उत्तर प्रदेश का शोविंडो कहा जाने वाले नोएडा की बुनियाद 1976 में रखी गई थी और अब इस शहर को करीब-करीब 50 साल पूरे होने जा रहे हैं. पांच दशक की यात्रा में इस औद्योगिक शहर में विकास के पैमाने पर बहुत कुछ हुआ लेकिन अब यह बिलकुल नई तरह के बदलाव का साक्षी बनने जा रहा है.
दरअसल नोएडा में प्राधिकरण विकास के बाद अब शहर का पुनर्विकास होगा यानी यहां पर रिडेवलपमेंट की स्कीम आएगी. नोएडा ने समय के साथ तेजी से विकास किया और प्रदेश का नंबर एक शहर बना. नोएडा की कालोनियों और अपार्टमेंट को 1980 से 2001 के बीच बनाया और बसाया गया, लिहाजा इनकी उम्र हो चुकी है.
यहां के कई अपार्टमेंट 40 वर्ष से ज्यादा पुराने तो कई 20 वर्ष से ज्यादा पुराने हो चुके हैं. नोएडा विकास प्राधिकरण ने इनका पुनर्विकास या रिडेवलपमेंट कराने का फैसला किया है. रिडेवलपमेंट में जर्जर और खस्ताहाल हो चुके अपार्टमेंट को दोबारा बनाया जाएगा. इस प्रक्रिया में एक बेडरूम का मकान दो बेडरूम का हो सकता है और वह भी बिना किसी अतिरिक्त पैसा चुकाए. साथ में स्वीमिंग पूल या पार्किंग जैसी कुछ सुविधाएं भी बेहतर हो सकती हैं. हालांकि यह सब कुछ बिल्डर के साथ हुए डेवलपमेंट एग्रीमेंट पर निर्भर करेगा.
नोएडा प्राधिकरण की जून में 218वीं बोर्ड बैठक में फैसला किया गया है कि करीब 100 ग्रुप हाउसिंग और 500 लो राइज सोसाइटी के भवन बहुत जर्जर हो चुके हैं इसलिए इनका रिडेवलपमेंट कराया जाएगा. नोएडा प्राधिकरण के सीईओ लोकेश एम. ने बैठक के बाद मीडिया से कहा था, "शहर के जर्जर हो चुकी मल्टी स्टोरी रिहायशी इमारतें, श्रमिक कुंज, एलआइजी, एचआइजी और लो राइज ग्रुप हाउसिंग सोसायटी का रिडेवलपमेंट कराया जाएगा. इससे लाखों लोगों की लिविंग कंडीशन बेहतर होगी. इनका एफएआर बढ़ाने से मकानों का साइज भी बढ़ेगा.”
क्या है रिडेवलपमेंट
दरअसल रिडेवलपमेंट उत्तर भारत के शहरों के लिए एक नई बात है. जबकि मुंबई और अन्य कुछ शहरों में पुरानी आवासीय इमारतों का रिडेवलपमेंट धड़ल्ले से हो रहा है. लोगों के मन में सवाल उठ सकता है कि आखिर रिडेवलपमेंट में होता क्या है? दरअसल इस प्रक्रिया की शुरुआत में 30 साल से पुराने भवनों का ढांचा विशेषज्ञ परखते हैं कि वह कितना मजबूत है. यह काम हाउसिंग सोसायटी और सरकारी निकाय की सहमति पर होता है. इसे भवन स्ट्रक्चरल ऑडिट कहा जाता है. अगर भवन की हालत खराब होती है तो इसके लिए रिडेवलपमेंट का फैसला किया जाता है. और इस काम के लिए टेंडर आमंत्रित कर बिल्डर के साथ एग्रीमेंट किया जाता है.
क्या फायदा होता है फ्लैट मालिकों को
जब किसी बहुमंजिली हाउसिंग सोसायटी का रिडेवलपमेंट होता है तो इस काम में पैसा लगता है. लेकिन बिल्डर भवन मालिकों से पैसा नहीं लेता. मुंबई में बिल्डर को अतिरिक्त एफएआर दिया जाता है. सरल शब्दों में फ्लैटों की संख्या और आकार बढ़ाने की इजाजत मिलती है. अतिरिक्त फ्लैट और दुकानें बेचकर बिल्डर अपार्टमेंट की लागत निकालता है. इससे फ्लैट मालिकों को बड़े आकार का फ्लैट कुछ अतिरिक्त सुविधाओं के साथ मिलता है.
रिडेवलपमेंट के दौरान फ्लैट वाले कहां रहते हैं?
रिडेवलपमेंट की शर्तों में बिल्डर 2 साल या एग्रीमेंट की अवधि तक दूसरी जगह रहने का इंतजाम करता है यानी वैकल्पिक आवास का किराया देता है. यह सब वह एग्रीमेंट में समयावधि के जिक्र के साथ लिखकर देता है. रिडेवलपमेंट में हर एक फ्लैट मालिक के साथ अलग-अलग लिखित समझौता होता है.
सावधानी न रखने पर विवाद भी होते हैं
हाउसिंग सोसायटी और फ्लैट मालिक अगर बिल्डर के साथ सावधानी से समझौता न करें तो वह कई खेल कर देता है. मसलन, फ्लैटों की संख्या सोसायटी वालों को कुछ बताएगा और बना लेगा उससे ज्यादा. इसी तरह सुविधाओं के मामले में भी विवाद होते देखे गए हैं. आमतौर पर बिल्डर हाउसिंग सोसायटी के रिडेवलपमेंट में तय मियाद को पार कर जाता है-जैसे उसने 2 साल में प्रोजेक्ट पूरा करने का वादा किया है तो वह इसे 2 से 3 साल तक खींच सकता है.
दिल्ली में भी हो रही है कसरत
दिल्ली में भी रिडेवलपमेंट प्रोजेक्ट लाने की कसरत हो रही है. इसके लिए एक टास्क फोर्स बनी है जिसने अपनी रिपोर्ट जून के महीने में उपराज्यपाल वी.के. सक्सेना को सौंपी है. डीडीए ने दिल्ली में 1967 में अपने हाउसिंग प्रोजेक्ट शुरू किए थे और इसके भी भवन अब काफी पुराने हो चुके हैं. कम से कम 30 हाउसिंग कॉलोनी 50 वर्ष से ऊपर की हो चुकी हैं. जाहिर है इनका पुनर्निर्माण जरूरी है और इसके लिए पीपीपी मॉडल अपनाने की बात कही जा रही है.