अगर सबकुछ अभी के नियम-कायदों से चला तो उत्तर प्रदेश में 2027 में विधानसभा चुनाव होने हैं और उससे पहले जनवरी, 2025 में आयोजित होने जा रहा प्रयागराज महाकुंभ सबसे अहम धार्मिक आयोजन होगा. योगी आदित्यनाथ सरकार के लिए हिंदुत्व का एजेंडा हमेशा से प्राथमिकता में रहा है. जाहिर है कि इस आयोजन से भी इसे बखूबी साधा जाने वाला है.
इसकी एक झलक उस वक्त मिली जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ महाकुंभ की तैयारियों का जायजा लेने और लोगो का अनावरण करने 6 अक्टूबर को प्रयागराज पहुंचे. यहां जुटे संतों के साथ मुख्यमंत्री की एक बैठक हुई. इसमें योगी से महाकुंभ आयोजन से शाही स्नान और पेशवाई जैसे शब्दों को हटाने की मांग की गई, जाहिर है कि इसे उन्हें मानना ही था.
संतों का कहना था कि ये शब्द 'मुगलिया' और 'गुलामी' का प्रतीक हैं, इसलिए इन्हें हटाया जाना चाहिए. दरअसल प्रयागराज के श्री निरंजनी अखाड़े में दो दिनों तक चली अखाड़ों की बैठक में संतों की ओर से कई प्रस्ताव तैयार किए गए थे जिनमें शाही और पेशवाई शब्दों को बदलना प्रमुख था. कुंभ-महाकुंभ मेले का वैभव अखाड़े होते हैं. अखाड़ों के संतों के स्नान को शाही स्नान और अखाड़े के आश्रम से मेला क्षेत्र को जाने को पेशवाई कहा जाता है. यह परंपरा सदियों से चली आ रही है.
महाकुंभ में कब क्या होगा
प्रयागराज में महाकुंभ के लिए प्रदेश सरकार की तैयारियों के बीच संन्यासियों के सबसे बड़े पंच दशनाम जूना अखाड़े ने नगर प्रवेश, पेशवाई, शाही स्नान, शोभायात्रा से लेकर कढ़ी-पकौड़ा तक की तिथियां तय कर ली हैं. जूना अखाड़े के अंतरराष्ट्रीय सभापति महंत प्रेम गिरि की अध्यक्षता में 26 जुलाई को हुई बैठक में महाकुंभ के स्नान पर्वों की तैयारियों के साथ मेले की व्यवस्था को कई प्रस्तावों पर मुहर लगी थी. इसके मुताबिक देशभर से नागा संन्यासी, महामंडलेश्वर, महंत, साधु-संत और मठाधीश 12 अक्टूबर को विजयदशमी पर प्रयागराज के लिए प्रस्थान करेंगे.
तीन नवंबर को यम द्वितीया पर हाथी घोड़े, बग्घी, सुसज्जित रथों और पालकियों के साथ जूना अखाड़े की पेशवाई संगम की रेती पर शिविर में देवता के साथ प्रवेश करेगी. 23 नवंबर को कुंभ मेला छावनी में काल भैरव अष्टमी के दिन आवंटित भूमि का पूजन कर धर्म ध्वजा स्थापित की जाएगी. 14 दिसंबर को अखाड़े के आचार्य महामंडलेश्वर अवधेशानंद गिरि के नेतृत्व में जूना अखाड़ा की ओर से पेशवाई निकाली जाएगी, जो संगम स्थित कुंभ मेला छावनी में समूह के साथ प्रवेश करेगी. 13 जनवरी को प्रथम शाही स्नान से पहले वेणी माधव भगवान की पूजा-अर्चना के बाद भव्य शोभायात्रा निकाली जाएगी और नगर परिक्रमा की जाएगी.
पेशवाई और शाही स्नान की तिथियां घोषित होने के बाद ही अखाड़ा परिषद के संतों ने महाकुंभ के आयोजन से उर्दू फारसी शब्दों को बाहर निकालने की मांग शुरू कर दी थी. प्रयागराज में 5 और 6 अक्टूबर को अखाड़ा परिषद की बैठक में इससे जुड़ा प्रस्ताव पास किया गया जिसमें सभी 13 अखाड़े मौजूद थे.
असल में उज्जैन (मध्य प्रदेश) में महाकाल की शाही सवारी का नाम राजसी सवारी किए जाने के बाद अब महाकुंभ में भी उर्दू-फारसी शब्दों के प्रचलन का विरोध संतों ने किया है. उन्होंने शाही स्नान व पेशवाई का नाम बदलने की मांग उठाई है. अखिल भारतीय अखाड़ा परिषद ने 'शाही' को उर्दू शब्द बताते हुए उसकी जगह 'राजसी स्नान' का प्रयोग करने पर जोर दिया है. इसके अलावा अमृत स्नान, दिव्य स्नान व देवत्व स्नान में से किसी एक नाम पर विचार करने का प्रस्ताव किया है. इसके अलावा फारसी शब्द 'पेशवाई' की जगह 'छावनी प्रवेश' का प्रयोग करने का सुझाव भी दिया है.
अखाड़ा परिषद अध्यक्ष और हरिद्वार के मनसा देवी मंदिर के महंत रवींद्र पुरी शाही स्नान व पेशवाई का प्रयोग करने पर सबसे ज्यादा मुखर हैं. वह कहते हैं, "गुलामी के दौर में उर्दू फारसी भाषाओं का प्रचालन अधिक था. उसका प्रभाव अखाड़ों को परंपरा पर भी पड़ गया था. अब उसे समाप्त करना होगा."
रवींद्र पुरी की मुहिम को कई संतों का एकतरफा समर्थन मिल रहा है. अखिल भारतीय संत समिति व गंगा महासभा के महासचिव स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती कहते हैं, "अखाड़ों के महात्माओं ने मुगलों से लड़कर सनातन धर्म व उसके धर्मावलंबियों की रक्षा की थी. उस दौर में उर्दू राजभाषा थी. अंग्रेजों के समय तक उर्दू का प्रयोग होता था. इसी वक्त अखाड़ों की परंपरा में भी उर्दू शब्द का प्रयोग होने लगा. प्राचीन काल में अखाड़ों के महात्मा ही सैनिक होते थे. वे सर्वप्रथम आराध्य को स्नान कराते हैं, उसके बाद खुद करते हैं. ऐसे में उसे राजसी, देवत्व स्नान नाम दिया जाना चाहिए."
संतों की मांग को भाषाई विशेषज्ञों का भी समर्थन मिल रहा है. इलाहाबाद विश्वविद्यालय में असिस्टेंट प्रोफेसर विनम्र सेन सिंह के मुताबिक कुंभ सनातन संस्कृति की पौराणिक परंपरा है जिसका उल्लेख ऋगवेद में मिलता है. मुगलों और अंग्रेजों के समय कुंभ से जुड़ी शब्दावलियों को तोड मरोड़ कर नए शब्दों का चलन शुरू किया गया. विनम्र सेन सिंह कहते हैं, "मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ शुरू से ही मुगल संस्कृति और तौर तरीकों का विरोध करते आए हैं. कुंभ में नई शब्दावलियों के प्रयोग से वह अपने एजेंडे को ही आगे बढ़ाएंगे. इस तरह प्रयागराज में 2025 में होने वाला महाकुंभ के जरिए योगी हिंदुत्व कार्ड को बखूबी खेलेंगे."

