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राजस्थान : आदिवासी हिंदू हैं या नहीं, की बहस बढ़ती ही क्यों जा रही है?

लोकसभा चुनाव नतीजे आने के बाद बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र से भारतीय आदिवासी पार्टी (बीएपी) के नव निर्वाचित सांसद राजकुमार रोत के एक बयान के बाद यह बहस शुरू हुई थी

भारत आदिवासी पार्टी के सांसद राजकुमार रौत
भारत आदिवासी पार्टी के सांसद राजकुमार रौत (फाइल फोटो)
अपडेटेड 22 जुलाई , 2024

देश में गाहे-बगाहे यह बहस चलती रहती है कि आदिवासी हिंदू हैं या नहीं. इस बार इस सियासी बहस का केंद्र बिंदु राजस्थान बना है. आदिवासी हिंदू हैं या नहीं, इस मुद्दे को लेकर राजस्थान में लोकसभा चुनाव के दौरान उठा सियासी घमासान अब तक शांत नहीं हुआ है. पिछले डेढ़ महीने से आदिवासियों के मुद्दे को लेकर प्रदेश की सियासत जब-तब गरमा रही है. 

ताजा विवाद की शुरुआत जून में हुई थी. तब बांसवाड़ा-डूंगरपुर लोकसभा क्षेत्र से भारतीय आदिवासी पार्टी (बीएपी) के नव निर्वाचित सांसद राजकुमार रोत ने यह बयान दिया था, ‘‘आदिवासी हिंदू नहीं हैं. हिंदू विवाह अधिनियम 1955 के तहत आज तक किसी भी आदिवासी परिवार में तलाक नहीं हुआ. भाजपा आदिवासियों को हिंदू बताती है तो वह यह भी बताए कि हिंदू वर्ण व्यवस्था में जो ब्राह्मण, वैश्य, क्षत्रिय और शूद्र चार वर्ण माने गए हैं, उनमें आदिवासी समाज किस वर्ण में आता है.’’ 

राजकुमार रोत का यह बयान आने के बाद राजस्थान के शिक्षा मंत्री मदन दिलावर ने कहा, ‘‘अगर राजकुमार रोत हिंदू नहीं हैं, तो उनके डीएनए की जांच करा लेंगे. आदिवासी हिंदू हैं या नहीं ये उनके पूर्वजों से पूछ लेंगे. वंशावली लिखने वाले लोग हैं उनसे पूछ लेंगे कि आदिवासी क्या हैं.’’ 

शिक्षामंत्री के डीएनए जांच कराने के बयान के बाद इस मुद्दे पर सियासत और गरमा गई. बीएपी के साथ ही कांग्रेस ने भी इस मामले में कड़ा पलटवार किया. कांग्रेस प्रदेशाध्यक्ष गोविंद सिंह डोटासरा ने शिक्षा मंत्री मदन दिलावर को ‘बौद्धिक दिव्यांग’ कह दिया. सांसद राजकुमार रोत ने 29 जून को जयपुर में शिक्षा मंत्री मदन दिलावर के घर जाकर डीएनए जांच के लिए ब्लड सैंपल देने का ऐलान किया. इस दौरान कांग्रेस विधायक रामकेश मीणा भी उनके साथ थे. रोत जब दिलावर के घर की तरफ जाने लगे तो पुलिस ने उन्हें बीच में ही रोक लिया. ऐसे में उन्होंने पुलिस के सामने ही अपना ब्लड सैंपल देकर उसकी डीएनए जांच कराने की बात कही. 

इधर, बीएपी के साथ कांग्रेस ने भी मदन दिलावर के इस बयान पर विधानसभा में मोर्चा खोल दिया. कांग्रेस ने मदन दिलावर का विधानसभा में तब तक विरोध करने का ऐलान किया जब तक कि वो आदिवासियों को लेकर दिए गए बयान पर माफी नहीं मांग लेते. 

कई दिन तक चले गतिरोध के बाद 18 जुलाई को आखिरकार मदन दिलावर ने विधानसभा में आदिवासियों को लेकर दिए गए बयान पर माफी मांग ली. मदन दिलावर ने कहा, ‘‘आदिवासी हिंदू समाज का श्रेष्ठ अंग है, उनके बारे में किसी तरह की नकारात्मक बात मैं अपने मन में नहीं रखता. मेरे किसी बयान से आदिवासी भाइयों को कष्ट हुआ है तो मैं खेद प्रकट करता हूं.’’ 

मदन दिलावर के खेद प्रकट करने के बाद कांग्रेस तो शांत हो गई, लेकिन भारतीय आदिवासी पार्टी का विरोध अब भी जारी है. सांसद राजकुमार रोत का कहना है, ‘‘दिलावर ने अपनी पार्टी के दबाव में खेद प्रकट किया है, उनके इस्तीफे तक हमारा विरोध जारी रहेगा.’’  

19 जुलाई को भील प्रदेश मुक्ति मोर्चा व आदिवासी परिवार की ओर से मानगढ़ धाम में बुलाई गई सांस्कृतिक महारैली ने इस मामले में आग में घी का काम किया. भील प्रदेश की मांग को लेकर जुटे जनसैलाब को संबोधित करते हुए आदिवासी परिवार की संस्थापक सदस्य मेनका डामोर ने कहा, ‘‘हम हिंदू नहीं हैं. गले में मंगलसूत्र और मांग में सिंदूर लगाना आदिवासी संस्कृति नहीं है. पंडितों को घर बुलाकर कथा कराना, व्रत, उपवास रखना बंद करो.’’ बागीदौरा से विधायक चुने गए जयकिशन पटेल का इस रैली में कहना था, ‘‘डीएनए टेस्ट कराओगे तो आधा समाज हमारा ही निकलेगा क्योंकि धरती पर धर्म, भगवान और लोकतंत्र से पहले आदिवासी था.’’ इस अवसर पर सांसद राजकुमार रोत ने अलग से भील प्रदेश बनाए जाने की मांग उठाई.

सांस्कृतिक महारैली के तुरंत बाद भाजपा की बांसवाड़ा इकाई ने पलटवार किया. भाजपा की पूर्व प्रदेश मंत्री कृष्णा कटारा ने कहा, ‘‘आदिवासी महिलाएं युगों-युगों से बिंदी, मंगलसूत्र, उपवास और त्योहार मनाती आई हैं. बीएपी उनकी आस्था पर चोट करे यह बर्दाश्त से परे है. बीएपी आदिवासियों को गुमराह कर रही है.’’ 

पुरानी है आदिवासी हिंदू हैं या नहीं, बहस  

भारत में आदिवासी हिंदू हैं या नहीं, यह बहस काफी पुरानी है. भारतीय संविधान के अनुच्छेद 366 (25) की भाषा- परिभाषा के अर्थों में अनुसूचित जनजाति के सदस्य/नागरिक ‘हिंदू’ माने जाते हैं, लेकिन हिंदू विवाह अधिनियम 1955, हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम 1956 और हिंदू दत्तक और भरण-पोषण अधिनियम 1956 की धारा 2(2) और हिंदू वयस्कता और संरक्षता अधिनियम, 1956 की धारा 3(2) के अनुसार अनुसूचित जनजाति के नागरिकों पर ये अधिनियम लागू ही नहीं होते. 

सुप्रीम कोर्ट भी कह चुका है कि आदिवासी हिंदू नहीं हैं. हिमावती देवी बनाम शेट्टी गंगाधर स्वामी मामले में सुप्रीम कोर्ट ने 2005 में अप्रत्यक्ष रूप से स्वीकार किया कि अनुसूचित जनजाति के नागरिक अपने समुदाय के रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह कर सकते हैं. इसी तरह हिमाचल प्रदेश उच्च न्यायालय का 16 अक्टूबर 2014 को सुषमा उर्फ सुनीता देवी बनाम विवेक राय मामले में भी यही मत है कि अनुसूचित जनजाति के सदस्यों पर हिंदू विवाह अधिनियम,1955 लागू नहीं होता. 

भारत में आदिवासियों को दो वर्गों में अधिसूचित किया गया है- अनुसूचित जनजाति और अनुसूचित आदिम जनजाति. राजकुमार रोत से पहले झारखंड के मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भी यह कह चुके हैं, “आदिवासी कभी भी हिंदू नहीं थे, न हैं. हमारा सब कुछ अलग है. हम अलग हैं, इसी वजह से हम आदिवासियों में गिने जाते हैं. हम प्रकृति पूजक हैं.’’ 

4 राज्यों के 35 जिलों को मिलाकर भील प्रदेश बनाने की मांग  

भारतीय आदिवासी पार्टी सहित सांस्कृतिक महारैली में मौजूद 35 आदिवासी संगठन 4 राज्यों के 45 जिलों को मिलाकर भील प्रदेश बनाने की मांग कर रहे हैं. ये संगठन गुजरात के 14,  मध्य प्रदेश के 13, राजस्थान के 12 और महाराष्ट्र के 6 जिलों को मिलकर भील प्रदेश बनाए जाने की आवाज उठा रहे हैं.

भील प्रदेश में जिन जिलों को शामिल किए जाने की मांग चल रही है उनमें गुजरात के वलसाड़, अरवल्ली, महीसागर, दाहोद और पंचमहल जिले हैं वहीं मध्य प्रदेश के इंदौर, गुना, शिवपुरी, मंदसौर, नीमच, रतलाम, बुरहानपुर, बड़वानी, अलीराजपुर, धार, देवास, खंडवा और खरगोन जिले प्रमुख हैं. राजस्थान के राजसमंद, चित्तौड़गढ़, कोटा, बारां, पाली, बांसवाड़ा, डूंगरपुर, बाड़मेर, जालोर, सिरोही, उदयपुर और झालावाड़ जिले तथा महाराष्ट्र के नासिक, ठाणे, जलगांव, धुले, पालघर, नंदुरबार जिले भील प्रदेश की मांग में शामिल हैं.

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