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सोनभद्र : उत्तर भारत की सबसे बड़ी ऊर्जा परियोजना पर केंद्र सरकार ने क्यों लगाया ब्रेक?

पर्यावरणीय मंजूरी न मिलने से उत्तर प्रदेश के सोनभद्र जिले में प्रस्तावित पंप स्टोरेज परियोजनाएं अटक गई हैं

सांकेतिक तस्वीर
अपडेटेड 16 अक्टूबर , 2025

उत्तर प्रदेश को ऊर्जा के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनाने की दिशा में सोनभद्र को एक मॉडल ज़िला माना जा रहा था. राज्य सरकार ने वर्ष 2023 में यहां पंप स्टोरेज पावर (PSP) परियोजनाओं की रूपरेखा तैयार की थी. 2030-32 तक इन परियोजनाओं के ज़रिए जिले में बिजली उत्पादन क्षमता को 32,970 मेगावॉट तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया था. यह उत्तर भारत की सबसे बड़ी ऊर्जा परियोजना बनने जा रही थी. 

लेकिन केंद्र सरकार की पर्यावरणीय अनुमति रोकने के फैसले ने इस योजना पर ब्रेक लगा दिया. योजना के तहत सोनभद्र की सोन नदी के किनारे बैजनाथ, सोमा, ससनई, चेरूई, चिचलिक, झरिया, पनौरा और बसुहारी गांवों में आठ पंप स्टोरेज पावर प्लांट स्थापित किए जाने थे. बरसात में सोन नदी में आने वाले अतिरिक्त पानी को तीन स्तर के बांधों में पंप के ज़रिए एकत्रित कर जरूरत के समय टरबाइन चलाकर बिजली पैदा की जानी थी. 

यह तकनीक महाराष्ट्र और आंध्र प्रदेश में पहले से कारगर साबित हो चुकी है. सोनभद्र में इस परियोजना की खासियत यह थी कि यहां प्राकृतिक ऊंचाई-नीचाई, जल उपलब्धता और स्थिर भूगोल इसे अनुकूल बनाते थे. यहां स्थापित होने वाले आठ पंप स्टोरेज संयंत्रों में अकेले ग्रीनको ग्रुप का 3,660 मेगावॉट का प्लांट सबसे बड़ा था, जिसमें 17,000 करोड़ रुपये का निवेश प्रस्तावित था. इसके अलावा जेएसडब्ल्यू, अवाडा, अदाणी, THDC, टोरेंट और अमूरा जैसी कंपनियां भी यहां प्रोजेक्ट लगाने की प्रक्रिया में थीं.

फिलहाल क्यों रुकी परियोजनाएं

परियोजना को पर्यावरण मंत्रालय से मंजूरी नहीं मिल पाई है. वजह है, 616 हेक्टेयर में फैली इस परियोजना के दायरे में आने वाले दो लाख से ज़्यादा पेड़. नगवां ब्लॉक का यह इलाका घने जंगलों और जैव विविधता से समृद्ध माना जाता है. भारत सरकार के पर्यावरण विशेषज्ञों ने चेतावनी दी थी कि इतने बड़े पैमाने पर वृक्षों की कटाई से स्थानीय पर्यावरण पर गंभीर असर पड़ेगा. एक पर्यावरण विशेषज्ञ ने बताया, “यह इलाका न सिर्फ हरित क्षेत्र है, बल्कि कई वन्यजीवों का प्राकृतिक आवास भी है. पंप स्टोरेज परियोजनाओं के लिए बड़े जलाशयों और बांधों का निर्माण यहां की पारिस्थितिकी को बदल सकता है. ऐसे में केंद्र का निर्णय सतर्क और वैज्ञानिक रूप से उचित है.”

केंद्र ने मंजूरी रोकने के साथ ही एक उपसमिति गठित की है, जो स्थल, भूगर्भीय स्थिति, जैव विविधता और जल स्रोतों पर प्रभाव का विस्तृत अध्ययन करेगी. रिपोर्ट के बाद ही परियोजना के भविष्य पर फैसला होगा.

राज्य सरकार की तैयारी और स्थानीय उम्मीदें

राज्य सरकार ने इन परियोजनाओं को प्राथमिकता सूची में रखा था. यूपी इन्वेस्टर्स समिट 2022 में गाजियाबाद के बाद सबसे अधिक निवेश प्रस्ताव सोनभद्र के लिए आए थे. सरकार ने पूरी प्रशासनिक मशीनरी को जमीन चिह्नित करने, सर्वे कराने और निवेशकों को सहयोग देने के लिए लगाया था. जिला उद्योग विभाग, सोनभद्र के उपायुक्त वी.के. चौधरी बताते हैं, “पंप स्टोरेज पॉवर परियोजनाओं के लिए स्थान चिह्नित किए जा चुके हैं. सर्वे की प्रक्रिया चल रही है. शासन स्तर से निगरानी हो रही है. स्थानीय स्तर पर निवेशकों को पूरा सहयोग दिया जा रहा है. जो भी नए निर्देश मिलेंगे, उनका अनुपालन कराया जाएगा.” 

सोनभद्र के नगवां और कोन ब्लॉक का सीमावर्ती क्षेत्र अत्यंत पिछड़ा है. ऊंची पहाड़ियों और दुर्गम सड़कों के कारण यहां पहुंचना मुश्किल है. बिजली, पेयजल, स्वास्थ्य और नेटवर्क जैसी सुविधाएं आज भी अधूरी हैं. बिहार और झारखंड की सीमा से सटे इस इलाके में लंबे समय तक नक्सल गतिविधियां सक्रिय रही हैं. ऐसे में यहां औद्योगिक निवेश को विकास और रोजगार का जरिया माना जा रहा था. स्थानीय निवासी बृजेश यादव कहते हैं, “हमारे गांव में अब तक कोई फैक्ट्री नहीं लगी. बिजली तो है, पर रोज घंटों जाती है. लोग उम्मीद कर रहे थे कि परियोजना से रोजगार मिलेगा, सड़क बनेगी, बिजली स्थायी होगी. अब मंजूरी न मिलने से सब निराश हैं.”

ऊर्जा आत्मनिर्भरता पर असर

फिलहाल सोनभद्र जिले में 12,809 मेगावॉट की कुल उत्पादन क्षमता वाली परियोजनाएं चल रही हैं. इनमें अनपरा (2630 मेगावॉट), ओबरा (2320 मेगावॉट), लैंको (1200 मेगावॉट), NTPC रिहंद और सिंगरौली (5000 मेगावॉट) और रेणुसागर (1260 मेगावॉट) शामिल हैं. इसके अलावा 399 मेगावॉट की जल विद्युत परियोजनाएं भी हैं. औसतन हर दिन 11 से 12 हजार मेगावॉट बिजली का उत्पादन होता है. 

अगर पंप स्टोरेज परियोजनाएं शुरू हो जातीं, तो सोनभद्र की कुल उत्पादन क्षमता लगभग तीन गुनी बढ़ जाती. ऊर्जा विशेषज्ञों का कहना है कि यह उत्तर प्रदेश को न सिर्फ आत्मनिर्भर बनाती बल्कि अतिरिक्त बिजली को ग्रिड में भेजने की स्थिति में भी लाती. ऊर्जा विश्लेषक अजय प्रताप सिंह बताते हैं, “उत्तर प्रदेश की बिजली खपत हर साल औसतन 7-8 फीसदी बढ़ रही है. पंप स्टोरेज परियोजनाएं न सिर्फ पीक डिमांड के समय मदद करतीं, बल्कि सौर और पवन ऊर्जा के अस्थिर उत्पादन को भी बैलेंस करतीं. मंजूरी में देरी राज्य की ऊर्जा नीति के लिए झटका है.”

निवेश पर संशय और प्रशासनिक हलचल

ग्रीनको ग्रुप की परियोजना पर रोक के बाद अन्य सात प्रस्तावित कंपनियों में भी दुविधा की स्थिति है. उद्योग विभाग के अधिकारियों के अनुसार, कई कंपनियों ने राज्य सरकार से स्पष्टीकरण मांगा है कि अगर पर्यावरण मंजूरी में ऐसी कठिनाई है तो क्या वैकल्पिक स्थल तलाशे जा सकते हैं. जानकारी के मुताबिक, इस मुद्दे पर 17 अक्टूबर को लखनऊ में एक विशेष बैठक बुलाई गई है, जिसमें सभी आठ परियोजनाओं की स्थिति की समीक्षा होगी. 

बैठक में ऊर्जा विभाग, उद्योग विभाग और पर्यावरण मंत्रालय के अधिकारी शामिल होंगे. एक वरिष्ठ अधिकारी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया, “हम निवेशकों को रोकना नहीं चाहते. अगर मौजूदा स्थल पर पर्यावरणीय आपत्ति है, तो कुछ परियोजनाओं को कम संवेदनशील इलाकों में स्थानांतरित करने पर विचार चल रहा है.” 

परियोजना की घोषणा के बाद सोनभद्र के नगवां ब्लॉक और आसपास के गांवों में ज़मीनों की खरीद-फरोख्त बढ़ गई थी. कई स्थानीय जनप्रतिनिधियों और व्यापारियों ने इस उम्मीद में ज़मीन खरीदी कि औद्योगिक इकाइयों के आने से कीमतें बढ़ेंगी. अब मंजूरी रुकने से बाजार में सन्नाटा है. स्थानीय व्यापारी शिवप्रकाश चौबे कहते हैं, “यहां के लोगों ने पहली बार सोचा था कि सोनभद्र सिर्फ कोयला या जंगलों का जिला नहीं रहेगा. अब तो लोग फिर से सोच में हैं कि क्या विकास की ट्रेन यहां तक पहुंचेगी भी या नहीं.”

पर्यावरण बनाम विकास

यह विवाद अब विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन की परीक्षा बन गया है. सोनभद्र वैसे भी औद्योगिक विस्तार के चलते पहले से ही पर्यावरणीय दबाव झेल रहा है. कोयला आधारित पावर प्लांट, खनन और रिहंद बांध जैसे बड़े प्रोजेक्ट पहले ही इस इलाके की हवा और पानी पर असर डाल चुके हैं. वाराणसी स्थित पर्यावरण विशेषज्ञ उत्पल पाठक कहते हैं, “सोनभद्र में पिछले 40 साल में उद्योगों के नाम पर प्रकृति ने बहुत कुछ खोया है. अब अगर नई परियोजनाएं लानी हैं तो उनके लिए पर्यावरणीय मानकों का कठोर पालन जरूरी है. यह बात समझनी होगी कि स्थायी विकास का मतलब सिर्फ बिजली उत्पादन नहीं, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन भी है.”

केंद्र की समिति की रिपोर्ट आने में कुछ महीने लग सकते हैं. राज्य सरकार ने फिलहाल परियोजनाओं पर काम रोक दिया है, लेकिन निवेशकों को भरोसे में रखने के लिए वैकल्पिक रास्तों की तलाश जारी है. ऊर्जा विभाग के एक अधिकारी ने बताया, “हम नहीं चाहते कि यह क्षेत्र निवेश से वंचित रह जाए. अगर पर्यावरणीय मंजूरी नहीं मिलती तो सौर और पवन ऊर्जा के हाइब्रिड प्रोजेक्ट पर फोकस बढ़ाया जाएगा. पंप स्टोरेज की संभावना भी दूसरे स्थलों पर तलाशने का विकल्प खुला है.”

सोनभद्र में पंप स्टोरेज परियोजनाओं का रुकना केवल एक निवेश योजना की देरी नहीं है. यह उस व्यापक चुनौती की याद दिलाता है, जिसमें विकास और पर्यावरण के बीच संतुलन साधना कठिन होता जा रहा है. यह फैसला जहां पारिस्थितिकी की रक्षा की दिशा में जरूरी कदम है, वहीं राज्य की ऊर्जा आत्मनिर्भरता की राह थोड़ी लंबी जरूर हो गई है. स्थानीय लोगों के लिए फिलहाल उम्मीद यही है कि सरकार ऐसी राह निकाले, जिससे विकास भी हो और जंगल भी बचे रहें. क्योंकि सोनभद्र की पहाड़ियों के बीच बसे इन गांवों को अब सिर्फ बिजली नहीं, स्थायी रोशनी की जरूरत है जो प्रकृति और प्रगति दोनों के साथ चल सके.

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