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छत्तीसगढ़ : साहू समाज का साथ, माने जीत की गारंटी, तो बीजेपी-कांग्रेस इसके लिए क्या कर रहे हैं?

साहू समाज छत्तीसगढ़ के ओबीसी वर्ग में सबसे बड़ी आबादी का प्रतिनिधित्व करता है. ऐसे में कांग्रेस और बीजेपी दोनों ही पार्टियां लोकसभा चुनाव में इस समाज को साधने पर अपना पूरा जोर लगा रही हैं

छत्तीसगढ़ में साहू समाज के एक सम्मेलन के दौरान हाथ में त्रिशूल पकड़े हुए राज्य के उपमुख्यमंत्री अरुण साव
छत्तीसगढ़ में साहू समाज के एक सम्मेलन के दौरान हाथ में त्रिशूल पकड़े हुए राज्य के उपमुख्यमंत्री अरुण साव
अपडेटेड 12 अप्रैल , 2024

साल 2019 में हुए लोकसभा चुनाव के दौरान 16 अप्रैल को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी छत्तीसगढ़ के बलौदा बाजार में चुनावी रैली को संबोधित कर रहे थे. अपने भाषण में उन्होंने कहा, "छत्तीसगढ़ का जो साहू समाज है, अगर वह गुजरात में होता तो लोग उन्हें मोदी कहते." राज्य में साहू समाज के एक बड़े तबके को उस दिन पता चला कि गुजरात के तेली समाज का सरनेम मोदी होता है. 

पीएम मोदी छत्तीसगढ़ के साहू समाज के साथ रिश्ता कायम करना चाहते थे क्योंकि, राज्य के ओबीसी वर्ग में सबसे बड़ी जाति इसी समाज की है. वहीं राज्य में भूपेश सरकार द्वारा आरक्षण के लिए जुटाए गए डेटा के अनुसार राज्य में ओबीसी वर्ग की आबादी 1 करोड़ 25 लाख 7 हजार 169 है. इसमें सबसे ज्यादा आबादी साहू समाज की है जो कि 30 लाख 5 हजार 661 है. यह समाज राज्य के कुल ओबीसी का 24.03 प्रतिशत हिस्सा है. 

साहू समाज प्राचीन काल से तेल के व्यापार से जुड़ा हुआ है लेकिन इन दिनों यह राज्य में कृषि और व्यापार में अग्रणी है. यह एक बड़ी वजह है जो बीजेपी ने राज्य में 2018 का विधानसभा चुनाव साहू समाज से आने वाले अरूण साव की अध्यक्षता में लड़ा था. इसका ईनाम उन्हें  साल 2023 में मिला, जब राज्य में बीजेपी ने सरकार बनाते हुए उनको उपमुख्यमंत्री बना दिया. 

अरूण साव के संसदीय क्षेत्र बिलासपुर से इस बार भी बीजेपी ने साहू समाज से आने वाले तोखन साहू को उम्मीदवार बनाया है. लेकिन इस एक सीट के अलावा बीजेपी ने राज्य में किसी और साहू को लोकसभा का टिकट नहीं दिया. कांग्रेस भी यह बखूबी समझती है कि, साहू समाज को साधे बिना लोकसभा चुनाव में जीत की उम्मीद नहीं है, तब जबकि बीजेपी के पास मोदी का ​तिलिस्म हो. 

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस लड़ाई को स्थानीय बनाकर जीत का रास्ता बनाना चाहती है, इसलिए कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में 2 सीटों पर साहू समाज के उम्मीदवारों को उतारा है. महासमुंद लोकसभा से पूर्व गृहमंत्री ताम्रध्वज साहू और दुर्ग लोकसभा सीट से राजेंद्र साहू. महासमुंद लोकसभा सीट पर साहू समाज की आबादी 3 लाख 79 हजार और दुर्ग में 5 लाख 29 हजार है. 

साहू समाज का प्रभाव इन तीन सीटों के अलावा भी व्यापक है. रायपुर, राजनांदगांव और कांकेर लोकसभा सीटों पर भी साहू समाज की ठीक-ठाक आबादी है. कांग्रेस के साहू उम्मीदवारों के सामने प्रचार के लिए बीजेपी अपने साहू नेताओं को भेज रही है. साजा विधानसभा के विधायक ईश्वर साहू को इसी समाज की बहुलता वाली लोकसभा सीटों पर प्रचार में उतारा जा रहा है. 

ईश्वर के पुत्र भुवनेश्वर साहू की बिरनपुर के हिंसा में मौत हो गई थी. बेमेतरा जिले के बिरनपुर गांव में अप्रैल, 2023 के दौरान स्कूली बच्चों के झगड़े के दौरान हिंसा भड़क गई थी. इसी में 22 साल के भुवनेश्वर की मौत हो गई. इसके बाद मजदूरी करने वाले उनके पिता ईश्वर साहू को हिंदुत्व का चेहरा बनाकर बीजेपी ने चुनावी मैदान में उतारा था. उन्होंने कांग्रेस के वरिष्ठ नेता और कृषि मंत्री रविंद्र चौबे को चुनाव में हराया. अब वे महासमुंद और राजनांदगांव विधानसभा में जाकर कह रहे हैं, "जब मेरे बेटे की हत्या हो गई, गृहमंत्री रहते ताम्रध्वज साहू ने सुध नहीं ली, न तत्कालीन मुख्यमंत्री भूपेश बघेल मुझे न्याय दिला पाए. साहू समाज को ऐसे लोगों का साथ नहीं देना है."

बीजेपी साहू समाज को साधने की कोशिश में कोई कसर नहीं छोड़ना चाहती, लेकिन फिलहाल सबकुछ सधा हुआ नहीं लगता. इसकी वजह 24 मार्च को कवर्धा जिले के पं​डरिया में हुई एक घटना है. यहां बीजेपी के वरिष्ठ नेताओं की मौजूदगी में हुए कार्यक्रम के बाद पार्टी के दो पदाधिकारियों ने साहू समाज के कार्यकर्ताओं पर जातिगत टिप्पणी कर दी. इससे नाराज समाज के लोगों ने पं​डरिया में चक्का जाम कर दिया. 

राज्य भर के साहू समाज ने इस घटना पर कड़ी प्रतिक्रिया भी जाहिर की. समाज के पदाधिकारियों के मुताबिक 2018 के विधानसभा चुनाव में ताम्रध्वज साहू के सीएम बनने की संभावना देखते हुए कांग्रेस को वोट दिया था. वहीं 2023 के चुनाव में अरूण साव को सीएम चेहरा बनने की संभावना देखते हुए वोट किया था. इसका असर चुनाव परिणामों में दिखाई भी पड़ा.  

साल 2018 में कांग्रेस तो वहीं 2023 में बीजेपी को भारी बहुमत हासिल हुआ. इस बार भी साहू समाज के पदाधिकारियों ने बीजेपी के संगठन मंत्री और कांग्रेस के प्रदेश प्रभारी से मुलाकात कर दो-दो सीटें समाज के लिए मांगी थी. कांग्रेस ने दो उम्मीदवार उतारे लेकिन बीजेपी ने साहू समाज से एक प्रत्याशी बनाया. साहू समाज के प्रदेश अध्यक्ष ताहल सिंह साहू कहते हैं, "राज्य में सबसे संगठित साहू समाज अपने हितों का संरक्षण चाहता है. हमारा समाज किसी राजनीतिक दल से सीधे तौर पर नहीं जुड़ता, समाज के लोग राजनीतिक दलों से जरूर जुड़े हैं. इस लोकसभा चुनाव में बीजेपी के एक और कांग्रेस के दो प्रत्याशियों की साहू समाज मदद करेगा."

लोकसभा चुनाव में कांग्रेस साहू समाज को प्रत्याशियों के भरोसे साधना चाहती है. बीजेपी इस समाज से अरूण साव को उपमुख्यमंत्री बना चुकी है. ऐसे में पार्टी को उम्मीद है कि साहू समाज ​उसका साथ देगा. इस समाज को बीजेपी का परंपरागत वोटर माना जाता है, लेकिन स्थानीयता के पैमाने पर कई बार साहू समाज ने बीजेपी के बजाय अपने समाज के प्रत्याशी को चुनकर हैरान किया है. 

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