
मगध के राजा अजातशत्रु ने गौतम बुद्ध से पूछा था कि वैशाली गणराज्य का पतन कैसे हो सकता है. जवाब में संकेत रूप में बुद्ध ने कहा था, जब तक वैशाली गणराज्य के लोग शासन के लिए बार-बार सभाएं आयोजित करेंगे, अपने राष्ट्रीय कर्तव्य का निर्वाह मिल-जुलकर करेंगे, खुद अपने बनाये कानूनों का पालन करेंगे और बिना कानून बनाये किसी तरह का आदेश जारी नहीं करेंगे. लिच्छवी (वैशाली) गणराज्य का पतन नहीं होगा.
इस तरह उन्होंने गणतंत्र की जननी वैशाली की विशेषताओं के बारे में बताया था. हालांकि बुद्ध की इन्हीं बातों से अजातशत्रु को वैशाली विजय का सूत्र मिल गया. उनसे इस महान गणतंत्र के शासकों के बीच फूट डाल दी. उनका आपसी मेल-मिलाप बाधित हो गया और फिर अजातशत्रु ने वैशाली को जीत कर अपने साम्राज्य में मिला लिया और इस तरह मगध की राजधानी राजगीर के राजा अजातशत्रु ने गणतंत्र की भूमि वैशाली से गणराज्य को खत्म कर दिया.
प्राचीन भारतीय इतिहास के पन्नों में दर्ज यह तथ्य गणतंत्र की जन्मभूमि वैशाली की खासियत के बारे में भी बताता है और इसके पतन की कहानी भी कहता है. इसी महान गणराज्य वैशाली की याद में इंटरनेशनल डे फॉर डेमोक्रेसी के मौके पर 15 सितंबर को गणतंत्र का उत्सव मनाने की शुरुआत की जा रही है. मगर इस उत्सव का आयोजन करने वाली संस्था इंडियन काउंसिल फॉर कल्चरल रिलेशन (आईसीसीआर) ने आयोजन स्थल वैशाली के बदले राजगीर चुन लिया है. वैशाली- फेस्टिवल ऑफ डेमोक्रेसी नाम का यह पहला उत्सव राजगीर स्थित नालंदा विश्वविद्यालय के परिसर में होने जा रहा है. उस राजगीर में जहां का मगध साम्राज्य एक तरह से गणतांत्रिक वैशाली के पतन की वजह रहा है.
आईसीसीआर से मिली जानकारी के मुताबिक 15 सिंतबर को हो रहे इस एक दिवसीय आयोजन के मुख्य अतिथि पूर्व राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद होंगे. उनके अलावा इस मौके पर बिहार के राज्यपाल राजेंद्र अर्लेकर, असम के मुख्यमंत्री हेमंत विश्व शर्मा, केंद्रीय संस्कृति मंत्री मीनाक्षी लेखी, जेएनयू के कुलपति शांतिश्री धुलिपुड़ी और आईसीसीआर के अध्यक्ष डॉ. विनय सहस्रबुद्धे उपस्थित रहेंगे. इनके अलावा श्रीलंका, नेपाल, मिश्र, चिली और अर्जेंटीना के राजदूत भी इस मौके पर मौजूद रहेंगे.

आईसीसीआर के अध्यक्ष डॉ. विनय सहस्रबुद्धे इस उत्सव के बारे में बताते हुए कहते हैं, "गणतंत्र भारत के लिए सिर्फ एक शासन पद्धति नहीं है, बल्कि यह हमारी संस्कृति का हिस्सा है. चूकि वैशाली को गणतंत्र की जन्मभूमि माना जाता है, इसलिए हमने इस साल इंटरनेशनल डे फॉर डेमोक्रेसी के दिन वैशाली- फेस्टिवल ऑफ डेमोक्रेसी की शुरुआत की है, उम्मीद है कि यह उत्सव अब इसी दिन हर साल मनाया जायेगा." मगर वे अपने संबोधन में यह नहीं बताते कि वैशाली के नाम का यह उत्सव राजगीर में क्यों मनाया जा रहा है. वहां से महज 112 किमी दूर वैशाली में क्यों नहीं मनाया जा रहा है, जहां आज भी वहां के वृजि संघ की सभास्थल के अवशेष मौजूद हैं.
वैशाली और राजगीर दोनों प्राचीन भारतीय नगरों के इतिहास के बारे में बताते हुए प्राचीन भारत के इतिहास की प्रोफेसर रह चुकीं लेखिका उषाकिरण खान कहती हैं, "जिस तरह वैशाली को गणतंत्र की जन्मस्थली कहा जाता है, उसी तरह देखें तो राजगीर भारत में राजतांत्रिक शासन की जन्मस्थली रहा है. दोनों जगहों के शासन पद्धति के तरीके बिल्कुल अलग रहे हैं. वैशाली का वृजि संघ जो गणतांत्रिक तरीके से अपना शासन चलाता था उसकी रुचि साम्राज्य विस्तार में नहीं थी, जबकि राजगीर का मगध साम्राज्य जिस पर उस जमाने में हर्यक वंश के राजा बिम्बिसार का राज था. मगध साम्राज्य की नीति विस्तारवादी थी, उसने बाद में अपना विस्तार किया भी. बिम्बिसार ने पहले वैवाहिक संबंधों के जरिये अपने साम्राज्य का विस्तार किया. बाद में उनके पुत्र अजातशत्रु ने युद्ध के जरिये मगध साम्राज्य का विस्तार किया. उन्होंने वैशाली को भी छल और युद्ध दोनों तरह के उपाय अपनाकर जीता.”
वे कहती हैं, "अजातशत्रु से गौतम बुद्ध ने कहा ही था कि जब तक वैशाली का शासन मतैक्य से चलता रहेगा, उसका पतन नहीं हो पायेगा. अजातशत्रु ने वृजि संघ के मतैक्य को तोड़ने के लिए अपने एक मंत्री को चतुराई से वृजि संघ का हिस्सा बना दिया. उसी मंत्री ने वृजि संघ में फूट डाल दिया. वह वृजि संघ के पतन का कारण बना. इस तरह देखें तो वैशाली और राजगीर दोनों जगहों का इतिहास अलग है और प्रकृति अलग है. गणतंत्र का उत्सव वैशाली में क्यों नहीं हो सकता, यह मैं नहीं समझ पा रही."
वहीं वैशाली की धरोहर को लेकर लंबे अरसे से शोध कर रहे रामशरण अग्रवाल कहते हैं, "बाल्मीकि रामायण से बुद्ध, बुद्ध से ह्वेनसांग और आदिगुरु शंकराचार्य तक ने वैशाली को स्वर्ग की तरह दीप्त माना क्योंकि समृद्ध वैशाली के नागरिक जीवन में आस्था और आचरण में एक रूपता व्याप्त रही. आज भारतीय गणतंत्र आस्था का नहीं आचरण का संकट झेल रहा है."
वैशाली के नाम पर हो रहे गणतंत्र के उत्सव के वैशाली में न होने को लेकर वहां के लोगों में खासी नाराजगी है. इंटेक के वैशाली चैप्टर के संयोजक डॉ. रामनरेश राय जो प्राकृत एवं जैन शास्त्र विषय के प्राध्यापक भी हैं, कहते हैं, "लगता है आयोजकों ने या तो वैशाली के इतिहास का ढंग से अध्ययन नहीं किया है, या फिर उन्हें मिसगाइड किया गया है. अगर उन्हें वैशाली और राजगीर के परस्पर विरोधी संबंधों का पता होता तो शायद वे ऐसा कदम नहीं उठाते. यह बेहद दुखद और हास्यास्पद बात है कि वे जिस गणतंत्र के उत्सव का आयोजन राजगीर में कर रहे हैं, उसके विध्वंस की वजह की राजगीर के राजा अजातशत्रु रहे हैं."
वे कहते हैं, "वैशाली में गणतंत्र की स्थापना बुद्ध से पहले हो गयी थी. बुद्ध, जैन और हिंदू धर्म के ग्रंथ रामायण तीनों में वैशाली के गणतंत्र की विस्तार से चर्चा है. बुद्ध तो वैशाली के गणराज्य को इतना पसंद करते थे कि उन्होंने अपने संघ की व्यवस्था ही लिच्छवी के संघ की सात खूबियों से लेकर अपनायी. बौद्ध धर्म के उपदेश में जो बुद्ध, धर्म और संघ की चर्चा है, उसमें संघ वस्तुतः वैशाली का लिच्छवी संघ ही है."

वे कहते हैं, "वैशाली में हर तरह के आयोजन की समुचित सुविधा है. यहां 2013 में अंतर्राष्ट्रीय महिला सम्मेलन का आयोजन हो चुका है, जिसमें 32 देश की महिलाओं ने भाग लिया था. यहां हर साल तीन दिन का वैशाली महोत्सव आयोजित होता है, जिसमें बड़ी संख्या में लोग भाग लेते हैं. यहां हर तरह का आयोजन हो सकता है. अगर वैशाली का उत्सव मनाना था, तो उन्हें यह आयोजन वैशाली में करना चाहिए था."
जब यह सवाल हमने आईसीसीआर के अभय कुमार से पूछा तो उन्होंने बताया, दरअसल यह आयोजन विदेश मंत्रालय द्वारा किया जा रहा है और नालंदा में अंतर्राष्ट्रीय विश्वविद्यालय है, जो विदेश मंत्रालय का हिस्सा है. इस विश्वविद्यालय में कई देशों के छात्र पढ़ते हैं. इसलिए हम इस आयोजन को वैशाली के बदले राजगीर में कर रहे हैं.
जब हमने उनसे पूछा कि वैशाली लोकतंत्र की जननी है और राजगीर राजतंत्र की. वैशाली में लोकतंत्र के पतन की वजह राजगीर के राजा अजातशत्रु रहे हैं, क्या इसके बावजूद राजगीर में वैशाली के नाम का गणतंत्र का उत्सव करना गलत संदेश नहीं दे रहा? इसका वे कोई स्पष्ट उत्तर नहीं देते. वे कहते हैं, "एक जमाने में मगध साम्राज्य भी महाजनपद रहा है, वहां भी गणतंत्र था. हम आने वाले समय में यह आयोजन वैशाली में भी कर सकते हैं."