ऐसे समय में जब उत्तर प्रदेश में मुस्लिम राजनीतिक प्रतिनिधित्व दशकों में सबसे कम है. प्रदेश के मुख्य विपक्षी दल भी पारंपरिक मुस्लिम वोट बैंक से अपना ध्यान हटाते नजर आ रहे हैं.
ठीक इसी वक्त चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) ने मुस्लिमों को अपनी पार्टी से जोड़ने के लिए और उनका समर्थन हासिल करने के लिए एक नए अभियान की शुरुआत की है.
इस अभियान की शुरुआत उत्तर प्रदेश की राजधानी लखनऊ से हुई. एक मुस्लिम संवाद सम्मेलन में बोलते हुए चंद्रशेखर आजाद ने कहा कि भारतीय संविधान सभी को समान अधिकार देता है, लेकिन आज के समय में धार्मिक अल्पसंख्यकों को ये अधिकार छीने जाने का डर सता रहा है.
2027 के उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में मुसलमानों से अपनी पार्टी का समर्थन करने का आह्वान करते हुए, उन्होंने अन्य विपक्षी दलों पर मुस्लिम भावनाओं का शोषण करने और उनके हितों की रक्षा करने में असफल रहने का आरोप लगाया.
आजाद ने बताया कि उनकी पार्टी ने राज्य भर में मुस्लिम संवाद अभियान शुरू किया है. उन्होंने कहा कि अलग-अलग समुदायों की जनसंख्या के आधार पर उस क्षेत्र के विधानसभा और पंचायत चुनावों में टिकट बांटे जाएंगे. आने वाले दिनों में आजाद समाज पार्टी (कांशीराम) दलितों और अन्य पिछड़ा वर्गों के साथ भी इसी तरह के सम्मेलनों की योजना बना रही है.
आजाद ने राज्य की बीजेपी सरकार पर मुसलमानों को चुन-चुनकर निशाना बनाने का आरोप लगाया. उन्होंने कहा, "करीब एक महीने तक कांवड़ यात्रा सड़कों पर निकलने दी जाती है. सरकार इसके लिए व्यापक इंतजाम करती है. यह ठीक है, लेकिन चिंता की बात ये है कि अगर मुसलमान थोड़ी देर के लिए नमाज पढ़ने निकलते हैं, तो पुलिस लाठियां लेकर पहुंच जाती है. बीजेपी सरकार ने मुसलमानों के प्रति भेदभावपूर्ण नीति अपनाई है."
आजाद ने आरोप लगाया कि कांवड़ यात्रा मार्गों पर मुसलमानों की दुकानों को जबरन बंद कराया जा रहा है, भले ही वे मांसाहारी भोजन नहीं बेच रहे हों. उन्होंने कहा, “कांवड़ मार्ग पर मुसलमानों के चाय दुकानों से लेकर नाई की दुकानों तक को भी बंद किया जा रहा है.” उन्होंने मुसलमानों को शिक्षा के अधिकार से वंचित किए जाने का भी दावा किया.
आजाद ने बीजेपी के नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर वक्फ कानूनों में संशोधन के जरिए मुसलमानों को निशाना बनाने का आरोप लगाया. उन्होंने मुसलमानों से एकजुट होने का आग्रह किया. आजाद ने कहा कि मुस्लिमों का सशक्तिकरण 2027 के राज्य चुनाव के लिए उनकी पार्टी के घोषणापत्र का हिस्सा होगा.
मुस्लिमों तक अपनी पहुंच बनाकर चंद्रशेखर आजाद की पार्टी अपना विस्तार करना चाहती है. अब तक आजाद की पार्टी को मुख्य रूप से दलितों और पिछड़ी जातियों की पार्टी के रूप में देखा जाता है, लेकिन आजाद इतने से संतुष्ट नहीं हैं.
चंद्रशेखर के आलोचकों का मानना है कि प्रमुख विपक्षी दल समाजवादी पार्टी (सपा), बहुजन समाज पार्टी (बसपा) और कांग्रेस अपनी चुनावी रणनीति के कारण इस समुदाय का खुले तौर पर समर्थन करने से बच रहे हैं. राजनीतिक दलों के मुस्लिमों पर खास ध्यान देने की एक वजह यह भी है कि राज्य में इनकी आबादी लगभग 19 फीसद है.
सत्तारूढ़ बीजेपी ने हाल के चुनावों में मुस्लिम उम्मीदवार नहीं उतारे जो हिंदू-बहुल वोट की ओर उसके झुकाव का सबसे साफ संकेत है. कभी मुस्लिम-यादव गठबंधन के इर्द-गिर्द बनी सपा ने अपना ध्यान फिलहाल PDA यानी पिछड़ा, दलित, अल्पसंख्यक फॉर्मूले पर केंद्रित कर लिया है.
इसी तरह बसपा भी मुसलमानों के बीच अपनी मजबूत पैठ बनाए रखने में सफल नहीं हो पा रही है. बसपा खासकर 2024 के लोकसभा चुनावों के बाद अपने पारंपरिक दलित और पिछड़ी जातियों के आधार को मजबूत करने की कोशिश कर रही है. यहां तक कि गठबंधन की मजबूरियों और वोट-संतुलन में फंसी कांग्रेस ने भी 2024 में बहुत कम मुस्लिम उम्मीदवार उतारे. इससे पूरे राजनीतिक परिदृश्य में एक पैटर्न उभर कर सामने आ रहा है.
उत्तर प्रदेश की 403 सदस्यीय विधानसभा में मुसलमानों के प्रतिनिधित्व की बात करें तो यहां अब केवल 31 विधायक हैं. यह 2012 की तुलना में भारी गिरावट है. तब 69 मुस्लिम उम्मीदवार विधायक चुने गए थे.
2012 में इस समुदाय को आजादी के बाद से अब तक का सबसे ज्यादा आनुपातिक प्रतिनिधित्व लगभग 17.1 फीसद था. 2017 में यह संख्या तेजी से घटकर 24 रह गई. 2022 में मुस्लिम विधायकों की संख्या मामूली रूप से बढ़कर 34 हो गई. 2022 में सपा ने 31 सीटें जीतीं थीं. हालांकि, मऊ विधायक अब्बास अंसारी की अयोग्यता और रामपुर व कुंदरकी उपचुनाव में हार के बाद यह संख्या फिर से कम हो गई है.
उत्तर प्रदेश का राजनीतिक विमर्श लंबे समय से हिंदुत्व से प्रभावित रहा है, जहां शासन को बहुसंख्यक पहचान के इर्द-गिर्द गढ़ा जाता रहा है. कोई भी विपक्षी दल इस बदलाव को नजरअंदाज नहीं कर सकता.
कई जानकारों का मानना है कि 'मुस्लिम' शब्द की भी राजनीतिक कीमत चुकानी पड़ रही है. यही वजह है कि कुछ नेता इसके बजाय 'अल्पसंख्यक' शब्द का इस्तेमाल करने लगे हैं.
इन सबके बीच अपने क्षेत्र में दलितों के बीच समर्थन हासिल कर चुके चंद्रशेखर आजाद अब मुस्लिमों तक पहुंच बनाने की कोशिश में लग गए हैं. वे दलित और मुस्लिम गठजोड़ के जरिए उत्तर प्रदेश की राजनीति में अहम भूमिका निभाना चाहते हैं. उनके इस कोशिश को विपक्षी दलों के साथ-साथ बीजेपी के प्रभुत्व को चुनौती देने के एक साहसिक कदम के तौर पर देखा जा रहा है.