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BJP यूपी में प्रदेश अध्यक्ष तय क्यों नहीं कर पा रही; कौन हैं दावेदार?

उत्तर प्रदेश में जिला अध्यक्षों की नई सूची के बाद BJP में प्रदेश अध्यक्ष बदलने की चर्चा फिर तेज है

उत्तर प्रदेश में बीजेपी कार्यसमिति की बैठक (फाइल फोटो)
उत्तर प्रदेश में बीजेपी कार्यसमिति की बैठक (फाइल फोटो)
अपडेटेड 28 नवंबर , 2025

उत्तर प्रदेश भारतीय जनता पार्टी (BJP) में प्रदेश के लिए नए अध्यक्ष के चयन को लेकर अटकलें फिर तेज हो गई हैं. 26 नवंबर की देर रात पार्टी ने राज्य के 14 जिलों में नए जिला अध्यक्षों की सूची जारी की, जिसके बाद जिला स्तर पर नियुक्तियों की कुल संख्या 84 हो गई है. अभी 14 संगठनात्मक जिलों को अपने नए अध्यक्षों का इंतजार है और इन्हीं जिला नेताओं के माध्यम से प्रदेश अध्यक्ष का चुनाव होना है. 

जैसे ही नए जिलाध्यक्षों की यह सूची जारी हुई, प्रदेश अध्यक्ष के संभावित नामों को लेकर पार्टी के भीतर और बाहर दोनों जगह चर्चा फिर गर्म हो गई. BJP नेतृत्व लंबे समय से इस पद पर फैसला टालता रहा है और अब 2027 के विधानसभा चुनाव तथा 2026 के पंचायत चुनावों की दस्तक ने दबाव और बढ़ा दिया है. 

BJP समाजवादी पार्टी (सपा) के PDA फॉर्मूले के जवाब का विकल्प तैयार कर रही है और इसी वजह से प्रदेश अध्यक्ष का चयन एक बार फिर राजनीतिक और जातीय समीकरणों के केंद्र में आ गया है. BJP संगठन चुनाव पिछले वर्ष शुरू हुए थे. इसके बाद से प्रदेश BJP अध्यक्ष का इंतजार चल रहा है. लंबे समय से यूपी में BJP प्रदेश अध्यक्ष को लेकर चल रही दुविधा पर पार्टी के एक वरिष्ठ नेता बताते हैं “BJP ऐसा प्रदेश अध्यक्ष बनाना चाहती है जो PDA की रणनीति की काट बन सके.

दूसरी अहम वजह संगठनात्मक और वैचारिक संतुलन भी बताई जा रही है. पार्टी का केंद्रीय नेतृत्व और राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ (RSS) अपने-अपने स्तर पर उपयुक्त चेहरा तलाश रहे हैं. केंद्रीय नेतृत्व चुनावी साख और जनाधार को प्राथमिकता देता है, जबकि संघ लंबे संगठनात्मक अनुभव वाले नेता को वरीयता देना चाहता है. ऐसे में दोनों के बीच तालमेल बैठने में भी समय लग रहा है.“

भूपेंद्र चौधरी को अगस्त 2022 में उत्तर प्रदेश BJP का अध्यक्ष बनाया गया था. किसान आंदोलन के बाद पश्चिम यूपी में जाट समुदाय की नाराजगी साफ दिखने लगी थी और विधानसभा चुनाव के नतीजे भी यह संकेत दे रहे थे कि BJP को इस क्षेत्र में डैमेज कंट्रोल की जरूरत है. 2017 की तुलना में 2022 में जाट विधायकों की संख्या बढ़ी, लेकिन BJP का हिस्सा घटा. इसी पृष्ठभूमि में भूपेंद्र चौधरी की नियुक्ति हुई थी, ताकि जाटों के बीच पार्टी का आधार मजबूत किया जा सके.

इसके बावजूद लोकसभा चुनाव में BJP पश्चिम यूपी का प्रदर्शन नहीं बचा पाई और राष्ट्रीय लोकदल के साथ गठबंधन करने के बाद भी उसका वोट शेयर उम्मीद के मुताबिक नहीं लौटा. जहां राष्ट्रीय लोकदल (RLD) ने अपनी दोनों सीटें जीत लीं, वहीं BJP 62 से गिरकर 33 सीटों पर सिमट गई. संविधान बचाओ जैसे मुद्दों पर इंडिया गठबंधन की आक्रामकता और कई सीटों पर उम्मीदवार चयन की गलतियों ने नुकसान बढ़ा दिया. परिणाम आते ही चौधरी को बदलने की चर्चा शुरू हो गई और कई महीनों तक यह अटकलें जारी रहीं.

बीते वर्ष के उपचुनावों में प्रदर्शन ने चौधरी को कुछ राहत जरूर दी. नौ विधानसभा उपचुनावों में सात पर BJP की जीत और जनवरी में मिल्कीपुर सीट पर मिली जीत ने उनके समर्थकों को यह कहने का अवसर दिया कि संगठन भूपेंद्र चौधरी की अगुआई में मजबूती से काम कर रहा है. लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों का आकलन अलग है. उनका मानना है कि इन उपचुनावों में योगी आदित्यनाथ की लोकप्रियता निर्णायक फैक्टर रही और BJP शीर्ष नेतृत्व इसे अकेले संगठन की उपलब्धि के रूप में नहीं देख रहा. इसी वजह से चौधरी की वापसी की संभावना लगातार कमजोर बनी हुई है, जबकि उनका समर्थक वर्ग अभी भी उन्हें बनाए रखने की कोशिश कर रहा है.

BJP अब ऐसे चेहरे की तलाश में है जो सपा के PDA फॉर्मूले के असर को संतुलित कर सके. यह फॉर्मूला पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक समुदायों की सामाजिक एकजुटता को राजनीतिक स्वरूप देता है और BJP इसे लेकर पूरी तरह सतर्क है. पार्टी की कोशिश है कि प्रदेश अध्यक्ष ऐसा नेता हो जो ओबीसी या दलित समुदाय से आता हो और जातीय समीकरण में BJP को बढ़त दे सके. प्रदेश BJP के एक वरिष्ठ नेता का कहना है कि प्रदेश अध्यक्ष की जाति काफी हद तक नए राष्ट्रीय अध्यक्ष की जाति पर भी निर्भर करेगी, ताकि दोनों स्तरों पर सामाजिक संतुलन का बड़ा ढांचा तैयार किया जा सके. ओबीसी नेताओं की सूची में तीन नाम सबसे आगे माने जा रहे हैं.

योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री धर्मपाल सिंह, केंद्रीय राज्य मंत्री बी. एल. वर्मा और राज्यसभा सांसद बाबूराम निषाद. धर्मपाल सिंह और वर्मा दोनों लोध समुदाय से आते हैं, जो रोहिलखंड और बुंदेलखंड में मजबूत उपस्थिति रखता है और पारंपरिक रूप से BJP के साथ खड़ा रहा है. धर्मपाल सिंह के नाम पर उम्र और संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह के साथ नाम की समानता जैसी बातें चर्चा में हैं. हालांकि उनके करीबी समर्थकों का तर्क है कि जरूरत होने पर उनके नाम में ‘लोध’ जोड़कर यह दुविधा दूर की जा सकती है, जैसा स्वतंत्र देव सिंह के साथ ‘पटेल’ जोड़कर किया गया था. 

बाबूराम निषाद की दावेदारी भी मजबूती के साथ उभरती दिख रही है, क्योंकि निषाद समुदाय पूर्वांचल में बड़ा प्रभाव रखता है और BJP पिछले कई चुनावों में इस समुदाय को अपने साथ जोड़ने की कोशिश करती रही है.

दलित चेहरों में राम शंकर कठेरिया सबसे आगे दिखाई देते हैं. कठेरिया उम्र, अनुभव और संगठनात्मक पृष्ठभूमि, तीनों कसौटियों पर फिट बैठते हैं. वे धानुक उपजाति से आते हैं, दो बार आगरा से सांसद रहे, केंद्रीय मंत्री रहे, राष्ट्रीय अनुसूचित जाति जनजाति आयोग के अध्यक्ष रहे और RSS से उनका जुड़ाव भी पुराना है. हालांकि 2024 में इटावा से उनकी हार को कुछ नेता उनके खिलाफ दलील के रूप में पेश कर रहे हैं. 

इनके अलावा पूर्व सांसद, नीलम सोनकर, विधान परिषद सदस्य एमएलसी विद्या सागर सोनकर का नाम भी चर्चा में है. ब्राह्मण नेताओं में पूर्व उपमुख्यमंत्री दिनेश शर्मा और राज्य BJP महासचिव गोविंद नारायण शुक्ला भी प्रदेश अध्यक्ष की दौड़ में शामिल हैं. हालांकि राज्यसभा सांसद अमरपाल मौर्य और बस्ती से पूर्व सांसद हरीश द्विवेदी भी शुरुआत में दावेदारों की सूची में थे, लेकिन दोनों के नाम जातीय और क्षेत्रीय समीकरण में फिट नहीं बैठ पाए. संगठन महामंत्री धर्मपाल सिंह सैनी समुदाय से आते हैं और पार्टी एक ही जाति (मौर्य और सैनी) के दो नेताओं को शीर्ष पदों पर नहीं रखना चाहती. 

वहीं द्विवेदी के गोरखपुर से नजदीकी क्षेत्र का होना भी उनके लिए बाधा बना, क्योंकि BJP मुख्यमंत्री और प्रदेश अध्यक्ष को दो अलग-अलग भौगोलिक क्षेत्रों से रखकर संतुलन बनाना चाहती है. वर्तमान अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी पश्चिम से आते हैं, इसलिए इस बार भी पश्चिम यूपी से किसी ओबीसी नेता की नियुक्ति की संभावना मजबूत मानी जा रही है.

समय का दबाव भी इस चयन को और गंभीर बना रहा है. BJP के एक बड़े समूह की इच्छा है कि अगले महीने दिसंबर में खरमास शुरू होने से पहले नया अध्यक्ष घोषित कर दिया जाए. खरमास के दौरान शुभ कार्यों से परहेज की परंपरा और उसके तुरंत बाद पंचायत चुनावों की तैयारियां, दोनों कारणों से पार्टी किसी भी देरी से बचने के पक्ष में है. इस पद के लिए अंतिम सहमति में केंद्रीय नेतृत्व, मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ, संगठन महामंत्री और RSS, सभी की भूमिका है. इसलिए निर्णय एक साथ कई स्तरों के संतुलन पर टिकता है. 

उत्तर प्रदेश BJP अध्यक्ष का पद संगठन का सिर्फ एक औपचारिक दायित्व नहीं है. यह वह केंद्र है जहां से चुनावी रणनीति, जातीय गणित, कैडर प्रबंधन और राजनीतिक संदेश, सब चलता है. लोकसभा चुनाव में खराब प्रदर्शन और सपा की PDA रणनीति ने इस पद को और निर्णायक बना दिया है. BJP के सामने चुनौती यह है कि वह ऐसा नेता चुन सके जो 2027 के विधानसभा चुनाव तक संगठन को मजबूती से चलाए, समुदायों के बीच पार्टी की पकड़ बढ़ाए और केंद्र तथा राज्य दोनों के राजनीतिक उद्देश्यों को एक धरातल पर ला सके.

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