' में सत्ता के कथित केंद्रीकरण के विपरीत लोकतंत्र और भागीदारी शासन को बहाल करने के कांग्रेस के दावे को उजागर करने के लिए है.
अकेले चुनाव लड़ने की चुनौतियां
अन्य दूसरे राज्यों में विपक्षी एकता के आह्वान के बावजूद आप और कांग्रेस दोनों ने दिल्ली विधानसभा चुनाव स्वतंत्र रूप से लड़ने का फैसला किया है. दोनों के बीच गठबंधन की कमी हरियाणा की स्थिति को भी स्पष्ट करती है, जहां अकेले चुनाव लड़ने के उनके फैसले ने बीजेपी के खिलाफ कांग्रेस की संभावनाओं को काफी प्रभावित किया. वहां प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों में आप की मौजूदगी ने बीजेपी विरोधी वोटों को विभाजित कर दिया, जिससे कांग्रेस को कई सीटों का नुकसान हुआ.
अगर ऐसा ही कुछ वोटों का विभाजन दिल्ली में भी हुआ तो इससे कांग्रेस की उन उम्मीदों को बड़ा झटका लग सकता है जहां पार्टी देश की राजधानी में अपना चुनावी प्रदर्शन सुधारना चाहती है. पिछले दो चुनावों में कांग्रेस यहां एक भी सीट नहीं जीत पाई है. हालांकि, DPCC अध्यक्ष यादव सहित कांग्रेस के नेता इस बात को लेकर आशान्वित हैं कि पार्टी का जमीनी स्तर का अभियान और पब्लिक आउटरीच उन्हें खोई हुई जमीन वापस पाने में मदद करेगा. पार्टी सत्ता विरोधी लहर और अपनी नई समावेशी रणनीति पर भरोसा कर रही है ताकि वह इस कड़े मुकाबले वाले चुनाव में बढ़त हासिल कर सके.