गोंडा जिले के हरधरमऊ ब्लॉक निवासी राज मिश्र ने इस बार यूपी बोर्ड से इंटरमीडिएट परीक्षा 78 प्रतिशत अंकों से उत्तीर्ण की. राज को पता चला कि इस बार बोर्ड परीक्षा की मार्क्सशीट सीधे डिजिलॉकर में भेजी जाएगी. इसलिए उन्होंने गांव के पास के जन सेवा केंद्र पर जाकर मां के मोबाइल पर डिजिलॉकर एप डाउनलोड कर अपना एकाउंट बनाया.
25 अप्रैल को जब नतीजा घोषित होने के बाद सीधे मार्क्सशीट डिजिलॉकर में आई तो राज की खुशी का ठिकाना नहीं रहा. यह पहला मौका है जब यूपी बोर्ड ने हाईस्कूल और इंटरमीडिएट परीक्षा की मार्क्सशीट सीधे 42 लाख से अधिक परीक्षार्थियों के एकाउंट में भेजी है.
सौ साल से भी ज़्यादा पुराना उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा परिषद, जिसे लोकप्रिय रूप से यूपी बोर्ड के नाम से जाना जाता है, पहले सामूहिक नकल से लेकर देर से सत्र शुरू होने तक की सभी ग़लत वजहों के लिए जाना जाता था. अब, इसमें एक उल्लेखनीय बदलाव आया है और इस साल 43 दिनों में हाई स्कूल और इंटरमीडिएट की परीक्षा के नतीजे 25 अप्रैल को जारी किए गए हैं, जिसमें कक्षा 10 में 90.11फीसदी और कक्षा 12 में 81.15 फीसदी परीक्षार्थी उत्तीर्ण हुए.
यही नहीं परीक्षा का समय, जो पहले लगभग एक महीने था, इस बार महज 12 कार्य दिवसों में संपन्न हो गई. यूपी बोर्ड ने इस बार अंकपत्र और प्रमाणपत्र में कई अहम बदलाव किए हैं. अंकपत्र और प्रमाणपत्र की छपाई ऐसे कागज पर की गई है जो न फटेगा और न ही गलेगा. मार्कशीट में एक विशेष मोनोग्राम जो धूप में लाल रंग का दिखेगा और छाव में रंग बदलेगा.
इस बार मार्कशीट का आकार बढाकर ए-फोर किया गया है. मार्कशीट में फ्लोरोसेंट लोगो और नंबरिंग केवल अल्ट्रावायलट लाइट में दिखेगी. मार्कशीट की फोटोकॉपी करने पर प्रतिलिपि में हमेशा फोटोकॉपी लिखा आएगा. मार्कशीट या सर्टिफिकेट में किसी प्रकार का बदलाव अथवा खुरच कर लिखना संभव नहीं. रोल नंबर को अंकों के साथ शब्दों में भी लिखा गया है.
यूपी बोर्ड, जो अब दुनिया की सबसे बड़ी परीक्षा आयोजित करता है, ने इस बदलाव की पटकथा लिखी है, जिसमें नकल माफिया पर नकेल कसने, तकनीक और सीसीटीवी कैमरों आदि के इस्तेमाल सहित कई कड़े कदम उठाए गए हैं. पिछले कई सालों से माध्यमिक स्तर पर इस परीक्षा में 50 लाख से ज़्यादा छात्र शामिल होते रहे हैं. यूपी बोर्ड के सचिव भगवती सिंह बताते हैं, “यूपी बोर्ड ने परीक्षा के सफल संचालन व परीक्षार्थियों की सुविधाओं के लिहाज से इस बार कई नए प्रयोग किए, जिसमें केंद्रवार गोपनीय न्यूमेरिक नंबरिंग सबसे महत्वपूर्ण कदम रहा. साल 2025 की हाईस्कूल व इंटरमीडिएट की परीक्षा के प्रश्न पत्रों के हर पृष्ठ केंद्रवार गोपनीय न्यूमेरिक नंबरिंग कराई गई, ताकि पेपर आउट होने की स्थिति में संबंधित केंद्र की पहचान की जा सके.”
साथ ही पहली बार यूपी बोर्ड की आन्सर शीट्स के जांच के लिए परीक्षकों की नियुक्ति ऑनलाइन गई. आवश्यकता पड़ने पर मूल्यांकन केंद्र के उपनियंत्रक द्वारा परिषद के पोर्टल पर प्रतीक्षा सूची से परीक्षकों की ऑनलाइन नियुक्ति की व्यवस्था भी पहली बार की गई. इसके साथ ही पहली बार किसी भी प्रकार की आकस्मिक स्थिति से निपटने के लिए अतिरिक्त रिजर्व सेट की व्यवस्था हुई. अतिरिक्त रिजर्व सेट के प्रश्नपत्रों की आलमारी की चाबी निकटवर्ती पुलिस थाने की कस्टडी में रखी गई.
बोर्ड परीक्षाओं में अभिनव प्रयोग प्रयोगात्मक परीक्षा में भी दिखाई दिए. प्रयोगात्मक परीक्षा के दौरान जिओ लोकेशन के माध्यम से पहली बार परीक्षा केंद्र में परीक्षकों की उपस्थिति सुनिश्चित की गई. जिओ लोकेशन युक्त मोबाइल ऐप के माध्यम से परीक्षकों से प्रयोगशाला कक्ष में ही उनकी फोटो कैप्चर कर उपस्थिति दर्ज कराई गई. जिओ-फेंसिंग प्रणाली के माध्यम से यह सुनिश्चित किया गया कि परीक्षक केवल अपने आवंटित प्रयोगात्मक परीक्षा केंद्र पर ही लॉगिन कर सके.
परीक्षा केंद्र के 200 मीटर के दायरे के बाहर से लॉगिन व अंक अपलोड करना संभव नहीं था. भगवती सिंह बताते हैं कि पहली इतने बड़े पैमाने में तकनीकि का इस्तेमाल होने का ही नतीजा था कि महज 12 दिन में पूरी परीक्षा सम्पन्न करा ली गई.
यूपी बोर्ड परीक्षाओं में बड़े बदलाव की नींव वर्ष 2017 में यूपी में योगी आदित्यनाथ की सरकार बनने के बाद पड़ी थी. योगी के पहले कार्यकाल में प्रदेश के माध्यमिक और उच्च शिक्षा मंत्री रहे राज्यसभा सदस्य और पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा बताते हैं, ''जब मैंने 19 मार्च 2017 को कार्यभार संभाला था, तो अधिकारियों ने मुझे बताया था कि यूपी बोर्ड में नकल माफिया हावी है. मैंने प्रधानाचार्यों और अधिकारियों की बैठक बुलाई और सभी खामियों को दूर करने के लिए उनकी मदद मांगी. हमने उत्तर पुस्तिकाओं को कोड करने का फैसला किया, केवल सीसीटीवी कैमरे वाले केंद्रों पर परीक्षा आयोजित करने का फैसला लिया. केवल सरकारी और सहायता प्राप्त स्कूलों में ही परीक्षा केंद्र बनाने का फैसला लिया और उत्तर पुस्तिका की सील खोलने की वीडियोग्राफी शुरू की. इन सभी उपायों से काफी मदद मिली.''
पहले बोर्ड परीक्षा एक महीने के अंतराल में होती थी, शर्मा के मुताबिक इसे घटाकर कम दिनों का कर दिया गया है. इससे परीक्षाओं की लागत कम हो गई. यूपी बोर्ड परीक्षाओं में नकल से जुड़े केवल 115 मुकदमे दर्ज हुए. यूपी बोर्ड अधिकारियों के मुताबिक परीक्षाओं में स्पेशल टास्क फोर्स की मदद लेने के फैसले ने नकल माफिया में डर पैदा कर दिया है, जिससे फर्जी परीक्षार्थियों पर नकेल कसी गई जो हर जगह से पंजीकरण कराते थे.
यूपी बोर्ड का इरादा आगे और भी इनोवेशन करने का है. भगवती सिंह बताते हैं, “बोर्ड एक ऑनलाइन पोर्टल विकसित कर रहा है जिसमें सरकारी, एडेड और वित्तविहीन विद्यालयों के शिक्षकों और छात्र-छात्राओं की उपस्थिति दर्ज रियल टाइम में दर्ज की जाएगी. मई में इस पोर्टल की शुरुआत करने की योजना है. इसके जरिए बोर्ड यह बताने में कामयाब हो सकेगा कि किसी समय में यूपी के किसी स्कूल में कितने छात्र और शिक्षक मौजूद हैं.”
भगवती सिंह के मुताबिक इस पोर्टल से उन ऐसे विद्यार्थियों को चिन्हित कर सकेंगे तो मनमर्जी के परीक्षा सेंटर की आस में कई सरकारी स्कूलों में अपना पंजीकरण करा लेते हैं. इसके अलावा इस पोर्टल में प्रत्येक स्कूल अपना टाइम टेबल और पढाया जाने वाला पाठ्यक्रम की जानकारी देगा. उत्तर प्रदेश माध्यमिक शिक्षा निदेशालय यह कार्य को अभी मैनुअली करता है. यूपी बोर्ड तकनीकी का इस्तेमाल कर निदेशालय को सहयोग प्रदान करेगा. भगवती सिंह बताते हैं, “हम पोर्टल पर दर्ज होने वाली सभी सूचनाएं एक रिपोर्ट के रूप में संबंधित जिलों के जिला विद्यालय निरीक्षक को भेजेंगे जो उसपर जरूरी कार्रवाई करेंगे.”