इन दिनों उत्तर प्रदेश के ऊर्जा मंत्री ए.के. शर्मा खूब सुर्खियां बटोर रहे हैं. दरअसल उत्तर प्रदेश में पटरी से उतर चुकी बिजली व्यवस्था योगी आदित्यनाथ की सरकार के लिए सिरदर्द बनती जा रही है. प्रदेश के कई जिलों में बिजली कटौती के विरोध में प्रदर्शन हो रहे हैं वहीं प्रदेश के ऊर्जा मंत्री ए.के. शर्मा और बिजली कर्मचारियों, खासकर बिजली विभाग में निजीकरण का विरोध कर रहे यूनियन नेताओं के बीच टकराव भी बढ़ता जा रहा है.
इसी टकराव के बीच 28 जुलाई को ऊर्जा मंत्री के कार्यालय की तरफ से सोशल मीडिया प्लेटफार्म “एक्स” पर की गई एक पोस्ट ने मामले को और तूल दे दिया है. इसमें आरोप लगाया गया है कि 'निहित स्वार्थी तत्वों' ने उनके खिलाफ हाथ मिला लिया है. इस हवाले से उनके ऑफिस से एक प्रेस रिलीज भी जारी की गई.
इस पोस्ट का लुब्बे-लुबाब है कि बिजली कर्मचारियों के वेश में उपद्रवी तत्व शर्मा को निशाना बना रहे हैं क्योंकि उन्होंने कर्मचारी संघ के दबाव के आगे घुटने नहीं टेके. इसमें कहा गया है कि कई हड़तालों और उन पर व्यक्तिगत हमलों के बावजूद, शर्मा ने संयम से काम लिया है. पोस्ट में कहा गया है, "ऊर्जा मंत्री श्री ए.के. शर्मा के खिलाफ सुपारी लेने वालों में बिजली कर्मचारियों के वेश में कुछ उपद्रवी तत्व भी शामिल हैं." पोस्ट में निजीकरण के आरोपों पर भी मंत्री का बचाव किया गया है और स्पष्ट किया गया है कि यह निर्णय राज्य स्तर पर एक टास्क फोर्स द्वारा लिया गया था, न कि अकेले शर्मा द्वारा.
प्रदेश में बिजली आपूर्ति से जुड़े मुद्दों पर ऊर्जा मंत्री ए. के. शर्मा के अचानक सार्वजनिक आक्रोश के पीछे की वजहों को लेकर अटकलें भी शुरू हो गई हैं. हाल ही तक, शर्मा राज्य की बिजली कंपनी और उसके कर्मचारियों की दिल खोलकर प्रशंसा करने के लिए जाने जाते थे. लगभग एक महीने पहले, 13 जून को, शर्मा ने ऊर्जा विभाग के कर्मचारियों के कामों की सार्वजनिक रूप से सराहना की थी. शर्मा ने सोशल मीडिया प्लेटफार्म “एक्स” पर लिखा था- "हमारे सभी अधिकारी और कर्मचारी पूरी लगन और प्रतिबद्धता के साथ काम कर रहे हैं." उन्होंने पुराने तारों को बदलने, ट्रांसफ़ॉर्मरों को अपग्रेड करने और "युद्धस्तर" पर लाइन रखरखाव के प्रयासों पर ज़ोर भी दिया था. उन्होंने अपनी पोस्ट को प्रधानमंत्री, मुख्यमंत्री और बीजेपी के शीर्ष नेतृत्व को भी टैग किया और बिजली विभाग को "नया भारत, नया उत्तर प्रदेश" के विज़न में अग्रणी योगदानकर्ता बताया था.
अब अचानक ऊर्जा मंत्री ए. के. शर्मा के सुर में बदलाव के पीछे क्या कुछ और भी है, जो दिखने में नहीं दिख रहा है, क्योंकि इस धारणा को लेकर भ्रम बढ़ रहा है कि विभाग में असल में सत्ता किसके हाथ में है. ऊर्जा मंत्री ए. के. शर्मा ने 23 जुलाई को शक्ति भवन, जहां यूपी पॉवर कार्पोरेशन (यूपीपीसीएल) का दफ्तर है, में विभाग के इंजीनियरों और अधिकारियों के साथ बैठक की थी. बैठक शुरू होते ही मंत्री ने अपना गुस्सा ज़ाहिर किया और अधिकारियों को डांटना शुरू कर दिया.
यूपीपीसीएल के अध्यक्ष आशीष गोयल से लेकर जूनियर इंजीनियरों तक, किसी को भी नहीं बख्शा गया. शर्मा ने बैठक में मौजूद लोगों को सख्त चेतावनी देते हुए कहा, "यह बकवास बंद करो, मैं यहां तुम्हारे झूठ सुनने नहीं आया हूं. बिजली विभाग ने जनता पर अत्याचार शुरू कर दिया है. तुम अंधे, बहरे और गूंगे हो गए हो. तुम्हें अंदाज़ा भी नहीं है कि जनता क्या झेल रही है."
बैठक के तीन दिन बाद 26 जुलाई को, अपने आरोपों को पुष्ट करने के लिए, शर्मा के कार्यालय ने बस्ती के एक अधीक्षण अभियंता (एसई) और एक सेवानिवृत्त एडिशनल कमिश्नर के बीच एक हफ़्ते पुरानी टेलीफ़ोन पर हुई बातचीत का एक ऑडियो क्लिप जारी किया. इस क्लिप में, एसई बस्ती में रह रहे एक उपभोक्ता (एक सेवानिवृत्त सरकारी अधिकारी) के साथ दुर्व्यवहार करते हुए सुनाई दे रहे हैं, जिसने बस अपने इलाके में बार-बार बिजली गुल होने की शिकायत करने के लिए फ़ोन किया था. इस ऑडियो रिलीज़ को बिजली कर्मचारियों व अधिकारियों और ऊर्जा मंत्री के बीच बढ़ती रस्साकशी की श्रृंखला की एक कड़ी माना जा रहा है.
राजनीतिक विश्लेषक ऊर्जा मंत्री ए. के. शर्मा के अचानक बिजली कर्मचारियों और अधिकारियों के प्रति बेहद नाराजगी भरे रवैये को एक झुंझलाहट के रूप में देख रहे हैं. लखनऊ के इस्लामिया कालेज में सामाजिक शास्त्र विभाग के प्रवक्ता रहे अजीजुल हलीम कहते हैं, “बिजली कर्मचारियों और अधिकारियों के खिलाफ ऊर्जा मंत्री की टिप्पणियां विभागीय कामकाज के प्रति नाराजगी से ज्यादा योगी सरकार में आंतरिक सत्ता संघर्ष को ज्यादा जाहिर कर रही हैं. ये कुछ वैसा ही है जैसा कि हाल में दूसरे विभाग के कुछ मंत्रियों ने अपने तरह से विभागीय कामकाज पर सवाल खड़े किया थे. इसे सीमित शक्तियों वाले मंत्रियों और उनके नियंत्रण से बाहर एक नौकरशाही व्यवस्था के बीच द्वंद के रूप में भी देखा जाना चाहिए.”
ऊर्जा मंत्री के करीबी मानते हैं कि गुजरात कैडर के पूर्व आईएएस अधिकारी ए. के. शर्मा, जिन्हें प्रधानमंत्री मोदी का करीबी माना जाता है, योगी आदित्यनाथ के नेतृत्व वाली व्यवस्था में कभी अपनी जगह नहीं बना पाए. मुख्यमंत्री ऊर्जा जैसे प्रमुख विभागों पर, खासकर नौकरशाही नियुक्तियों और तबादलों के मामले में, कड़ा नियंत्रण रखते हैं. शर्मा, मंत्री होने के बावजूद, वरिष्ठ अधिकारियों को नहीं बदल सकते. ऊर्जा मंत्री के कार्यालय द्वारा सोशल मीडिया प्लेटफार्म “एक्स” पर 28 जुलाई की पोस्ट में भी यह ‘लाचारी’ जाहिर हुई थी. इसमें लिखा था, “जब ऊर्जा मंत्री एक जेई का ट्रांसफर नहीं करता तो निजीकरण का इतना बड़ा निर्णय अकेले कैसे कर सकता है.” अजीजुल हलीम के मुताबिक ऊर्जा मंत्री ए. के. शर्मा के हालिया बयान प्रशासनिक रूप से सक्षम न होने के साथ-साथ बिजली आपूर्ति संकट और निजीकरण के लिए सार्वजनिक रूप से जवाबदेह ठहराए जाने से बढ़ती निराशा को ही जाहिर कर रहे हैं.
हालांकि शर्मा के करीबी भूमिहार राजनीति में दबदबे को लेकर भी कुछ नाराज हैं. शर्मा के एक करीबी बताते हैं, “मंत्री जी (ए. के.शर्मा) को बैलेंस करने के लिए मुख्यमंत्री योगी भूमिहार बिरादरी से आने वाले कृषि मंत्री सूर्य प्रताप शाही को ज्यादा तवज्जो दे रहे हैं, जो कभी उनके विरोधी भी थे.” हालांकि अपने गृह जिले मऊ में ए. के. शर्मा के तेवर कुछ अलग ही दिखाई देते हें. पूर्वांचल में भूमिहार सामाज की अच्छी तादात है और शर्मा अपनी बिरादरी को यह संदेश नहीं देना चाहते कि शासन प्रशासन में उनकी पकड़ कुछ कमजोर है.
28 जुलाई की पोस्ट में भले ही शर्मा के जेई के तबादले की हैसियत न रखने का जिक्र था लेकिन उससे पहले 24 जुलाई को शर्मा ने अपने गृह ज़िले मऊ में एक जनसभा को संबोधित करते हुए बिजली विभाग के अधिकारियों को चेतावनी दी और ज़ोर देकर कहा था कि अगर वे अपनी असली शक्तियों का इस्तेमाल करने लगे, तो कोई भी उन्हें बचा नहीं पाएगा. शर्मा ने कहा था, "अगर बिजली विभाग के अधिकारी सोचते हैं कि मंत्री जी उनका तबादला या निलंबन नहीं कर सकते, तो यह समझ लें - अगर मैं भगवान राम की तरह तीर छोड़ दूं, तो उन्हें बचाने वाला कोई नहीं बचेगा, यहां तक कि दिल्ली स्थित राष्ट्रपति भवन तक भी नहीं."
इस तरह हाल के दिनों में राज्य के विभिन्न हिस्सों से जनता और उनके प्रतिनिधियों से बिजली कटौती और ट्रिपिंग की लगातार मिल रही शिकायतें ही मंत्री के परेशान होने का एकमात्र कारण नहीं हैं. ऊर्जा मंत्री के बयानों में दौड़ रहे ‘करंट’ के तार अंदरूनी सत्ता संघर्ष से भी जुड़ रहे हैं. इस बीच कर्मचारी नेताओं ने मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ से बिजली विभाग की कमान अपने हाथ में लेने की मांग करके ऊर्जा मंत्री पर सीधा निशाना भी ताना है. यह देखना दिलचस्प होगा कि इस मांग पर बिजली मंत्री कैसी प्रतिक्रिया देते हैं?