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अयोध्या के दीपोत्सव से विश्व रिकॉर्ड तो बनेगा लेकिन इसका कारोबार पर कितना असर?

अयोध्या में इस बार नौंवा दीपोत्सव आयोजित होगा और इसके साथ फिर नया रिकॉर्ड बनने वाला है

दीये तैयार करते कारीगर
अपडेटेड 14 अक्टूबर , 2025

योगी आदित्यनाथ सरकार के नेतृत्व इस बार अयोध्या में नौवां दीपोत्सव होने जा रहा है और इसे अब तक का सबसे भव्य और ऐतिहासिक आयोजन बताया जा रहा है. सरयू नदी के किनारे 56 घाटों पर इस बार 28 लाख दीपों का प्रकाश फैलाया जाएगा. 

पहले यह संख्या 26 लाख तय की गई थी, लेकिन सरकार ने इसे बढ़ाकर एक नया विश्व रिकॉर्ड स्थापित करने का लक्ष्य रखा है. विश्व रिकॉर्ड का अपना प्रतीकात्मक महत्व तो है, लेकिन असल बात है कि लोगों की असल जिंदगी पर इसका कितना असर होगा.

मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ 19 अक्टूबर को खुद दीप प्रज्ज्वलन कर दीपोत्सव की शुरुआत करेंगे. यह एक बड़ा और बेहद अनोखा आयोजन है, जाहिर है कि इसके साथ पर्यटन भी जुड़ा ही है और यहीं यह आम लोगों की जिंदगी पर असर डालता है. 

दरअसल बीते सालों के दौरान आयोजित हुए दीपोत्सवों ने अयोध्या को धार्मिक पर्यटन के वैश्विक नक्शे पर ला खड़ा किया है. उत्तर प्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम (यूपीएसटीडीसी) ने इस साल लखनऊ से अयोध्या तक एकदिवसीय विशेष पैकेज शुरू किया है. उत्तर प्रदेश राज्य पर्यटन विकास निगम (यूपीएसटीडीसी) बसों से 19 अक्टूबर को पर्यटकों को लेकर लखनऊ जाएगा और वहां दीपोत्सव और अन्य मंदिरों के दर्शन कराकर उसी दिन रात में लखनऊ लौट आएगा. इसके लिए सभी बसें बुक हो चुकी हैं जिससे पर्यटकों के उत्साह का अंदाजा लगाया जा सकता है.

पर्यटन मंत्री डॉ. जयवीर सिंह ने बताया, “दीपोत्सव सिर्फ एक उत्सव नहीं, यह एक भावना है. यह आयोजन लोगों को आस्था और प्रकाश के माध्यम से जोड़ता है और उत्तर प्रदेश को विश्व पर्यटन का केंद्र बनाने की दिशा में अहम कदम है.” इस यात्रा में स्थानीय गाइड यात्रियों को भगवान राम से जुड़ी कथाएं सुनाएंगे. पिछले वर्षों में इस यात्रा में परिवारों और वरिष्ठ नागरिकों की बड़ी भागीदारी रही है. 

इस बार रिकॉर्ड बुकिंग हो चुकी है. अयोध्या के व्यापारी भी दीपोत्सव को लेकर उत्साहित हैं. सरयू घाट के पास मिठाई की दुकान चलाने वाले राजेश गुप्ता कहते हैं, “दीपोत्सव के हफ्तेभर पहले से इतनी भीड़ रहती है कि दुकानें रात-दिन चलती हैं. होटल, ऑटो, नाविक- सभी को काम मिलता है. अयोध्या में यह अब त्योहार नहीं, आर्थिक उत्सव बन गया है.” राजेश के मुताबिक अकेले दीपोत्सव में उनकी आमदनी एक हफ्ते की कुल आमदनी से अधिक होती है. प्रशासनिक अनुमान के मुताबिक दीपोत्सव में कम से कम पांच लाख लोग आसपास के जिलों से अयोध्या में जुटते हैं. अगर आने जाने और अयोध्या में रहने खाने पर प्रति व्यक्त‍ि औसतन 1000 रुपए भी खर्च कर रहा है तो अकेले एक दिन कम से कम 50 करोड़ रुपए अतिरिक्त खर्च होते हैं. इससे स्थानीय अर्थव्यवस्था को मजबूती मिलती है. 

इस साल दीपोत्सव में 75,000 लीटर तेल और 55 लाख रुई की बत्तियों की जरूरत होगी. डॉ. राममनोहर लोहिया अवध विश्वविद्यालय, अयोध्या दीपोत्सव का नोडल संस्थान है. विश्वविद्यालय ने प्रो. संत शरण मिश्र के निर्देशन में 22 समितियां बनाई गई हैं. इनमें दीप गणना, सुरक्षा, यातायात, स्वच्छता, मीडिया, रंगोली और अनुशासन समितियां शामिल हैं. 

करीब 30 हजार स्वयंसेवक दीये जलाने से लेकर घाटों की सजावट तक के काम में जुटे हैं. प्रशासनिक अधिकारी मानते हैं कि इतनी बड़ी संख्या में दीयों को एक साथ प्रज्ज्वलित करना किसी युद्ध जैसी तैयारी मांगता है. इस बार अयोध्या में दीपोत्सव की तैयारियों में ही 100 करोड़ रुपए से ज्यादा खर्च हुए हैं. जाहिर है कि इस पैसा का भी एक बड़ा हिस्सा स्थानीय अर्थव्यवस्था में लगा है.

सांस्कृतिक, कूटनीति और राजनीतिक संदेश

दीपोत्सव अब एक राजनीतिक प्रतीक भी बन चुका है. अयोध्या में दीपोत्सव से ठीक पहले योगी सरकार ने राममंदिर के पास टेढ़ी बाजार चौराहे का नाम बदलकर निषाद चौराहा कर दिया है. साथ ही राम मंदिर में बने वाल्मीकि मंदिर की दीवार में ताम्रपत्र में वाल्मीकि का जीवनवृत्त उकेरा गया है. 

इस तरह योगी सरकार ने दीपोत्सव की तैयारियों के जरिए पिछड़ा और दलित समाज को भी संदेश देने की कोशिश की है. राजनीतिक विश्लेषक और अयोध्या के प्रतिष्ठ‍ित साकेत कालेज के पूर्व प्राचार्य वी. एन. अरोरा कहते हैं, “दीपोत्सव अब यूपी सरकार की ब्रांडिंग का हिस्सा है. यह आयोजन बीजेपी के सांस्कृतिक राष्ट्रवाद की उस धारणा को पुष्ट करता है, जिसमें धर्म, संस्कृति और विकास- तीनों एक सूत्र में बंधे हैं.” 

विपक्ष हालांकि इसे सरकार की “राजनीतिक रंगत” देने की कोशिश बताता है. अयोध्या से सपा के पूर्व विधायक पवन पांडेय बताते हैं, “अयोध्या आस्था का केंद्र है, लेकिन सरकार इसे सियासी मंच बना रही है. दीपोत्सव को जनभागीदारी से ज्यादा प्रशासनिक तमाशे में बदला जा रहा है. दीपोत्सव से पहले अयोध्या की गलियों और सड़कों में आवाजाही पर पाबंदी लग जाती है जिससे स्थानीय लोग त्योहार की खरीददारी नहीं कर पाते. ऐसे में पिछले कई वर्षों से अयोध्या के स्थानीय लोग दीपावली का त्योहार ठीक से नहीं मना पा रहे हैं.” 

हालांकि प्रशासन इस आलोचना को खारिज करता है. अयोध्या में तैनात एक अपर जिलाधिकारी बताते हैं, “दीपोत्सव में तो स्थानीय लोगों की सबसे ज्यादा भागीदारी होती है. सड़कों पर कोई पाबंदियां नहीं होती बल्क‍ि ट्रैफिक के दबाव को कम करने के लिए कुछ डायवर्जन होते हैं.” 

दीपोत्सव के सामाजिक प्रभाव भी कम नहीं हैं. इस आयोजन में हर वर्ग के लोग शामिल होते हैं- स्थानीय छात्र, महिलाएं, स्वयंसेवी संगठन और छोटे कारोबारी. अयोध्या की गलियों में महिलाएं दीप सजाती दिखती हैं, जबकि कॉलेज के छात्र रंगोली बनाते हैं. 

यह आयोजन अयोध्या की सामाजिक बुनावट में भी एक नई एकता का भाव भर रहा है. शहर के मुस्लिम कारीगर भी दीपोत्सव की तैयारी में जुड़े हैं. हनुमानगढ़ी के पास की गली में मिट्टी के दीप बनाने वाले सलीम अंसारी कहते हैं, “हम सालों से दीये बना रहे हैं. अब सरकार का ऑर्डर मिलने से काम बढ़ा है. अयोध्या हमारी भी है, त्योहार सबका है.” इतनी बड़ी संख्या में दीप जलाने के साथ पर्यावरणीय चिंता भी उठी है. हालांकि प्रशासन ने इस बार पर्यावरण-मित्र मिट्टी के दीप और बायोडिग्रेडेबल तेल का उपयोग सुनिश्चित किया है. दीपोत्सव के बाद घाटों की सफाई के लिए स्वच्छता समिति बनाई गई है.

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