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यूपी BJP के अध्यक्ष पद से हटने के बाद भूपेंद्र चौधरी के बारे में क्या अटकलें लग रहीं?

पूर्वांचल से ताल्लुक रखने वाले पंकज चौधरी के BJP का प्रदेश अध्यक्ष निर्वाचित होने के बाद पश्च‍िमी यूपी से ताल्लुक रखने वाले निवर्तमान अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी की नई भूमिका को लेकर अटकलें तेज

भूपेंद्र चौधरी (बाएं) यूपी बीजेपी के नए अध्यक्ष पंकज चौधरी के साथ
भूपेंद्र चौधरी (बाएं) यूपी बीजेपी के नए अध्यक्ष पंकज चौधरी के साथ
अपडेटेड 16 दिसंबर , 2025

उत्तर प्रदेश BJP को नया प्रदेश अध्यक्ष मिलने के साथ ही पार्टी की अंदरूनी राजनीति एक बार फिर निर्णायक मोड़ पर आ खड़ी हुई है. पूर्वांचल से आने वाले पंकज चौधरी की ताजपोशी ने जहां संगठन को नया चेहरा दिया है, वहीं पश्चिमी उत्तर प्रदेश में इसके असर की सबसे ज्यादा चर्चा है. 

वजह साफ है. पिछले कई वर्षों से पश्चिम यूपी में BJP की राजनीति का केंद्र रहे निवर्तमान प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी अब औपचारिक तौर पर पद से हट चुके हैं, लेकिन उनकी राजनीतिक भूमिका और उपयोगिता को लेकर अटकलें और कयास तेज हो गए हैं. 

मुरादाबाद से ताल्लुक रखने वाले भूपेंद्र चौधरी सिर्फ एक संगठनात्मक पदाधिकारी नहीं रहे. वे पश्चिम यूपी में जाट समाज के साथ BJP के रिश्ते का प्रतीक बन चुके थे. योगी सरकार में कैबिनेट मंत्री से लेकर प्रदेश अध्यक्ष तक का उनका सफर पार्टी की उस रणनीति का हिस्सा रहा, जिसके तहत 2017 और 2022 में पश्चिमी यूपी में मजबूत सामाजिक संतुलन बनाया गया था. 

यही कारण है कि लोकसभा चुनाव में अपेक्षित प्रदर्शन न होने के बावजूद पार्टी ने उन्हें अचानक हाशिये पर नहीं डाला. पार्टी के एक वरिष्ठ नेता, नाम न छापने की शर्त पर, कहते हैं, “भूपेंद्र चौधरी को सिर्फ चुनावी नतीजों के तराजू पर तौलना BJP की आदत नहीं है. पश्चिम यूपी में संगठन को खड़ा करने, जाट समाज के साथ संवाद बनाए रखने और जमीनी नेटवर्क मजबूत करने में उनकी भूमिका अहम रही है.”

जाट राजनीति और BJP की मजबूरी

पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति जाट मतदाताओं के बिना अधूरी मानी जाती है. 2011 की जनगणना के मुताबिक, पश्चिम यूपी के करीब 17 से 20 जिलों में जाट आबादी 10 से 20 फीसदी के बीच है. मुजफ्फरनगर, बागपत, मेरठ, शामली, बिजनौर, मुरादाबाद और अमरोहा जैसे जिलों में जाट निर्णायक भूमिका में हैं. 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद जाटों का बड़ा वर्ग BJP के साथ आया था, जिसका असर 2014, 2017 और 2019 तक दिखा. लेकिन 2024 के लोकसभा चुनाव में तस्वीर बदली. पश्चिम यूपी की कई सीटों पर BJP को उम्मीद से कम सफलता मिली. किसान आंदोलन, गन्ना भुगतान और स्थानीय असंतोष ने पार्टी के समीकरण बिगाड़े. 

ऐसे में BJP के सामने चुनौती साफ है, जाट मतदाताओं का भरोसा फिर से कैसे मजबूत किया जाए. यहीं भूपेंद्र चौधरी की भूमिका फिर से चर्चा में आती है. यूपी BJP के नए अध्यक्ष को चुनने के लिए चुनावी प्रक्रिया शुरू होने से ठीक पहले दिल्ली में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और अन्य वरिष्ठ नेताओं से उनकी मुलाकातों को महज शिष्टाचार नहीं माना जा रहा. पार्टी के भीतर यह संकेत माना जा रहा है कि मिशन 2027 के लिए भूपेंद्र को पश्चिम यूपी में फिर से सक्रिय भूमिका दी जा सकती है.

संगठन से सरकार तक वापसी?

सबसे मजबूत अटकल यह है कि BJP भूपेंद्र चौधरी को योगी मंत्रिमंडल में दोबारा शामिल कर सकती है, वह भी किसी अहम विभाग के साथ. पार्टी पहले भी यह प्रयोग कर चुकी है. मुरादाबाद जैसे मुस्लिम बहुल जिले से जाट नेता को कैबिनेट मंत्री बनाकर BJP ने सामाजिक संदेश दिया था कि वह सिर्फ एक वर्ग की पार्टी नहीं है. 

राजनीतिक विश्लेषक मानते हैं कि यह कदम दोहरा फायदा दे सकता है. पहला, जाट समाज को यह संकेत कि पार्टी में उनकी अहमियत बनी हुई है. दूसरा, पश्चिम यूपी में संगठन और सरकार के बीच बेहतर समन्वय. वरिष्ठ राजनीतिक विश्लेषक और कान्यकुब्ज कालेज में राजनीतिक शास्त्र विभाग के प्रोफेसर ब्रजेश मिश्र कहते हैं, “BJP अब जोखिम लेने की स्थिति में नहीं है. लोकसभा चुनाव से जो झटका लगा है, उसके बाद पार्टी हर क्षेत्र में संतुलन साधकर चलना चाहती है. पश्चिम यूपी में भूपेंद्र चौधरी जैसे नेता को पूरी तरह अलग करना व्यवहारिक नहीं होगा.”

मुरादाबाद में स्थानीय राजनीति भी बदल रही है

पंकज चौधरी की ताजपोशी का असर सिर्फ प्रदेश स्तर तक सीमित नहीं है. भूपेंद्र चौधरी के गृह जिले मुरादाबाद में भी नए राजनीतिक समीकरण बनने लगे हैं. 2026 के पंचायत चुनाव अब ज्यादा दूर नहीं हैं और जिले में सत्ता संतुलन की बिसात बिछ चुकी है. 39 सदस्यीय जिला पंचायत में 2021 के चुनाव के दौरान जो खींचतान देखने को मिली थी, उसका असर आज भी दिख रहा है. 

कुंदरकी से BJP विधायक ठाकुर रामवीर सिंह ने वार्ड-31 से पत्नी संतोष देवी को चुनाव जिताकर जिला पंचायत अध्यक्ष पद की मजबूत दावेदारी की थी. संगठन से मिले संकेतों के आधार पर यह लगभग तय माना जा रहा था कि अध्यक्षी उन्हीं के खाते में जाएगी. लेकिन समीकरण बदले और वार्ड-21 से जिला पंचायत सदस्य बनीं डॉ. शैफाली सिंह अध्यक्ष बन गईं. इसके पीछे संगठन के वरिष्ठ नेताओं का समर्थन बताया गया. 

इसके बाद रामवीर सिंह और जिला पंचायत नेतृत्व के बीच तनातनी खुलकर सामने आई. बोर्ड बैठकों में टकराव, सार्वजनिक बयानबाजी और यहां तक कि विवाद के वीडियो सोशल मीडिया तक पहुंचे. अब नए प्रदेश अध्यक्ष के आने के बाद यह माना जा रहा है कि मुरादाबाद में संगठन पुराने घावों को भरते हुए नए सिरे से संतुलन बनाएगा. पंचायत चुनाव, सहकारी बैंक चेयरमैन का चुनाव और 2027 की विधानसभा तैयारियां, तीनों एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं. इस संतुलन को नए सिरे से साधने में भूपेंद्र चौधरी की अहम भूमिका हो सकती  है. 

क्षेत्रीय अध्यक्ष की दौड़ और जातीय गणित

प्रदेश अध्यक्ष की नियुक्ति के बाद अब नजरें क्षेत्रीय अध्यक्षों पर टिकी हैं. नए साल में BJP पश्चिम यूपी समेत सभी क्षेत्रों में नए अध्यक्ष घोषित कर सकती है. पश्चिम यूपी के लिए यह फैसला बेहद संवेदनशील माना जा रहा है. फिलहाल प्रदेश उपाध्यक्ष और एमएलसी मोहित बेनीवाल का नाम सबसे आगे चल रहा है. वे पहले भी क्षेत्रीय अध्यक्ष रह चुके हैं और संगठन का लंबा अनुभव रखते हैं. आमतौर पर लोगों को रिपीट न करने की BJP की रणनीति मोहित बे‍नीवाल की राह में बाधा भी बन सकती है. इसके अलावा क्षेत्रीय महामंत्री डॉ. विकास अग्रवाल, हरीश ठाकुर, हरिओम शर्मा, हरवीर मलिक, अजीत चौधरी, क्षेत्रीय मंत्री इंद्रपाल प्रजापति, अंकुर राणा और क्षेत्रीय उपाध्यक्ष मनोज पोसवाल के नाम भी चर्चा में हैं.

एक दिलचस्प पहलू जातीय संतुलन का है. पिछड़ा वर्ग से आने वाले पंकज चौधरी को प्रदेश अध्यक्ष बनाए जाने के बाद पश्चिम यूपी में जाट या ब्राह्मण चेहरे को आगे लाने की पैरवी तेज हो गई है. श्रम कल्याण परिषद के पूर्व अध्यक्ष पंडित सुनील भराला का नाम ब्राह्मण चेहरे के तौर पर लिया जा रहा है. BJP के एक संगठनात्मक नेता कहते हैं, “पश्चिम यूपी में जातीय संतुलन साधे बिना चुनावी तैयारी अधूरी है. प्रदेश अध्यक्ष पूर्वांचल से हैं, इसलिए पश्चिम में नेतृत्व चयन बहुत सोच-समझकर किया जाएगा.”

मिशन 2027 के लिए जरा भी जोखिम नहीं ले सकती BJP

BJP नेतृत्व इस बार कोई ढील नहीं देना चाहता. 2027 का विधानसभा चुनाव पार्टी के लिए सिर्फ सत्ता का सवाल नहीं, बल्कि 2024 के लोकसभा चुनाव के झटके से उबरने की परीक्षा भी है. पश्चिम यूपी में पार्टी जानती है कि छोटी-सी चूक बड़े राजनीतिक नुकसान में बदल सकती है. इसलिए संगठनात्मक बदलाव, मंत्रिमंडल विस्तार, पंचायत स्तर पर समीकरण और जातीय संतुलन, सब कुछ एक साथ साधने की कोशिश हो रही है. भूपेंद्र चौधरी की नई भूमिका इसी रणनीति का हिस्सा मानी जा रही है. 

पार्टी नेताओं का कहना है कि चाहे केंद्रीय संगठन में समायोजन हो या योगी मंत्रिमंडल में वापसी, भूपेंद्र चौधरी को पूरी तरह साइडलाइन नहीं किया जाएगा. उनकी राजनीतिक पूंजी पश्चिम यूपी में अब भी प्रासंगिक है. पंकज चौधरी की ताजपोशी ने यूपी BJP में नए अध्याय की शुरुआत जरूर की है, लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश की राजनीति अब भी पुराने अनुभव और नए प्रयोग के मेल पर टिकेगी. भूपेंद्र चौधरी का भविष्य, मुरादाबाद के स्थानीय समीकरण, क्षेत्रीय अध्यक्ष की नियुक्ति और जाट-ब्राह्मण-पिछड़ा संतुलन, ये सभी मिलकर तय करेंगे कि BJP मिशन 2027 में कितनी मजबूती से उतरती है. 

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