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उत्तराखंड : स्कूल में सात शिक्षक, 10वीं में एक छात्र, वह भी हो गया फेल! गलती किसकी?

उत्तराखंड के नैनीताल से करीब 114 किलोमीटर दूर ओखलकांडा ब्लॉक के राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय भद्रकोट के इस छात्र को हिंदी विषय में सबसे ज्यादा नंबर मिले लेकिन वह इसमें भी पास नहीं हो पाया

सांकेतिक तस्वीर
अपडेटेड 6 मई , 2025

परीक्षा में फेल होना कोई बड़ी बात नहीं है, देश में लाखों विद्यार्थी 10वीं की परीक्षा में फेल होते हैं. लेकिन उत्तराखंड में 10वीं के एक छात्र के फेल होने से सबसे ज्यादा उंगलियां उस स्कूल के शिक्षकों पर उठीं, क्योंकि स्कूल में सात शिक्षक थे और 10वीं में पढ़ने वाला वह इकलौता छात्र था. 

यह खबर नैनीताल से करीब 114 किलोमीटर दूर ओखलकांडा ब्लॉक के राजकीय उच्चतर माध्यमिक विद्यालय भद्रकोट से जुड़ी है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक, यहां प्रिंसिपल सहित सात शिक्षक नियुक्त हैं और छठवीं से लेकर 10वीं तक कुल 7 विद्यार्थी पढ़ते हैं. इनमें से भी 10वीं का सिर्फ एक विद्यार्थी है. स्कूल में एक क्लर्क और एक कुक भी है. 

उत्तराखंड विद्यालयी शिक्षा बोर्ड (यूबीएसई) का रिजल्ट 19 अप्रैल को आया. 10 वीं का वह एकमात्र छात्र फेल ही नहीं हुआ उसके सभी विषयों में बहुत कम नंबर आए. मीडिया रिपोर्ट्स कह रही हैं कि उसे सबसे ज्यादा अंक हिंदी में मिले लेकिन उसमें भी वह पास नहीं हो सका. 

मीडिया रिपोर्टों के मुताबिक ओखलकांडा की खंड शिक्षा अधिकारी सुलोहिता नेगी ने स्कूल के सभी शिक्षकों से खराब रिजल्ट पर स्पष्टीकरण मांगा है. साथ ही उन्होंने स्कूल को किसी और स्कूल में विलय करने की बात पर विचार करने की बात भी कही है. माध्यमिक शिक्षा के अतिरिक्त निदेशक जी.एस. सौन ने कहा है कि विभागीय जांच जारी है. जांच के बाद उचित कार्रवाई की जाएगी. 

दूसरी तरफ शिक्षक अपने बचाव में कह रहे हैं कि वह छात्र पढ़ाई में कमजोर था. उत्तराखंड के 10वीं बोर्ड की परीक्षा में 88 प्रतिशत से ज्यादा छात्र और 93 प्रतिशत से ज्यादा छात्राओं ने सफलता हासिल की है. परीक्षाओं में फेल होना अनोखी बात नहीं है. इंडियाटुडे डॉट इन की एक रिपोर्ट बताती है कि 2023 में 1.85 करोड़ छात्रों ने 10वीं की परीक्षा में भाग लिया. लेकिन इनमें से 33 लाख से ज्यादा छात्र पास नहीं हो सके थे. इसी तरह 12वीं की परीक्षा में 1.55 करोड़ छात्र बैठे और उनमें से 32 लाख से ज्यादा परीक्षा पास नहीं कर सके. इन आंकड़ों में परीक्षा न देने वाले छात्र भी शामिल हैं.

वैसे, उत्तराखंड के इस स्कूल के रिजल्ट की चर्चा दिल्ली में भी विचार-विमर्श से जुड़े कार्यक्रमों में हो रही है. बीते हफ्ते वर्ल्ड प्रेस फ्रीडम डे पर दिल्ली के प्रेस क्लब में जब राजधानी के जाने-माने पत्रकार जुटे तब वहां भी इस खबर का जिक्र हुआ. उत्तराखंड से आए एक वक्ता का कहना था कि शिक्षा का अधिकार सरकार ने दे तो दिया लेकिन स्कूलों की दशा और गुणवत्ता दोनों खराब है. बुनियादी ढांचा नहीं होगा तो शिक्षा का अधिकार बेमानी हो जाएगा. स्कूलों में या तो शिक्षकों की बहुत कमी है या हैं तो उनकी वास्तविक काबिलियत संदेह के घेरे में है. 

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