
जनवरी की 28 तारीख को प्रयागराज में अगले दिन मौनी अमावस्या पर होने वाले शाही स्नान की तैयारी चल रही थी. रात के करीब 2 बजे थे, तभी श्रद्धालुओं की भारी भीड़ संगम की ओर बढ़ने लगी.
लेकिन भीड़ के संगम पर पहुंचने से पहले अफरा-तफरी मची और देखते ही देखते प्रयागराज में अपनों के खोने के गम में चीखते लोग, पुलिस और एंबुलेंस की गाड़ियों के सायरन की आवाज गूंजने लगीं. लेकिन ये सब हुआ कैसे?
इस तरह की भगदड़ के पीछे की साइंस क्या होती है और क्या पहले भी इस तरह की घटनाएं हुई हैं?
मौनी अमावस्या के शाही स्नान से पहले आधी रात को कुंभ में क्या हुआ?
भगदड़ से पहले: संगम स्नान करने के लिए पहुंचे श्रद्धालुओं के मुताबिक रात के करीब 1 बजे थे. संगम में स्नान करने के लिए आए वाले लोगों की भीड़ घाट की ओर बढ़ने लगी. पुलिस-प्रशासन ने भीड़ को नियंत्रित करने के लिए कुंभ को कई सेक्टर में बांट रखे हैं और हर सेक्टर में बांस-बल्लियों के जरिए बैरिकेडिंग करके लोगों के गंगा घाट जाने के लिए रास्ता बनाया गया है.
इन रास्तों के दोनों तरफ टेंट लगे हैं. मौनी अमावस्या से एक दिन पहले यहां भारी भीड़ जमा हुई थी. ऐसे में काफी सारे लोग बैरिकेडिंग के पीछे खुले आसमान में ही सो रहे थे.

रात के करीब 1.30 बजते ही भीड़ अचानक बढ़ने लगी और ये सभी लोग घाट की ओर तेजी से भागने लगे. इसी बीच बैरिकेडिंग के बगल में सो रहे कुछ लोगों के पैरों में फंसकर कुछ लोग गिर गए. इन लोगों को कोई बचा पाता इससे पहले श्रद्धालुओं की भीड़ गिरे हुए लोगों को कुचलकर आगे बढ़ती चली गई.
समाचार एजेंसी आईएएनएस से बात करते हुए कर्नाटक की विद्या साहू ने बताया कि स्नान करने के दौरान अचानक भीड़ बढ़ी और पीछे से उन्होंने तेज धक्का महसूस किया और हर कोई जान बचाकर भागने लगा. उनके 60 सदस्यों के समूह में से 5 लोगों का कुछ पता नहीं चल पाया है.
समाचार एजेंसी पीटीआई ने अधिकारियों के हवाले से बताया कि संगम पर लोगों की भीड़ ने एक बैरियर को लांघने की कोशिश की, जिस दौरान बैरियर टूटा और कई लोग घायल हो गए. अब मीडिया रिपोर्ट्स में इस घटना की दो मुख्य वजह बताई जा रही हैं…
1. अमृत स्नान की वजह से ज्यादातर पांटून पुल बंद थे. इसके कारण संगम पर पहुंचने वाली करोड़ों की भीड़ इकट्ठा होती चली गई. इससे बैरियर टूटा और भगदड़ की स्थिति बन गई.
2. संगम नोज पर एंट्री और एग्जिट के रास्ते अलग-अलग नहीं थे. लोग जिस रास्ते से आ रहे थे, उसी रास्ते से वापस जा रहे थे. ऐसे में एक ही रास्ते पर जाम जैसी स्थिति बन गई.
भगदड़ के बाद: वरिष्ठ प्रशासनिक अधिकारी और पुलिस अधिकारी तुरंत घटना स्थल पर पहुंचे और घायलों को मेले में स्थित अस्पताल ले जाया गया. घटनास्थल पर बेतरतीब बिखरी लाशें और लोगों की चीख सुनाई पड़ रही थी.
श्रद्धालुओं की सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए प्रशासन और कई अखाड़ों ने अमृत स्नान (पवित्र डुबकी) रद्द करने का फैसला लिया. मेले में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाने के लिए अतिरिक्त रैपिड एक्शन फोर्स की एक टीम तैनात की गई. हालांकि, बाद में अखाड़ों के महंत ने शाही स्नान करने की बात कही है.

क्या कुंभ में हादसे की बड़ी वजह 'फाइट एंड फ्लाइट रिएक्शन' है?
हां, कुंभ में घटी घटना को अगर देखें तो ऐसा लगता है कि इस बड़े आयोजन में बैरियर टूटने और वहां सोए लोगों के पैरों में फंसने की वजह से कई लोग गिर गए. इसकी वजह से वहां भगदड़ की स्थिति बनी. किसी भी जगह पर भगदड़ के लिए व्यवस्थाओं की तकनीकी खामियां तो जिम्मेदार होती ही हैं, साथ ही इंसानों के मनोविज्ञान की भी इसमें अहम भूमिका होती है.
स्विट्जरलैंड की ETH ज्यूरिख में कंप्यूटेशनल सोशल साइंस के प्रोफेसर डर्क हेलबिंग काफी समय से भीड़ और भगदड़ पर रिसर्च कर रहे हैं. इनके मुताबिक भीड़ में भगदड़ की एक वजह लोगों के मन में डर, घबराहट और चिंता होती है. इससे शरीर में एड्रिनेलिन हॉर्मोन का लेवल बढ़ने लगता है.
इसके बढ़ते ही हमारे दिमाग में 'फाइट एंड फ्लाइट रिएक्शन' पैदा होता है. इसका मतलब ये हुआ कि लोग डर की वजह से भीड़ से जान बचाकर भागना चाहते हैं. इसके लिए वे धक्का-मुक्की करने के साथ ही भागने लगते हैं. इस दौरान किसी के गिरने पर भी वे रुकने के बजाय भागना चाहते हैं. इससे भगदड़ मचती है और भीड़ में कुचलकर लोग मरने लगते हैं.
कुंभ में क्या हुआ: कुंभ में बैरियर टूटने पर लोग घायल हुए. वहां हो-हल्ला हुआ और सामान्य रूप चोट-चपेट का शिकार हुए लोग बचकर भागने की कोशिश करने लगे. उन्हें देख और भी लोग भागने लगे. परिणाम ये हुआ कि भीड़ बैरियर के बगल में सोए लोगों को कुचलकर आगे बढ़ने लगी. वहां सोए लोगों के पैर में फंसकर कुछ लोग गिरे भी और भीड़ उन्हें कुचलकर आगे बढ़ने लगी. यानी कि अब तक लोगों में 'फाइट एंड फ्लाइट रिएक्शन' हावी हो चुका था.
भगदड़ में लोगों की मौत कैसे होती है?
भगदड़ में भागने के दौरान जब लोग एक-दूसरे पर गिरने लगते हैं तो भीड़ में फंसे लोगों के लिए सांस लेना मुश्किल हो जाता है. सांस नहीं लेने के कारण दम घुटने से हुई मौत को 'एसफिक्सिया' कहा जाता है.
सफोल्क यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर प्रोफेसर जी कीथ स्टिल एक इंटरव्यू में कहते हैं कि अनियंत्रित भीड़ में का दबाव काफी ज्यादा होता है. इतना ज्यादा कि जब इस भीड़ में कोई फंस जाता है तो उसके लिए सांस लेना असंभव हो जाता है. इस तरह गिरे हुए लोगों की दम घुटने से मौत हो जाती है.
इससे पहले 5 बार कुंभ में मच चुकी है भगदड़
कुंभ में पहली बार भगदड़ नहीं मची है, बल्कि यह पांचवी बार है जब कुंभ में भगदड़ मचने की वजह से 10 से ज्यादा लोगों की मौत हुई है. अब एक-एक कर उन पांच मौकों को जानते हैं…
1954: आजादी के बाद होने वाले इस कुंभ के लिए प्रशासनिक स्तर पर उतनी तैयारी नहीं हो पाई थी. 3 फरवरी 1954 को इलाहाबाद में कुंभ मेले में मौनी अमावस्या के पावन अवसर पर पवित्र स्नान करने के लिए उमड़े श्रद्धालुओं में भगदड़ मच गई. इस दौरान लगभग 800 लोग नदी में डूबकर या तो कुचलकर मर गए.
1986: हरिद्वार में लगे इस कुंभ मेले में भगदड़ मची. इसमें भी सैकड़ों लोगों की मौत का दावा किया जाता है. मीडिया रिपोर्ट्स के मुताबिक इस हादसे में 200 लोगों की मौत हुई थी.
2003: नासिक कुंभ में भगदड़ मची, जिसमें 39 तीर्थयात्रियों की जान चली गई थी. इस कुंभ हादसे में 100 लोग जख्मी हो गए थे.
2010: हरिद्वार में 14 अप्रैल 2010 को होने वाले शाही स्नान के दौरान साधुओं और श्रद्धालुओं के बीच झड़प के बाद मची भगदड़ में 7 लोगों की मौत हो गई थी और 15 लोग घायल हो गए थे.
2013: प्रयागराज कुंभ में ये हादसा इलाहाबाद रेलवे स्टेशन पर हुआ था. इस हादसे में 42 लोगों की मौत हो गई थी. रेलवे स्टेशन पर एक फुटब्रिज पर रेलिंग गिरने के बाद भगदड़ मचने से ये हादसा हुआ.