हरिद्वार से मुरादाबाद हाइवे के बीचो-बीच मौजूद नगीना इलाका कभी अपनी अद्भुद काष्ठकला के लिए जाना जाता था. उत्तराखंड से सटे और शिवालिक पहाड़ियों की तलहटी में बसे नगीना को अंग्रेजी शासन काल में जिला मुख्यालय का गौरव प्राप्त था.
ब्रिटिश काल के दौरान, यह संयुक्त प्रांत में नगीना तहसील, बिजनौर जिले का मुख्यालय बना रहा और वर्ष 1817 से 1824 तक यह नवगठित उत्तरी मुरादाबाद जिले का मुख्यालय था. 1857 के गदर के एक भाग के रूप में नगीना नजीबाबाद के नवाब और अंग्रेजों के बीच युद्ध का स्थल था जो 21 अप्रैल 1858 को नवाब की हार के साथ समाप्त हुआ.
जिसके बाद अंग्रेजों ने बिजनौर में अपना अधिकार स्थापित किया और बाद में वर्ष 1886 में, नगीना नगर पालिका बन गयी. नगीना अब जिला मुख्यालय नहीं है, लेकिन इसकी काष्ठकला का जादू आज भी सिर चढ़कर बोलता है. वहीं शेरकोट का ब्रश उद्योग भी नगीना की शान को बढ़ाता है.
धामपुर, नजीबाबाद, नगीना, स्योहारा, नूरपुर जैसे पुराने और नामचीन कस्बे इसके महत्व को और बढ़ाते हैं. यह पश्चिमी यूपी का एक प्रमुख गन्ना केंद्र भी है. नगीना में साढ़े चार लाख से ज्यादा किसान परिवार हैं और 10 चीनी मिलें. लिहाजा 38 बरसाती नदियों से घिरे नगीना की राजनीति में गन्ना और किसानों का भी एक प्रमुख कोण है.
बिजनौर मुख्यालय से जिले की आठ में से से किसी भी एक तहसील मुख्यालय तक पहुंचना सबसे कष्टकारी है तो वह है नगीना. मुख्य रेलमार्ग पर स्थित होने के बावजूद यहां प्रमुख रेलगाड़ियों का ठहराव नहीं है. नगीना क्षेत्र से बहुजन समाज पार्टी (बसपा) प्रमुख का एक महत्वपूर्ण जुड़ाव भी है. बसपा सुप्रीमो मायावती ने 1989 में बिजनौर से जीतकर ही अपने राजनीतिक सफर की शुरुआत की थी.
उस समय नगीना का क्षेत्र बिजनौर संसदीय क्षेत्र के अंतर्गत ही आता था. वर्ष 2009 में बिजनौर जिले की पांच विधानसभा क्षेत्रों को शामिल करके नगीना सीट का गठन किया गया. लेकिन नए परिसीमन में बिजनौर लोकसभा सीट बरकरार रही और इसमें मुजफ्फरनगर की दो और मेरठ की हस्तिनापुर विधानसभा सीट को शामिल कर दिया गया. नगीना लोकसभा सीट के गठन के बाद यहां तीन बार चुनाव हुए और हर बार इस सीट ने नया परिणाम दिया है.
नगीना लोकसभा सुरक्षित सीट के लिए वर्ष 2009 में पहली बार लोकसभा के चुनाव हुए थे. समाजवादी पार्टी (सपा) ने इस चुनाव में नए चेहरे के रूप में स्योहारा के ग्राम महमूदपुर निवासी यशवीर सिंह धोबी को अपना प्रत्याशी बनाया था. यशवीर ने बसपा सेवानिवृत आईएएस अधिकारी आर. के. सिंह को मात देकर नगीना का पहला सांसद होने का गौरव हासिल किया था. इसके बाद 2014 के लोकसभा चुनाव में नगीना की जनता ने भाजपा प्रत्याशी के रुप में उतरे मेरठ निवासी डॉक्टर यशवंत सिंह को जीत का सेहरा पहनाया.
वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में नगीना की जनता ने सपा के साथ गठबंधन करके उतरे बसपा के गिरीश चंद को जिताकर देश की संसद में पहुंचाया. इस चुनाव में भाजपा के डॉक्टर यशवंत सिंह को हार का सामना करना पड़ा था. इस प्रकार नगीना लोकसभा सीट पर अब तक हुए तीन लोकसभा चुनावों में हर बार नई पार्टी ने जीत का स्वाद चखा है. अब तक के चुनावी परिणाम में भाजपा, सपा, बसपा एक-एक से बराबरी पर है.
बिजनौर और आसपास की राजनीति पर नजर रखने वाले स्थानीय किसान नेता मोहम्मद शारिक बताते हैं, "नगीना सीट पर चुनाव का परिणाम सबसे पहले मुस्लिम और दूसरे नंबर पर दलितों के हाथ में है. जातिवार मतों की बात करें तो कुल 17.05 लाख मतों में से लगभग 7 लाख मुस्लिम तो 5 लाख से ज्यादा दलित मतदाता है. ठाकुर लगभग दो लाख तो जाट मतदाता 60 हजार है. इन हालात में मुस्लिम मतदाता जिस दल की ओर रुख करता है जीत की उम्मीद उस ओर बढ़ने लगती है. मुस्लिम वोट का बंटवारा होने की स्थिति में दलित वोट चुनाव पर असर डालते है. अन्य जातियों के लगभग डेढ़ लाख मतदाता इस सीट पर है. दलित और मुस्लिम मतों के बंटवारे पर अन्य जातियों के वोट महत्वपूर्ण हो जाते हैं."
नगीना सीट पर दूसरी बार फतह हासिल करने के इरादे से भाजपा ने इस बार ओम कुमार पर दांव लगाया है. ओम कुमार वर्तमान में नहटौर सीट से लगातार तीसरी बार के विधायक हैं. वर्ष 2012 में परिसीमन के बाद नवगठित नहटौर सीट पर ओम कुमार ने सबसे पहले बसपा के टिकट पर जीत हासिल कर खाता खोला था, लेकिन 2017 में उन्होंने भाजपा का दामन थाम लिया और फिर से विजयी हुए.
बीते 2022 के विधानसभा चुनाव में ओम कुमार को भाजपा ने फिर प्रत्याशी बनाया था. उनके सामने गठबंधन से रालोद प्रत्याशी व पूर्व सांसद मुंशीराम मैदान में थे. इस बार जीत के लिए ओम कुमार को खासी मशक्कत करनी पड़ी और मात्र 258 वोटों से ही सही लेकिन फिर से जीत कर विधायक बने.
नगीना लोकसभा सीट पर दोबारा साइकिल दौड़ाने के लिए सपा सुप्रीमो अखिलेश यादव ने पूर्व अपर एवं सत्र न्यायाधीश मनोज कुमार पर दांव लगाया है. मनोज स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर राजनीति में आए हैं. चंदौली के मूल निवासी मनोज कुमार धामपुर इलाके में रह कर लंबे समय से नगीना में लोगों के बीच अपनी पकड़ मजबूत करने की कोशिश कर रहे थे.
नगीना लोकसभा सीट पर सपा का उम्मीदवार उतार कर अखिलेश यादव ने आजाद समाज पार्टी के अध्यक्ष चंद्रशेखर आजाद के विपक्षी इंडिया गठबंधन के रूप में चुनाव मैदान में उतरने के रास्ते बंद कर दिए. इसके बाद चंद्रशेखर, आजाद समाज पार्टी के प्रत्याशी के रूप में चुनाव मैदान में हैं. चंद्रशेखर लंबे समय से नगीना लोकसभा सीट पर मेहनत कर रहे थे. इन्हें राष्ट्रीय लोकदल अध्यक्ष जयंत चौधरी का समर्थन हासिल था.
जयंत ही चंद्रशेखर को इंडिया गठबंधन में शामिल कर नगीना से उम्मीदवार बनाने के सबसे बड़े पैरोकार थे. लेकिन जयंत के ही भाजपा के साथ चले जाने से चंद्रशेखर के समीकरण गड़बड़ा गए. नाराज अखिलेश यादव ने चंद्रशेखर की दावेदारी को नजरंदाज करके नगीना सीट पर सपा का उम्मीवार घोषित कर दिया.
अब भाजपा सरकार ने चंद्रशेखर को 'वाई प्लस श्रेणी' की सुरक्षा देकर जाटव बिरादरी को एक सकारात्मक संदेश देने की कोशिश की है. वहीं दूसरी ओर सपा नेता चंद्रशेखर पर भाजपा से मिले होने का आरोप लगा रहे हैं. हालांकि चंद्रशेखर शिकायती लहजे में कहते हैं, "समाजवादी पार्टी और कांग्रेस के नेताओं को भी सुरक्षा मिलती है, एक दलित के बेटे को सुरक्षा मिल गई तो क्या हो गया. मैं तो चाहता हूं कि सभी बहुजनों को सुरक्षा मिले." 36 वर्षीय आजाद दलित और मुस्लिम मतदाताओं, विशेषकर दलित युवाओं के बीच अपनी लोकप्रियता पर भरोसा कर रहे हैं.
नगीना लोकसभा सीट को बसपा प्रमुख मायावती ने भी अपनी प्रतिष्ठा का प्रश्न बना लिया है. वर्ष 2019 के लोकसभा चुनाव में बसपा के गिरीश चंद्र ने भाजपा के यशवंत सिंह को 1.66 लाख वोटों से हराया था. तब बसपा ने सपा के साथ गठबंधन कर चुनाव लड़ा था. इस जीत के क्रम को बरकरार रखते हुए बसपा ने इस बार सुरेंद्र पाल सिंह को नगीना से चुनाव मैदान में उतारा है. हालांकि चंद्रशेखर आजाद के नगीना चुनाव मैदान में उतरने से बसपा के लिए मुकाबला और अधिक चुनौतीपूर्ण हो गया है.
नगीना सीट पर हाथी की राह आसान करने के लिए मायावती के भतीजे और राजनीतिक उत्तराधिकारी आकाश आनंद 6 अप्रैल को यहीं से पार्टी के चुनाव अभियान की शुरुआत करेंगे. 34 वर्षीय बसपा के राष्ट्रीय समन्वयक आकाश नगीना के एक कॉलेज ग्राउंड में एक रैली करेंगे, जो 19 अप्रैल को पहले चरण में होने वाले यूपी की आठ सीटों में से एकमात्र आरक्षित निर्वाचन क्षेत्र है.
बसपा उम्मीदवार सुरेंद्र पाल सिंह दावा करते हैं, "आकाश आनंद युवाओं के बीच चन्द्रशेखर से अधिक लोकप्रिय हैं. आकाश के चुनाव अभियान से नगीना में और अधिक युवा बसपा से जुड़ेंगे." इस तरह नगीना लोकसभा सीट का चुनावी रण चंद्रशेखर आजाद और आकाश आनंद के बीच भी की रस्साकसी का भी गवाह बनेगा.
मुरादाबाद निवासी और राजनीतिक विश्लेषक अनुपम कुमार के मुताबिक, "चंद्रशेखर यूपी में मायावती के बाद दूसरे सबसे लोकप्रिय दलित नेता हैं और उनके साथ फायदा ये है कि वो एक युवा नेता हैं. आकाश को प्रचार में तैनात करने से बसपा को उन दलित युवाओं को आकर्षित करने में मदद मिलेगी जो या तो भाजपा या चन्द्रशेखर की ओर जा रहे हैं."
इस तरह नगीना का चुनावी जंग एक चतुष्कोणीय मुकाबले में घिर गया है. तीन चुनावों में हर बार अलग रिजल्ट से इस सीट पर प्रत्याशियों के लिए भी जनता की नब्ज को समझना चुनौती भरा होगा.