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रायबरेली में गांधी परिवार का गढ़ ढहाने चली BJP कैसे खुद ही ढहती दिख रही?

गांधी परिवार के गढ़ रायबरेली में BJP नेताओं की आपसी खींचतान ने पार्टी की रणनीति को उलझा दिया है

Rae Bareli Lok Sabha Exit Poll 2024: Rahul Gandhi is faced with a spirited challenge from BJP's Dinesh Pratap Singh
प्रियंका और राहुल गांधी (बाएं); योगी सरकार में मंत्री दिनेश प्रताप सिंह (दाएं)
अपडेटेड 12 सितंबर , 2025

रायबरेली की राजनीति लंबे समय से गांधी परिवार का पर्याय रही है. यहां की चुनावी फिज़ा में कांग्रेस का असर गहरा है. लेकिन पिछले एक दशक में भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने इस परंपरा को तोड़ने की लगातार कोशिश की है. इस कोशिश का सबसे बड़ा चेहरा रहे हैं प्रदेश सरकार के राज्यमंत्री दिनेश प्रताप सिंह. 

साल 2019 और 2024 दोनों लोकसभा चुनावों में दिनेश प्रताप सिंह रायबरेली सीट पर कांग्रेस उम्मीदवार के सामने BJP का दांव बने, लेकिन दोनों बार करारी हार मिली. खासकर 2024 की हार, जब राहुल गांधी ने यहां से 3.9 लाख वोटों के अंतर से जीत दर्ज की, यह BJP के लिए न सिर्फ़ झटका थी बल्कि दिनेश सिंह की राजनीतिक जमीन पर भी बड़ा सवाल खड़ा कर गई.

आज की तारीख में रायबरेली में BJP की राजनीति एक अजीब खींचतान में फंसी है. एक ओर दिनेश प्रताप सिंह हैं, जो गांधी परिवार के खिलाफ सबसे आक्रामक चेहरा बनने की कोशिश कर रहे हैं. दूसरी ओर समाजवादी पार्टी (सपा) से बगावत कर BJP में आए मनोज पांडेय हैं, जिन्हें ब्राह्मण चेहरे के रूप में पेश किया जा रहा है. तीसरी ओर कांग्रेस से BJP में आईं अदिति सिंह हैं, जो पिता अखिलेश सिंह की राजनीतिक विरासत को साथ लेकर चल रही हैं. तीनों गुट BJP के भीतर अपनी पकड़ बनाए रखने में जुटे हैं, लेकिन इस आपसी खींचतान ने पार्टी की रणनीति को और उलझा दिया है. 

सड़क पर प्रदर्शन और राहुल गांधी का सामना

10 सितंबर 2025 को जब राहुल गांधी अपने दो दिवसीय दौरे पर रायबरेली पहुंचे, तो शायद ही किसी ने सोचा होगा कि उनका सामना सीधे प्रदेश के एक मंत्री से होगा. रायबरेली-लखनऊ हाईवे पर योगी सरकार के बागवानी मंत्री दिनेश प्रताप सिंह अपने समर्थकों के साथ सड़क पर बैठ गए और नारेबाजी शुरू कर दी. आरोप था कि बिहार में कांग्रेस समर्थकों ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की दिवंगत मां के खिलाफ अपमानजनक टिप्पणी की थी, और राहुल गांधी ने इसकी निंदा नहीं की. 

पुलिस ने काफिले को रोकने की कोशिश की, झड़प हुई, और राहुल गांधी का काफिला कुछ देर के लिए अटक गया. BJP कार्यकर्ता "मोदी जी की मां का अपमान हिंदुस्तान बर्दाश्त नहीं करेगा" लिखे बैनर और झंडे लहराते दिखे. राहुल गांधी ने बाद में कहा, “BJP और उसके समर्थक परेशान हैं क्योंकि हमने महाराष्ट्र, हरियाणा और उत्तर प्रदेश तक उनकी वोट चोरी पकड़ी है.” स्थानीय कांग्रेस नेता और पूर्व एमएलसी दीपक सिंह ने इसे “सिर्फ़ प्रचार का हथकंडा” कहा. दीपक सिंह ने दावा किया, "मंत्री का पद सम्मान का पद होता है, जिसे दिनेश प्रताप सिंह ने अब तक के सबसे निचले स्तर पर ला दिया है. वे उन चंद लोगों में से एक हैं जो पिछले साल देश में सबसे बड़े अंतर से लोकसभा चुनाव हार गए थे."

BJP अध्यक्ष को पत्र और पुलिस पर आरोप

इस विरोध के बाद दिनेश प्रताप सिंह ने BJP के राष्ट्रीय अध्यक्ष जेपी नड्डा को पत्र लिखकर रायबरेली पुलिस पर गंभीर आरोप लगाए. उन्होंने कहा कि पुलिस ने राहुल गांधी को खुश करने के लिए 70 किलोमीटर तक यातायात डायवर्ट किया, छोटे दुकानदारों को जबरन हटाया और BJP कार्यकर्ताओं के साथ दुर्व्यवहार किया. सिंह का दावा था कि उनका विरोध प्रदर्शन शांतिपूर्ण था. लेकिन पुलिस ने झंडे और माइक जब्त कर लिए और मारपीट की. उनके शब्दों में, “हम वैध और सम्मानजनक तरीके से प्रदर्शन कर रहे थे. लेकिन पुलिस ने हमारे कार्यकर्ताओं को अपमानित किया. यह अति-मेहमाननवाज़ी किसलिए थी?” 

राजनीतिक विश्लेषकों का मानना है कि यह पत्र दरअसल BJP के भीतर अपनी आवाज़ बुलंद करने की कोशिश है. लखनऊ विश्वविद्यालय के समाजशास्त्र विभाग के सहायक प्रोफेसर राजेश्वर कुमार कहते हैं, “दिनेश प्रताप सिंह का पूरा आधार कांग्रेस से निकला था. BJP में आने के बाद वे कोई नया वोट बैंक नहीं जोड़ पाए. अब मनोज पांडेय जैसे चेहरे के उभार से उनकी स्थिति और कमजोर हुई है. इसलिए उन्हें गांधी परिवार और पुलिस दोनों पर हमला करना पड़ा.” 

राहुल गांधी के इसी दौरे के दौरान 11 सितंबर को जिला विकास समन्वय एवं निगरानी समिति (दिशा) की बैठक भी हुई. इसकी अध्यक्षता राहुल कर रहे थे. बैठक के बीच में दिनेश प्रताप सिंह ने बोलना शुरू किया. राहुल ने कहा कि चर्चा अध्यक्ष की अनुमति से होनी चाहिए. सिंह ने पलटकर जवाब दिया, “जब लोकसभा में आप अध्यक्ष का कहना नहीं मानते तो मैं यहां उनका कहना मानने को बाध्य नहीं हूं.” यह टिप्पणी पूरे सभागार में तनाव पैदा कर गई. वीडियो सोशल मीडिया पर वायरल हुआ और BJP-कांग्रेस समर्थकों के बीच नई बहस छिड़ गई. 

मनोज पांडेय : BJP का नया दांव

“दिशा” की बैठक में ऊंचाहार से विधायक और हाल ही में BJP में आए मनोज पांडेय ने भी राहुल पर निशाना साधते हुए बाहर निकलने का फैसला किया. समाजवादी पार्टी के पूर्व नेता मनोज पांडेय को पार्टी के सिद्धांतों के विरुद्ध काम करने और राज्यसभा चुनाव में BJP का समर्थन करने के कारण पार्टी से निष्कासित कर दिया गया था. बाद में पत्रकारों से बात करते हुए, पांडे ने दावा किया कि उन्होंने बिहार में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मां के खिलाफ कथित अपमानजनक टिप्पणी का मुद्दा उठाया. 

मनोज पांडेय ने पत्रकारों से पूछा कि सांसद बनने के बाद से राहुल गांधी ने संसद में कितनी बार रायबरेली की आवाज उठाई है? उन्होंने राहुल को 2024 से रायबरेली के लिए किए गए अपने कार्यों को सूचीबद्ध करने की चुनौती दी. रायबरेली की राजनीति में सबसे बड़ा बदलाव मनोज पांडेय का BJP में आना है. वे कभी समाजवादी पार्टी के प्रमुख ब्राह्मण चेहरे थे और विधानसभा में सचेतक की जिम्मेदारी संभालते थे. लेकिन राज्यसभा चुनावों के दौरान उन्होंने BJP का समर्थन किया और सपा से निष्कासित कर दिए गए. 

पांडेय की ताक़त उनकी जातीय पकड़ है. रायबरेली में लगभग 18 फीसदी ब्राह्मण और 11 फीसदी राजपूत मतदाता हैं. यह तबका लंबे समय तक कांग्रेस के साथ रहा. BJP ने ब्राह्मण असंतोष की काट के लिए पांडेय को अपने पाले में किया. अब मनोज पांडेय के समर्थक आने वाले महीनों में यूपी सरकार के सभावित मंत्रिमंडल विस्तार में मनोज पांडेय को मंत्री बनाने की मांग कर रहे हैं. अगर ऐसा हुआ तो दिनेश प्रताप सिंह की राज्यमंत्री की कुर्सी खतरे में पड़ सकती है. राजनीतिक विश्लेषक और रायबरेली के एक इंटर कालेज में प्र‍िसिंपल विजय त्रिपाठी कहते हैं, “मोदी लहर के चरम पर भी मनोज पांडेय ने विधानसभा चुनाव प्रदेश में बड़े अंतर से जीता. यह उनके व्यक्तिगत जनाधार का सबूत है. अगर उन्हें मंत्री पद मिलता है तो रायबरेली में BJP की राजनीति पूरी तरह उनकी तरफ़ शिफ्ट हो जाएगी.”

इन सारे बदलाव को देखते हुए जुलाई में दिनेश प्रताप सिंह ने रायबरेली की जनता के नाम एक फेसबुक पोस्ट लिखा था. उसमें उन्होंने आलोचना से आहत होकर खुद को “नालायक” कहा और अपने संघर्षों की कहानी सुनाई. उनकी यह पोस्ट चर्चा में आई और इसे “आहत राजनीति” का नाम दिया गया. राजनीतिक जानकारों के मुताबिक यह भावनात्मक अपील दिनेश प्रताप सिंह की घटती लोकप्रियता का सबूत है. पार्टी के भीतर भी यह संदेश गया कि सिंह आलोचनाओं से दबाव महसूस कर रहे हैं. 

अदिति सिंह और पुराने घाव

रायबरेली की राजनीति में अदिति सिंह भी एक महत्वपूर्ण खिलाड़ी हैं. पिता अखिलेश सिंह की विरासत और कांग्रेस से BJP में उनका आना पार्टी को स्थानीय पहचान दिलाता है. लेकिन उनका मनोज पांडेय से रिश्ता बेहद जटिल है. अखिलेश सिंह पर मनोज पांडेय के भाई राकेश पांडेय की हत्या का आरोप था. मनोज इस मामले में जेल भी गए थे. ऐसे में दोनों परिवारों के बीच की खाई गहरी है. विजय त्रिपाठी कहते हैं, “रायबरेली में BJP के भीतर अदिति और मनोज का समीकरण मजबूरी का गठजोड़ हो सकता है, भरोसे का नहीं. BJP को अगर दोनों को साथ लाना है तो यह आसान काम नहीं होगा.” 

इस तरह रायबरेली में BJP नेताओं के तीन गुटों के बीच खींचतान मची है. पहला दिनेश प्रताप सिंह का गुट है जो गांधी परिवार के खिलाफ सबसे मुखर, लेकिन लगातार चुनावी हार से कमजोर हुआ है. दूसरा, मनोज पांडेय का गुट है जो ब्राह्मण वोट बैंक और जमीनी पकड़ के लिए जाना जाता है. तीसरा BJP की रायबरेली सदर से विधायक अदिति सिंह का गुट है. इन तीनों गुटों की खींचतान से पार्टी के लिए एकजुटता मुश्किल हो रही है. 2024 के चुनाव में हार की एक बड़ी वजह यही मानी गई.

कांग्रेस की स्थिति और राहुल गांधी की रणनीति

कांग्रेस ने 2024 में रायबरेली सीट भारी बहुमत से जीतकर अपनी पकड़ साबित कर दी. राहुल गांधी का यहां सक्रिय रहना पार्टी के लिए मनोबल बढ़ाने वाला है. उन्होंने दो दिवसीय दौरे में जिला योजनाओं की निगरानी पर जोर दिया और अधिकारियों से सख्त सवाल किए. रायबरेली का चुनावी गणित जातीय समीकरण से तय होता है. यहां ब्राह्मण और राजपूत मिलाकर लगभग 30 फीसदी मतदाता हैं. कांग्रेस का पारंपरिक वोट बैंक अभी भी मजबूत है, लेकिन BJP ब्राह्मण कार्ड खेलकर इस पकड़ को तोड़ना चाहती है. लेकिन रायबरेली की राजनीति इस समय BJP की गुटबाजी में उलझी है. गांधी परिवार की पकड़ बरकरार है. 

BJP को अगर यहां कांग्रेस से मुकाबला करना है तो पहले अपने तीन गुटों को साधना होगा. राजनीतिक विश्लेषक राजेश्वर कुमार कहते हैं, “अगर BJP अगले विधानसभा चुनाव से पहले रायबरेली में एक चेहरा तय नहीं करती, तो कांग्रेस की पकड़ और मजबूत होगी. दिनेश प्रताप सिंह की राजनीति अब बचाव मोड में है. उनका भविष्य इस पर निर्भर करता है कि वे पार्टी के भीतर खुद को कितनी देर तक प्रासंगिक बनाए रख पाते हैं.” वहीं राहुल गांधी की सक्रियता और BJP की आंतरिक कलह ने कांग्रेस को बढ़त दी है. 2027 का विधानसभा चुनाव और 2029 का लोकसभा चुनाव तय करेंगे कि क्या BJP रायबरेली में अपने लिए नई जमीन तैयार कर पाएगी या फिर यह सीट गांधी परिवार की “अजेय गढ़” बनी रहेगी.

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