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बिहार में जाति-जनगणना का श्रेय लेने की होड़; लेकिन चुनाव में फायदा किसे मिल सकता है?

बिहार में महागठबंधन की सरकार के तहत जाति गणना हुई थी लेकिन अब मुख्यमंत्री नीतीश कुमार बीजेपी की अगुवाई वाले एनडीए में शामिल हैं. ऐसे में केंद्र सरकार की जाति जनगणना कराने की घोषणा विधानसभा चुनाव में किस पार्टी या गठबंधन का फायदा कराएगी, यह बड़ा सवाल बन गया है

केंद्र सरकार की जाति जनगणना कराने की घोषणा के बाद बिहार में दिख रहे होर्डिंग
अपडेटेड 3 मई , 2025

जाति जनगणना कराने की केंद्र सरकार की घोषणा के साथ ही बिहार में पार्टियां इसका श्रेय लेने की होड़ में जुट गई हैं. जहां नीतीश कुमार की पार्टी जदयू ने पोस्टर लगाकर दावा किया है - 'नीतीश ने दिखाया, अब देश ने अपनाया.' वहीं राजद की तरफ से लालू प्रसाद यादव ने सोशल मीडिया पर पोस्ट किया- कहा था ना कि “कान पकड़-दंड बैठक करा इन संघियों से जातिगत जनगणना करवाएंगे.” उनके पुत्र राजद नेता तेजस्वी यादव ने प्रधानमंत्री मोदी को पत्र लिखकर निजी क्षेत्र और ठेके में भी आरक्षण दिये जाने की मांग की है.वे विधानसभा में भी पिछड़ों-अति पिछड़ों के लिए सीटें बढ़ाने की वकालत कर रहे हैं.

कांग्रेस ने अपने नेता राहुल गांधी को बहुजन नायक बताकर पोस्टर पर लिखा है- 'जो कहा, वो कर दिखाया.' पार्टी के नेताओं ने सदाकत आश्रम में राहुल गांधी के पोस्टर पर दूध भी चढ़ाया. वहीं बीजेपी की तरफ से उप मुख्यमंत्री सम्राट चौधरी कहते हैं, “दूसरी पार्टियां कहती हैं, हम करके दिखाते हैं. भाजपा ने लालू का सपना सच कर दिखाया.”

श्रेय लेने की इस होड़ के पीछे एक बड़ा सवाल है कि क्या जाति जनगणना की घोषणा आगामी बिहार चुनाव पर कोई असर डालेगी? यह सवाल इसलिए भी मौजूं है, क्योंकि बिहार सरकार पहले ही जाति आधारित गणना कराकर एक कदम आगे बढ़ चुकी है. इस गणना के बाद सरकार ने आरक्षण की सीमा 65 फीसदी बढ़ाई, जिसे कोर्ट में चुनौती मिली तो यह प्रस्ताव खारिज हो गया. वहीं सरकार ने 94 लाख ऐसे गरीब परिवारों को रोजगार देने के लिए दो-दो लाख की आर्थिक मदद की घोषणा की है, जिनकी आय छह हजार रुपए प्रति माह से भी कम है. 

इस पूरे माहौल में विपक्ष सरकार पर आरक्षण की बढ़ी सीमा को लागू न करने की विफलता को मुद्दा बना रहा है, वहीं जनसुराज पार्टी 11 मई से मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के गांव से उस योजना की जमीनी पड़ताल करने जा रही है, जिसके तहत 94 लाख गरीबों को दो-दो लाख रुपए दिए जाने का वादा किया गया था. 

इस संबंध में बात करने पर बीजेपी प्रवक्ता असितनाथ तिवारी कहते हैं, “ऐसा कोई फैसला होता है तो उसका असर पड़ता ही है. मगर राजद और कांग्रेस की तरफ से जाति और आरक्षण के नाम पर समाज में जो विद्वेष फैलाने की कोशिशें की जा रही थीं, हमने उन कोशिशों को कुचल डाला है. हम चाहते हैं, समाज में वैज्ञानिक तरीके से अध्ययन हो और एक अच्छी और सच्ची रिपोर्ट सामने आए. समाज एकजुट रहे. राज्य भी आगे बढ़े और देश भी.”

दिलचस्प बात है कि बीजेपी की सहयोगी पार्टी जदयू इस मसले पर थोड़ी अलग राय रखती है. पार्टी के प्रवक्ता अरविंद निषाद कहते हैं, “इस फैसले का बिहार पर कोई प्रभाव नहीं पड़ेगा, क्योंकि पहले ही बिहार सरकार अपने खर्चे पर जाति आधारित गणना करा चुकी है. इसलिए यहां के लोगों को इस बारे में सबकुछ पता चल गया है. हमने आरक्षण की सीमा बढ़ाई थी, मामला सुप्रीम कोर्ट में है और बिहार सरकार अपने महाधिवक्ता के जरिये इसकी लड़ाई लड़ रही है. गरीबों के लिए भी योजना का काम चल रहा है. इसकी पूरी वैधानिकता है और हम इसे आगे बढ़ा रहे हैं.”   

इस संबंध में पार्टी द्वारा लगाए गए पोस्टरों के सवाल पर अरविंद निषाद का कहना है, “हम यह डंके की चोट पर कहते हैं कि नीतीश कुमार जो आज सोचते हैं, वह देश कल सोचता है. उसके एक नहीं अनेक उदाहरण हैं, जैसे हर घर नल का जल, हर घर बिजली, हर घर स्मार्ट मीटर आदि.” पार्टी ने पोस्टर लगाने के साथ-साथ अपने नेता नीतीश कुमार का 1994 का वीडियो भी प्रचारित करना शुरू किया है, जिसमें वे लोकसभा में जाति जनगणना की मांग करते नजर आ रहे हैं. 

इस मसले पर सबसे अधिक मुखर राजद है. लालू और तेजस्वी दोनों कह रहे हैं कि हमने सरकार को झुका दिया. इसके साथ-साथ विधानसभा चुनाव में पिछड़ों-अति पिछड़ों की सीटें आरक्षित करने की भी बात वे मजबूती से कर रहे हैं.

पार्टी की तरफ से राज्यसभा सांसद संजय यादव इंडिया टुडे से बातचीत में कहते हैं, “आने वाले चुनाव में हम इस सवाल को मजबूती से उठाएंगे. हम यह सवाल भी पूछेंगे कि हमारी पहल पर जब बिहार में वैज्ञानिक तरीके से जाति आधारित गणना हुई और हम सबने मिलकर पिछड़ों-अति पिछड़ों के लिए 14 फीसदी और एससी-एसटी के लिए एक फीसदी आरक्षण को बढ़ाया तो बाद में एनडीए सरकार उस आरक्षण की सुरक्षा क्यों नहीं कर सकी. हम विधानसभा चुनावों में पिछड़ों-अतिपिछड़ों के लिए आरक्षण की मांग तो करेंगे ही, साथ ही महिला आरक्षण में भी कोटे के भीतर कोटा की बात को मजबूती से उठाएंगे.”

हालांकि बिहार में राजद की सहयोगी पार्टी कांग्रेस इस मसले को अलग तरीके से देख रही है. राहुल गांधी बार-बार यह बात कहते हैं कि बिहार में हुई जाति आधारित गणना फर्जी थी. असली गणना तेलंगाना में हुई. पार्टी जोर दे रही है कि केंद्र सरकार को तेलंगाना मॉडल के हिसाब से जाति जनगणना करवाना चाहिए. हालांकि बिहार की जाति आधारित गणना क्यों फेक थी, इस बात को वे साफ-साफ नहीं बताते. 

इसी हवाले से हमने कांग्रेस में ओबीसी विभाग के राष्ट्रीय अध्यक्ष अनिल जयहिंद से बात की. वे कहते हैं, “जाति जनगणना सिर्फ अलग-अलग जातियों की गिनती नहीं है. विभिन्न जातियों की स्थिति का विश्लेषण है. बिहार में इस काम को थोड़े से साइंटिफिक तरीके से कराया गया है, इसमें दो-चार अलग पैरामीटर लिए गए हैं. यहां भी लोग ज्यादा गहराई में नहीं गए. जबकि तेलंगाना की जाति गणना में 57 तरह के साइंटिफिक सवाल पूछे गए हैं. यह सबसे सघन और सबसे गहरी जनगणना हुई है. उसके आंकड़े का विश्लेषण चल रहा है इसलिए राहुल जी और ऐसा हमलोग कहते हैं.”

हालांकि राजद के संजय यादव इस बात को खारिज करते हुए दावा करते हैं, “बिहार की जनगणना भी पूरे साइंटिफिक तरीके से हुई है और इसमें करीब-करीब 1931 की जाति जनगणना जैसे ही आंकड़े आए हैं. कांग्रेस भी इसका हिस्सा रही है. हम मानते हैं कि यह जनगणना अच्छे से हुई है और अब इसके आधार पर नीतियां और कार्यक्रम बनाना हमलोगों की जिम्मेदारी है.”

वहीं जदयू प्रवक्ता अरविंद निषाद कहते हैं, “जब हमारे नेता नीतीश कुमार विपक्षी एकता की मुहिम को लीड कर रहे थे, तब उन्होंने राहुल गांधी को इस बारे में समझाया था, तभी से राहुल गांधी हमारे नेता से दीक्षित होकर बार-बार जाति जनगणना और एक्सरे की बात करते हैं. वे पहले संविधान और जाति गणना की बात कहां करते थे?”

बहरहाल असली सवाल यही है कि क्या यह घोषणा बिहार के चुनाव पर असर डालेगी? इस सवाल पर टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज के पूर्व प्रोफेसर पुष्पेंद्र कहते हैं, “2024 के लोकसभा चुनाव के बाद केंद्र सरकार को यह अहसास हो गया है कि पिछड़ी और अति पिछड़ी जातियां काफी मुखर हो गई हैं. बीजेपी की जरूरत है कि वह अपनी पैठ इन जातियों में मजबूत करे और सवर्ण जातियों का मोह छोड़े. इस लक्ष्य में जाति जनगणना का मुद्दा बड़ी चुनौती थी, विपक्ष मजबूती से इसे उठा रहा था, सो पार्टी के लिए इसकी घोषणा राष्ट्रीय स्तर पर करना एक मजबूरी हो गई थी. लेकिन बिहार कास्ट सर्वे हो चुका है. इसका श्रेय आमतौर पर राजद को जाता है और इस पर आगे की कार्यवाई न करने कि जिम्मेदारी जदयू पर जाती है. बिहार के लोगों ने देख लिया है कि इससे कुछ खास बदलाव नहीं होता, इसलिए मुझे नहीं लगता कि बिहार चुनाव में यह कोई बड़ा मुद्दा बनने जा रहा है.”

अगर यह मुद्दा बनता है तो इसका फायदा उठाने की स्थिति में बीजेपी नहीं है, बल्कि इसके उलट उसे कुछ नुकसान ही झेलना पड़ सकता है. पुष्पेंद्र इसकी वजह बताते हुए कहते हैं, "दरअसल इससे बीजेपी के कोर वोटर सवर्ण जातियों के लोग छिटकेंगे और वे उम्मीदवारों की जाति को देखकर वोट करेंगे. इसके उलट उसके खाते में अति पिछड़ों के कितने वोट आएंगे यह कहना मुश्किल है. आएंगे भी तो जदयू के पाले से आएंगे. जहां तक राजद का सवाल है, अगर वह अति पिछड़ों को अपने साथ लाने में, उसे थोड़ा सा प्रभावित करने में सफल होती है तो इससे उसे लाभ होगा. हालांकि इसके लिए उसे सीटों के बंटवारे में इसका ध्यान रखना होगा.”

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