उत्तर प्रदेश की राजनीति इन दिनों सिर्फ़ रैलियों, पोस्टरों या सोशल मीडिया कैंपेन तक सीमित नहीं है. असली जंग अब उस बुनियादी कागज़ पर लड़ी जा रही है, जिस पर लोकतंत्र टिका है और वह है वोटर लिस्ट. किसका नाम जोड़ा गया, किसका काटा गया, और कौन से पन्ने सही या ग़लत भरे गए, यह सवाल सिर्फ़ प्रशासनिक नहीं रह गया, बल्कि चुनावी रणनीति का अहम हिस्सा बन गया है.
वर्ष 2027 विधानसभा चुनाव अभी दूर हैं, लेकिन अगले वर्ष 2026 के पंचायत चुनाव और उससे पहले चल रहे मतदाता पुनरीक्षण अभियान ने पूरे राजनीतिक परिदृश्य को गर्मा दिया है. बीजेपी से लेकर सपा, कांग्रेस और नई-नवेली आज़ाद समाज पार्टी (एएसपी) तक, हर दल ने अपनी-अपनी सेना उतार दी है. कोई “वोट रक्षक” बना रहा है, कोई “न्याय योद्धा”, तो कोई बूथ स्तर तक निगरानी समितियां खड़ी कर चुका है.
आज़ाद समाज पार्टी का ‘वोट रक्षक’ प्रयोग
नगीना से सांसद चंद्रशेखर आज़ाद की पार्टी ने इस पूरे विमर्श को नया आयाम दिया है. आजाद समाज पार्टी ने “वोट चोरी” के आरोपों के बीच चार-चार स्थानीय स्वयंसेवकों को हर बूथ पर “वोट रक्षक” नियुक्त करने का ऐलान किया है. योजना के मुताबिक़ सिर्फ़ उत्तर प्रदेश में ही लगभग चार लाख वोट रक्षक खड़े किए जाएंगे. पहला बैच बुंदेलखंड के हमीरपुर जिले में नियुक्त किया गया है. इनमें शामिल मुकेश प्रजापति, अतुल कुमार वर्मा, सुशील कुमार वर्मा और नीलेश कुमार को पार्टी ने सार्वजनिक तौर पर पेश भी किया. पश्चिमी यूपी और राजस्थान प्रभारी सत्यपाल चौधरी ने कहा, “हमारे वोट रक्षक मृत व्यक्तियों के नाम मतदाता सूची से हटवाने और पात्र मतदाताओं का नाम सुनिश्चित करने के लिए काम करेंगे. उनका काम घर-घर जाकर सत्यापन करना और चुनाव के दिन बूथ पर निगरानी रखना होगा.”
राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि चंद्रशेखर आज़ाद का यह प्रयोग उन्हें दलित-पिछड़े वोटरों के बीच जिम्मेदार विपक्षी ताक़त के रूप में स्थापित कर सकता है. बुंदेलखंड से शुरुआत करना भी प्रतीकात्मक है, क्योंकि यह इलाका लंबे समय से “वोट चोरी” और प्रशासनिक अनियमितताओं की शिकायतों का गढ़ रहा है.
सपा की बूथ-स्तरीय निगरानी
वहीं, अखिलेश यादव की समाजवादी पार्टी (सपा) ने भी कमर कस ली है. पार्टी ने बूथ स्तर पर कार्यकर्ताओं को जिम्मेदारी दी है कि वे मतदाता सूचियों की हर संशोधित प्रति की जांच करें. कार्यकर्ताओं को कहा गया है कि अगर किसी का नाम गलत तरीके से हटाया गया है तो आधार या पहचान पत्र की प्रति लेकर उसे वापस जुड़वाने की कोशिश करें. सपा प्रवक्ता राजेंद्र चौधरी ने साफ़ कहा, “2022 के विधानसभा चुनाव में लगभग 18 हजार मतदाताओं के नाम अवैध रूप से हटाए गए थे. इस बार हमारी निगरानी सेल हर गड़बड़ी का सबूत जुटाएगी. पंचायत से लेकर विधानसभा चुनाव तक इसी रणनीति पर काम होगा.”
पार्टी ने जिला और तहसील स्तर पर निगरानी समितियां बनाई हैं, जो रिपोर्ट एकत्र कर प्रदेश नेतृत्व तक भेजेंगी. सपा की रणनीति साफ़ है कि वोट चोरी के मुद्दे को बीजेपी सरकार और चुनाव आयोग के खिलाफ़ जनभावना से जोड़ना.
बीजेपी का “घर-घर मतदाता” अभियान
विपक्षी दल बीजेपी पर वोट चोरी का आरोप लगा रहे हैं लेकिन पार्टी ने गुपचुप अपने मिशन को अंजाम देना शुरू किया है. 3 अगस्त को लखनऊ के इंदिरा गांधी प्रतिष्ठान में हुई संगठनात्मक बैठक में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने सभी पदाधिकारियों को बूथ स्तर पर सतर्क रहने के निर्देश दिए. योगी ने कहा था, “मतदाता पुनरीक्षण लोकतंत्र की आधारशिला है. हर कार्यकर्ता सुनिश्चित करे कि उसके बूथ पर कोई भी पात्र मतदाता सूची में शामिल होने से न छूटे.”
बीजेपी का जोर खासकर 18 साल की उम्र पूरी कर चुके युवाओं पर है. हर बूथ पर 100 और विधानसभावार 10-15 हजार नए मतदाता जोड़ने का लक्ष्य तय किया गया है. पार्टी मानती है कि 2024 लोकसभा चुनाव में कई समर्थक मतदाताओं के नाम सूची से कट गए थे. इस बार संगठन इसे लेकर बेहद सतर्क है. राजनीतिक विश्लेषक और अयोध्या के प्रतिष्ठित साकेत कालेज के पूर्व प्राचार्य वी. एन. अरोड़ा कहते हैं, “बीजेपी का यह अभियान उसके विशाल संगठन तंत्र पर आधारित है. बूथ समितियों और पन्ना प्रमुखों के जरिए पार्टी पहले ही घर-घर पहुंच रखती है. अगर यह अभियान सही चला तो बीजेपी को नए मतदाताओं का बड़ा हिस्सा अपनी ओर खींचने का मौका मिलेगा. साथ ही बीजेपी वोट चोरी के विपक्षी नैरेटिव का काउंटर भी कर सकेगी.”
कांग्रेस का ‘न्याय योद्धा’ कार्ड
कांग्रेस ने वोटर लिस्ट की पारदर्शिता के साथ-साथ अपने कार्यकर्ताओं पर दर्ज मुकदमों को भी इस मुद्दे से जोड़ दिया है. पार्टी ने 360 तहसीलों में अधिवक्ताओं को “न्याय योद्धा” बनाने का निर्णय लिया है. ये न सिर्फ़ वोटर लिस्ट में नाम जुड़वाने का काम करेंगे, बल्कि कांग्रेस कार्यकर्ताओं के मुकदमों की पैरवी भी करेंगे. प्रदेश अध्यक्ष अजय राय ने कहा, “जनहित के मुद्दे उठाने वालों पर फर्जी मुकदमे दर्ज किए जा रहे हैं. न्याय योद्धा न सिर्फ़ ऐसे मुकदमों से लड़ेंगे, बल्कि यह भी सुनिश्चित करेंगे कि जिन लोगों के नाम वोटर लिस्ट से कटे हैं, उन्हें फिर से शामिल किया जाए.” यहां कांग्रेस का लक्ष्य दोहरा है, कानूनी सहायता देकर अपने कार्यकर्ताओं का मनोबल बढ़ाना और वोटर लिस्ट के बहाने जनता से जुड़ाव मजबूत करना.
चुनाव आयोग और प्रशासन क्या कर रहे
अगले वर्ष यूपी में होने वाले पंचायत चुनाव के लिए 19 अगस्त से शुरू हुए पुनरीक्षण अभियान में पूरे प्रदेश के बीएलओ (बूथ स्तर अधिकारी) घर-घर जाकर मतदाताओं की जानकारी जुटा रहे हैं. 29 सितंबर तक यह प्रक्रिया चलेगी और 15 जनवरी को वोटर लिस्ट का अंतिम प्रकाशन होगा. राज्य निर्वाचन आयोग ने इस बार ई-बीएलओ मोबाइल एप भी लॉन्च किया है. आयोग ने ऐलान किया है कि पंचायत चुनाव से पहले सर्वश्रेष्ठ काम करने वाले बीएलओ को पुरस्कृत भी किया जाएगा. हालांकि, विपक्षी दल लगातार सवाल उठा रहे हैं कि बीएलओ पर राजनीतिक दबाव बढ़ रहा है और कई जगह पक्षपात के आरोप भी सामने आए हैं.
चुनावी विशेषज्ञों का मानना है कि यूपी की राजनीति में अब “वोट चोरी” का मुद्दा केवल प्रशासनिक शिकायत नहीं रहा, बल्कि यह सियासी नैरेटिव का केंद्र बन चुका है. वी. एन. अरोड़ा कहते हैं, “जिस पार्टी ने वोटर लिस्ट के सवाल को जनता से जोड़ लिया, उसे आने वाले चुनावों में सीधा लाभ होगा. यह मुद्दा भावनात्मक भी है, क्योंकि लोग अपने वोट को अपनी सबसे बड़ी ताक़त मानते हैं.” वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव तक यह लड़ाई और तेज़ होगी. पंचायत चुनाव और उसके बाद विधानसभा क्षेत्रों में पुनरीक्षण की प्रक्रिया में हर दल यह सुनिश्चित करने की कोशिश करेगा कि उसका समर्थक मतदाता किसी भी हालत में सूची से न छूटे.