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क्या अमेरिकी टैरिफ से जूझने की राह दिखाया पाया यूपी का इंटरनेशनल ट्रेड शो?

अमेरिका की तरफ से भारतीय सामानों पर 50 फीसदी टैरिफ लगाए जाने के बाद उत्तर प्रदेश इंटरनेशनल ट्रेड शो (UPITS 2025) कारोबारियों और एग्जिबिटर्स के लिए और अहम हो गया था

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी UPITS 2025 का उद्घाटन करते हुए
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी UPITS 2025 का उद्घाटन करते हुए
अपडेटेड 1 अक्टूबर , 2025

“उत्तर प्रदेश इंटरनेशनल ट्रेड शो” (UPITS 2025) का तीसरा संस्करण 29 सितंबर को ग्रेटर नोएडा के इंडिया एक्सपो मार्ट में खत्म हुआ है. भारतीय सामानों अमेरिका की तरफ से लगाए गए 50 फीसदी टैरिफ के बाद यह आयोजन, न सिर्फ यूपी बल्कि पूरे देश के लिए भी कुछ ज्यादा ही अहम हो गया था.  

इस ट्रेड शो का फिलहाल का आकलन यही बताता है कि अमेरिकी टैरिफ जैसी चुनौतियों से निपटने का रास्ता सिर्फ़ वाणिज्यिक करारों या सरकारी नीतियों में नहीं, बल्कि साझेदारी, विविधीकरण और इनोवेशन में छुपा है. हालांकि पिछले दो वर्षों में हुए इंटरनेशनल ट्रेड शो यूपी के औद्योगिक माहौल में कोई उल्लेखनीय बदलाव की छाप छोड़ने में विफल ही साबित हुए थे. 

उत्तर प्रदेश सरकार ने पिछले दो इंटरनेशनल ट्रेड शो को राज्य के उद्योग और निवेश माहौल बदलने की बड़ी पहल के रूप में पेश किया था. 2023 और 2024 में आयोजित इन आयोजनों में दर्जनों देशों ने भागीदारी की, हजारों प्रदर्शकों ने अपने उत्पादों का प्रदर्शन किया और सरकार ने निवेश समझौतों (एमओयू) के जरिए बड़े-बड़े दावे किए. सवाल यह है कि इन वादों का कितना असर जमीन पर दिखा? 

2023 के पहले इंटरनेशनल ट्रेड शो में लगभग 1,600 से अधिक प्रदर्शक (exhibitors), शामिल हुए थे. सरकार ने दावा किया था कि करीब 1,500 एमओयू पर सहमति बनी और ₹9,000 करोड़ के निवेश की संभावनाएं सामने आईं. लेकिन दो साल बाद तस्वीर यह है कि इनमें से मुश्किल से 40 फीसदी करार ही आगे बढ़ पाए हैं. वजह है एमओयू साइन होने के बाद जमीनी स्तर पर परियोजनाओं को लेकर आई अड़चनें. जमीन अधिग्रहण, बैंक फाइनेंसिंग और क्लियरेंस में देरी से कई निवेशक पीछे हट गए या परियोजनाएं अटकी रहीं.

2024 के शो में यह संख्या और बड़ी रही. सरकार ने बताया था कि 2,000 से ज्यादा प्रदर्शकों के साथ करीब 1,800 एमओयू हुए और ₹10,500 करोड़ की संभावित निवेश प्रतिबद्धताएं आईं. मगर एक साल के भीतर ही साफ हो गया कि लगभग आधे निवेश अब भी फाइलों में ही हैं. जिन कंपनियों ने उत्पादन इकाइयां शुरू करने की बात कही थी, वे बुनियादी ढांचे की कमियों और महंगे लॉजिस्टिक्स से जूझ रही हैं. अंतरराष्ट्रीय बाजार की सुस्ती और अमेरिकी टैरिफ जैसे बाहरी कारक भी आड़े आए. हालांकि, यह कहना गलत होगा कि सब कुछ अधूरा ही रहा. कुछ क्षेत्रों में असर दिखा है. नोएडा और ग्रेटर नोएडा के इलेक्ट्रॉनिक्स हब में कुछ नई इकाइयां लगीं, मुरादाबाद की पीतल और भदोही की कालीन उद्योगों को रूस व खाड़ी देशों से नए ऑर्डर मिले. लेकिन यह प्रभाव आंशिक ही है.

कुल मिलाकर, पिछले दो ट्रेड शो ने राज्य के उद्योग जगत में चर्चा और ऊर्जा तो पैदा की, लेकिन एमओयू से वास्तविक निवेश और उत्पादन तक की यात्रा अब भी लंबी और कठिन साबित हो रही है. 

UPITS 2025 का आयोजन इन अधूरी कहानियों को देखते हुए भी अहम हो गया था. इस साल UPITS 2025 के आयोजन का सबसे अहम पहलू था रूस का "पार्टनर कंट्री" बनना. यूक्रेन युद्ध के बाद पश्चिमी देशों और रूस के बीच तनाव की पृष्ठभूमि में यह साझेदारी भारत के लिए एक बड़ा संदेश थी. अमेरिकी टैरिफ की मार झेल रहे कई भारतीय उद्योगों के लिए रूस और अन्य गैर-पश्चिमी बाजार अब रणनीतिक विकल्प बन रहे हैं. यूपी के इस आयोजन ने वही विकल्प सामने रखा. 

पांच दिनों के दौरान 2,250 से अधिक प्रदर्शकों, 5,07,099 से ज्यादा आगंतुकों और 85 देशों से आए 525 अंतर्राष्ट्रीय खरीदारों की मौजूदगी ने इसे भारत के व्यापार कैलेंडर में एक महत्वपूर्ण इवेंट बना दिया. इनमें 1,40,735 घरेलू बिजनेस टू बिजनेस (बी2बी) खरीदार और 3,66,364 बिजनेस को कंज्यूमर (बी2सी) विज़िटर शामिल रहे. पूरा 1,10,000 वर्ग मीटर प्रदर्शनी क्षेत्र बुक हो गया, और आयोजकों को अतिरिक्त जगह भी उपलब्ध करानी पड़ी.

अमेरिकी टैरिफ की चुनौती और यूपी का जवाब

पिछले कुछ महीनों से अमेरिकी सरकार ने भारतीय उत्पादों पर टैरिफ बढ़ाने की नीति अपनाई है. इससे खासकर टेक्सटाइल, लेदर, हैंडीक्राफ्ट और इंजीनियरिंग गुड्स जैसे सेक्टर प्रभावित हुए हैं. भारत के लिए अमेरिका सबसे बड़ा निर्यात बाजार रहा है और यूपी के कई उद्योग सीधे इस झटके से प्रभावित हैं.

मेरठ के स्पोर्ट्स गुड्स, मुरादाबाद की पीतल उद्योग और भदोही के कारपेट्स लंबे समय से अमेरिका पर निर्भर रहे हैं. जब टैरिफ बढ़े तो ऑर्डर घटने लगे. भदोही के एक निर्यातक बताते हैं, "हमने पिछले साल की तुलना में इस बार अमेरिका से आने वाले ऑर्डरों में लगभग 20 फीसदी की गिरावट देखी है."

UPITS 2025 में इस संकट का समाधान खोजने की कोशिश हुई. रूस के अलावा मध्य एशियाई देशों, अफ्रीका, लैटिन अमेरिका और दक्षिण पूर्व एशिया से आए डेलीगेशन ने भारतीय MSME को नए बाजारों की ओर देखने का अवसर दिया. यही वजह है कि इस आयोजन की थीम कहीं न कहीं अमेरिकी टैरिफ की काट बननी भी थी.

रूस की अहम भूमिका

26 सितंबर को आयोजित इंडिया–रूस बिज़नेस डायलॉग इस आयोजन का सबसे बड़ा आकर्षण रहा. इसमें 111 बी2बी मीटिंग्स हुईं. 30 रूसी कंपनियों ने 90 से ज्यादा भारतीय MSME और निर्यातकों से मुलाकात की. जिन क्षेत्रों पर चर्चा हुई उनमें मैन्युफैक्चरिंग, ऊर्जा, बुनियादी ढांचा, FMCG, आईटी और डिजिटल सॉल्यूशंस, फार्मा, फूड प्रोसेसिंग, पर्यटन और पशुपालन शामिल थे. 

रूस की दिलचस्पी भारत में केवल एनर्जी या डिफेंस सेक्टर तक सीमित नहीं रही. वह अब भारतीय फूड प्रोसेसिंग और टेक्सटाइल इंडस्ट्री में भी संभावनाएं तलाश रहा है. रूस से आए एक प्रतिनिधि का कहना था, "रूस में भारतीय फूड प्रोडक्ट्स की काफी मांग है, खासकर मसाले और रेडी-टू-कुक सामान." इंडो–रशियन बिज़नेस राउंडटेबल में 50 से अधिक उद्योग जगत के नेता और सरकारी अधिकारी शामिल हुए. यहां जिस स्पष्ट संदेश पर जोर दिया गया, वह था कि भारत और रूस व्यापार में डॉलर से हटकर स्थानीय मुद्राओं का उपयोग बढ़ाने की दिशा में काम करेंगे. विशेषज्ञों का मानना है कि यह अमेरिकी टैरिफ से बचने की एक अप्रत्यक्ष रणनीति है.

लैटिन अमेरिका से आए प्रतिनिधियों ने यूपी के एग्रो-बेस्ड प्रोडक्ट्स और फूड प्रोसेसिंग में गहरी रुचि दिखाई. अफ्रीकी देशों ने हेल्थकेयर और शिक्षा सेवाओं में सहयोग का प्रस्ताव रखा.

कारोबार और करार

ट्रेड शो में 17 नॉलेज सेशंस आयोजित हुए. इनमें नीति-निर्माता, उद्योग जगत के नेता, वैश्विक खरीदार और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधि शामिल हुए. "विकसित यूपी 2047", "स्टार्टअप्स की भूमिका 1 ट्रिलियन डॉलर की अर्थव्यवस्था में" और "MSME के लिए ई-कॉमर्स की क्षमता" जैसे विषयों पर चर्चा हुई.

इन सत्रों का फोकस यही था कि अगर अमेरिका या यूरोप जैसे बाजार अनिश्चित हो जाएं तो ई-कॉमर्स और डिजिटल प्लेटफॉर्म के जरिए नए उपभोक्ताओं तक कैसे पहुंचा जाए. अमेजन, फ्लिपकार्ट और अलीबाबा जैसे बड़े ई-मार्केटप्लेस ने छोटे उद्यमियों के लिए निर्यात की नई राहें सुझाईं.

आयोजन के दौरान लगभग ₹11,200 करोड़ की व्यावसायिक पूछताछ दर्ज हुई. 2,400 से अधिक एमओयू पर हस्ताक्षर हुए जिनकी कुल राशि ₹1,882 करोड़ रही. इनमें से कई करार रूस, अफ्रीका और एशियाई देशों के साथ हुए. 113 स्टॉल्स पर 49 फ्रैंचाइज़ ब्रांड, 64 मशीनरी सप्लायर और 26 "बिज़नेस ऑन व्हील्स" मॉडल प्रदर्शित हुए. इससे साफ़ संकेत मिला कि यूपी का MSME सेक्टर अमेरिकी टैरिफ की मार झेलते हुए भी इनोवेशन के जरिए खड़ा रहने की कोशिश कर रहा है.

चुनौतियां अब भी बाकी

हालांकि, इस तस्वीर का दूसरा पहलू भी है. अमेरिकी टैरिफ से पूरी तरह बचना आसान नहीं. अमेरिका अब भी भारत का सबसे बड़ा व्यापारिक भागीदार है और यूपी के कई उद्योग उसके बिना नहीं चल सकते. दूसरी चुनौती है गुणवत्ता और स्केल. कई विदेशी प्रतिनिधि भारतीय उत्पादों की क्वालिटी को लेकर आश्वस्त नहीं दिखे. एक यूरोपीय खरीदार का कहना था, "अगर आप ग्लोबल मार्केट में टिके रहना चाहते हैं तो प्रोडक्शन स्टैंडर्ड को और ऊंचा करना होगा." लॉजिस्टिक्स भी एक बाधा है. यूपी के कई हिस्सों से निर्यात करने में बंदरगाह तक पहुंचने में समय और लागत ज्यादा लगती है. सरकार ने डेडिकेटेड फ्रेट कॉरिडोर और इनलैंड पोर्ट्स की योजना बनाई है, लेकिन उसे जमीन पर उतारना अभी बाकी है.

इन सब चुनौतियों के बावजूद UPITS 2025 से यह इशारा जरूर मिला कि अमेरिकी टैरिफ अंत नहीं है. रूस, एशिया, अफ्रीका और लैटिन अमेरिका जैसे बाजारों में अवसर हैं. डिजिटल प्लेटफॉर्म और ई-कॉमर्स नई राह दिखा रहे हैं. एमओयू और कारोबारी करार बता रहे हैं कि उद्योग जगत हार मानने को तैयार नहीं. 

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