scorecardresearch

तमिलनाडु : सिंधु लिपि की डिकोडिंग सीएम स्टालिन के लिए इतनी अहम क्यों हो गई है?

जनवरी की पांच तारीख को तमिलनाडु के सीएम ने एलान किया कि जो भी व्यक्ति या संगठन प्राचीन सिंधु घाटी की लिपि को डिकोड करेगा, उसे साढ़े आठ करोड़ रुपए का पुरस्कार दिया जाएगा

तमिलनाडु के सीएम एम.के. स्टालिन
तमिलनाडु के सीएम एम.के. स्टालिन
अपडेटेड 7 जनवरी , 2025

जनवरी की पांच तारीख को तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एम.के. स्टालिन ने एलान किया कि जो भी व्यक्ति या संगठन सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को डिकोड करेगा, उसे दस लाख डॉलर या साढ़े आठ करोड़ रुपये पुरस्कार के रूप में दिए जाएंगे.

सीएम स्टालिन की इस घोषणा के पीछे एक स्टडी है जो राज्य के पुरातत्व विभाग ने की है. इसमें कहा गया है कि सिंधु घाटी में मिले प्रतीक चिह्नों व भित्तिचित्रों और तमिलनाडु में खुदाई के दौरान पाए गए प्रतीक चिह्नों और भित्तिचित्रों के बीच कई समानताएं हैं.

करीब 100 साल पहले सिंधु घाटी सभ्यता की खोज हुई थी, लेकिन इसकी लिपि अभी तक रहस्य बनी हुई है. स्टालिन ने इस सभ्यता की खोज के शताब्दी वर्ष के मौके पर चेन्नई में आयोजित एक कार्यक्रम में कहा, "पुरातत्वविदों के कई प्रयासों के बावजूद पिछले 100 सालों से इस पहेली का जवाब नहीं मिल पाया है. मैं इस लिपि को समझने वाले व्यक्तियों या संगठनों को दस लाख डॉलर का नकद पुरस्कार देने की घोषणा करता हूं." उन्होंने कहा कि राज्य सरकार का प्रयास देश के इतिहास में तमिलनाडु के लिए सही स्थान सुनिश्चित करना है.

दुनिया की सबसे पुरानी सभ्यताओं में से एक सिंधु घाटी की शुरुआत लगभग 5,000 साल पहले आधुनिक पाकिस्तान और पश्चिमोत्तर भारत के एक क्षेत्र में हुई थी. घाटी में 1,400 से ज्यादा कस्बे और शहर थे. इनमें सबसे बड़े हड़प्पा और मोहनजोदड़ो थे. माना जाता है कि इन शहरों में लगभग 80,000 लोग रहते थे. यह सभ्यता अपनी परिष्कृत शहरी संस्कृति के अलावा उन्नत व्यापार, टैक्स व्यवस्था और जल निकासी प्रणालियों के लिए इतिहास में अहम स्थान रखती है.

1921 में सर जॉन मार्शल ने इस सभ्यता की पहली बार पहचान की थी. वे उस समय भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण (ASI) के महानिदेशक थे. उन्हीं की अगुआई में हुई व्यापक स्तर की खुदाई में हड़प्पा और मोहनजोदड़ो जैसी ऐतिहासिक जगहें सामने आईं. साल 1924 में सिंधु घाटी की सभ्यता की खोज की घोषणा की गई. लेकिन इस सभ्यता के लोग जिस लिपि का इस्तेमाल करते थे, उसे अभी तक पढ़ा नहीं जा सका है. आलम यह है कि पिछली सदी में पुरातत्वविदों, पुरालेखविदों, भाषाविदों, इतिहासकारों, वैज्ञानिकों और अन्य एक्सपर्ट लोगों द्वारा इस लिपि को पढ़ने के 100 से भी ज्यादा प्रयास किए जा चुके हैं, लेकिन नतीजे किसी सटीक दिशा में जाते नहीं दिखे.

स्क्रॉल की रिपोर्ट बताती है कि तमिलनाडु में 'द्रविड़' नैरेटिव को अपने साथ लेकर चलने वाले नेता लंबे समय से दावा करते रहे हैं कि सिंधु घाटी सभ्यता के निवासी तमिल लोगों के पूर्वज हो सकते हैं. कई विशेषज्ञों ने यह भी अनुमान लगाया है कि सिंधु लिपि असल में उन प्रतीक चिह्नों का एक समूह है जिनका इस्तेमाल शुरुआती द्रविड़ भाषा का प्रतिनिधित्व करने के लिए किया जाता है. हालांकि, इस संबंध को स्थापित करने के लिए पुरातात्विक और जेनेटिक सबूत अभी तक मजबूत नहीं हुए हैं.

भले ही संबंध मजबूत नहीं हुए हों, लेकिन उसके लिए कोशिश जारी है. समय समय पर खुद को 'द्रविड़ हितों' के रक्षक के रूप में पेश करने वाले स्टालिन ने दो साल पहले 2021 में जब राज्य में सरकार बनाई तो उन्होंने इसके लिए एक स्टडी को मंजूरी दी. उस समय स्टालिन ने विधानसभा में कहा था कि उनकी पार्टी का लक्ष्य वैज्ञानिक तरीकों से यह स्थापित करना है कि भारत का इतिहास तमिल भूमि से फिर से लिखा जाए. इसके बाद उन्होंने घोषणा की कि राज्य पुरातत्व विभाग कीलाडी में पाए गए भित्तिचित्रों (दीवार पर बने चित्र) और सिंधु घाटी सभ्यता के प्रतीकचिह्नों के तुलनात्मक अध्ययन पर काम शुरू करेगा.

सिंधु घाटी से प्राप्त मुहरें और निशानविकीमीडिया कॉमन्स
सिंधु घाटी से प्राप्त मुहरें और निशान/विकीमीडिया कॉमन्स

कीलाडी वर्तमान में मदुरै जिले से 12 किलोमीटर दक्षिण-पूर्व में स्थित है. यह एक प्राचीन संगम कालीन स्थल है जो कम से कम 2600 साल पुराना है. माना जाता है कि यह वैगई नदी के तट पर एक संपन्न औद्योगिक बस्ती हुआ करती थी. इसकी खोज सबसे पहले 2014 में ASI के अमरनाथ रामकृष्ण ने की थी. इसकी खुदाई से मिली कलाकृतियों ने संगम काल की प्राचीनता को और पीछे की ओर धकेला. साल 2019 में कीलाडी कलाकृतियों की कार्बन डेटिंग से पता लगा कि पहले जहां संगम काल का समय 300 ईसा पूर्व माना जाता था, कीलाडी के उत्खनन के बाद अब यह 600 ईसा पूर्व हो गया. इसके साथ ही तमिल ब्राह्मी लिपि भी 600 ईसा पूर्व की ओर खिसक गई, जो पहले 300 ईसा पूर्व प्राचीन मानी जाती थी.

इस खोज के बाद स्टालिन सरकार ने दावा किया है कि कीलाडी खुदाई से सिंधु घाटी सभ्यता और तमिलनाडु की प्राचीन संस्कृति के बीच की खाई कम हो गई है. बहरहाल, स्टालिन के खोज अभियान के तहत पिछले साल जून में सरकार ने चार मौजूदा स्थलों पर खुदाई शुरू की, जिनमें कीलाडी भी शामिल है. इन सभी चार नए स्थलों पर नए सिरे से खुदाई शुरू की गई.

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, तमिलनाडु में जिन प्रमुख उत्खनन स्थलों पर शोधकर्ताओं ने ध्यान केंद्रित किया, वे थे कीलाडी, शिवकलाई और थुलुकरपट्टी. स्टडी के अनुसार, अकेले थुलुकरपट्टी में लगभग 5,000 भित्तिचित्र चिह्न मिले, जबकि मदुरै के दक्षिण-पूर्व में कीलाडी में सैकड़ों उत्कीर्ण बर्तन के टुकड़े मिले. इनमें कार्नेलियन मोती, एगेट, काले और लाल बर्तन और हाई-टिन कांस्य वस्तुएं शामिल थीं.

अगस्त 2024 में कीलाडी में चल रहे उत्खनन के 10वें चरण के दौरान एक टेराकोटा पाइपलाइन मिली, जो एक प्राचीन जल प्रबंधन प्रणाली का संकेत देती है. इसका इस्तेमाल कम से कम 2,600 साल पहले बस्ती में रहने वाले लोग करते थे. इससे पहले पुरातत्वविदों को यहां एक खुली नाली, एक बंद चैनल और छोटे टैंक भी मिले. शिवकलाई में दफन कलश में मिले चावल के छिलके 3,200 साल पुराने पाए गए, और यह भी पता लगा कि तमिल लोगों को 2172 ईसा पूर्व यानी 4,200 साल पहले लोहे की तकनीक के बारे में जानकारी थी.

स्टालिन ने जिस अध्ययन को मंजूरी दी, उसके प्रमुख रिसर्चर के. राजन और तमिलनाडु राज्य पुरातत्व विभाग के आर. शिवनाथन हैं. उन्होंने 'तमिलनाडु के सिंधु चिह्न और भित्तिचित्र चिह्न - एक रूपात्मक अध्ययन' नाम से रिपोर्ट पेश की. इसमें तमिलनाडु भर के 140 पुरातात्विक स्थलों से 15,000 से अधिक भित्तिचित्र युक्त बर्तनों के टुकड़ों का डॉक्यूमेंटेशन, डिजिटाइजेशन और क्लासिफिकेशन शामिल था. फिर इनकी तुलना सिंधु घाटी स्थलों से बरामद 4,000 कलाकृतियों से की गई, जिनमें मुहरें भी शामिल थीं.

स्टडी के मुताबिक, तमिलनाडु की साइटों पर 42 'आधार चिह्न', 544 'रूपांतर' और 1,521 'संयुक्त रूप' की पहचान की गई. लेखकों ने लिखा, "42 आधार चिह्नों और उनके रूपों में से लगभग 60 फीसद वैसी ही पाई गईं, जैसी वे सिंधु लिपि में दर्ज हैं. इसके अलावा दक्षिण भारत के 90 फीसद से अधिक भित्तिचित्र चिह्न और सिंधु घाटी सभ्यता के भित्तिचित्र चिह्नों में समानताएं पाई गईं."

इंडियन एक्सप्रेस की एक रिपोर्ट के मुताबिक, स्टडी में कहा गया है कि सिंधु घाटी और दक्षिण भारत के स्थलों पर एक जैसे भित्तिचित्रों के निशानों का पाया जाना इस बात का संकेत हैं कि उनके बीच सांस्कृतिक संपर्क रहा है. साथ ही, हाल की कालक्रमिक तिथियों से संकेत मिलता है कि जब सिंधु घाटी ताम्र युग से गुजर रही थी, तब दक्षिण भारत लौह युग (यानी, एक अधिक उन्नत काल) में था. इस अर्थ में दक्षिण भारत का लौह युग और सिंधु का ताम्र युग समकालीन हैं. अगर दोनों समकालीन हैं, तो सीधे तौर पर या मध्यवर्ती क्षेत्रों के जरिए सांस्कृतिक आदान-प्रदान की संभावना है. साथ ही कहा गया है कि इस नजरिए का समर्थन करने के लिए अधिक भौतिक प्रमाण और ठोस डेटा की जरूरत है.

पांच जनवरी को जब स्टालिन स्टडी के निष्कर्षों के बारे में बात कर रहे थे तब उन्होंने सिंधु घाटी के प्रतीक चिह्नों को तमिल परंपरा से जोड़ने की कोशिश की. उन्होंने खास तौर से सिंधु घाटी की मुहरों को प्राचीन तमिल परंपरा जल्लीकट्टू (बैल को काबू में करने वाले खेल) से जोड़ते हुए कहा, "सिंधु घाटी में बैल थे. बैल द्रविड़ प्रतीक हैं. बैल सिंधु घाटी से अलंगनल्लूर (मदुरै के पास एक गांव जो जल्लीकट्टू के लिए प्रसिद्ध है) तक फैले हुए थे. प्राचीन तमिल साहित्य में बैल को काबू में करने के खेल के समृद्ध संदर्भ हैं और सिंधु घाटी की एक मुहर पर एक व्यक्ति द्वारा बैल को काबू में करने की कोशिश करने के निशान हैं."

5 जनवरी को अपने भाषण में स्टालिन ने कहा कि मार्शल द्वारा सिंधु घाटी सभ्यता की खोज इतिहास में एक अहम मोड़ था. मार्शल ने तर्क दिया था कि सिंधु घाटी सभ्यता आर्य सभ्यता से पहले की थी और सिंधु घाटी में बोली जाने वाली भाषा द्रविड़ हो सकती है. उनकी खोज से यह धारणा भी टूटी कि आर्य लोग भारत की ही उत्पत्ति हैं.

दरअसल, सिंधु घाटी सभ्यता की उत्पत्ति और आर्यों के आगमन का सिद्धांत भारत में अत्यंत विवादास्पद विषय हैं. स्क्रॉल की रिपोर्ट बताती है कि आर्यन सिद्धांत सबसे पहले औपनिवेशिक युग के दौरान पश्चिमी विद्वानों द्वारा सामने रखा गया था. इस सिद्धांत के अनुसार यूरोपीय या मध्य एशियाई "आर्यों" की एक प्रजाति भारतीय उपमहाद्वीप में घुसी और स्थानीय सिंधु घाटी सभ्यता को विस्थापित कर दिया. हालांकि कुछ इतिहासकार ही इस सिद्धांत का समर्थन करते हैं और तर्क देते हैं कि सिंधु घाटी पूर्व-वैदिक थी, जबकि अन्य ये तर्क देते हैं कि आर्य भारत के ही मूल निवासी थे.

बहरहाल स्टालिन जिस पांच हजार साल पुरानी सिंधु घाटी सभ्यता की लिपि को डिकोड करने के लिए प्रोत्साहन की बात कर रहे हैं, वो असल में उनके व्यापक 'द्रविड़ नैरेटिव' उद्देश्य को भी साधती है. मई 2021 में मुख्यमंत्री का कार्यभार संभालने के तुरंत बाद स्टालिन ने अपने ट्विटर प्रोफाइल में "द्रविड़ वंश से संबंधित" शब्द जोड़ दिए थे. इसके अलावा, सरकार के एक साल पूरे होने पर स्टालिन ने 'द्रविड़ शासन मॉडल' की बात की और राष्ट्रीय राजधानी सहित अन्य स्थानों पर अखबारों में इसके प्रचार के लिए विज्ञापन भी जारी किया.

जनवरी 2023 में यह फ्रेमिंग डीएमके सरकार और तमिलनाडु के राज्यपाल आरएन रवि के बीच विवाद का केंद्र बन गई थी, जब विधानसभा सत्र की शुरुआत में अपने पारंपरिक भाषण के दौरान उन्होंने "विकास के द्रविड़ मॉडल" का जिक्र किया. 2023 में तमिलनाडु का बजट पेश किए जाने के बाद स्टालिन ने कहा था कि यह 'द्रविड़ मॉडल का एक पूर्ण उदाहरण है.' उन्होंने एक बयान में कहा, "जब द्रविड़ मॉडल के अर्थ के बारे में पूछा गया, तो मैंने कहा कि यह एक समावेशी विकास मॉडल है."

इसे राज्य में विचारधारा और नैरेटिव के संघर्ष के रूप में भी देखा जा सकता है. जहां भारतीय जनता पार्टी (बीजेपी) ने इस सिद्धांत के पीछे अपना समर्थन दिया है कि आर्य 'बाहरी' नहीं थे, वहीं दक्षिण भारतीय राज्यों में नेता द्रविड़ नैरेटिव को लेकर आगे बढ़ते हैं, जो मानते हैं कि वे ही इस देश के मूल निवासी हैं.

Advertisement
Advertisement