मध्य प्रदेश के इंदौर-मालवा क्षेत्र की मराठा शासक रहीं अहिल्याबाई होल्कर की इन दिनों उत्तर प्रदेश के बड़े आयोजनों के केंद्र में आ गई हैं. वैसे तो बीजेपी अहिल्याबाई होल्कर की 300वीं जयंती भव्य तरीके से पूरे देश में मना रही हैं, लेकिन उत्तर प्रदेश में इसका अलग ही रंग है.
इस मौके पर उत्तर प्रदेश की योगी सरकार ने लखनऊ के गोमती नगर में मौजूद इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में 14 मई को प्रदेश स्तरीय कार्यशाला का आयोजन किया. इसमें बतौर मुख्य वक्ता मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने अहिल्याबाई होल्कर को "धर्म, न्याय और राष्ट्रीय कर्तव्य" की प्रतिमूर्ति बताया और उन्हें भारत की सनातन विरासत के पुनरुद्धार का श्रेय दिया.
प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी, प्रदेश महामंत्री संगठन धर्मपाल सिंह, उप मुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक के साथ राज्यसभा सदस्य कविता पाटीदार की मौजूदगी में योगी ने कहा, "उन्होंने वैदिक सिद्धांत 'धर्मो रक्षति रक्षित:' (धर्म उनकी रक्षा करता है जो इसकी रक्षा करते हैं) को मूर्त रूप दिया. उनकी विरासत से प्रत्येक नागरिक को भारत के प्राचीन सांस्कृतिक गौरव के पुनरुद्धार में योगदान देने की प्रेरणा मिलनी चाहिए."
इस दौरान योगी आदित्यनाथ ने बड़ी चतुराई से अहिल्याबाई होल्कर और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कार्यों को आपस में जोड़ा. उन्होंने उपस्थित लोगों को याद दिलाया कि काशी विश्वनाथ मंदिर की वर्तमान भव्यता, 1777 और 1780 के बीच अहिल्याबाई होल्कर के व्यक्तिगत संसाधनों से रखी गई नींव पर टिकी हुई है और इस काम को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2021 में आधुनिक काशी विश्वनाथ धाम कॉरिडोर के रूप में आगे बढ़ाया है.
अहिल्याबाई को ‘नारी शक्ति’ के स्थायी प्रतीक के रूप में सम्मानित करते हुए, योगी ने इस बात का जिक्र किया कि कैसे अहिल्याबाई होल्कर ने महिलाओं की आत्मनिर्भरता को बढ़ावा देने के लिए माहिष्मती में साड़ी उद्योग को बढ़ावा दिया, विधवा पुनर्विवाह को प्रोत्साहित किया और बाल विवाह को समाप्त करने के लिए कदम उठाए. इसी क्रम में योगी ने यूपी और केंद्र सरकार की उपलब्धियां भी गिनाईं. योगी ने संकेतों में यह बताने की पूरी कोशिश की कि केंद्र और प्रदेश की भाजपा सरकार अहिल्याबाई होल्कर के रास्ते पर ही चल रही है. योगी ने कहा कि प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में काशी, अयोध्या, उज्जैन और मां विंध्यवासिनी धाम में स्मारकीय परियोजनाएं अहिल्याबाई की विरासत को आगे बढ़ाती हैं. अंत में योगी ने कहा, "आइए हम महारानी अहिल्याबाई के जीवन से प्रेरणा लें और भारत के शाश्वत वैभव और सनातन संस्कृति की जीवंतता को बहाल करने के लिए पूरे दिल से प्रतिबद्ध हों."
लखनऊ में अहिल्याबाई होल्कर के 300वीं जयंती समारोह के मौके पर कार्यशाला आयोजित करने के बाद बीजेपी इस अभियान को पूरे प्रदेश में फैलाने जा रही है. इसके तहत 21 से 31 मई तक प्रदेश भर में अहिल्याबाई होल्कर स्मृति अभियान चलाया जाएगा. जिसमें महिला स्वयंसेवी संगठनों, स्थानीय निकायों और महिला निर्वाचित प्रतिनिधियों की सक्रिय भागीदारी सुनिश्चित की जाएगी. इस दौरान बैठकें, गोष्ठियां, शोभा यात्रा, महिला सशक्तिकरण दौड़, कॉलेज-विश्वविद्यालयों में प्रतियोगिताएं, नुक्कड़ नाटक, नृत्य-नाटक, सांस्कृतिक कार्यक्रम व प्रदर्शनी का आयोजन होगा.
राजनीतिक विश्लेषक अहिल्याबाई होल्कर के जरिए बीजेपी की रणनीति को डिकोड कर रहे हैं. लखनऊ में बाबा साहेब डा. भीम राव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय में इतिहास विभाग के प्रोफेसर और राजनीतिक विश्लेषक सुशील पांडेय बताते हैं, “बीजेपी ने अहिल्याबाई होल्कर की जयंती को भव्य व दिव्य तरीके से मनाकर यह संदेश दे रही है कि वही एकमात्र पार्टी है जो भारत के धर्म और संस्कृति को मजबूत करने वाले महापुरुषों को सम्मान देती है. अहिल्याबाई के जरिए बीजेपी राष्ट्रवाद, हिंदुत्व, जाति के साथ महिला सम्मान व सशक्तिकरण का भी संदेश दे रही है.”
साल 1725 में आज के महाराष्ट्र के अहमदनगर जिले में एक चरवाहे (धनगर/गड़रिया) परिवार में जन्मी अहिल्या बाई का विवाह इंदौर राज्य के संस्थापक महाराजा मल्हार राव होल्कर के बेटे खंडेराव से हुआ था. वे 1767 से 1795 तक मराठा संघ के एक भाग मालवा क्षेत्र की शासक थीं. अहिल्याबाई ने पहले ‘रीजेंट’ के रूप में और फिर मध्य भारत में महेश्वर और इंदौर में होलकर राजवंश की शासक के रूप में कार्य किया, उस अवधि में जिसे होलकर राजवंश का चरमोत्कर्ष माना जाता है.
अहिल्याबाई होल्कर के जरिए बीजेपी गड़रिया समाज पर फोकस कर रही है. प्रदेश की पिछड़ी जातियों में पाल, धनगर, गड़रिया बिरादरी की हिस्सेदारी 4.43 प्रतिशत है. पश्चिमी यूपी और ब्रज क्षेत्र से लेकर कानपुर-बुंदेलखंड और अवध क्षेत्र में इस बिरादरी के मतदाता अच्छी संख्या में हैं. परंपरागत रूप से यह मतदाता बहुजन समाज पार्टी से जुड़ा था लेकिन वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी को इस पिछड़ी जाति का एकतरफा साथ मिला.
हालांकि समाजवादी पार्टी (सपा) ने 2024 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के पाल-गड़रिया गठजोड़ में सेंध लगाई थी. सपा ने न केवल पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) पर आधारित रणनीति का आक्रामक ढंग से उपयोग किया साथ में लोकसभा चुनाव के बीच में ही श्यामलाल पाल को सपा प्रदेश अध्यक्ष की कुर्सी सौंप दी. श्यामलाल पाल की सपा प्रदेश अध्यक्ष पद पर तैनाती कौशांबी लोकसभा सीट के तहत आने वाली चायल विधानसभा सीट पर सपा विधायक और दिवंगत राजू पाल की पत्नी पूजा पाल के बदले रुख से डैमेज कंट्रोल के रूप में भी देखा जा रहा था.
लोकसभा चुनाव से पहले हुए राज्यसभा चुनाव में पूजा पाल ने बीजेपी उम्मीदवार को वोट करके सपा खेमे में हलचल मचा दी थी. प्रयागराज में उमेश पाल की हत्या के बाद बदले माहौल में पूजा पर सपा से दूरी बनाने का दबाव पड़ने लगा था. बिरादरी के दबाव को देखते हुए पूजा मौके के इंतजार में लग गई थीं. बीच-बीच में कई बार उनके बीजेपी में शामिल होने की चचाएं भी आईं. इसी बीच पिछले वर्ष 27 फरवरी को हुए राज्यसभा चुनाव में पार्टी से बगावत कर पूजा ने जिस तरह से बीजेपी के पक्ष में क्रॉस वोटिंग की, उससे कौशांबी संसदीय क्षेत्र का सियासी समीकरण के प्रभावित होने की उम्मीद राजनीतिक विश्लेषकों ने लगाई थी.
लेकिन कौशाम्बी आरक्षित लोकसभा सीट पर पूजा पाल का करिश्मा नहीं चला और बीजेपी को लोकसभा चुनाव में मुंह की खानी पड़ी. यहां से सपा उम्मीदवार पुष्पेंद्र सरोज चुनाव जीतकर देश में सबसे कम उम्र के सांसद बने. इसके बाद से ही बीजेपी यूपी में पाल बिरादरी के वोटों को सहेजने की पूरी कोशिश कर रही है.