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क्या उपेंद्र कुशवाहा अपने राजनीतिक करियर के सबसे मुश्किल दौर में फंस चुके हैं?

उपेंद्र कुशवाहा को इस समय अपने विधायकों की नाराजगी झेलनी पड़ रही है लेकिन उनके सामने खतरा पार्टी टूटने से कहीं आगे का है

Upendra Kushwaha, who is surrounded from all sides after his son Deepak Prakash
उपेंद्र कुशवाहा और उनके बेटे दीपक प्रकाश
अपडेटेड 27 दिसंबर , 2025

“पार्टी क्यों छोड़ेंगे, पार्टी क्या हमारी नहीं है? मगर यह सच है कि हमलोग नाराज हैं, उन्होंने जो आत्मघाती निर्णय लिया है, उसके प्रति हमारी नाराजगी है. हम बुरे दौर में भी उनके साथ रहे, मगर उन्होंने हम पर भरोसा नहीं किया. इस बात की नाराजगी है और तब तक रहेगी, जब वे इस मसले को ठीक नहीं कर लेते.” राष्ट्रीय लोक मोर्चा (रालोमो) के एक विधायक जब यह कहते हैं तो पार्टी की मौजूदा स्थिति का साफ पता चल जाता है. बाकी पार्टी बीते दो दिनों से इस दुविधा से जूझती लग रही है.

इंडिया टुडे की जिस विधायक से बात हुई वे उन तीन विधायकों में से एक हैं, जिनके बारे में कहा जा रहा है कि वे रालोमो के प्रमुख उपेंद्र कुशवाहा से नाराज हैं और कभी भी पार्टी छोड़ने का फैसला कर सकते हैं. उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) का हिस्सा है और हालिया बिहार चुनाव में इसके चार उम्मीदवार विधायक चुने गए हैं. इनमें से एक तो उपेंद्र कुशवाहा की पत्नी स्नेहलता हैं, बाकी तीन माधव आनंद, रामेश्वर महतो और आलोक सिंह के बारे में कहा जा रहा है कि वे कुशवाहा से नाराज चल रहे हैं. 

इनकी नाराजगी की खबर तब सार्वजनिक हुई जब पिछले दिनों उपेंद्र कुशवाहा की तरफ से आयोजित लिट्टी पार्टी के दौरान ये तीनों वहां अनुपस्थित थे. फिर उसी दिन जब इन तीनों विधायकों की एक साथ तस्वीर बीजेपी ने नवनियुक्त राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन के साथ नजर आई तो इन तीनों के बागी होने की खबरें उड़ने लगीं.  यह भी कहा जाने लगा कि कहीं इन तीन विधायकों को BJP ही तो नहीं तोड़ रही है. 

BJP के कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन के साथ उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के तीन विधायक
BJP के कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन के साथ उपेंद्र कुशवाहा की पार्टी के तीन विधायक

इन तीनों की नाराजगी की खबरें पहले भी आती रही हैं. पार्टी के विधायक रामेशवर महतो ने तो नेतृत्व के खिलाफ अपनी नाराजगी सोशल मीडिया पर जाहिर भी कर चुके हैं. 12 दिसंबर को एक पोस्ट में उन्होंने लिखा, “जब नेतृत्व की नीयत धुंधली होने लगे और नीतियां जनहित से अधिक स्वार्थ की दिशा में मुड़ने लगे, तब जनता को ज्यादा दिन तक भ्रमित नहीं रखा जा सकता.”

इंडिया टुडे से पार्टी के जिस विधायक ने बातचीत की है, वे अपना नाम सार्वजनिक नहीं करना चाहते, मगर कहते हैं, “उपेंद्र जी ने न सिर्फ बिना हमसे राय लिए अपने बेटे को मंत्री बनाया, बल्कि सोशल मीडिया पर हमारे बारे में क्या-क्या नहीं लिखा. उन्होंने लिखा कि वे पार्टी के लोगों पर भरोसा नहीं करते. उन्होंने नीतीश जी को कोट करते हुए लिखा कि एक हाथ से मक्खी भगाना चाहिए, एक हाथ से खाना चाहिए. जब पार्टी का नेता ही अपने लोगों पर भरोसा नहीं करे तो नाराजगी तो स्वाभाविक है.”

अपनी पत्नी के साथ उपेंद्र कुशवाहा

उनसे जब यह पूछा गया कि क्या उपेंद्र कुशवाहा और पार्टी के तीन विधायकों के बीच इस वजह से संवादहीनता है? वे कहते हैं, “जाहिर सी बात है, संवादहीनता होनी ही है, पार्टी के कार्यकर्ता और आमलोग हमसे सवाल करते हैं, हम क्या जवाब दें?” यही विधायक अपनी बात आगे बढ़ाते हैं, “दीपक जी (उपेंद्र कुशवाह के बेटे) को छह महीने बाद मंत्री बनाया जा सकता था, पहले एमएलसी बन जाने देते. मगर उन्होंने किसी बात की परवाह नहीं की, अपनी पत्नी और अपने बेटे को आगे बढ़ाते रहे. उनसे साधारण गलती नहीं हुई है, मगर इसका मतलब यह नहीं है कि हम पार्टी छोड़ देंगे. लेकिन हमारी नाराजगी तब तक रहेगी जब तक वे खुद इन मसलों को सुधारते नहीं हैं.”      

इस बातचीत से एक बात तो जाहिर है कि उपेंद्र कुशवाहा के मौजूदा फैसले से उनकी पार्टी में टसल के हालात बन गए हैं और इसके केंद्र में उनके पुत्र दीपक प्रकाश हैं, जिन्हें उन्होंने सीधे मंत्री बना दिया. अभी वे न एमएलए हैं, न एमएलसी. अगर वे अगले छह महीने तक दोनों में से किसी एक सदन में नहीं जाते तो उनके मंत्री पद के लिए खतरा उत्पन्न हो सकता है. सवाल उपेंद्र कुशवाहा के दोबारा राज्यसभा में जाने का भी है. उन्हें BJP ने राज्यसभा भेजा है और अगले साल अप्रैल में उनका कार्यकाल समाप्त हो रहा है. क्या मौजूदा परिस्थितियों में BJP उन्हें फिर राज्यसभा भेजेगी, यह बड़ा सवाल है.

पार्टी के कई समर्थक तक अब यह मानने लगे हैं कि उपेंद्र कुशवाहा का दोबारा राज्यसभा जाना भी मुश्किल है और दीपक प्रकाश के एमएलसी बनाए जाने पर भी खतरा है. जानकार मानते हैं कि कुशवाहा की पार्टी में नाराजगी का मसला तो पुराना है, मगर मौजूदा संकट की वजह यही राज्यसभा की सीट है. दरअसल अगले साल अप्रैल में बिहार से जुड़ी राज्यसभा की पांच सीटें खाली हो रही हैं. इन पांच में से दो सीटें JDU,  दो RJD और एक BJP की रही है. JDU वाली दो सीटों पर हरिवंश नारायण सिंह और रामनाथ ठाकुर सांसद हैं. RJD की दो सीटों पर प्रेमचंद गुप्ता और एडी सिंह सांसद हैं और पांचवी सीट पर उपेंद्र कुशवाहा को RJD ने भेजा है.

अब बदली परिस्थिति में चार सीटों पर एनडीए की जीत तय है. इनमें दो BJP और दो JDU के हिस्से में जानी हैं. अगर महागठबंधन एक जुट नहीं हो पाया और एनडीए को कुछ बाहरी विधायकों का समर्थन मिल गया तो वह पांचवीं सीट भी जीत सकता है. BJP की तरफ से नए राष्ट्रीय कार्यकारी अध्यक्ष नितिन नबीन को राज्यसभा भेजे जाने की चर्चा है और दूसरी सीट पर पवन सिंह का नाम आ रहा है. JDU अपनी दो सीटों के बारे में आने वाले दिनों में फैसला करेगी. हरिवंश नारायण सिंह और रामनाथ ठाकुर दो-दो बार राज्यसभा जा चुके हैं और JDU में अब तक किसी को तीसरी बार राज्यसभा नहीं भेजा गया है. इसलिए ऐसी खबरें भी हैं कि पार्टी नए लोगों को चुन सकती है.

मगर साथ ही यह भी कहा जा रहा है कि चूंकि हरिवंश नारायण सिंह राज्यसभा में उपसभापति हैं और उनके बदले अगर किसी और को भेजा जाएगा तो उसे BJP उपसभापति का पद देगी या नहीं इसको लेकर संशय है. ऐसे में उन्हें रिपीट किया जा सकता है. रामनाथ ठाकुर चूंकि भारत रत्न कर्पूरी ठाकुर के पुत्र हैं और हाल के वर्षों में कर्पूरी ठाकुर की महत्ता काफी बढ़ी है, ऐसे में उन्हें भी रिपीट किया जा सकता है. यह भी मुमकिन है कि उन्हें कोई अन्य प्रतिष्ठित पद देकर इस सीट पर किसी अन्य को भेजा जाये.

इस बीच यह चर्चा भी तेज है कि चिराग पासवान अपनी मां रीना पासवान को राज्यसभा भेजना चाहते हैं. LJP (रामविलास) के विधायकों की संख्या 19 है, इसलिए उनका दावा स्वाभाविक है. ऐसे में राज्यसभा पर उपेंद्र कुशवाहा का दावा कमजोर होता नजर आ रहा है. हाल के दिनों में उपेंद्र कुशवाहा ने यह बयान भी दिया है कि राज्यसभा सीट को लेकर उनकी कोई दावेदारी नहीं है. इसका यह अर्थ निकाला जा रहा है कि वे राज्यसभा सीट ‘कुर्बान’ कर कम से कम अपने बेटे के लिए एमएलसी की सीट बचा लेना चाहते हैं.

मगर मसला सिर्फ चिराग पासवान और उपेंद्र कुशवाहा के बीच का नहीं है. जैसे ही राज्यसभा की पांचवीं सीट का मसला मीडिया में आया ‘हम’ पार्टी के संस्थापक जीतनराम मांझी भी अचानक सक्रिय हो गए. उन्होंने अपने बेटे संतोष सुमन से कहा कि वे भी अपने लिए राज्यसभा की मांग करें. उन्होंने कहा कि अमित शाह ने उनसे वादा किया था कि वे पार्टी को एक राज्यसभा सीट देंगे. बाद में उपेंद्र कुशवाहा के मसले पर टिप्पणी करते हुए उन्होंने कहा, “उनको लाभ मिल गया है, अपने भी हैं, पत्नी और बेटा को भी लाभ दिला दिए हैं, तो क्यों नहीं बोलेंगे वे.”

बाद में जीतनराम ने यह भी कहा, “हम तो बस अपनी पार्टी के राष्ट्रीय अध्यक्ष से कहा कि वे अपनी मांग नहीं रखते इसलिए उन्हें घाटा होता है. अमित शाह जी ने तो दो लोकसभा सीट और एक राज्यसभा सीट का वादा किया था. वैसे हम एनडीए के अनुशासित सिपाही हैं. अपने घर के अंदर मांग रख रहे हैं.”

जाहिर सी बात है कि इस पांचवी सीट पर रालोमो,  LJP (रामविलास) और ‘हम’ एनडीए के तीनों दलों के दावे से अंदरूनी संकट की स्थिति बन आई है. खबर यह भी है कि LJP (रामविलास) की तरफ से अरुण भारती की मां के लिए भी एक एमएलसी की सीट मांगी जा रही है. इस पूरे मसले पर टिप्पणी करते हुए वरिष्ठ पत्रकार प्रवीण बागी कहते हैं, “ऐसा लगता है कि उपेंद्र कुशवाहा ने हड़बड़ी में अपने ही पांव पर कुल्हाड़ी मार ली है. कभी वे नैतिकता की मिसाल पेश किया करते थे. पार्टी छोड़ी तो राज्यसभा की सदस्यता से भी त्यागपत्र दे दिया था. मगर इस बार उन्होंने पहले पत्नी को टिकट दिया, फिर बिना किसी विधान मंडल का सदस्य बने अपने बेटे को मंत्री बना दिया. उन्होंने परिवारवाद का चरम उदाहरण पेश किया है. जाहिर है इससे एनडीए में उनकी छवि खराब हुई है. अब पार्टी भी टूट की कगार पर है और कभी BJP की तरफ से जो राज्यसभा या एमएलसी का वादा किया गया था, उस पर भी संकट नजर आ रहे हैं.”

हालांकि उपेंद्र कुशवाहा इस पूरे प्रसंग को लेकर उठ रहे सवालों से नाराज नजर आते हैं. 26 दिसंबर को जब पत्रकारों ने इस बारे में उनसे पूछा तो वे नाराज हो गए. कहने लगे, “आप लोगों के पास कोई सवाल नहीं है क्या? फालतू सवाल क्यों पूछते हैं?” मगर राष्ट्रीय लोक मोर्चा के प्रवक्ता एवं राष्ट्रीय महासचिव फजल इमाम मलिक इस मसले पर कहते हैं, “आपसे ही पता चला है कि हमारी पार्टी के किसी विधायक को कोई नाराजगी है. हमारा मानना है कि अगर किन्हीं को कोई नाराजगी है तो उसे पार्टी फोरम में रखना चाहिए. जहां तक पार्टी के फैसलों का सवाल है वह तो कोर कमिटी की सहमति से ही लिए जाते हैं. हमारे नेता अपनी मर्जी से थोड़े ही लेते हैं.”

यह पूछे जाने पर कि क्या उपेंद्र कुशवाहा की राज्यसभा सीट और दीपक प्रकाश की एमएलसी सीट को लेकर कोई दुविधा है. मलिक कहते हैं, “एनडीए में कहीं कोई कनफ्यूजन नहीं है. जहां तक राज्यसभा और एमएलसी की सीटों का सवाल है, यह वादा किया गया है और यह मिलना तय है.”

वरिष्ठ पत्रकार और राजनीतिक विश्लेषक अरुण अशेष कहते हैं, “अगर BJP को चिराग की मां और उपेंद्र कुशवाहा में किसी एक को चुनना होगा तो वह कुशवाहा को ही चुनेगी. और यह सच है कि उनसे राज्यसभा की एक सीट और एमएलसी की एक सीट का वादा भी है. वादा LJP (रामविलास) से भी किया गया है. लेकिन जीतनराम मांझी से कोई वादा किया गया है, ऐसी खबर सार्वजनिक नहीं हुई है. लगता है वे किसी और वजह से दबाव बना रहे हैं.”

अरुण अशेष के मुताबिक, “कुशवाहा की तरफ से गलती यह हुई है कि उन्होंने गैर राजनीतिक लोगों को पार्टी का टिकट दिया और वे जीत भी गए. इसके अलावा यह भी सच है कि सोशल मीडिया पर उन्होंने जो टिप्पणियां कीं, उनसे उन्हें परहेज करना चाहिए था. हालांकि यह भी तय है कि वे तीनों नाराज विधायक कहीं जाएंगे नहीं. उन्हें कोई अपनी पार्टी में शामिल करने वाला नहीं है.” 

उपेंद्र कुशवाहा भले ही पत्रकारों के सामने खुद से जुड़े सवालों को गैरजरूरी बता रहे हैं. मगर यह भी सच है कि वे इस वक्त तिहरी चुनौती से जूझ रहे हैं. पहली राज्यसभा की सीट, दूसरी विधायकों की नाराजगी और तीसरी अपने बेटे दीपक प्रकाश के लिए एमएलसी की सीट.  इनमें संतुलन बनाना कुशवाहा की अब तक की राजनीति की सबसे बड़ी अग्निपरीक्षा बन सकती है.

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