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सिरप की बोतलों से कैसे पनपा कोडीन तस्करी का सिडिकेट जो यूपी से लेकर कई राज्यों में फैला है!

उत्तर प्रदेश के फूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन की जांच ने कफ सिरप सप्लाई चेन की आड़ में कोडीन तस्करी के करोड़ों रुपए के डाइवर्जन नेटवर्क को उजागर किया है

Cough Syrup syndicate
प्रतीकात्मक तस्वीर
अपडेटेड 8 दिसंबर , 2025

यह पूरा मामला एक मामूली-सी ज़ब्ती से शुरू हुआ था. 18 अक्टूबर को सोनभद्र में कफ सिरप की एक रेगुलर खेप पकड़ी गई. दिखने में यह रूटीन केस था, जैसा फूड सेफ्टी एंड ड्रग एडमिनिस्ट्रेशन (FSDA) की टीमें अक्सर देखती हैं. लेकिन जब अधिकारियों ने कागजों से इतर जाकर ज़मीन पर पड़ताल करने की कोशिश की, तो उन्हें एहसास हुआ कि यह मामला साधारण नहीं है. 

जांच आगे बढ़ी तो सामने आया कि फार्मास्यूटिकल सप्लाई चेन की आड़ में कोडीन से बने कफ सिरप का करोड़ों रुपये का एक इंटरस्टेट सिंडिकेट खड़ा था, जो उत्तर प्रदेश से लेकर झारखंड, हिमाचल प्रदेश, मध्य प्रदेश, नेपाल और बांग्लादेश तक फैला हुआ था.

शुरुआती जांच का श्रेय FSDA की टीमों को गया, जिसने विभाग की सेक्रेटरी और कमिश्नर रोशन जैकब के निर्देश पर “पेपर पर सही दिखते” स्टॉकिस्‍टों और ट्रांसपोर्ट चेन को असल में जाकर परखना तय किया. सुराग बता रहे थे कि कोडीन, जो एक नशीला पदार्थ है और जिसे दवाओं में बेहद सीमित मात्रा में इस्तेमाल किया जाता है, उसे व्यापक पैमाने पर गैर-कानूनी नेटवर्क में डायवर्ट किया जा रहा था. 

सवाल यह था कि यूपी में कौन इतनी बड़ी मात्रा में कफ सिरप लाकर बेच रहा है, जबकि राज्य में इसे मिलाकर कफ सिरफ बनाने की अनुमति का लाइसेंस किसी दवा फैक्ट्री के पास नहीं है. टीमों ने सबसे पहले कोडीन के कोटे की जानकारी जुटाने के लिए ग्वालियर में नारकोटिक्स ब्यूरो का रुख किया. वहां पता चला कि कोडीन सिर्फ दो जगह बनता है, गाजीपुर और नीमच. 

अधिकारियों को लगा कि कोडीन के डायवर्जन का कोई भी रास्ता सप्लाई चेन के बीच के स्तरों पर पैदा हो रहा होगा. यह भी सामने आया कि कोडीन-बेस्ड कफ सिरप हिमाचल के पांवटा साहिब और बद्दी में बनते हैं. यही वह पहला लिंक था जिसके सहारे टीमें हिमाचल पहुंचीं और वहां की फैक्ट्रियों के रिकॉर्ड खंगाले.

हिमाचल के रिकॉर्ड ने जांच का असली रास्ता खोला. कौन सी कंपनियां यूपी के लिए स्टॉक रख रही थीं, किस मार्केटिंग कंपनी को कितना माल भेजा जा रहा था और यह स्टॉक किस रास्ते से डिस्ट्रिब्यूटरों तक पहुंच रहा था, एक-एक डिटेल सामने आती गई. दो कंपनियां ऐसी मिलीं जो अलग-अलग ब्रांड नाम से उसी कोडीन सिरप को मार्केट में भेज रही थीं. FSDA ने उनके क्लीयरिंग एंड फार्वर्डिंग एजेंट, गोदाम और सभी दस्तावेज खंगाले. फिर ट्रेल आगे बढ़ा जिलों के डिस्ट्रीब्यूटर, सब-स्टॉकिस्ट और होलसेलर तक. 
40 जिलों में ड्रग इंस्पेक्टर भेजे गए. यहीं से खेल खुलने लगा. 

करीब आधे स्टॉकिस्ट अपने बिक्री रिकॉर्ड दिखा नहीं सके. कोडीन युक्त कफ सिरफ समेत सभी दवाएं डॉक्टर की पर्ची के बिना नहीं बेची जा सकतीं. कई सब-स्टॉकिस्ट यह साबित नहीं कर पाए कि माल आखिर गया कहां. दस्तावेजों के “गायब होने” ने पहला ठोस लिंक दिया, पीलीभीत, पूरनपुर, लखीमपुर खीरी और बहराइच होते हुए नेपाल सीमा तक जाने वाला रास्ता. अधिकारियों की पूछताछ में कई स्टॉकिस्‍टों ने स्वीकार किया कि माल को सरहद के पार भेजा जाता था, जहां उससे अवैध अफीम और सिंथेटिक दवाओं का नेटवर्क चलता है.

जांच में शामिल एक अधिकारी बताते हैं, “एक और अंतर सामने आया, होलसेल दवा लाइसेंस लेने के लिए न फार्मासिस्ट की जरूरत थी, न दुकान के फिजिकल वेरिफिकेशन की. सिर्फ एक “एक्सपीरियंस सर्टिफिकेट” काफी था, जिन्हें बाद में टीमों ने पाया कि कई मामलों में स्टॉकिस्ट एक-दूसरे को फर्जी तरीके से जारी करते थे. वह पूरा ढांचा ही कागज पर सही और जमीन पर फर्जी था.” 

जांच जब तेज हुई तो पहली बार FSDA ने “नारकोटिक ड्रग्स एंड साइकोट्रोपिक सब्सटेंस” (NDPS) एक्ट के तहत केस दर्ज किए. और गलत रिकॉर्ड वाले मामलों में भारतीय न्याय संहिता (BNS) के तहत FIR की गईं. सामान्य प्रशासनिक कार्रवाई से हटकर यह आपराधिक कार्रवाई थी, जिसने पूरे नेटवर्क में हलचल मचा दी. इसी दौरान एक चौंकाने वाली जानकारी सामने आई कि रांची की एक फर्म शैली ट्रेडर्स ने 2024 में 100 करोड़ रुपये का कफ सिरप बेचा था. यह आंकड़ा असामान्य था और सीधे-सीधे बताता था कि यह कारोबार दवाओं का नहीं, पैसा बनाने का था. 

जब खरीद रिकॉर्ड ट्रैक किया गया तो टीम वाराणसी पहुंची, जहां शैली ट्रेडर्स ने 22 होलसेल लाइसेंसधारकों को स्टॉक सप्लाई किया था. यहीं से जांच शुभम जायसवाल तक जा पहुंची. पता चला कि रांची की फर्म उसके पिता भोला प्रसाद जायसवाल की है. शुभम के लाइसेंस दस्तावेजों में भी पिता का नाम दर्ज था, जिससे यह कनेक्शन साफ हो गया. गाजियाबाद के आरोपी सौरभ त्यागी ने भी अपने बयान में शुभम का नाम लिया.

शुभम जायसवाल (दाएं) और उसका पिता भोला प्रसाद (बाएं)
शुभम जायसवाल (दाएं) और उसका पिता भोला प्रसाद (बाएं)

इसके बाद FSDA ने शैली ट्रेडर्स, गाजियाबाद के पेपरलेस लेनदेन और पुरानी FIR को मिलाकर 70 हाई-रिस्क स्टॉकिस्ट पहचाने. जिनमें से 36 के खिलाफ नवंबर में FIR दर्ज कर दी गई. वाराणसी में टीमों ने पाया कि कई “होलसेलर” जिनके नाम पर लाखों की दवा चलती थी, उनके पास न ऑफिस था, न गोदाम, न स्टॉक. कुछ लोग अपने ड्राइंग रूम से कारोबार करते मिले, कुछ बेडरूम से. कई ने कहा कि वे सिर्फ ऑर्डर बुक करते थे और हर बोतल पर कमीशन लेते थे. जब रोशन जैकब खुद एक जगह पहुंचीं तो “फर्म” सिर्फ एक खुली जगह में कुर्सी-टेबल पर चलती मिली. मालिक ने स्वीकार किया कि उसका पूरा धंधा शुभम जायसवाल के इशारे पर चलता था. जांच से साफ पता चल रहा था कि यूपी में एक फर्जी सप्लाई चेन बनाई गई थी, जिसमें असली माल कहीं नहीं दिखता था, लेकिन कागजों पर वह करोड़ों में चलता था.

कोडीन कफ सिरप का काले धंधा के सामने आने के बाद FSDA ने होलसेल लाइसेंसिंग सिस्टम में बड़े बदलाव का फैसला किया है. इस बार कानूनी प्रक्रिया को इतना सख्त बनाने की तैयारी है कि अदालत में उसे चुनौती न दी जा सके. इसी बीच जांच जब वित्तीय ट्रेल तक पहुंची तो मामला एनफोर्समेंट डायरेक्टरेट (ED) तक पहुंचना तय था. 2 दिसंबर को ED ने कथित सरगना शुभम जायसवाल और कई अन्य लोगों के खिलाफ प्रिवेंशन ऑफ मनी लॉन्ड्रिंग एक्ट (PMLA) के तहत केस दर्ज कर दिया. अब जांच उस पैसे की है जिसे सिरप बेचकर कमाया गया, पैसों को किन खातों में भेजा गया, किन फर्जी कंपनियों में घुमाया गया और कहीं इसका विदेशी लिंक तो नहीं. 

ED को शक है कि इस धंधे से करोड़ों रुपये कमाए गए. लेयरिंग, फर्जी अकाउंट, फर्जी कंपनियां और कैश, यह पूरा नेटवर्क नशे के कारोबार की क्लासिक तस्वीर पेश करता है. ED ने शुभम के वाराणसी वाले घर पर नोटिस चिपकाया है और उसे 8 दिसंबर को पेश होने के लिए बुलाया है. लेकिन पुलिस कार्रवाई शुरू होने से पहले ही यह खबर आई कि शुभम दुबई में भाग चुका है. उसके पिता भोला प्रसाद की गिरफ्तारी कोलकाता एयरपोर्ट से हुई है. इस बीच शुभम का एक वीडियो सोशल मीडिया पर आया और इसके बाद पुलिस संभावना जता रही है कि वह दिल्ली में ही कहीं छिपा है. उसके साथ ही फिलहाल STF अब इस नेटवर्क से जुड़े हर व्यक्ति को पकड़ने की कोशिश कर रही है. 

ED के नोटिस में साफ कहा गया है कि पेश न होने पर शुभम के खिलाफ PMLA और BNS की धाराओं के तहत सख्त कार्रवाई होगी. यह संदेश सिर्फ शुभम के लिए नहीं, बल्कि उस पूरे नेटवर्क के लिए है जिसने वर्षों से कानूनी दवाओं की आड़ में अवैध मुनाफे का कारोबार चलाया. PMLA केस कई FIR पर आधारित है, जिसमें सोनभद्र की FIR भी शामिल है. यही जांच थी जिसने शैली ट्रेडर्स, फर्जी होलसेलर, मार्केटिंग फर्म, शैडो स्टॉकिस्ट, नेपाल बॉर्डर और पूर्वी भारत तक फैले रैकेट का चेहरा सामने रखा. अब तक की बड़ी गिरफ्तारियों में भोला प्रसाद, अमित सिंह “टाटा” और बर्खास्त पुलिस कांस्टेबल आलोक प्रताप सिंह शामिल हैं.

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