जिसे सहभागी राजकाज कहकर सराहा जा रहा है, उसकी दिशा में साहसी और राजनैतिक तौर पर जानाबूझा कदम उठाते हुए पश्चिम बंगाल सरकार ने एक जमीनी पहल शुरू की है जो न केवल नागरिकों को राजकाज के केंद्र में रखती है बल्कि रणनीतिक तौर पर अपने चुनावी आधार से तृणमूल कांग्रेस (टीएमसी) के जुड़ाव को भी मजबूत करती है.
मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने 22 जुलाई को ‘अमादेर पाड़ा, अमादेर समाधान’ (हमारा मोहल्ला, हमारा समाधान) योजना का ऐलान किया. यह भारत में शायद अपनी तरह का पहला कार्यक्रम है जो बंगाल के 80,000 चुनावी बूथों में से हरेक में रहने वालों को यह तय करने का अधिकार और ताकत देता है कि उनके मोहल्ले में सरकारी धन किस तरह खर्च किया जाए.
इस पहल के समय और स्वरूप से इसकी दोहरी खासियत सामने आती है : विकेंद्रीकरण के मकसद से किया गया राजकाज का सुधार और साथ ही अगले साल विधानसभा चुनाव से पहले टीएमसी की बूथ स्तर की मशीनरी को फिर से खड़ा करने और उसमें जोश भरने के लिए चतुर राजनैतिक बुनावट.
पार्टी सूत्रों ने तस्दीक की कि यह योजना जितनी सामुदायिक सशक्तीकरण के बारे में है उतनी ही सरकार के वितरण तंत्र के जरिए अपनी जड़ों से फिर जुड़ने के बारे में भी है. टीएमसी के एक बड़े पदाधिकारी बताते हैं, “शिविरों में जनता की प्रतिक्रिया से हम थाह ले पाएंगे कि स्थानीय विधायक लोकप्रिय है या नहीं. यही वजह है कि विधायकों और जनप्रतिनिधियों के लिए इन शिविरों में मौजूद रहना अनिवार्य होगा.” दरअसल यह कार्यक्रम स्थानीय विधायकों का जनता की सीधी छानबीन के दायरे में ले आएगा, जो चुनावों के लिए उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया सांचा बन सकता है.
अगस्त की 2 तारीख से शुरू इस पहल में हर बूथ को 10 लाख रुपए आवंटित किए जाएंगे. योजना पर कुल 8,000 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च होंगे. यह धन करीब 25,000 जनता दरबार शिविरों के जरिए बांटा जाएगा. ऐसे हर शिविर में आसपास के तीन बूथ शामिल होंगे. हर शिविर में निवासी इकट्ठा होंगे, विचार-विमर्श करेंगे और मिलजुलकर फैसला लेंगे कि स्थानीय जरूरतों के हिसाब से धन का आवंटन कैसे किया जाए. आम सहमति बन जाने पर सरकारी अफसर औपचारिक रूप से फैसलों को मंजूर करेंगे और स्वीकृत परियोजनाएं 90 दिनों के अंदर शुरू हो जाएंगी.
नबान्न में अपने संबोधन में ममता ने इस कदम को न केवल विकास कार्यक्रम के तौर पर बल्कि राजकाज के लोकाचार में आमूलचूल बदलाव के तौर पर भी पेश किया. उन्होंने कहा, “इस तरह की पहल करने वाले हम देश के पहले राज्य हैं. लोगों की परेशानियां सुनने के लिए हमारे अधिकारी जमीनी स्तर पर मौजूद रहेंगे. हर केंद्र में तीन बूथ होंगे, जिससे उस मोहल्ले विशेष के लिए असरादार ढंग से एक इकाई बनेगी. पूरी प्रक्रिया पारदर्शी होगी. हमारे यहां 80,000 बूथ हैं, इसलिए समूचे कार्यक्रम को पूरा करने में करीब दो महीने लगेंगे.”
मुख्यमंत्री ने इस कोशिश के पैमाने और गंभीरता की तरफ ध्यान दिलाते हुए कहा, “हमने इस पहल के लिए विशेष धन स्वीकृत किया है. हर बूथ के लिए 10 लाख रुपए आवंटित किए जाएंगे. कुल मिलाकर सरकार 8,000 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च करेगी. कार्यक्रम की निगरानी के लिए समर्पित कार्यदल बनाया जाएगा, जिसके प्रमुख मुख्य सचिव होंगे. कार्यदल जिला और राज्य दोनों स्तरों पर बनाए जाएंगे. सुचारू तालमेल और अमल सुनिश्चित करने के लिए पुलिस को शामिल किया जाएगा.”
घोषित लक्ष्य जहां राजकाज को पारदर्शी, विकेंद्रीकृत और जनसंचालित बनाना है, इसके भीतर निहित रणनीति बूथ स्तर पर पार्टी की पकड़ को मजबूत करना भी है- वह रणनीति जो टीएमसी के चुनावी ढांचे के लिए बेहद अहम रही है. ये शिविर विधायकों के कामकाज और लोकप्रियता के अनौपचारिक ऑडिट का भी काम करेंगे. उस राज्य में जहां सूक्ष्म स्तर पर चुनावी प्रबंधन कड़े मुकाबलों में अक्सर नतीजे तय करता है, वास्तविक समय पर फीडबैक का ऐसा तंत्र राजनीतिक रूप से बेशकीमती साबित हो सकता है.
व्यावहारिक स्तर पर 'अमादेर पाड़ा, अमादेर समाधान' मॉडल स्थानीय समस्याओं के समाधान को संस्थागत रूप देता है. इसमें नागरिक न केवल अपने मोहल्ले की बजटीय प्राथमिकताएं तय करते हैं, बल्कि उन्हें सामूहिक योजना सत्रों के साथ-साथ काम कर रहे दुआरे सरकार डेस्क पर निजी शिकायतें दर्ज करवाने का मौका भी मिलता है. विधायकों और पंचायत के नेताओं सहित जनप्रतिनिधि और साथ ही बड़े अफसरशाह खुद मौजूद रहेंगे, जिससे सरकारी सेवाओं की अदायगी और राजनैतिक जवाबदेही के बीच की लकीर धुंधली हो जाएगी.
सरकार के तमाम आधिकारिक सोशल मीडिया अकाउंट पर इस पहल को आदर्शवादी शब्दावली में पेश किया गया है. तृणमूल कांग्रेस की एक पोस्ट में कहा गया कि यह “अनूठी और अपनी तरह की अकेली पहल है जो नागरिकों को राजकाज के केंद्र में स्थापित करती है. यह नागरिक-केंद्रित क्रांति है जो आपको अपनी सबसे ज्यादा असर डालने वाली जरूरतों का फैसला करने और उन्हें प्राथमिकता देने का सीधा अधिकार और ताकत देती है.”
इस संदेश में एक ऐसी सरकार की छवि निहित है जो हुक्म चलाने के बजाय सुनती है- यही वह छवि है जिसे ममता बढ़ावा देने को उत्सुक हैं, खासकर राजकाज के उस ऊपर-से-नीचे मॉडल के विपरीत, जिसे उनकी पार्टी केंद्र के साथ जोड़ती है.
इस मुहिम के राजनैतिक दांव खासे ऊंचे हैं. 2019 के लोकसभा चुनाव में लगे झटकों की याद अभी ताजा है. ऐसे में 2026 के मुकाबले से पहले टीएमसी ने बूथ स्तर पर अपनी मौजूदगी को नए सिरे से बनाना और मजबूत करना ठान लिया है. जनता दरबार शिविरों को जानबूझकर इस तरह तैयार किया गया है कि वे विधायकों को जनता और पार्टी नेतृत्व दोनों की नजरों के दायरे में ले आते हैं. अगर लोग बड़ी तादाद में जुटते हैं और लोगों का जुड़ाव उत्साह से भरा रहता है, तो यह संकेत हो सकता है कि निर्वाचन क्षेत्रों में मतदान का रुख क्या होगा.
प्रत्यक्ष लोकतंत्र को सुगम बनाने के लिए इस तरह सरकारी धन का इस्तेमाल दुनिया में पहला या अकेला नहीं है, लेकिन पैमाने और महत्वाकांक्षा के लिहाज अमादेर पाड़ा, अमादेर समाधान बेजोड़ है. यह जनभागीदारी के साथ बजट बनाने के तर्क को बंगाल के अपने विकेंद्रीकृत राजकाज और जमीनी बौद्धिकतावाद के सांस्कृतिक गौरव के इतिहास के साथ एकमेक करता है. अभियान रबींद्रनाथ टैगोर की भावपूर्ण पंक्ति- ‘हमारे इस साम्राज्य में हम सब राजा हैं’- का भी सहारा लेता है, जो उस समतावादी भावना की काव्यात्मक सम्मति है जिसे सरकार मूर्त रूप देने की कोशिश कर रही है.
यह देखा जाना अभी बाकी है कि सहभागी राजकाज की दिशा में यह महत्वाकांक्षी कदम चुनावी फायदे में तब्दील होता है या नहीं. लेकिन बूथ को योजना और खर्च का ठिकाना बनाकर- और विधायकों को सार्वजनिक रूप से जवाबदेह बनाकर- टीएमसी ने राजकाज की राजनीति का नया अध्याय तो शुरू कर ही दिया है.