
एक तरफ जहां केंद्र की एनडीए सरकार में नए-नए मंत्रियों की हर जगह चर्चा है, वहीं दूसरी तरफ बिहार के एक पूर्व मंत्री ने हाल ही में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी हासिल की है. 2017-2020 तक बिहार सरकार में अनुसूचित जाति-जनजाति कल्याण मंत्री रह चुके रमेश ऋषिदेव की यह नौकरी इसलिए भी खास है, क्योंकि वे उस मुसहर समुदाय से आते हैं, जिसके बीच शिक्षा का स्तर काफी बुरा है.
हालिया जाति आधारित गणना की रिपोर्ट बताती है कि इस जाति में सिर्फ 0.18 फीसद लोग ही ग्रेजुएट हैं. 0.28 फीसद लोगों को ही सरकारी नौकरी मिली है और असिस्टेंट प्रोफेसर बनने के लिए जिस पीएचडी की योग्यता की जरूरत होती है, उसे पूरा करने वाले लोग भी उंगलियों पर गिने-चुने ही हैं. सिर्फ 24 लोग ऐसे हैं, जिन्होंने पीएचडी या सीए किया है.
पूर्व मंत्री रमेश ऋषिदेव को उसी भूपेंद्र नारायण मंडल मधेपुरा विश्वविद्यालय में दर्शनशास्त्र विषय पढ़ाने का जिम्मा मिला है, जहां से उन्होंने विधायक रहते हुए पीएचडी की थी. रमेश ऋषिदेव बताते हैं, "मैं इसी चुनाव में प्रचार के लिए आरा गया था तो वहां मेरी ही जाति के एक सज्जन मिले जिन्हें हाल ही में असिस्टेंट प्रोफेसर की नौकरी मिली है. पटना विश्वविद्यालय में भी एक साथी हुलास मांझी एडहॉक पर भूगोल पढ़ाते हैं, उन्हें भी इस बार असिस्टेंट प्रोफेसर की पक्की नौकरी मिल सकती है."
54 साल के रमेश ऋषिदेव उस मधेपुरा जिले के रहने वाले हैं, जिसे समाजवाद की धरती माना जाता है. जहां भूपेंद्र नारायण मंडल और बीपी मंडल जैसे समाजवादी नेता हुए, और लालू यादव और शरद यादव जैसे नेताओं ने जहां की लोकसभा सीट का प्रतिनिधित्व किया. रमेश मधेपुरा जिले के कुमारखंड प्रखंड के गोपालपुर गांव के रहने वाले हैं.

उनके घर क्या, उनके गांव के मुसहरों की बस्ती में भी कोई मैट्रिक पास नहीं था. पिता बदरी ऋषिदेव नॉन मैट्रिक थे और माता मनिया देवी निरक्षर. मगर रमेश बचपन से ही पढ़ना लिखना चाहते थे. गांव के मिडिल स्कूल के शिक्षक फुलेश्वरलाल दास को वे बड़ी श्रद्धा से याद करते हैं. उन्होंने रमेश ऋषिदेव को पढ़ने के लिए प्रेरित किया और इसलिए वे मैट्रिक पास कर गये. फुलेश्वरलाल दास का पिछले साल ही निधन हुआ है.
मैट्रिक के बाद वे अपने ननिहाल मुरहो चले गये. यह वही मुरहो गांव है जो मंडल आयोग की वजह से चर्चित बीपी मंडल और आजादी के बाद बिहार से चुने जाने वाले पहले दलित सांसदों में से एक किराय मुसहर का गांव है. मुरहो गांव में मुसहरों की बस्ती में भी तब तक शिक्षा की जागरूकता आ गई थी. वहां उनके कई मित्र बने और सभी ने कॉलेज की पढ़ाई की.
बीए पास कर रमेश ऋषिदेव राजनीति में आ गये. वे कहते हैं कि समता पार्टी की स्थापना के वक्त से ही वे इस पार्टी में जुड़े हैं. 1994 से ही. तब से नीतीश कुमार के साथ हैं. मगर राजनीति में आने के बाद भी रमेश आजीविका के लिए बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते रहे.
2005 में रमेश ऋषिदेव पहली दफा कुमारखंड से विधायक चुने गये. उसके बाद 2010 और 2015 में सिंहेश्वर विधानसभा से विधायक बने. 2017 में जब नीतीश कुमार ने राजद से अलग होकर भाजपा के साथ सरकार बनायी तो उन्होंने रमेश ऋषिदेव को मंत्री बनाया. विधायक रहते ही उन्होंने पीएचडी कर ली थी.
वे कहते हैं, "पढ़ने-पढ़ाने की मेरी रुचि राजनीति में आने के बाद भी खत्म नहीं हुई. इसलिए मैंने पीएचडी किया. मन लगाकर किया. अब मैं खुद को तैयार कर रहा हूं कि जब मुझे कॉलेज अलॉट होगा तो मैं युवाओं को दर्शनशास्त्र पढ़ाऊंगा."
दिलचस्प है कि रमेश उस दर्शनशास्त्र विषय को पढ़ायेंगे, जिसमें भारतीय दर्शन की गूढ़ बातें दर्ज हैं. जिसे कभी द्विजों के अध्ययन का विषय बताया जाता था. रमेश कहते हैं, "अब ऐसा कुछ भी नहीं है. जब हम पढ़ते थे, तब भी किसी ने नहीं टोका कि तुम फिलॉसफी कैसे पढ़ रहे हो. समाज काफी बदला है."