शिवसेना (उद्धव बालासाहेब ठाकरे) के प्रमुख उद्धव ठाकरे और उनके चचेरे भाई तथा महाराष्ट्र नवनिर्माण सेना (मनसे) के प्रमुख राज ठाकरे के बीच सियासी सुलह की अटकलों के बीच दोनों पार्टियां अब मुंबई के एक स्थानीय चुनाव में अपनी ताकत आजमाने जा रही हैं.
शिवसेना (यूबीटी) और मनसे ने प्रतिष्ठित बेस्ट (बृहन्मुंबई इलेक्ट्रिक सप्लाई ऐंड ट्रांसपोर्ट) कोऑपरेटिव क्रेडिट सोसाइटी के चुनाव में गठबंधन करने का फैसला किया है. इस सोसाइटी में करीब 15,000 वोटर हैं और 1,000 करोड़ रुपए का कारोबार है. इसकी 21 सीटों के लिए चुनाव 18 अगस्त को होंगे.
हालांकि यह चुनाव स्थानीय स्तर का है, लेकिन इसका नतीजा बताएगा कि अगर ठाकरे बंधु राजनीति में साथ आते हैं तो क्या मुंबई का मराठी मानूस उनके साथ खड़ा रहेगा. बेस्ट के ज्यादातर कर्मचारी महाराष्ट्रीयन हैं. बेस्ट कामगार सेना के अध्यक्ष सुहास सामंत, जो शिवसेना (यूबीटी) की यूनियन के नेता हैं, ने कहा कि दोनों पार्टियों ने मिलकर चुनाव लड़ने का फैसला किया है. उनके मुताबिक, “मनसे ने हमारे साथ गठबंधन करने का फैसला किया है, जो दोनों भाइयों के साथ आने की इच्छा के अनुरूप है. इसलिए हम उन्हें दो सीटें देने के लिए तैयार हैं.”
मनसे के मुंबई शहर अध्यक्ष संदीप देशपांडे ने इस बात की पुष्टि की है. मनसे को 21 में से दो सीटों पर चुनाव लड़ने का मौका मिलेगा. शिवसेना (यूबीटी) और मनसे का गठबंधन कई मजदूर यूनियनों और पैनलों के खिलाफ अपनी ताकत आजमाएगा, जिनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री और भाजपा नेता नारायण राणे, बीजेपी एमएलसी प्रसाद लाड, बेस्ट वर्कर्स यूनियन के नेता शशांक राव और उपमुख्यमंत्री एकनाथ शिंदे के नेतृत्व वाली शिवसेना शामिल हैं.
शिवसेना (यूबीटी)-मनसे का ‘उत्कर्ष पैनल’ इन यूनियनों के खिलाफ मैदान में उतरेगा, जिन्होंने एक संयुक्त मोर्चा बनाया है. इसमें लाड और बीजेपी एमएलसी प्रवीण डेरेकर की कामगार उत्कर्ष सभा, राणे की समर्थ कामगार संघटना, शिवसेना नेता किरण पावस्कर की राष्ट्रीय कर्मचारी सेना, महेंद्र साल्वे की एससी, एसटी, ओबीसी और वीजेएनटी कर्मचारियों की यूनियन और दिवंगत आरपीआई नेता मनोज संसारे की यूनियन शामिल हैं.
बेस्ट कामगार सेना पिछले नौ साल से इस 84 साल पुरानी क्रेडिट सोसाइटी पर कब्जा बनाए हुए है. इससे पहले बेस्ट क्रेडिट सोसाइटी पर समाजवादी नेताओं का नियंत्रण था, जिनमें पूर्व केंद्रीय मंत्री जॉर्ज फर्नांडीस के करीबी नारायण फेननी और उनके करीबी से दुश्मन बने शरद राव शामिल थे, जो म्युनिसिपल मजदूर यूनियन (एमएमयू) चलाते थे. शिवसेना (यूबीटी) के विरोधियों का कहना है कि सोसाइटी की बागडोर संभालने के बाद उसने इसके कामकाज में गड़बड़ियां की हैं.
मनसे शुरू करने से पहले राज, जो कभी अविभाजित शिवसेना के अब बंद हो चुके छात्र संगठन भारतीय विद्यार्थी सेना (बीवीएस) के अध्यक्ष थे, अपने चाचा और शिवसेना सुप्रीमो बाल ठाकरे के राजनैतिक उत्तराधिकारी माने जाते थे. लेकिन धीरे-धीरे उन्हें पार्टी में अपने बड़े चचेरे भाई उद्धव के लिए जगह छोड़नी पड़ी और आखिरकार उन्होंने 2005 में पार्टी छोड़ दी.
अगले साल उन्होंने मनसे की स्थापना की. शिवसेना (यूबीटी) और मनसे, दोनों का पिछले साल के विधानसभा चुनान में बुरा हाल हुआ. शिवसेना (यूबीटी) की विधानसभा में ताकत घटकर सिर्फ 20 रह गई, जबकि मनसे, जिसने 2019 में एक सीट जीती थी, पूरी तरह साफ हो गई. यहां तक कि राज के बेटे अमित भी माहिम सीट हार गए.
विधानसभा चुनाव में हार के बाद दोनों पार्टियों ने एक-दूसरे के प्रति नरमी दिखानी शुरू की. खबरों के मुताबिक उद्धव और राज ने फिर से बातचीत शुरू करने और सुलह की संभावनाएं तलाशने की पहल की.
दोनों को महायुति सरकार के उस विवादित फैसले में राजनैतिक मौका दिखा, जिसमें कक्षा 1 से 5 तक के छात्रों के लिए हिंदी को अनिवार्य तीसरी भाषा बनाने की बात कही गई थी. जानकारों ने कहा कि इससे छात्रों को पढ़ाई में दिक्कत होगी, क्योंकि वे इतनी कम उम्र में तीसरी भाषा सीखने के लिए तैयार नहीं होते. अगर प्राथमिक कक्षाओं के पाठ्यक्रम में तीसरी भाषा जोड़ी गई तो गणित जैसे अहम विषयों को मिलने वाला समय और महत्व कम हो सकता है.
उद्धव और राज ने 5 जुलाई को मुंबई के वर्ली में एक विरोध सभा में मंच साझा किया, जिसमें दोनों ने मिलकर मराठी की रक्षा का मुद्दा उठाया. सूत्रों का कहना है कि गठबंधन की संभावना तो है, लेकिन यह काफी हद तक सीट बंटवारे की बातचीत के नतीजे पर निर्भर करेगा.
हिंदी को अनिवार्य बनाने के फैसले का विरोध शुरू में शिक्षाविदों और नागरिक संगठनों जैसे मराठी अध्ययन केंद्र के दीपक पवार ने किया था, लेकिन मराठी अस्मिता के मुद्दे पर दोनों ठाकरे एक साथ आ सकते हैं, इस संभावना ने देवेंद्र फडणवीस सरकार को अपना फैसला टालने और दोबारा सोचने के लिए मजबूर कर दिया.
एकजुट शिवसेना को हमेशा भावनात्मक जनाधार वाली पार्टी माना गया है और अगर दोनों ठाकरे साथ आते हैं तो यह मुंबई और आसपास के इलाकों में उनके कोर मराठी वोटरों को एकजुट कर सकता है और इस साल होने वाले बृहन्मुंबई नगर निगम (बीएमसी) चुनाव में फायदा दिला सकता है.
मुंबई में भाजपा को गैर-मराठी भाषी समूहों जैसे गुजराती, मारवाड़ी, जैन और उत्तर भारतीयों के बीच मजबूत आधार वाली पार्टी माना जाता है, जिससे वह इस मुद्दे पर बैकफुट पर आ सकती है. अजीत पवार की अगुवाई वाली राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी (एनसीपी) के एक वरिष्ठ नेता, जो महायुति का हिस्सा हैं, ने कहा कि ठाकरे अगर एकजुट होते हैं तो गैर-मराठी वोटर भाजपा के पक्ष में एकजुट हो सकते हैं. इसके विपरीत, मराठी वोटर शिवसेना (यूबीटी)-एमएनएस गठबंधन, शिंदे की शिवसेना और अन्य पार्टियों में बंट सकते हैं. हालांकि इस नेता का मानना है कि ठाकरे साथ आए तो शिंदे अपनी राजनैतिक जमीन खो सकते हैं.