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यूपी में गन्ने की सरकारी कीमत बढ़ी; योगी सरकार की 'शुगर पॉलिटिक्स’ का क्या है गणित?

यूपी में 46 लाख से अधिक गन्ना किसान हैं. गन्ना किसानों के बड़े समूहों का दबदबा पश्चिमी यूपी से लेकर पूर्व के हरदोई, बहराइच, लखीमपुर, बस्ती और गोरखपुर जैसे जिलों तक में है

UP Sugarcane price hike CM Yogi Adityanath
सीएम योगी आद‍ित्‍यनाथ (फाइल फोटो)
अपडेटेड 29 अक्टूबर , 2025

यूपी की योगी आदित्यनाथ सरकार ने 29 अक्टूबर को जब गन्ना किसानों के लिए राज्य परामर्शित मूल्य (SAP) में 30 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि का ऐलान किया, तो सरकार ने इसे किसानों के लिए “बड़ा तोहफा” बताया. लेकिन उत्तर प्रदेश की राजनीति को समझने वाले जानते हैं कि यह फैसला महज कृषि नीति नहीं, बल्कि एक सधी हुई चुनावी चाल भी है. 

यह फैसला ऐसे वक्त में आया है जब प्रदेश में पंचायत चुनावों की तैयारी शुरू हो चुकी है और विधानसभा चुनावों में डेढ़ साल से भी कम समय बाकी है. इस बढ़ोतरी के बाद अगैती गन्ना 400 रुपये प्रति क्विंटल और सामान्य गन्ना 390 रुपये प्रति क्विंटल हो गया है. योगी सरकार के चीनी उद्योग एवं गन्ना विकास मंत्री लक्ष्मी नारायण चौधरी का कहना है कि बीते आठ साल में 85 रुपये की वृद्धि कर सरकार ने किसानों की आय बढ़ाने का काम किया है. इससे प्रदेश के करीब 46 लाख गन्ना किसानों को फायदा मिलेगा और उन्हें लगभग तीन हजार करोड़ रुपये की अतिरिक्त आमदनी होगी.

यूपी में 46 लाख से अधिक गन्ना किसान हैं. गन्ना किसानों के बड़े समूहों का दबदबा पश्चिमी यूपी से लेकर हरदोई, बहराइच, लखीमपुर, बस्ती और गोरखपुर जैसे जिलों में है, यानी वही बेल्ट जहां BJP की राजनीतिक ज़मीन मजबूत है, लेकिन किसान असंतोष कभी भी माहौल बदल सकता है. पिछले दो वर्षों में गन्ने के दाम न बढ़ने से किसानों में नाराजगी बढ़ रही थी. ऐसे में यह फैसला राजनीतिक जोखिम को कम करने और ग्रामीण इलाकों में पार्टी का भरोसा फिर से मजबूत करने का प्रयास माना जा रहा है. 

योगी सरकार बनने के बाद से यह चौथी बार है जब गन्ना मूल्य बढ़ाया गया है. वर्ष 2017 में पहली बार 10 रुपये की वृद्धि हुई. 2021-22 में विधानसभा चुनाव से पहले 25 रुपये की बढ़ोतरी की गई. 2023-24 में लोकसभा चुनाव से पहले 20 रुपये बढ़े और अब 2025-26 में फिर 30 रुपये की वृद्धि हुई. हर बार यह बढ़ोतरी किसी न किसी चुनाव से पहले हुई है, जो यह दिखाती है कि गन्ना मूल्य निर्धारण प्रदेश की राजनीतिक टाइमिंग से गहराई से जुड़ा हुआ है. BJP जानती है कि गन्ना बेल्ट में किसानों की नाराजगी का असर सीधा सीटों पर पड़ सकता है. वर्ष 2012 और 2017 में भी यही हुआ था जब गन्ना मूल्य, भुगतान में देरी और चीनी मिलों की बंदी जैसे मुद्दे चुनावी हवा बदलने में अहम रहे थे.

हालांकि ताजा बढ़ोतरी से कुछ किसान संतुष्ट नहीं दिखते. बुलंदशहर के किसान राकेश सिरोही कहते हैं, “2012 में जो खाद-रसायन 900 रुपए में मिलते थे, आज 1800 रुपए के हो गए हैं. लागत 33 फीसदी बढ़ चुकी है, ऐसे में 30 रुपए की बढ़ोतरी से कोई बड़ा फर्क नहीं पड़ेगा. सरकार ने चुनाव को देखते हुए फैसला लिया है, लेकिन असल राहत अभी भी दूर है.” दूसरी तरफ हरदोई के किसान इस फैसले को “संजीवनी” मानते हैं. उनका कहना है कि इससे गन्ने की खेती में फिर से रुचि बढ़ेगी, जो बीते वर्षों में कम होती जा रही थी. पूर्वांचल के किसान मनोज राय के मुताबिक, “यह बढ़ोतरी अच्छी है, लेकिन हमारे इलाके में उत्पादन कम और लागत ज्यादा है. जलभराव, बीमारियों और खराब मौसम की वजह से यहां गन्ना अब घाटे की खेती बनता जा रहा है.” यह बयान साफ दिखाते हैं कि किसानों के बीच राहत की भावना तो है, लेकिन संतोष नही. खासकर पश्चिमी यूपी के मुकाबले पूर्वांचल में असंतोष गहरा है क्योंकि उत्पादन कम और लागत अधिक है.

BJP को पता है कि गन्ना बेल्ट ही पश्चिम यूपी की राजनीति का केंद्र है. यहां की 140 से ज्यादा विधानसभा सीटें किसी भी दल की किस्मत तय कर सकती हैं. किसान आंदोलन के दौरान BJP को झटका लगा था और कई क्षेत्रों में जाट-मुस्लिम समीकरण ने पार्टी की स्थिति कमजोर की थी. अब गन्ना मूल्य वृद्धि उसी नाराज तबके को साधने का एक औजार है. इसके साथ ही वर्ष 2026 के पंचायत चुनाव BJP के लिए “टेस्ट रन” हैं. पार्टी इन चुनावों में बेहतर प्रदर्शन कर 2027 की राह आसान बनाना चाहती है. ऐसे में गन्ना मूल्य बढ़ाना ग्रामीण वोट बैंक को साधने का सबसे सीधा तरीका है. 

गन्ना राजनीति हमेशा से यूपी की सत्ता की कुंजी रही है. चाहे चौधरी चरण सिंह हों, मुलायम सिंह यादव या फिर मायावती, हर सरकार ने इस फसल को अपनी राजनीतिक रणनीति में शामिल किया. लेकिन योगी आदित्यनाथ ने इसे “गवर्नेंस प्लस पॉलिटिक्स” मॉडल में बदल दिया है. गन्ना पर्ची की ऑनलाइन व्यवस्था, भुगतान में पारदर्शिता और एथेनॉल नीति के जरिए उन्होंने प्रशासनिक सुधारों को भी इस सियासी समीकरण में जोड़ा है.

गन्ना मंत्री चौधरी बताते हैं, “2017 से पहले प्रदेश गन्ना माफिया का सेंटर बन चुका था. कई मिलें बंद थीं, लेकिन अब चार नई मिलें खुली हैं, छह बंद मिलें फिर शुरू हुईं और 42 की क्षमता बढ़ाई गई है.” उनके मुताबिक पिछले आठ साल में 12 हजार करोड़ रुपये का निवेश गन्ना सेक्टर में हुआ है और भुगतान का रिकॉर्ड दोगुना हुआ है. यह आंकड़े BJP के राजनीतिक नैरेटिव को मजबूत करने के लिए अहम हैं, एक ऐसी पार्टी जो सिर्फ घोषणाएं नहीं करती, बल्कि सिस्टम में सुधार भी लाती है. पार्टी इसका इस्तेमाल ग्रामीण मतदाताओं को यह संदेश देने में करेगी कि “BJP सरकार ने किसानों के पैसे समय पर दिलाए और उनकी फसल का मूल्य बढ़ाया.” 

हालांकि सरकारी दावों के उलट भी कुछ स्थ‍ितियां हैं. उत्तर प्रदेश की चीनी मिलों पर गन्ना किसानों का करीब 2000 करोड़ रुपये से अधिक बकाया है. सरकार का दावा है कि हर पेराई सत्र में लगभग 95 फीसदी भुगतान समय पर किया जाता है, लेकिन कई निजी और सहकारी मिलों में बकाया अब भी लंबित है. पश्चिमी यूपी की कुछ मिलों ने तो किसानों के भुगतान में छह महीने से अधिक की देरी की है. किसानों का कहना है कि जब तक पूरा बकाया नहीं चुकता, मूल्य वृद्धि का असर अधूरा रहेगा.

सरकार की तरफ से यह भी जोर देकर कहा जा रहा है कि उत्तर प्रदेश का गन्ना मूल्य अब महाराष्ट्र और कर्नाटक से ज्यादा है, जहां 355 रुपये प्रति क्विंटल दर है. हालांकि हरियाणा (415 रुपये) और पंजाब (401 रुपये) अभी भी आगे हैं. हरियाणा ने हाल ही में 15 रुपये की वृद्धि की थी, जिससे वहां के किसानों की स्थिति बेहतर हुई. यूपी के किसान अब यह सवाल उठा रहे हैं कि “जब हरियाणा में रेट 415 है, तो हमारे यहां 450 क्यों नहीं?” किसान यूनियन के नेता आलोक वर्मा ने कहा, “2017 में BJP ने वादा किया था कि गन्ने का भाव 450 रुपए प्रति क्व‍िंटल किया जाएगा. अब भी वह पूरा नहीं हुआ. योगी सरकार ने कदम तो अच्छा उठाया है, लेकिन किसान अब भी घाटे की खेती कर रहा है.”

गन्ने की खेती यूपी में अब सिर्फ फसल नहीं, एक राजनीतिक अर्थव्यवस्था बन चुकी है. राज्य में करीब 120 से ज्यादा चीनी मिलें हैं और यह उद्योग लगभग 46 लाख किसानों के जीवन से सीधा जुड़ा है. लेकिन लगातार बढ़ती लागत, महंगे बीज, डीजल-खाद की कीमतें और जलवायु बदलाव ने मुनाफे को सीमित कर दिया है. कई किसान अब धान या सब्जियों की ओर लौटने लगे हैं. सरकार के इस निर्णय से कुछ राहत जरूर मिलेगी, लेकिन दीर्घकालिक समाधान के लिए सिर्फ मूल्य वृद्धि काफी नहीं. विशेषज्ञ मानते हैं कि सरकार को लागत नियंत्रण, उत्पादन बढ़ाने और भुगतान प्रक्रिया को और सरल बनाने पर भी ध्यान देना होगा. 

BJP इस फैसले के जरिए दोहरा लाभ चाहती है, एक तरफ किसानों को राहत देने का संदेश, दूसरी तरफ विपक्ष के “किसान विरोधी सरकार” के नैरेटिव को कमजोर करना. सपा प्रमुख अखिलेश यादव ने ट्वीट किया, “अब जब चुनाव नजदीक हैं, BJP को किसानों की याद आई है.” लेकिन BJP के रणनीतिकारों के लिए यह मायने रखता है कि ग्रामीण इलाकों में उनकी बात दोबारा सुनी जाए, भले ही विपक्ष इसे “सियासी मिठास” कहे. फिलहाल यह फैसला चुनावी हवाओं में मीठी खुशबू जरूर घोल रहा है, लेकिन 2027 में इसका असली स्वाद तब सामने आएगा जब किसान तय करेंगे कि उन्हें इस मिठास में भरोसा महसूस होता है या नहीं. 

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