उत्तर प्रदेश में शिक्षकों की भर्तियों को पारदर्शी और व्यवस्थित ढंग से संपन्न कराने के लिए मार्च 2024 में गठित किया गया “उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग” शुरुआत से ही विवादों में घिरा रहा है. गठन के डेढ़ साल बीतते ही आयोग की पहली पूर्णकालिक अध्यक्ष प्रोफेसर कीर्ति पांडेय का इस्तीफा इस बात का प्रमाण है कि यह संस्था अभी अपने पैर नहीं जमा पाई है. सवाल उठ रहा है कि आखिरकार इस आयोग का भविष्य क्या होगा और लाखों अभ्यर्थियों की आशाओं पर खरा उतरना कब संभव होगा.
“उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग” का गठन 15 मार्च 2024 को किया गया था. उसी दिन सभी 12 सदस्यों ने कार्यभार ग्रहण किया. इससे पहले तक शिक्षक भर्तियां अलग-अलग बोर्डों और संस्थाओं के जरिये होती थीं, जिन पर लगातार पारदर्शिता के सवाल उठते रहे. नई संस्था के गठन से उम्मीद थी कि बेसिक से लेकर माध्यमिक और उच्च शिक्षा तक सभी स्तर पर शिक्षकों की नियुक्तियां अब एक ही छत के नीचे और पारदर्शी ढंग से होंगी.
गोरखपुर विश्वविद्यालय की कला संकाय की डीन प्रोफेसर कीर्ति पांडेय को 5 सितंबर 2024 को आयोग का पहला पूर्णकालिक अध्यक्ष नियुक्त किया गया. शुरुआत से ही आयोग से 2022 की अधूरी भर्तियों को पूरा करने और नई भर्तियों का रास्ता खोलने की उम्मीद थी. लेकिन मार्च 2024 से सितंबर 2025 तक की कार्यवाही ने यह साफ कर दिया कि नीतिगत और प्रशासनिक स्तर पर यह आयोग लगातार हिचकोले खा रहा है.
भर्तियों पर उठते रहे सवाल
आयोग को सबसे पहले 2022 की प्रशिक्षित स्नातक शिक्षक (टीजीटी) और प्रवक्ता (पीजीटी) संवर्ग के 4163 पदों पर भर्ती करानी थी. लेकिन इस भर्ती का हाल ऐसा रहा कि तीन-तीन बार परीक्षा की तिथि घोषित हुई और हर बार स्थगन की खबर आई. पीजीटी परीक्षा 18-19 जून को प्रस्तावित थी, लेकिन परीक्षा से एक सप्ताह पहले तक प्रवेश पत्र जारी नहीं हुए. स्थगन की औपचारिक सूचना तक नहीं दी गई. नाराज अभ्यर्थियों ने आयोग का घेराव किया तो अगस्त के अंतिम सप्ताह तक नई तारीख तय करने की बात कही गई. यह मामला छात्रों का भरोसे मजबूत करने के बजाय और कमजोर करता चला गया. लखनऊ की एक प्रतियोगी छात्रा प्रीति कहती हैं, “हमने दो साल से तैयारी की है. तीन बार तारीखें बदली गईं, लेकिन परीक्षा अब भी अधर में है. आयोग पर भरोसा कैसे करें.”
वर्ष 2022 की असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती में 910 पदों पर विज्ञापन संख्या 51 के तहत परीक्षा कराई गई. 16-17 अप्रैल को यह परीक्षा हुई, लेकिन उसकी पारदर्शिता पर तुरंत सवाल खड़े हो गए. शासन ने मामले को संभालने के लिए चार सदस्यीय समिति गठित कर दी. 4 सितंबर को आयोग ने परिणाम घोषित किया और 25 सितंबर से साक्षात्कार की तिथि तय की. लेकिन यहां भी गड़बड़ी सामने आई. कई विषयों के कटऑफ अंकों को लेकर छात्रों ने धांधली के आरोप लगाए. अंतिम उत्तरकुंजी तक जारी नहीं की गई. जब साक्षात्कार शुरू होना था, तब तक प्रवेश पत्र जारी नहीं हुए और पूरी प्रक्रिया ठप पड़ गई. इलाहाबाद के एक अभ्यर्थी रवि का कहना है, “कटऑफ देखकर साफ लग रहा था कि नंबर काटे गए हैं. जब अभ्यर्थियों ने कोर्ट में याचिका डाली तो आयोग की कार्यप्रणाली की पोल खुली.”
विवादास्पद निर्णय और इस्तीफे की पटकथा
प्रो. पांडेय के कार्यकाल की एक और बड़ी आलोचना टीईटी आवेदन शुल्क बढ़ाने के प्रस्ताव को लेकर हुई. आयोग ने प्राथमिक स्तर की शिक्षक पात्रता परीक्षा (टीईटी) का शुल्क 600 रुपये से बढ़ाकर 1700 रुपये करने का प्रस्ताव भेजा. यानी यदि कोई अभ्यर्थी दोनों स्तरों की परीक्षा देता तो उसे 3400 रुपये जमा करने पड़ते. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने इस प्रस्ताव पर नाराजगी जताई और छात्रहित में शुल्क को पहले जैसा रखने का आदेश दिया. इस प्रकरण ने भी आयोग की छवि को झटका दिया.
इन विवादों ने मिलकर अध्यक्ष प्रो. कीर्ति पांडेय की कुर्सी हिला दी. 22 सितंबर 2025 को उन्होंने निजी कारणों से इस्तीफा भेज दिया. लेकिन इस्तीफे के बाद भी 25 सितंबर को उन्होंने आयोग की बैठक की और असिस्टेंट प्रोफेसर भर्ती के परिणाम पर आपत्तियां मांगने का निर्णय लिया. उनके इस कदम ने और विवाद खड़ा कर दिया. आखिरकार 26 सितंबर को विशेष सचिव गिरिजेश कुमार त्यागी ने उनके इस्तीफे को स्वीकार करने का आदेश जारी कर दिया. इस तरह सिर्फ एक साल से थोड़े अधिक कार्यकाल के बाद ही प्रो. पांडेय की विदाई हो गई. उन्होंने 5 सितंबर 2024 को पदभार संभाला था. उनके कार्यकाल में न तो कोई नई भर्ती शुरू हो सकी और न ही पुरानी भर्तियों को पूरा कराया जा सका.
कार्यवाहक अध्यक्ष और भविष्य की अनिश्चितता
अध्यक्ष के इस्तीफे के बाद “उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग” के वरिष्ठ सदस्य रामसुचित को 26 सितंबर से कार्यवाहक अध्यक्ष बनाया गया. लेकिन जानकार मानते हैं कि कार्यवाहक अध्यक्ष के पास नीतिगत फैसले लेने की स्वतंत्रता नहीं होती. हर बड़े कदम के लिए उन्हें शासन की अनुमति लेनी होगी. ऐसे में आयोग की स्वायत्तता और कमज़ोर हो गई है. प्रतियोगी छात्र संघर्ष समिति के अध्यक्ष अवनीश पांडेय कहते हैं, “आयोग को स्वायत्त बनाना ही इसका मूल उद्देश्य था. लेकिन अगर हर फैसला शासन से पूछकर लेना है तो आयोग का गठन ही बेमानी है.”
इस पूरे विवाद का सबसे बड़ा नुकसान उन 13 लाख से ज्यादा अभ्यर्थियों को हो रहा है जो टीजीटी-पीजीटी और असिस्टेंट प्रोफेसर की भर्तियों का इंतजार कर रहे हैं. 25 सितंबर से प्रस्तावित साक्षात्कार नहीं हो पाए. अब नई तिथि कब घोषित होगी, यह अनिश्चित है. वहीं पीजीटी परीक्षा 15-16 अक्टूबर और टीजीटी परीक्षा 18-19 दिसंबर को प्रस्तावित है, लेकिन ये परीक्षाएं होंगी या नहीं, इस पर संशय बना हुआ है. प्रतियोगी छात्र संगठन के संयोजक रजत सिंह कहते हैं, “हम लगातार धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं. लेकिन आयोग के पास कोई स्पष्ट रोडमैप नहीं है. जब तक नियमित अध्यक्ष की नियुक्ति नहीं होगी, छात्रों की समस्या जस की तस रहेगी.”
क्यों फेल हो रहा है आयोग?
जानकार बताते हैं कि बेसिक से लेकर एडेड माध्यमिक विद्यालयों, महाविद्यालयों व अल्पसंख्यक कालेजों, अटल आवासीय विद्यालयों, कई अन्य शिक्षण संस्थानों में शिक्षक भर्तियां करने के लिए गठित उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग का गठन शुरुआत से ही दुविधा भरा था. उच्च शिक्षा विभाग में तैनात एक अधिकारी बताते हैं, “आयोग का गठन तो कर दिया गया, लेकिन इसका ई-अधियाचन पोर्टल तक तैयार नहीं हुआ. बिना अधियाचन किसी भी नई भर्ती का रास्ता खुल ही नहीं सकता. बार-बार शासन के दखल से आयोग की स्वतंत्रता कम हो गई. इससे निर्णय लेने में देरी और भ्रम पैदा हुआ.”
शासन ने अध्यक्ष पद पर नियुक्ति के लिए विज्ञापन जारी कर दिया है. इच्छुक उम्मीदवार 21 अक्टूबर तक आवेदन कर सकते हैं. माना जा रहा है कि नवंबर तक आयोग को नया पूर्णकालिक अध्यक्ष मिल जाएगा. लेकिन जब तक यह प्रक्रिया पूरी नहीं होती, अभ्यर्थियों का इंतजार और लंबा हो जाएगा. हालांकि सत्ता के गलियारों में अभी हाल में सेवानिवृत्त हुए एक प्रभावशाली पुलिस अधिकारी के नाम की अटकलें लग रही हैं.
उत्तर प्रदेश शिक्षा सेवा चयन आयोग की पहली सालगिरह विवादों और असफलताओं के नाम रही. प्रो. कीर्ति पांडेय का इस्तीफा इस बात का सबूत है कि संस्थागत ढांचे और राजनीतिक दखल के बीच आयोग अपना लक्ष्य पूरा नहीं कर पा रहा. लाखों अभ्यर्थियों की आंखें अब नए अध्यक्ष और शासन की नीयत पर टिकी हैं. सवाल यह है कि क्या यह आयोग सच में पारदर्शी और निष्पक्ष भर्ती प्रणाली स्थापित कर पाएगा, या फिर यह भी अन्य भर्ती संस्थाओं की तरह विवादों का शिकार होकर रह जाएगा.