
दिव्यांशु वर्मा की कंपनी रेडिनेंट इनोवेशन ओएनजीसी और आईजीएस एयरपोर्ट जैसी संस्थाओं को साइबर सिक्योरिटी की सुविधा उपलब्ध कराती है. अब उनकी कंपनी आपदा को रोकने के लिए बिहार सरकार के साथ काम करने की तैयारी में है. वे बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकार के लिए ऐसे सॉल्यूशन तैयार करने की योजना बना रही है, जिससे किसी भी आपदा की सूचना जल्द से जल्द मिल सके और सरकार का रिस्पांस टाइम बेहतर हो जाये.
"कहां साइबर सिक्योरिटी और कहां आपदा प्रबंधन? आपदा प्रबंधन में आपका अनुभव नहीं है, तो यह काम आप कैसे करेंगे?" यह पूछने पर दिव्यांशु कहते हैं, "दरअसल तरीका एक ही है, वहां भी हम 'इंटरनेट ऑफ थिंग्स' और सेंसर का इस्तेमाल कर रहे हैं, यहां भी इसी का इस्तेमाल करेंगे. हमें बस अपने सॉल्यूशन को कस्टमाइज करना है. हम इससे बाढ़ और भूकंप जैसी प्राकृतिक आपदा की रियल टाइम वार्निंग में तो मददगार हो ही सकते हैं, गैस लीकेज, आग लगने और ऐसी दूसरी घटनाओं में भी तत्काल सरकार को सूचना दे सकते हैं."
दिव्यांशु ऐसे अकेले स्टार्टअप नहीं हैं, जो बिहार राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकार की मदद करने का मन बना रहे हैं. राज्य के बीस से अधिक स्टार्टअप जिनमें ज्यादातर तकनीक, एआई, ड्रोन, एआर-वीआर के फील्ड में काम कर रहे हैं, ऐसी योजना बनाने में जुटे हैं, जिससे राज्य को आपदा के संकट से मुकाबला करने में मदद मिले.

इनमें एआर विलेज के नितिन तिवारी एक मोबाइल वैन में वर्चुअल रियलिटी से जुड़ा ऐसा प्रोग्राम तैयार कर रहे हैं, जिससे बिहार के स्कूली बच्चों को आपदाओं से बचने के लिए प्रशिक्षित किया जा सके. एआर-वीआर(ऑगुमेंटेड रियलिटी-वर्चुअल रियलिटी) से तैयार यह प्रशिक्षण ऐसा होगा, जिसमें बच्चे यह महसूस करेंगे कि वे बाढ़, भूकंप या वज्रपात जैसी आपदा के बीच फंसे हैं और उनसे बचने का तरीका सीख रहे हैं.
इसी तरह वैमानिका एरोस्पेस के मनीष दीक्षित ड्रोन के जरिये आपदाग्रस्त इलाकों में राहत, दवाईयां आदि पहुंचाने और वहां संचार व्यवस्था को ठीक करने के तरीके पर काम कर रहे हैं. वे कहते हैं, हम ऐसे ड्रोन भी तैयार कर रहे हैं, जो सौ किलो तक वजन वाले इंसान को रेस्क्यू भी कर सके औऱ दो किमी दूर ले जा सके.
अभिषेक गौतम जो उत्तराखंड सरकार के साथ ट्रामा हेल्थ के मुद्दे पर काम कर रहे हैं, वे अपने एंबुला एप की मदद से बिहार में आपदा के वक्त पीड़ितों को सही अस्पताल में पहुंचाने की तैयारी में जुटे हैं. वहीं सुंधाशु ऐसा सिस्टम बना रहे हैं, जो पता लगा सके कि किसी आपदा में कितने लोग फंसे हैं. उनकी ट्रैकिंग की जा सके. वहीं मनीष आपदा की स्थिति में मोबाइल पर सायरन जैसी आवाज दे कर चेतावनी देने वाला एप तैयार कर रहे हैं.
इन सबकी शुरुआत दो फरवरी को हुई. इससे पहले इन लोगों ने कभी सोचा नहीं था कि वे अपने स्टार्टअप के जरिये बिहार जैसे आपदा प्रभावित राज्य को राहत देने का भी काम कर सकते हैं. मगर राज्य के आपदा प्रबंधन प्राधिकार के उपाध्यक्ष ने अपनी पहल पर ऐसे स्टार्टअप की बैठक बुलाई और उस बैठक में उन्होंने इनलोगों से आपदा में बचाव के लिए सुझाव मांगे.
बिहार में 900 से अधिक स्टार्टअप के साथ काम करने वाली संस्था बी-हब के प्रभारी और चंद्रगुप्त इंस्टीट्यूट ऑफ मैनेजमेंट, पटना के सीईओ कुमोद कुमार कहते हैं, "इस बैठक में कुल 29 स्टार्टअप शामिल हुए. यह बैठक इनलोगों के लिए काफी उत्साहक वर्धक साबित हुई. ये सभी लोग अब सॉल्यूशन तैयार करने और प्राधिकार के सामने प्रस्ताव पेश करने की तैयारी में जुट गये हैं. कुछ लोगों ने तो मेरे सामने प्रस्ताव भी भेजे हैं."

दरअसल कुछ दिनों पहले प्राधिकार के सदस्य पीएन राय को बी-हब में व्याख्यान के लिए आमंत्रित किया गया था. कुमोद कहते हैं, "उस रोज उनसे कई स्टार्टअप वालों को मिलाया भी गया. संभवतः वहीं से इस योजना ने आकार लिया होगा."
इस योजना के बारे में पूछने पर प्राधिकार के उपाध्यक्ष उदय कांत कहते हैं, "बिहार में आपदाओं का असर कम करने के लिए हमारे पास दो चुनौतियां हैं. पहला आपदा का पूर्वानुमान जितना मुमकिन हो उतना पहले लगा लेना, दूसरा रेस्पांस टाइम को काफी कम कर लेना. अगर हमें समय से पहले आपदा की सूचना मिल जाये और हम समय से बचाव और राहत में जुट जायें तो आपदा से होने वाला नुकसान काफी कम हो जाता है. मगर फिलहाल हमारे पास जो तरीके हैं वे पारंपरिक और पुराने हैं. वे काफी समय लेते हैं. इसलिए प्राधिकार ने दो मोर्चों पर काम शुरू किया है. पहला आईआईटी और इसरो जैसी तकनीकी संस्थाओं से समाधान तैयार करवाना और अब हम इन स्टार्टअप की मदद से उस समाधान को पूरे राज्य में लागू कराने की कोशिश कर रहे हैं."
मगर स्टार्टअप ही क्यों? इस सवाल पर उदय कांत कहते हैं, "दरअसल ये नई पीढ़ी के युवा नये तरीके से सोचते हैं. बदलती दुनिया में एआई, एआर-वीआर, ड्रोन आदि तकनीक से इनका जुड़ाव है. इसलिए प्राधिकार को लगता है कि ये ज्यादा प्रभावी तरीके से इस काम को कर सकेंगे."
बिहार में आपदा प्रबंधन विभाग के साथ-साथ आपदा को लेकर जागरुकता और प्रशिक्षण के लिए आपदा प्रबंधन प्राधिकार भी काम करता है. इसने हाल के वर्षों सें राज्य के सभी सरकारी स्कूल के बच्चों को आपदा बचाव का प्रशिक्षण देने का काम शुरू किया है. इसके तहत हर शनिवार को एक घंटी इससे संबंधित प्रशिक्षण की होती है.
प्राधिकार ने हाल के वर्षों में नई तकनीक का भरपूर उपयोग करने की तैयारी की है. प्राधिकार ने आईआईटी, पटना की मदद से एक पेंडेंट बनवाया है, जिससे वज्रपात की स्थिति में खेतों में काम कर रहे किसानों को तत्काल सूचना दी जा सके. इस पेंडेंट का नाम नीतीश रखा गया है और यह राज्य के सभी किसानों के बीच बंटवाया जायेगा. उन्हें इसे गले में पहनकर खेत जाने की सलाह दी जायेगी, ताकि वज्रपात की पूर्व सूचना दी जा सके. वज्रपात के अलावा यह पेंडेंट दूसरी आपदाओं की भी सूचना दे सकेगा.
दिलचस्प है कि प्राधिकार आपदा से बचाव के लिए आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस एंड मशीन लर्निंग, एआर-वीआर टेक्नोलॉजी, सेटेलाइट के जरिये पूर्वानुमान, ड्रोन, नैनो टेक्नोलॉजी आदि का इस्तेमाल भी आपदा के पूर्वानुमान, प्रशिक्षण और राहत अभियान के लिए करने जा रहा है. इसके अलावा डिजिटल ट्विनिंग का भी इस्तेमाल होने जा रहा है, जो शहरी बाढ़ की रोकथाम में मददगार होगी. बिहार शायद इन नई तकनीक का इस्तेमाल करनेवाला पहला राज्य होगा.
उदय कांत कहते हैं, "हमने सुना है कि चीन ने एआई के इस्तेमाल से भूकंप का 70 फीसदी पूर्वानुमान लगाने में सफलता हासिल की है. हम इसे नब्बे फीसदी तक ले जाने की कोशिश में हैं. क्योंकि बिहार में भूकंप का खतरा अधिक है. यहां ऐसे कई डोरमेंट फॉल्ट हैं, जो कभी भी जाग सकते हैं."
अब तक पारंपरिक तरीके से प्रचार प्रसार, जागरुकता और प्रशिक्षण देने वाला प्राधिकार अब नई तकनीक से लैस हो रहा है. इसके लिए प्राधिकार देश की कई बड़ी टेक संस्थाओं से मदद ले रहा है. उनका विवरण निम्न है.
• आईआईटी पटना- नीतीश पेंडेंट तैयार किया. रैपिड विजुअल स्क्रीनिंग, के जरिये भवन की गुणवत्ता की जांच करना और उसका स्केल तैयार करना. यह ऐतिहासिक भवनों के संरक्षण में भी मददगार होगा.
• एनआईटी पटना- बिहार की हेरिटेज विल्डिंग को क्षरण से बचाना, ऐसा वातावरण बनाना कि उन्हें नुकसान कम हो.
• सी-डॉट- ऐसे चिप्स या सिस्टम तैयार करना जो शहरों में लगेंगे. जिससे आपदा की पूर्वसूचना मिलेगी.
• इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ साइंस, बंगलूर- डिजिटल ट्विनिंग की सुविधा, इससे शहरी बाढ़ की रोकथाम में मदद मिलेगी. इससे बिहार की सभी नदियों के बेसिन जो नेपाल तक फैला है उसका अध्ययन भी होगा.
• इसरो- सैटेलाइट की मदद से संभावना, आपदा के पूर्वानुमान, उपलब्ध आंकड़ों से एआई की मदद से पूर्वानुमान.
• टीसीएस- वर्चुअल रियलिटी के आपदा से जुड़े पाठ्यक्रम तैयार कराना, जो राज्य के सभी स्कूली बच्चों को पढ़ाये जायेंगे.
• टाटा इंस्टीट्यूट ऑफ सोशल साइंसेज- प्राधिकार के काम में कितनी कमी है और इसे कैसे बेहतर किया जा सकता है, इसका अध्ययन करेंगे, बेहतर बनाने में सहयोग करेंगे.
• इंडियन पब्लिक हेल्थ इंस्टीट्यूशन, गांधी नगर और विश्व स्वास्थ्य संगठन- हीट वेब की आपदा को कम करने में मदद करेंगे.
• आईआईटी रूड़की- भूकंप के पूर्वानुमान में मदद कर रही है.
इसके अलावा हाल के दिनों में पंचायत स्तर पर ऑटोमेटिक वेदर मॉनिटरिंग सेंटर लग गये हैं. इनसे स्थानीय मौसम की सूचना मिल रही है. यह भी आपदा प्रबंधन में मददगार साबित हो रही है. खासकर बाढ़ और सूखे को लेकर. प्राधिकार इन तकनीकों का इस्तेमाल दिव्यांगों को आपदा की स्थिति में खुद को सुरक्षित रखने में भी देने की तैयारी कर रहा है. इसके लिए ब्रेल लिपी में जागरुकता पुस्तकें तैयार की गई हैं.