प्रधानमंत्री नरेंद्र मादी ने 31 मार्च को मेरठ लोकसभा सीट से पश्चिमी यूपी में अपने चुनावी प्रचार अभियान की शुरुआत इसलिए की थी क्योंकि भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) अपने लिए इस सीट को भाग्यशाली मानती है. वर्ष 2014 और 2019 के लोकसभा चुनाव में नरेंद्र मोदी ने मेरठ से ही यूपी में चुनावी आगाज किया और पार्टी ने बेहतर प्रदर्शन किया.
2024 के लोकसभा चुनाव में प्रचार अभियान की शुरुआत के लिए मोदी ने मेरठ को ही चुना. यहां मोदीपुरम के केंद्रीय आलू अनुसंधान परिसर में आयाजित 'भारत रत्न चौधरी चरण सिंह गौरव समारोह' के जरिए नरेंद्र मोदी ने पार्टी के नए-नवेले सहयोगी राष्ट्रीय लोकदल (रालोद) के राष्ट्रीय अध्यक्ष जयंत चौधरी को भरपूर तवज्जो देकर पश्चिमी यूपी में जाट वोटों की एकजुटता की कोशिश की.
मंच पर मेरठ के बगल की मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से भाजपा उम्मीदवार और पूर्व केंद्रीय मंत्री संजीव बालियान भी मौजूद थे जिनकी चुनावी आस इन्हीं जाट मतदाताओं की एकजुटता पर टिकी थी. लेकिन इस बार संजीव बालियान को चुनौती भाजपा के भीतर से ही मिल रही थी. वर्ष 2022 के विधानसभा चुनाव के बाद से संजीव बालियान और सरधना के पूर्व भाजपा विधायक संगीत सोम में अनबन बढ़ गई थी.
संगीत सोम के समर्थकों का आरोप था कि संजीव बालियान ने संगीत सोम को विधानसभा चुनाव हराने के लिए प्रयास किया था. नतीजा, संगीत का खेमा बालियान के विरोध में उतर गया जिससे दोनों खेमे कई बार आमने-सामने आ गए थे. बालियान के समर्थक जिलाध्यक्ष शिव कुमार राणा के गांव में उनके विरोध में पोस्टर लगे, जिसकी भाजपा के प्रदेश नेतृत्व तक चर्चा रही. मेरठ में मोदी की रैली से दो दिन पहले बालियान के काफिले पर हमला होने से सरगर्मी और बढ़ गई. बालियान समर्थकों ने इसका आरोप संगीत सोम पर लगाया.
भाजपा के शीर्ष नेताओं को भी पश्चिमी यूपी के इन दोनों नेताओं के बीच बढ़ती तनातनी की जानकारी थी. 31 मार्च को मेरठ में मोदी की रैली के बाद मंच के पीछे बने स्विस कॉटेज में मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने संजीव बालियान और संगीत सोम के साथ बैठक की. करीब आधे घंटे चली इस बैठक में भाजपा प्रदेश अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी भी मौजूद थे. इस बैठक का कोई हल नहीं निकला और संजीव बालियान और संगीत सोम के बीच तनातनी चुनाव भर बनी रही.
अब लोकसभा चुनाव खत्म हो चुके हैं, नतीजे सामने आ चुके हैं और नई सरकार बन चुकी है लेकिन पश्चिमी उत्तर प्रदेश का गन्ना बेल्ट भाजपा नेताओं की परस्पर कड़वाहट का गवाह बन रहा है. शुरुआत संजीव बालियान से हुई- जिन्हें 2014 में अपनी शानदार जीत के बाद केंद्रीय मंत्री बनाया गया था और फिर 2019 के लोकसभा चुनावों में जाट नेता अजित सिंह को उनके क्षेत्र में हराने के बाद वे इस बार अपनी मुजफ्फरनगर सीट से हार गए.
बालियान पश्चिमी यूपी में मोदी सरकार का जाट चेहरा माने जाते थे. राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) में जयंत चौधरी के शामिल होने के बाद संजीव बालियान का खेमा जाट वोटों के एकतरफा समर्थन को लेकर आश्वस्त था. लेकिन संजीव के पक्ष में जयंत चौधरी के प्रचार करने के बावजूद पूर्व मंत्री हार गए.
यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट से समाजवादी पार्टी (सपा) के उम्मीवार रहे जाट नेता हरेंद्र सिंह मलिक पिछले करीब दो वर्षों से क्षेत्र में पसीना बहा रहे थे. वे संजीव बालियान की कमियों को गांव-गांव जाकर उजागर कर रहे थे. चुनाव नतीजे आए तो हरेंद्र मलिक को उनकी मेहनत का ईनाम मिला. मलिक ने बालियान को 24,672 मतों के अंतर से हराया. इसके बाद मामला गरमा गया.
राजनीतिक विश्लेषकों के अनुसार संजीव बालियान ने अपनी हार स्वीकार करने के बजाय वही किया जो इसी तरह की परिस्थितियों में कई नेता करने के लिए प्रेरित होते हैं वह है, साजिश के सिद्धांत गढ़ना. बालियान सरधना क्षेत्र से भी हार गए (45 वोटों से), जो पूर्व विधायक संगीत सोम के प्रभाव वाला विधानसभा क्षेत्र है. सोम और बालियान के बीच समीकरण अच्छे नहीं रहे हैं. 11 जून को मीडिया से बात करने के दौरान सोम के बारे में पूछे जाने पर बालियान भड़क गए.
संजीव ने कहा, "मेरा मानना है कि इसकी जांच होनी चाहिए थी. ऐसे लोग हैं जिन्होंने समाजवादी पार्टी की खुलेआम मदद की है, लेकिन वे यहां (भाजपा में) उच्च पदों पर काबिज हैं और सुविधाएं भी ले रहे हैं. मैं पार्टी नेतृत्व से अनुरोध करूंगा कि वह इस मामले का संज्ञान ले." बालियान ने यह भी कहा कि उत्तर प्रदेश में भाजपा के निराशाजनक प्रदर्शन का कारण 'जयचंद' (देशद्रोहियों के संदर्भ में) हैं.
यह स्पष्ट था कि बालियान सोम पर निशाना साध रहे थे. अगले दिन बालियान के आरोपों का जवाब देने के लिए संगीत सोम ने भी एक प्रेस कॉन्फ्रेंस बुलाई. सोम ने कहा, "मैं मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट के सरधना विधानसभा क्षेत्र का प्रभारी था और हमने काफी अच्छा प्रदर्शन किया. वे (संजीव बालियान) बुढ़ाना और चरथावल लोकसभा सीट पर बहुत बड़े अंतर से हार गए. उन्हें आत्मचिंतन करना चाहिए." संगीत सोम ने संजीव बालियान पर भ्रष्टाचार के आरोप भी लगाए.
लोकसभा चुनाव के पहले चरण से पहले कई हफ्तों तक बालियान और सोम के बीच आपसी जंग ने पश्चिमी यूपी में भाजपा के अनुशासन को तारतार कर दिया था. माना जाता है कि चुनाव से ठीक पहले ठाकुरों का आंदोलन और महापंचायत बालियान की हार के प्रमुख कारणों में से एक है, इसके अलावा मुस्लिम वोटों का सपा के पक्ष में एकीकरण भी है.
इस बार उत्तर प्रदेश में भाजपा के टिकट वितरण से ठाकुर नाराज थे क्योंकि उन्हें लगा कि उनके समुदाय की अनदेखी की जा रही है. दिलचस्प बात यह है कि सोम ठाकुर समुदाय से हैं जबकि बालियान जाट समुदाय से हैं. ठाकुर मतदाता, जिनकी संख्या मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर लगभग 1 लाख है, मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा बनाते हैं.
मेरठ के एक निजी कालेज में प्रवक्ता नितिन अग्रवाल बताते हैं, "पश्चिमी यूपी की मुजफ्फरनगर लोकसभा सीट पर परंपरागत रूप से भाजपा के मतदाता, इस बार पाला बदलते भी दिखाई दिए जिसने भगवा खेमे का गणित बिगाड़ दिया. मुजफ्फरनगर लोकसभा क्षेत्र में मुजफ्फरनगर शहर, बुढ़ाना, सरधना, चरथावल और खटौल के क्षेत्र शामिल हैं. मुजफ्फरनगर शहर को छोड़कर, बालियान बाकी सभी क्षेत्रों से हार गए."
चुनाव शुरू होने से पहले ही, सोम ने यह कहते हुए बालियान के लिए प्रचार करने से इनकार कर दिया कि वे उन्हें अपने कद का नेता नहीं मानते. चुनाव के बाद, बालियान ने कद वाले कटाक्ष के जवाब में याद दिलाया कि उनके पास पीएचडी है. अप्रैल के पहले हफ्ते में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने ठाकुरों को लुभाने और बालियान और सोम के बीच समझौता कराने के दोहरे इरादे से सरधना का दौरा किया था. लेकिन सुलह न हो सकी.
लोकसभा चुनाव नतीजों ने सारी हकीकत साफ कर दी. अपने संभावित नुकसान को कम करने के लिए रालोद को साथ लेने के बावजूद, भाजपा पश्चिमी यूपी की 26 में से केवल 13 सीटें ही जीत सकी. 2019 में, भाजपा ने इस क्षेत्र से 18 सीटें जीती थीं. बालियान और सोम का रिश्ता बहुत पुराना है. ये दोनों नेता 2013 के मुजफ्फरनगर दंगों के बाद प्रमुखता से उभरे, जब उन पर सांप्रदायिक दंगे भड़काने का मामला दर्ज किया गया था.
लोकसभा चुनाव जीतकर बालियान केंद्रीय मंत्री बन गए, जबकि सोम विधायक रहे. लेकिन 2022 के यूपी विधानसभा चुनावों में, जब भाजपा फिर से सत्ता में आई, तो सोम अपनी सीट समाजवादी पार्टी के अतुल प्रधान से हार गए. सोम के समर्थकों का आरोप है कि इसमें बालियान की अहम भूमिका थी. अब बालियान के समर्थकों को संदेह है कि यह हार उस लंबे समय से चले आ रहे घाव का बदला है. नितिन अग्रवाल बताते हैं कि पश्चिमी यूपी में भाजपा के दो प्रमुख नेताओ के बीच तनातनी ने पार्टी को काफी कमजोर किया है. भाजपा के लिए इससे निबटना आसान नहीं होगा.
उत्तर प्रदेश में लोकसभा चुनाव में भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के निराशाजनक प्रदर्शन के बाद, जिसके कारण पार्टी केंद्र में अपने दम पर बहुमत से चूक गई, पार्टी नेताओं ने राज्य में हुई चौंकाने वाली हार के कारणों की पहचान करने के लिए मिलकर काम करना शुरू कर दिया है. पार्टी के पदाधिकारियों के बीच मुख्य मुद्दा इस आम चुनाव में सीटों का 62 से घटकर 33 रह जाना है.
भाजपा ने उम्मीदवारों से उनकी हार के विशिष्ट कारणों का पता लगाने के लिए रिपोर्ट मांगकर प्रक्रिया शुरू कर दी है. प्रदेश भाजपा अध्यक्ष भूपेंद्र चौधरी ने इस लोकसभा चुनाव में इतनी बड़ी संख्या में सीटों की हार के पीछे के कारणों का पता लगाने के लिए एक आंतरिक समिति का गठन किया है.
भाजपा प्रवक्ता अशोक पांडे ने कहा, "पार्टी हर सीट पर हार की समीक्षा करेगी. उम्मीदवारों से रिपोर्ट मांगी जाएगी और पार्टी अपना खुद का आकलन भी करेगी." ऊपरी तौर पर, राज्य की राजधानी में पार्टी मुख्यालय में सब कुछ ठीक-ठाक नजर आ रहा है लेकिन हार के बाद पार्टी नेताओं की अंदरूनी साजिश से जुड़ी बयानबाजी ने फिलहाल महौल तो गरम कर ही रखा है.