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उत्तर प्रदेश : मेलों को मिलेगी पैसे की मदद और योगी सरकार पाएगी राजनीतिक 'प्रसाद’!

उत्तर प्रदेश सरकार पहली बार 5 लाख से अधिक विजटर्स को आकर्षित करने वाले राज्य मेलों के आयोजन के लिए एक विस्तृत स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) लेकर आई है, जिसे मंजूरी मिलने के बाद इन्हें 25 लाख रुपये से 1.5 करोड़ रुपये तक की आर्थिक मदद मिलेगी. विपक्ष उठा रहा है सवाल

The Uttar Pradesh government reported that the Mahakumbh led to a business turnover of Rs 3 lakh crore. Moreover, the state expects to generate revenue of Rs 55,000 crore from the event.
योगी आदित्यनाथ और AI से बनी महांकुंभ की फोटो
अपडेटेड 14 जुलाई , 2025

इस साल जनवरी-फरवरी में उत्तर प्रदेश में भारत का सबसे बड़ा धार्मिक आयोजन महाकुंभ हुआ था और जाहिर है कि जहां लाखों-करोड़ों लोग जुटने हैं, वहां पॉलिटिकल मैसेजिंग होनी ही थी. ऐसा हुआ भी. (कैसे महाकुंभ भाजपा के लिए दलित और पिछड़ी जातियों को लुभाने का भी आयोजन बना!)

अब इसी सिलसिले को आगे बढ़ाते हुए यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार धार्मिक और सांस्कृतिक मेलों के जरिए अपने हिंदुत्व एजेंडे को धार देने जा रही है. इससे प्रदेश में लगने वाले मेलों का न केवल स्वरूप बदलेगा ब‍ल्क‍ि उन्हें सरकारी धन का ‘प्रसाद’ भी मिलेगा. योगी सरकार गांवों और शहरों में आयोजित होने वाले धार्मिक मेलों में आने वाले श्रद्धालुओं को लेकर बेहतर सुविधाएं देने का खर्च उठाएगी.

2017 में यूपी की सत्ता संभालने के बाद योगी आदित्यनाथ सरकार ने प्रदेश में धार्मिक मेलों को सिर्फ परंपरा तक सीमित नहीं रखा, बल्कि उन्हें राज्य की सांस्कृतिक पहचान, पर्यटन और राजनीति से जोड़कर एक संगठित अभियान के रूप में बढ़ावा दिया है. योगी सरकार ने कई पारंपरिक धार्मिक मेलों जैसे अयोध्या में दीपोत्सव, वाराणसी में देव दीपावली को राजकीय मेला घोषित कर दिया, जिससे उन्हें बजट, सुरक्षा और प्रचार के लिहाज से व्यापक सरकारी सहयोग मिला. 

अब इस प्रक्रिया में क्षेत्रीय मेलों को भी शामिल करने के लिए उत्तर प्रदेश सरकार पहली बार 5 लाख से ज्यादा आगंतुकों को आकर्षित करने वाले राज्य मेलों के आयोजन के लिए एक विस्तृत स्टैंडर्ड आपरेटिंग प्रोसीजर (एसओपी) लेकर आई है, जिसे मंजूरी मिलने के बाद इन्हें 25 लाख रुपये से 1.5 करोड़ रुपये तक की आर्थिक मदद मिलेगी. यह धनराशि इन धार्मिक, पारंपरिक और ऐतिहासिक मेलों में आने वाले आगंतुकों की संख्या पर निर्भर करेगी. 

एसओपी के मुताबिक संबंधित जिलाधिकारियों के अधीन विशेष समितियां मेलों के आयोजन के विभिन्न मापदंडों की जांच करेंगी. यह एसओपी राज्य के शहरी विकास विभाग ने जारी किया है और शहरी स्थानीय निकायों के अंतर्गत होने वाले मेलों पर लागू होगा. मेलों के लिए तैयार की गई मानक संचालन एसओपी के अनुसार 5 लाख से 10 लाख आगंतुकों वाले मेलों के लिए, सरकार 25 लाख रुपये से 50 लाख रुपये तक की सहायता प्रदान करेगी.10-20 लाख दर्शकों वाले मेलों के लिए 50 लाख से 75 लाख रुपये, 20 लाख से 40 लाख दर्शकों वाले मेलों के लिए 75 लाख से 1 करोड़ रुपये और 40 लाख से 60 लाख दर्शकों वाले मेलों के लिए 1 करोड़ से 1.25 करोड़ रुपये देगी. 

नगर विकास विभाग के अधि‍कारियों के मुताबिक मेलों को वित्तीय सहायता देने का उद्देश्य उचित सुविधाओं, सुरक्षा और प्रबंधन के साथ इन मेलों के आयोजन को औपचारिक और मानकीकृत करना है. शहरी विकास विभाग के अधिकारियों ने बताया कि कम से कम 22 राज्य मेलों - बड़े और छोटे - के लिए मानक संचालन प्रक्रिया (एसओपी) की आवश्यकता महसूस की गई और इसके आयोजन एवं योजना के लिए मानक एवं दिशानिर्देश निर्धारित किए गए. एसओपी में आगंतुकों को शहरी सुविधाएं प्रदान करने के लिए विशेष व्यवस्था करने, स्वच्छता बनाए रखने, दुकानों और स्थलों का पारदर्शी तरीके से आवंटन, मेले का प्रशासनिक संचालन, वित्तीय और भीड़ प्रबंधन और प्रचार-प्रसार जैसे मानक भी शामिल होंगे.

एसओपी के गुताबिक संयुक्त प्रांत मेला अधिनियम के मुताबिक हर जिले में डीएम की अध्यक्षता में मेला समिति का गठन होगा. नगर आयुक्त सदस्य सचिव होगा. एसडीएम या इससे निम्न स्तर के अधिकारी को सदस्य संयोजक बनाया जाएगा. समिति मेले के धार्मिक, पौराणिक और ऐतिहासिक महत्व, इसके आयोजन के समय और इसके अंतर-राज्यीय या अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर होने की समीक्षा करेगी. 

समाजवादी पार्टी (सपा) की अखिलेश यादव सरकार ने वर्ष 2012 से 2017 के बीच राजकीय मेलों को न केवल परंपरा के अनुसार जारी रखा, बल्कि कुछ नए मेलों को राजकीय दर्जा देकर सांस्कृतिक, जातीय और क्षेत्रीय संतुलन साधने की कोशिश भी की थी. संत रविदास मेला (वाराणसी), वीरांगना उदा देवी मेला (लखनऊ), परशुराम जयंती समारोह (प्रतापगढ़/लखनऊ) जैसे मेलों को सपा सरकार में आर्थिक मदद भी मिली. हालां‍कि सबसे ज्यादा सवाल सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव के गांव में आयोजित होने वाले सैफई महोत्सव पर ही उठे थे. 

अब योगी सरकार ने बकायदा इन प्रांतीय मेलों के संचालन के लिए एक नियमावली बना दी है. वि‍पक्षी दल मेलों की एसओपी पर सवाल खड़े कर रहे हैं. समाजवादी पार्टी (सपा) के अनुषांगिक संगठनक लोहिया वाहिनी के राष्ट्रीय अध्यक्ष अभि‍षेक यादव आरोप लगाते हैं, “योगी सरकार मेलों में भी भेदभाव कर रही है. संभल, बहराइच समेत कई जिलों में मुस्ल‍िम समुदाय के ऐतिहासिक मेलों को प्रतिबंधित कर दिया गया है. अब सरकार इसी एसओपी के जरिए अपनी भेदभाव की नीति को ही परवान चढाएगी.” 

हालां‍कि नगर विकास विभाग के अधिकारी बताते हैं कि इस एसओपी के अंतर्गत किसी नए मेले के आयोजन का कोई प्रस्ताव नहीं रखा जाएगा. प्रांतीय मेले के आयोजन के लिए खर्च की व्यवस्था सीएसआर फंड, मेले से होने वाली निकाय की आय से सुनिश्चित किया जाएगा. राज्य सरकार के अन्य विभागों जैसे लोक निर्माण, सिंचाई जल संसाधन, पुलिस विभाग और पंचायती राज्य विभाग के वित्तीय स्रोतों से भी मदद ली जाएगी. जिलाधिकारी द्वारा नगर विकास विभाग से पैसे की मांग की जाएगी.

एसओपी में उन मानदंडों को भी निर्धारित किया गया है जिनके आधार पर धनराशि का उपयोग किया जा सकता है, जिसमें आगंतुकों के लिए अस्थायी टेंट, बैरिकेडिंग, अस्थायी शौचालय, पानी की व्यवस्था, अस्थायी सड़कें, आवश्यकतानुसार नावों और नाविकों की व्यवस्था और साइनबोर्ड आदि जैसी सुविधाएं उपलब्ध कराना शामिल है. कार्यों के सत्यापन के लिए, एक थर्ड पार्टी एजेंसी को तैनात किया जाएगा, जबकि मेले की वार्षिक रिपोर्ट, समापन के एक महीने के भीतर अनिवार्य प्रावधानों के साथ, संबंधित संभागीय आयुक्त को प्रस्तुत करनी होगी. 

राजनीतिक विश्लेषक इन मेलों के आयोजन के जरिए योगी सरकार के हिंदुत्व एजेंडे को ही आगे बढ़ाने की बात कह रहे हैं. बाबा साहेब डा. भीमराव आंबेडकर केंद्रीय विश्वविद्यालय, लखनऊ में इतिहास विभाग के प्रोफेसर सुशील पांडेय बताते हैं, “योगी सरकार ने धार्मिक मेलों को केवल श्रद्धा और आस्था का आयोजन न मानकर उन्हें पर्यटन का माध्यम, राजनीतिक संवाद का मंच, और हिंदुत्व ब्रांडिंग का उपकरण भी बनाया. इससे सरकार को धार्मिक वोट बैंक साधने, राज्य की छवि निर्माण और स्थानीय अर्थव्यवस्था में योगदान जैसे कई लाभ मिले हैं. स्थानीय मेलों के लिए नए एसओपी लाकर योगी सरकार इसी क्रम को आगे बढ़ाना चाहती है ताकि वर्ष 2027 के विधानसभा चुनाव से पहले हिंदुत्व का मजबूत संदेश मतदाताओं के सामने रखा जाए.” 

इसमें प्रदेश सरकार कितना कामयाब होगी, यह तो चुनाव के नतीजे ही बताएंगे. बहरहाल पहली परीक्षा तो अगले साल होने वाले पंचायत चुनाव ही लेंगे. 

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