उत्तर प्रदेश विधानमंडल का मानसून सत्र सत्तारूढ़ भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) सरकार के लिए ढेरों चुनौतियां लेकर आने वाला है. 29 जुलाई से शुरू होने वाला सत्र 2024 के लोकसभा चुनाव नतीजों के बाद हो रहा है. इन चुनावों में एक ओर जहां भाजपा की यूपी में सांसदों की संख्या 62 से घटकर 33 रह गई है तो दूसरी ओर इंडिया गठबंधन की सहयोगी समाजवादी पार्टी (सपा) और कांग्रेस ने 43 सीटों पर सत्तारूढ़ पार्टी को धूल चटा दी है.
ऐसे में विपक्ष के बढ़े मनोबल का असर विधानमंडल के मानसूत्र सत्र में दिखने की पूरी उम्मीद राजनीतिक विश्लेषक लगा रहे हैं. सत्र पांच दिवसीय होने की संभावना है. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, जो 2024 के चुनाव परिणामों के बारे में फीडबैक लेने के लिए भाजपा विधायकों से मिल रहे हैं और वरिष्ठ अधिकारियों और जनप्रतिनिधियों के साथ मंडलीय बैठकें कर रहे हैं, विपक्ष के साथ बेहतर समन्वय के लिए 28 जुलाई को एक सर्वदलीय बैठक में शामिल होंगे.
विधानसभा अध्यक्ष सतीश महाना ने विधानसभा का सुचारू संचालन सुनिश्चित करने के लिए सर्वदलीय बैठक बुलाई है. सत्र के कार्यक्रम को अंतिम रूप देने के लिए 28 जुलाई को सदन की कार्य मंत्रणा समिति की बैठक भी बुलाई गई है. 24 जुलाई को सदन के लिए जारी किए गए संभावित कार्यक्रम से संकेत मिलता है कि 29 जुलाई से 2 अगस्त तक पांच बैठकें हो सकती हैं.
विधानमंडल के इस सत्र में मुख्य विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा) कांवड़ मार्ग पर दुकानों पर मालिक का नाम लिखने, आरक्षण, रोजगार और केंद्रीय बजट में यूपी का ध्यान न रखने जैसे मुद्दों पर रणनीति तैयार कर रही है. इसका संकेत पार्टी के प्रमुख अखिलेश यादव के बयानों से भी मिल रहा है. अखिलेश यादव ने 24 जुलाई को एक बयान जारी करके कहा कि भाजपा की ‘डबल इंजन’ सरकार टकराव के रास्ते पर दिखती है और राज्य सरकार ने कुछ नहीं मांगा, जबकि केंद्र ने बजट में यूपी का कोई जिक्र नहीं किया.
इतना ही नहीं लोकसभा चुनाव के बाद भाजपा के भीतर मची उठापटक का असर भी सदन की कार्यवाही दिखने के आसार हैं. मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ के साथ उपमुख्यमंत्री केशव प्रसाद मौर्य का विवाद अब चरम पर पहुंच गया है. इसी के चलते प्रयागराज मंडल के जनप्रतिनिधियों की योगी आदित्यनाथ के साथ बैठक में केशव प्रसाद मौर्य नहीं पहुंचे. केशव का ही अनुसरण करते हुए दूसरे उपमुख्यमंत्री बृजेश पाठक भी लखनऊ मंडल की बैठक से नदारद रहे.
योगी आदित्यनाथ के अपने ही सहयोगियों के साथ मनुमुटाव पर विपक्षी दल जमकर चुटकियां लेने की तैयारी कर रहे हैं. भाजपा के ही एक विधायक बताते हैं, “अभी तक सदन की कार्यवाही में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सपा अध्यक्ष अखिलेश यादव पर उनके चाचा शिवपाल यादव को लेकर कटाक्ष करते थे लेकिन अब ऐसा ही रुख विपक्षी नेता योगी और केशव मौर्य के बीच विवाद को लेकर रखेंगे.” इसकी शुरुआत भी हो चुकी है. सांसद चुने जाने के बाद विधायक पद से इस्तीफा देने वाले यादव ने हाल ही में सोशल मीडिया पर एक पोस्ट में कहा, “मानसून ऑफर, सौ लाओ, सरकार बनाओ!” इस पर राज्य के राजनीतिक हलकों में खूब चर्चा हुई थी.
अखिलेश यादव की पोस्ट पर केशव प्रसाद मौर्य ने भी अपनी प्रतिक्रिया दी थी. इसी बीच आरक्षण के मुद्दे पर मौर्य के पत्र ने भी योगी सरकार की चुनौतियां बढ़ा दी हैं कि वह इस मुद्दे पर अक्रामक विपक्षी तेवरों का कैसे मुकाबला करेगी? वह भी तब जब आरक्षण का मुद्दा खुद सरकार के ओबीसी चेहरे ने उठाया है.
सपा, जिसने अभी तक सदन में विपक्ष के नेता की नियुक्ति नहीं की है, ने पहले ही संकेत दे दिए हैं कि पार्टी विधानसभा में भाजपा सरकार को निशाना बनाने का कोई मौका नहीं छोड़ेगी. विपक्ष जहां सरकार को घेरने की पूरी तैयारी में बैठा है, तो वहीं भाजपा के सहयोगी दल भी अलग दुविधा में हैं. दरअसल, लोकसभा चुनाव के बाद उन्होंने अलग-अलग मसले पर भाजपा और सरकार के खिलाफ मोर्चा खोला, लेकिन क्या सदन में भी यही तेवर कायम रहेंगे? राजनीतिक विश्लेषक सदन के भीतर भाजपा के सहयोगियों की दुश्वारियों का जिक्र करते हैं. लखनऊ के जय प्रकाश नारायण डिग्री कॉलेज में राजनीति शास्त्र विभाग के प्रमुख ब्रजेश मिश्र कहते हैं, “अगर सदन में सहयोगियों के तेवर कमजोर हुए, तो इसका असर सड़क पर जनता के साथ खड़े होने की कवायद पर पड़ेगा और अगर सदन में विरोध बरकरार रहा, तो सरकार के साथ तालमेल बिगड़ेगा. ऐसे में भाजपा के सहयोगी दल विधानमंडल सत्र में अपनी भूमिका को लेकर भी पेशोपेश में हैं.”
लोकसभा चुनाव के बाद ही अपना दल (सोनेलाल) की अध्यक्ष और केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल ने सीएम योगी आदित्यनाथ को पत्र लिखकर नौकरियों में आरक्षण में भेदभाव का मामला उठाया था. उनका आरोप था कि यूपी लोकसेवा आयोग से निकाली जा रही भर्तियों में आरक्षित वर्ग को उनका पूरा हक नहीं मिल रहा है. जितनी संख्या में आरक्षित पदों की भर्ती होनी चाहिए, उतनी नहीं हो रही है. अनुप्रिया पटेल के इस सवाल के बाद यूपी लोकसेवा आयोग ने जवाब तो दिया, लेकिन अपना दल (सोनेलाल) इस मुद्दे पर कायम रहा.
यही नहीं, निषाद पार्टी के अध्यक्ष और प्रदेश सरकार में केंद्रीय मंत्री डॉ. संजय निषाद ने भी सरकार को चेताया था कि जिन भी सरकारों ने आरक्षित वर्गों की उपेक्षा की, उनका नुकसान ही हुआ. ऐसे में अब यह देखना दिलचस्प होगा कि क्या अगर विपक्षी दल विधानमंडल के मानसून सत्र में नौकरियों में आरक्षित पदों में कमी किए जाने का मुद्दा उठाएंगे तो अपना दल (सोनेलाल) और निषाद पार्टी का स्टैंड क्या होगा?
वहीं कांवड़ यात्रा मार्ग पर आने वाली दुकानों में दुकानदारों के नाम संबंधी आदेश पर राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी ने नाराजगी जताई थी. भले ही सुप्रीम कोर्ट ने मामले की सुनवाई करते हुए आदेश पर फिलहाल रोक लगा दी हो, लेकिन सदन में विपक्ष इस मुद्दे को पुरजोर ढंग से उठाने की तैयारी में है. ऐसे में देखना होगा कि सदन में रालोद सरकार के साथ इस मुद्दे का बचाव करती है या अपने स्टैंड पर कायम रहती है.
वहीं राज्य सरकार भी विपक्षी हमलों से बचने के लिए अपनी ढाल मजबूत कर रही है. प्रदेश सरकार ने आयुक्तों और जिलाधिकारियों से यह सुनिश्चित करने को कहा है कि राज्य विधानसभा में विधायकों/एमएलसी द्वारा उठाए गए प्रश्नों या अन्य मुद्दों के बारे में उनके द्वारा समय पर पूरी जानकारी दी जाए. संसदीय कार्य विभाग के प्रमुख सचिव जेपी सिंह ने सभी आयुक्तों और जिलाधिकारियों को भेजे पत्र में कहा है कि उनके द्वारा उपलब्ध कराए गए तथ्यों और दी गई जानकारी की गुणवत्ता पर किसी भी तरह का संदेह नहीं होना चाहिए. उन्होंने कहा कि भेजी जा रही सभी सूचनाओं पर संबंधित जिलाधिकारियों के हस्ताक्षर होने चाहिए.
जेपी सिंह ने एक अन्य पत्र में यह भी कहा कि मानसून सत्र के दौरान विधायकों/एमएलसी की सदस्यता वाली संभागीय और जिला समितियों की कोई बैठक नहीं बुलाई जानी चाहिए ताकि सभी सदस्यों की सदन में मौजूदगी सुनश्चित हो सके.